विनोद पदरज की माँ पर कविताएँ

 

विनोद पदरज

 

 

दुनिया का शायद ही ऐसा कोई कवि होगा जिसने माँ पर कविताएँ न लिखी हों। लेकिन यह शीर्षक कभी पुराना नहीं पड़ा, बल्कि हमेशा नूतन बना रहा। विनोद पदरज हमारे समय के महत्त्वपूर्ण कवि हैं। उनकी कविताओं की भाषा सहज ही आकर्षित करती है। बिम्ब भी बिल्कुल आस पास के, जो अपने विषय से एकमेक हो जाते हैं, और उन्हें समझने के लिए पाठक को कोई अतिरिक्त प्रयास नहीं करना पड़ता। हम पहली बार पर प्रस्तुत कर रहे हैं माँ पर विनोद पदरज की तीन कविताएँ।

 


विनोद पदरज की कविताएँ


 

माँ


बहुत छोटी हो गई है माँ

नन्हीं सी

अति क्षीणगात


लगता ही नहीं कि हमें जन्म दिया है उसने


दिन भर बिस्तर पर बैठी या लेटी

रहती है


कितना कम खाती है

कुल एक रोटी

आधी सुबह आधी शाम


बहुत मनौवल करने पर आधा कप दूध पीती है मुश्किल से

किसी से कुछ नहीं चाहती किसी से कुछ नहीं कहती


वह सबसे कम उपस्थित है हमारे घर में


उसकी उपस्थिति दिन ब दिन और कम होती जाएगी

इतनी कि एक दिन वह अनुपस्थित हो जाएगी


बहुत दिनों तक हमें लगेगा 

कि माँ बिस्तर पर लेटी हुई है।





मां


लौट आऊंगा एक दिन 

यही कहकर गया था मैं उस गुफा में


सबसे पहले प्रेमिका लौटी

साल छ महीने प्रतीक्षा करके


दो चार साल प्रतीक्षा करके

भाई बंद लौट गए


दोस्तों ने कुछ और साल प्रतीक्षा की

बाट देखी 


गुफा के द्वार पर खून की लकीर देखकर

अंततः पिता भी लौट गए।

सिर झुकाए


जब मैं लौटा

मैंने देखा 

अंधी बूढ़ी जर्जर मां गुफा के बाहर बैठी थी

 


दर्जिन


दुपहरी थी सन्नाटा था


ऐसे में एक चिडिया बोल रही थी

पहचानता था इसे दर्जिन 


सुबह शाम बोलते सुना था देखा था इसे 

पर दुपहरी में इस तरह कलेजे को चीरती आवाज

पहली बार सुनी थी 

जब किसी और पक्षी की ध्वनि नहीं थी आस पास


जानवरों का रोना पहचानता था मैं 

और उनका प्रसन्न होना भी 

पर पक्षियों का रुदन नहीं पहचानता था 

हर्ष या ख़ुशी का स्वर जानता था

और खतरे की चेतावनी भरी चीख पुकार भी


पर कैसी मर्मांतक विकलता थी उसके स्वर में

मानो संसार की सारी स्त्रियां रो रही हों उसके कंठ में


लगता था

कोई अंडा गिर कर टूट गया था










टिप्पणियाँ

  1. भावपूर्ण गहन और प्रिय कविताएं !

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  2. विनोद पदरज जी की कवितायें पहले भी पढ़ी हैं। सदैव की भांति ये तीनों भी बहुत भावपूर्ण हैं। दूसरी तो कमाल की है ,यह कहने को सोच रहा था की तीसरी ने भी चमत्कृत कर दिया।

    -ललन चतुर्वेदी

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  3. बहुत मार्मिक बहुत सुन्दर

    जवाब देंहटाएं

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