संदेश

प्रज्ञा लेबल वाली पोस्ट दिखाई जा रही हैं

प्रज्ञा की कहानी ‘मालूशाही! मेरा छलिया-बुरांश’।

चित्र
प्रज्ञा प्रेम अपने आप में बिल्कुल अनोखा होता है। एक बार हम जिससे प्रेम करने लगते हैं उससे आजीवन जुदा नहीं हो पाते। प्रेम अपनी कहानी अपने अंदाज़ में अपने तरह से ही लिखता है। हाल ही में नया ज्ञानोदय में प्रकाशित प्रज्ञा की लम्बी कहानी ‘मालूशाही! मेरा छलिया-बुरांश’ पढ़ते हुए हम प्रेम के उ स रूप से परिचित होते हैं, जो समस्त परम्परागत मान्यताओं से अब तलक लोहा लेता रहा है। प्रज्ञा की यह लम्बी कहानी है जि समें एक ऐसी प्रवहमानता है जो पाठक को अन्त तक अपने से बांधे रखती है। धरा अन्त तक हकीकत को भांपने में असमर्थ रहती है और जब हकीकत से दो-चार होती है तो स्तब्ध रह जाती है। आइए आज पहली बार पर पढ़ते हैं प्रज्ञा की कहानी ‘मालूशाही! मेरा छलिया-बुरांश’। मालूशाही! मेरा छलिया-बुरांश                            प्रज्ञा                      ...