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हिमांगी त्रिपाठी की कविताएँ।

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हिमांगी त्रिपाठी  प्रेम दुनिया की सबसे सघनतम अनुभूति है । प्रेम एक मानवीय संघर्ष भी है जिसे समाज की प्रताडनाओं और दुत्कारों से गुजरना पड़ता है। प्रेम उन मानवीय बंधनों से आजाद होने की एक मुहिम भी है जिसे मनुष्य ने वर्जनाओं का नाम दे कर सीमित करने की प्रत्याशा में रोपित कर दिया था।  प्रेम की यह सघनतम अनुभूति रचना में ढल कर सदियों से ले कर आज तलक रचनाकारों की रचना का विषय बनती रही है। कवि इन वर्जनाओं को ही अपनी कविता का विषय बना कर प्रतिपक्ष का एक पक्ष रचते हैं। ऐसा पक्ष जो प्रायः ही उपेक्षित कर दिया जाता है। हिमांगी की कविताओं के कथ्य और शिल्प में क्रमिक विकास सहज ही देखा जा सकता है। आज हिमांगी का जन्मदिन है। जन्मदिन की बधाई देते हुए 'पहली बार' ब्लॉग पर हम प्रस्तुत कर रहे हैं हिमांगी की कुछ नयी-नवेली कविताएँ।             हिमांगी त्रिपाठी की कविताएँ हमारा प्रेम   हमारा प्रेम उन जगमगाती किरणों की तरह है   जो हर किसी छोर से घुस आती है बिना किसी रोक-टोक के   जो हर महीन छेद को भी   कर जाती है पार एक हल्की म...

मार्कण्डेय जी की कविताएँ

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मार्कण्डेय मार्कण्डेय जी ने कहानियों के अतिरिक्त अन्य विधाओं जैसे उपन्यास, एकांकी, कविता, आलोचना, समीक्षा आदि में भी सफलतापूर्वक अपनी लेखनी चलायी । रचनाधर्मिता के लिए जीवन-जगत के सूक्ष्म अवलोकन को वे जरुरी मानते थे । अपने अंतिम दिनों में वे मुझे अपनी पुरानी डायरी के पीले पड़ चुके और बिखर से गए पन्नों से अपनी कविताएँ बड़ी तन्मयता के साथ सुनाते थे । उनके दो कविता संग्रह प्रकाशित हैं- 'सपने तुम्हारे थे' और 'यह पृथ्वी तुम्हें देता हूँ' । आज मार्कण्डेय जी का जन्मदिन है । सन 1930 में जौनपुर के बराई गाँव में आज ही के दिन उनका जन्म हुआ था । इस अवसर पर दादा को नमन करते हुए हम प्रस्तुत कर रहे हैं उनकी कुछ कविताएँ । 'पहली बार' के लिए इन कविताओं का चयन किया है डॉ. हिमांगी त्रिपाठी ने । हिमांगी ने हाल ही में महात्मा गाँधी ग्रामोदय विश्वविद्यालय चित्रकूट सतना (मध्य प्रदेश) से मार्कण्डेय जी की रचनाधर्मिता पर अपना शोध कार्य पूरा किया है । तो आइए आज पढ़ते हैं मार्कण्डेय जी की कुछ कविताएँ ।         मार्कण्डेय जी की कविताएँ   चोर को चोर कहना चोर को चोर कब नहीं...