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रमाकान्त द्विवेदी 'रमता'

थाती में आज प्रस्तुत है जन कवि रमाकान्त द्विवेदी 'रमता जी' की दो कविताएं. जो अन्ना आन्दोलन के परिप्रेक्ष्य में समीचीन हैं.     रमाकान्त  द्विवेदी  'रमता' हमनी साथी हईं हमनी देशवा के नया रचवइया हई जा. हमनी साथी हईं, आपस में भईया हईं  जा हमनी हई जा जवान,  राहे  चली सीना तान  हमनी जुलुमिन से पंजा लड़वईया हईं जा  सगरे हमनी के दल, गाँव नगर हलचल  हमनी  चुन चुन कुचाल मेटवइया हईं जा  झंडा हमनी के लाल  तीनो काल में कमाल   सारे  झंडा  ऊपर  झंडा उड़वइया   हईं जा  बहे कइसनो बयार नईया होइये जाई पार  हमनी देशवा के नईया खेवइया हईं जा.     ०१-०५-१९८५ रउरा  नेता भईलीं रउरा  नेता  भइलीं , सेने  के  सलाम  नइखे  वोट    झिटलीं, अब   हमनीं  से   काम   नइखे करीं छूट के मनमानी  जम  के भोगीं राजधानी छाहाँ    बानी    रउरा,   बेधत कव नो घाम नइखे हमनीं भूख, गैस से मरीं, उलटे रेल, आग में जरीं चाहे    बाढ़     में     डूबीं,       लागत  राउर दाम नइखे राउर   चप्पल चटू   दलाल, चानी  काटसु ,  चाभसु मॉल  रउरा    सब

प्रणय कृष्ण

(भ्रष्टाचार-विरोधी आन्दोलन पर प्रणय कृष्ण की लेखमाला की आख़िरी किस्त) प्रणय कृष्ण यह जनता की जीत है It is not enough to be electors only. It is necessary to be law-makers; otherwise those who can be law-makers will be the masters of those who can only be electors." -Dr.Ambedkar ( "महज मतदाता होना पर्याप्त नहीं है. कानून-निर्माता होना ज़रूरी है, अन्यथा जो लोग कानून-निर्माता हो सकते हैं, वे उन लोगों के मालिक बन बैठेंगें जो कि महज चुननेवाले हो सकते हैं." -डा. अम्बेडकर) अन्ना ने आज अनशन तोड़ दिया... चुनने वालों ने कानून-निर्माताओं को बता दिया कि न तो वे सदा के लिए महज चुनने वाले बने रहेंगे और न ही कानून-निर्माताओं को अपना मालिक बनने देंगे. सिटिज़न चार्टर, प्रदेशों में लोकायुक्त की नियुक्ति का प्रावधान और निचली ब्यूरोक्रेसी की जांच, निरीक्षण और सज़ा को लोकपाल के दायरे में लाने की बात सिद्धांत रूप में संसद ने मानकर एक हद तक अपनी इज़्ज़त बचाई है. वोट अगर 184 के तहत होता, तो इनके लिए इज़्ज़त बचाना और भी मुश्किल होता. साफ़ पता चल जाता कि कौन कहां है. क्रास-वोटिंग भी ह

संतोष कुमार चतुर्वेदी

 मित्रो, अपनी एक तरोताजी रचना के साथ मैं आपसे मुखातिब हूँ. कविता कैसी बन पडी है  इस पर आप  के बेबाक सुझावों की हमें उत्सुकता से प्रतीक्षा रहेगी.  संतोष कुमार चतुर्वेदी  घड़ी बहुत जिद्दी है मेरी घड़ी  चाहे जितनी बार मिलाओ इसे किसी दूसरी  घड़ी आकाशवाणी या दूरदर्शन के समय से हर बार यह अपना रूतबा दिखलाएगी अपना ही राग अलापेगी  जिसके मुताबिक खुलते और बंद हुआ करते हैं दफ्तर देश  भर के     उस सरकारी राष्ट्रीय मानक समय को मुंह  बिराती है कुछ मिनट आगे रह कर  महत्वाकांक्षाओं से कुछ फर्लांग पीछे  अपनी आकांक्षाओं में  मस्त-व्यस्त रहती है यह जिद्दी घडी   कल जिस समय सूर्य ने  अंगड़ाई ली कल जिस समय आसमान की छत पर  चाँद चहलकदमी कर रहा  था और  सितारों के दिए जलने शुरू हुए  आज ठीक उसी  वक्त पर ऐसा नहीं होगा गोया हर वक्त दुनिया का निखालिस अनोखा वक्त  एक-एक आदमी के चेहरे और स्वभाव की ही तरह  अपने आप में अनूठा अमूल्य  मुनादी करती  फिरती है यह जिद्दी घडी इसकी जिद का आलम ऐसा कि बिलकुल  अपना ही  घंटा... मिनट.. सेकेण्ड.. ईजाद करते. ब

प्रणय कृष्ण

प्रणय कृष्ण अन्ना,अरुंधती एवं देश        (पेश है, अन्ना हजारे की अगुवाई में चल रहे भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन पर अभी चल रही बहस को समेटता यह प्रणय कृष्ण के लेखमाला की यह दूसरी किस्त) आज अन्ना के अनशन का आठवाँ दिन है. उनकी तबियत बिगड़ी है. प्रधानमंत्री का ख़त अन्ना को पहुंचा है. अब वे जन लोकपाल को संसदीय समिति के सामने रखने को तैयार हैं. प्रणव मुखर्जी से अन्ना की टीम की वार्ता चल रही है. सोनिया-राहुल आदि के हस्तक्षेप का एक स्वांग घट रहा है जिसमें कांग्रेस, चिदंबरम, सिब्बल आदि से भिन्न आवाज में बोलते हुए गांधी परिवार के बहाने संकट से उबरने की कोशिश कर रही है. आखिर उसे भी चिंता है क़ि जिस जन लोकपाल के प्रावधानों के खिलाफ कांग्रेस और भाजपा दोनों का रवैया एक है, उस पर चले जनांदोलन का फायदा कहीं भाजपा को न मिल जाय. ऐसे में कांग्रेस ने सोनिया-राहुल को इस तरह सामने रखा है मानो वे नैतिकता के उच्च आसन से इसका समाधान कर देंगे और सारी गड़बड़ मानो सोनिया की अनुपस्थिति के कारण हुई. इस कांग्रेसी रणनीति से संभव है क़ि कोई समझौता हो जाए और कांग्रेस, भाजपा को पटखनी दे फिर से अपनी साख

प्रणय कृष्ण

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प्रणय  कृष्ण    आज की आलोचना के मुख्य स्वर प्रणय कृष्ण का  जन्म  इलाहाबाद में २० नवंबर 1965 को हुआ था.  इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम ए करने के पश्चात् इन्होंने जे  एन यू से  एम फिल किया. १९९३-१९९४ में जे  एन यू छात्र संघ के अध्यक्ष बने. २००७ में प्रणय  ने अपना शोध  कार्य पूरा किया जो 'उत्तर औपनिवेशिकता  के श्रोत' नाम से  प्रकाशित और  चर्चित हो चुकी है. इनकी एक और  पुस्तक 'अज्ञेय का काव्य: प्रेम और मृत्यु'  २००५ में प्रकाशित हो चुकी है. आजकल इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में एसोसिएट  प्रोफ़ेसर के रूप में कार्यरत  हैं साथ ही वैचारिक पत्रिका  समकालीन जनमत का संपादन और लेखक संगठन जसम के राष्ट्रीय महासचिव के महत्त्वपूर्ण दायित्व का निर्वहन भी कर रहे है.   संपर्क- टी-१०, पंचपुश्पा अपार्टमेंट, अशोक नगर, इलाहाबाद   २११००१. अन्ना और संसद 'जिसे आप पारलियामेंटों की माता कहते हैं वह पारलियामेंट तो बाँझ और बेसवा है. ये दोनो  शब्द बहुत कड़े हैं,तो भी उसे अच्छी तरह लागू होते हैं. मैंने उसे बाँझ कहा. क्योंकि अब तक उस पारलियामेंट ने अपने आप एक भ

हीरा लाल की कविताएं

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हीरा लाल हीरा लाल का  जन्म  इलाहाबाद   के ऊँचामंडी मुहल्ले   में एक जनवरी 1949 को  एक  सामान्य परिवार में हुआ। घरेलू परिस्थितियों  के चलते  हाईस्कूल की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास करने के बावजूद वे आगे की पढ़ाई नहीं कर सके। बहुत दिनों तक मिठाई बेच कर  जीविकोपार्जन करते रहे। अभी हाल ही में इनका पहला कविता संग्रह 'कस में  हीरा लाल' साहित्य भण्डार इलाहाबाद से प्रकाशित हुआ है। हीरा लाल की कवितायेँ सहज-सरल होने  के बावजूद अपने कथ्य में सघन होती हैं। इन्होने अपनी जो काव्य भाषा  ईजाद  की है वह बिलकुल इनकी अपनी है। यह भाषा आसानी से नहीं मिलती बल्कि  जीवन से गहरे  जुड़ाव और तमाम जद्दोजहद से ही मिल पाती है। दरअसल किसी किस्म की  बनावट से कोसो दूर  हीरालाल  कबीर की गोती के हैं और इनकी जात आदमी की हैं। इसीलिए एक फक्कड़पना और बेबाकी सहज रूप से इनकी कविताओं में दिखायी पड़ती हैं। तो आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं कवि हीरा लाल की कविताएं। हीरा लाल की कविताएं गोती कबीर के        कुछ न मिला तो  सत्तू खाऊँगा कोई  न मिला तो अपनों से बतियाऊंगा  आदमी को भजूंग

हिमांगी त्रिपाठी

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हिमांगी त्रिपाठी उत्तर  प्रदेश  के बुंदेलखंड अंचल  के सर्वाधिक्  पिछडे  जनपद  चित्रकूट की हिमांगी ने अभी-अभी हिंदी से  एम ए किया है. साथ ही  इन्होने  यू जी सी की नेट परीक्षा भी उत्तीर्ण की है. एक ऐसे रुढ़िवादी  मानसिकता वाले जगह जहाँ लड़कियों को अपने मन से कुछ  भी सोचने -कहने-करने की आजादी नहीं है हिमांगी ने अपनी कविताओं के माध्यम   से  कुछ कहने की हिमाकत की है. इनकी कविताओं में अभी पर्याप्त अनगढ़पन है जैसाकि शुरू-शुरू में होना चाहिए. 'किसलय' के अंतर्गत हम ऐसे  रचनाकारों को प्रकाशित  करेंगे  जिन्होंने  रचना  की दुनिया में पहला कदम रखा है. इसी क्रम में प्रस्तुत है हिमांगी की  कविता 'मेरी जिन्दगी' जिसमें इस आंचलिक स्त्री जीवन की एक सोच, जिसमें वह तमाम जकड़बंदियों से घिरी है  दिखाई  पड़ेगी. जिन्दगी जो उसकी हो कर भी वास्तव में उसकी नहीं है.  संपर्क- द्वारा श्री रजनी कान्त त्रिपाठी, थाने के सामने, बस स्टैंड, मऊ, चित्रकूट, उत्तर प्रदेश २१०२०९ मेरी जिन्दगी             इस जिन्दगी में अब कोई किनारा नहीं रहा  कोई अपना नहीं रहा . जिन्दग