विजय गौड़ की कहानी 'डा. जेड. ए. अंसारी होम्योपैथ'
विजय गौड़ जाति-भेद, नस्ल-भेद के साथ साथ सांप्रदायिकता आज के दुनिया की गम्भीर समस्याओं में से एक है। इसकी बुनावट कुछ इस अंदाज में होती है कि हमें खुद यह पता ही नहीं चलता कि हम किस समय जातिवादी, नस्लीय या फिर सांप्रदायिक हो जाते हैं। क्या यह सम्भव है कि हम एक मनुष्य के तौर पर नजर आएं। इसके लिए हमें अपने जातीय, नस्लीय या सांप्रदायिक पहचान को खत्म करना होगा। यह आसान नहीं होता। कई बार बेहद विनम्र नजर आने वाला व्यक्ति भी जातीय या सांप्रदायिक तौर पर अक्सर ही निर्मम दिखाई पड़ता है। जब हम अपने धर्म का गुणगान और बखान कर रहे होते हैं तो दूसरी तरफ हम अपने लोगों को दूसरे धर्मों के प्रति कट्टर भी बना रहे होते हैं। अक्सर धार्मिक नेता यह चिन्ता व्यक्त करते हुए नजर आते हैं कि अमुक धर्म खतरे में है। विजय गौड़ ने अपनी कहानी 'डा. जेड. ए. अंसारी होम्योपैथ' में सलीके से इस समस्या की पड़ताल की है। तो आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं विजय गौड़ की कहानी 'डा. जेड. ए. अंसारी होम्योपैथ'। डा. जेड. ए. अंसारी होम्योपैथ विजय गौड़ मां होती तो अभी अरण्डी के पत्तों को घुटनों और कुहनियों में बांध देती