संतोष भदौरिया, नरेंद्र पुंडरीक के संपादन में छपी किताब 'केदारनाथ अग्रवाल : कविता का लोक आलोक' की समीक्षा
केदार को समझने के प्रयास के क्रम में अभी हाल ही में एक पुस्तक आयी है - 'केदारनाथ अग्रवाल: कविता का लोक आलोक'। संतोष भदौरिया एवं नरेंद्र पुण्डरीक के संपादन में केदार की जन्मशती पर प्रकाशित यह पुस्तक केदार व प्रगतिशील कविता को विभिन्न दृष्टिकोणों से समझने व परखने का एक महत्वपूर्ण प्रयास है। इस किताब की एक समीक्षा लिखी है प्रकाश चन्द्र ने. तो आईये पढ़ते हैं यह समीक्षा कविता का लोक आलोक प्रकाश चन्द्र केदारनाथ अग्रवाल उन प्रगतिशील कवियों में हैं जिन्होंने कविता को रोमानियत से मुक्त कर वास्तविक जमीन पर खड़ा किया। कविता को ‘ मैं ’ से बाहर निकालकर बृहत सामाजिक परिप्रेक्ष्यों से जोड़ा। जहाँ स्थितियाँ व परिस्थितियाँ कल्पनालोक व रोमानियत से भरी नहीं थी बल्कि जमीनी यथार्थ से जुड़ी थी। यह जमीनी यथार्थ भारत के गाँव में निवास करने वाले बहुसंख्या लोगों का यथार्थ था। प्रगतिशील धारा के कवियों ने कविता का केन्द्रिय विषय इसी जमीनी यथार्थ को बनाया जिसमें श्रमिक व किसानों का एक बड़ा वर्ग शामिल है। केदार की कविता में इस वर्ग को लेकर विशेष चिंता दिखाई देत...