रमाकान्त द्विवेदी 'रमता'

थाती में आज प्रस्तुत है जन कवि रमाकान्त द्विवेदी 'रमता जी' की दो कविताएं. जो अन्ना आन्दोलन के परिप्रेक्ष्य में समीचीन हैं.  


 
रमाकान्त  द्विवेदी  'रमता'


हमनी साथी हईं


हमनी देशवा के नया रचवइया हई जा.
हमनी साथी हईं, आपस में भईया हईं  जा

हमनी हई जा जवान,  राहे  चली सीना तान 
हमनी जुलुमिन से पंजा लड़वईया हईं जा 

सगरे हमनी के दल, गाँव नगर हलचल 
हमनी  चुन चुन कुचाल मेटवइया हईं जा 

झंडा हमनी के लाल  तीनो काल में कमाल 
सारे  झंडा  ऊपर  झंडा उड़वइया   हईं जा 

बहे कइसनो बयार नईया होइये जाई पार 
हमनी देशवा के नईया खेवइया हईं जा.  

०१-०५-१९८५



रउरा  नेता भईलीं



रउरा  नेता  भइलीं , सेने  के  सलाम  नइखे 
वोट    झिटलीं, अब   हमनीं  से   काम   नइखे

करीं छूट के मनमानी  जम  के भोगीं राजधानी
छाहाँ    बानी    रउरा,   बेधत कवनो घाम नइखे

हमनीं भूख, गैस से मरीं, उलटे रेल, आग में जरीं
चाहे    बाढ़     में     डूबीं,       लागत  राउर दाम नइखे

राउर   चप्पल चटू   दलाल, चानी  काटसु ,  चाभसु मॉल 
रउरा    सब    पर     कौनो    अंकुश   त    आम      नइखे  

हम के कह दी  उग्रवादी ,  तीन सौ सात के  फसादी  
रउरा    मुँह    में     कौनो        कटहा   लगाम   नइखे

दीहीं  लाठी    गोली  जेल   खेलीं तीन  तसिया के खेल  
जाहिर  बाटे ,  राउर  दोसर    कौनो      प्रोग्राम  नइखे

28-१२-१९८४   


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