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सेवाराम त्रिपाठी का आलेख आत्मालोचन: हरिशंकर परसाई  के  लेखन की ताक़त  

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  हरिशंकर परसाई का मानना था कि 'साहित्य के मूल्य जीवन मूल्यों से बनते हैं'। अगर जीवन कुछ और है तो लेखन में अनुभव की जगह केवल लेखकीय आदर्श तो वह महज आदर्श ही रह जाता है। ऐसा लेखन जीवन पर कोई छाप नहीं छोड़ पाता। लेखन वह क्षेत्र है जहां लेखक लाख अपने को छुपाने की कोशिश करे, अपनी हकीकत बयां कर ही देता है। अप्रतिम व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई  अपने आत्मचिंतन, आत्माभिव्यक्ति, आत्मालोचन और आत्मान्वेषण के बहाने लेखक के मूल्यबोध और उसकी असलियत को उजागर करने की कोशिश करते हैं। इसीलिए उनके व्यंग्य इतने प्रभावी और मारक हैं। सेवाराम त्रिपाठी ने अपने इस आलेख में परसाई जी के इस आत्मालोचन को परखने की कोशिश की है। तो आइए आज पहली बार पर पढ़ते हैं सेवाराम त्रिपाठी का आलेख 'आत्मालोचन :  हरिशंकर परसाई के लेखन की ताकत'। आत्मालोचन : हरिशंकर परसाई के लेखन की ताक़त                       सेवाराम त्रिपाठी                   आज का दौर एक तरह से आत्मालोचन का दौर नहीं है; बल्कि किसिम-किसिम के प्रलाप और अपने  गर्हित  संसार को  जबरन  थोक में थोपने का समय है। परसाई जी अपने आत्मचिंतन, आत्माभिव्यक्ति, आत्मालो

रणेंद्र का आलेख “सुन्नरि नैका” के पुनर्पाठ के बहाने

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कहानीकार न केवल अपने समय और समाज को अपनी रचनाओं में दर्ज करता है बल्कि वह चर्चित लोक कथाओं और लोक कविताओं को भी अपनी रचनाओं में समेटने की कोशिश करता है। फणीश्वर नाथ रेणु हिंदी साहित्य के ऐसे कथाकार है जिन्होंने अपनी कहानियों में कई लोक गीतों और कथाओं को दर्ज किया है। फणीश्वरनाथ रेणु की “परती परिकथा”, (1957) में गुंफित कई लोक कथाओं, आख्यानों में एक आख्यान है “सुन्नरि नैका” का। कथाकार उपन्यासकार रणेंद्र ने “सुन्नरि नैका” के कथा सूत्रों को सुलझाने की एक बेहतरीन कोशिश की है। रणेंद्र का यह आलेख आलोचना के हालिया अंक में प्रकाशित हुआ है। तो आइए आज पहली बार पर पढ़ते हैं रणेंद्र का शोधपरक आलेख “सुन्नरि नैका” के पुनर्पाठ के बहाने।   “सुन्नरि नैका” के पुनर्पाठ के बहाने   रणेंद्र   कथा-सम्राट प्रेमचंद के बाद हिंदी कथा साहित्य के शीर्षस्थ कथाकारों में सर्वप्रिय कथा-गायक फणीश्वरनाथ रेणु की “परती परिकथा”, (1957) में गुंफित कई लोक कथाओं, आख्यानों में एक आख्यान है “सुन्नरि नैका” का। दरअसल ‘सुन्नरि नैका की गीति-कथा’ का मूलाधार हैं दंता सरदार और उसके साथी। किंतु रघ्घू रामायनी अपने कथा गायन में उसे ‘राकस’

रुचि बहुगुणा उनियाल की कविताएँ

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रुचि बहुगुणा उनियाल जीवन की अनन्यतम अनुभूति है प्रेम। इस प्रेम ने ही दुनिया को रचा गढ़ा और मनुष्य को सचमुच का मनुष्य बनाया। यह सारी सरहदों को तोड़ने में यकीन करता है। कोई बंदिश इसे न तो रोक नहीं पाई न ही सीमित कर पाई। प्रेम जिसमें समर्पण है, प्रेम जिसमें प्रतीक्षा है, प्रेम जिसमें विरह है, फिर भी प्रेम है तो है। कवियों के लिए यह विषय सर्वथा नवीन ही रहा है। रुचि बहुगुणा उनियाल ने प्रेम पर कुछ उम्दा कविताएं लिखी हैं। आइए आज पहली बार पर पढ़ते हैं रुचि बहुगुणा उनियाल की कविताएं। परिचय नाम : रुचि बहुगुणा उनियाल * जन्म स्थान : देहरादून * निवास स्थान : नरेंद्र नगर, टिहरी गढ़वाल * प्रकाशन : प्रथम पुस्तक - मन को ठौर,     (बोधि प्रकाशन जयपुर से प्रकाशित)   प्रेम तुम रहना, प्रेम कविताओं का साझा संकलन    (सर्व भाषा ट्रस्ट से प्रकाशित)  * पिछले तीन सालों से लगातार दूरदर्शन व आकाशवाणी पर रचनाओं के प्रसारण के साथ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में अनगिनत लेख व कविताएँ प्रकाशित, विभिन्न आनलाइन पोर्टल पर अनगिनत लेख व कविताओं का प्रकाशन।  रुचि बहुगुणा उनियाल की कविताएँ पीड़ा का वैभव  इतनी निष्ठुर सर्दियाँ कि शर