गणेश गनी की कविताएँ

गणेश गनी अब तक हमें यही पढ़ाया जाता रहा है कि राज्य की निर्मिति में राजा , आभिजात्य वर्ग , सैनिक आदि आदि महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। लेकिन सच का पहलू कुछ और ही है। इस दुनिया को खूबसूरत बनाने में मेहनतकश लोगों का अप्रतिम योगदान है। उनके श्रम के बिना यह दुनिया इतनी खूबसूरत बन ही नहीं सकती थी। ये ऐसे लोग हैं जिनकी भूमिका पुरातन समय से ही प्रायः अलक्षित रहती आयी है। कवि का दायित्व यही होता है कि इस अलक्षित को लक्षित करे और दुनिया को सच से अवगत कराए। गणेश गनी ऐसे ही कवि हैं जिनकी कविताओं में इन मेहनतकश लोगों के श्रम , उनकी पीड़ा और उनकी आवाज को रेखांकित किया गया है। इस रेखांकन को गणेश ने अपने काव्य नैपुण्य से साधा भी है। आज पहली बार प्रस्तुत है कवि गणेश गनी की कविताएँ। गणेश गनी की कविताएँ उसकी पीठ फिर झुक जाती है! मैंने उसे हमेशा देखा है टोपी , कोट और गाची पहने घर से निकलने से पहले उसका तैयार होना योद्धा की भांति लगता है। पहले वो कोट पहनता है ताकि पीठ की छीलन रुके फिर वो गाची को कमर पर कई कई घेरे लपेटता है ताकि भ...