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मक्सिम गोर्की की कहानी ‘हिम्मत न हारना, मेरे बच्चो!'

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  मक्सिम गोर्की  मक्सिम गोर्की की गणना दुनिया के महत्त्वपूर्ण रचनाकारों में की जाती है। रूस में जार के शासन के समय की विद्रूपताओं को उभारने का काम गोर्की ने बखूबी किया है।गोर्की की रचना में विचाराधारा आती है लेकिन कहीं भी वह कहानी को अतिरिक्त रूप से अवरोधित नहीं करती। सच तो यह है कि ये विद्रूपताएं केवल रूस की न हो कर पूरी दुनिया के उन शोषित, वंचित लोगों की विद्रूपताएं हैं जो आज भी दुनिया के तमाम देशों में दोयम दर्जे का जीवन जीने के लिए अभिशप्त हैं। इसीलिए गोर्की की रचनाएं अपने तमाम अर्थों में आज भी कहीं अधिक प्रासंगिक लगती हैं। हमने गोर्की की यह कहानी राम चन्द्र शुक्ल की फेसबुक वॉल से साभार लिया है। तो आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं विश्वविख्यात कहानीकार  मक्सिम गोर्की की कहानी ‘हिम्मत न हारना, मेरे बच्चो!' ‘हिम्मत न हारना, मेरे बच्चो!' मक्सिम गोर्की "पावन शान्ति में सूर्योदय हो रहा है और सुनहरे भटकटैया पुष्पों की मधुर सुगन्ध से लहका-महका हुआ नीला-सा कुहासा चट्टानी द्वीप से ऊपर, आकाश की ओर उठ रहा है। आकाश के नीले चँदोवे के नीचे, अलसाये-उनींदे पानी के काले समतल विस्तार में

कविता का संस्मरण 'वे खलनायक नहीं थे'

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राजेन्द्र यादव का नाम लेते ही कई बातें दिमाग में गूंजने लगती हैं। एक उम्दा कहानीकार और उपन्यासकार होने के साथ साथ वे हंस जैसी उस पत्रिका के सम्पादक भी थे, जिसने कई प्रतिमान स्थापित किए। रचनाकारों की एक पूरी पीढ़ी खड़ा करने का श्रेय उन्हें जाता है। एक इंसान की तरह कई तरह के विरोधाभास भी उनमें थे लेकिन कभी कुछ छिपाया नहीं। उन्होंने जीवन को उन्होंने अपनी शर्तों पर ही जिया। आज राजेन्द्र यादव का जन्मदिन है। कहानीकार कविता ने राजेन्द्र जी को नजदीक से देखा है। पहली बार की तरफ से राजेन्द्र यादव की स्मृति को हम नमन करते हैं। तो आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं कविता का संस्मरण 'वे खलनायक नहीं थे'। वे खलनायक नहीं थे कविता आज राजेन्द्र जी पर जब लिखने बैठी हूँ, ऐन सुबह का वही समय है जब वे अपने पढ़ने के टेबल पर नियमित रूप से विद्यमान होते थे- अपनी शारीरिक-मानसिक विवशताओं के बावजूद, उस उम्र में भी। उनका वह कमरा, उनकी वह मेज, कुर्सी, किताबें और उनका वह दफ्तर सब उन्हें मिस कर रहे होंगे, ठीक मेरी ही तरह... वर्षों की यह समयावधि यदि बहुत बड़ी नहीं तो बहुत छोटी भी नहीं है। मैं कलम लिए चुपचाप बैठी हूँ

हरिशंकर परसाई का व्यंग्य 'भेड़ें और भेड़िये'

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  हरिशंकर परसाई  हरिशंकर परसाई ने अपने हुनर से जिस तरह से हिन्दी व्यंग्य को साधा था, वह व्यंग्य की दुनिया में विरल है। समाज, परम्परा, राजनीति और व्यवस्था पर उनके व्यंग्य खासे मारक हैं। सूक्ष्म नजरिए से देखने परखने वाला रचनाकार ही इस तरह का मारक व्यंग्य लिख सकता है। एक व्यंग्य 'भेड़ें और भेड़िये' में उन्होंने भारतीय राजनीति खासकर सत्ताधारी वर्ग की विद्रूपता को तार तार कर के रख दिया है। हम इस बात से  भलीभांति अवगत हैं कि यह वर्ष हरिशंकर परसाई का शताब्दी वर्ष है। इस क्रम में हम पहली बार पर परसाई जी की कुछ प्रमुख रचनाओं को सिलसिलेवार प्रकाशित कर रहे हैं। तो आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं हरिशंकर परसाई का व्यंग्य 'भेड़ें और भेड़िये'। 'भेड़ें और भेड़िये' हरिशंकर परसाई  एक बार एक वन के पशुओं को ऐसा लगा कि वे सभ्यता के उस स्तर पर पहुँच गए हैं, जहाँ उन्हें एक अच्छी शासन-व्यवस्था अपनानी चाहिए। और, एक मत से यह तय हो गया कि वन-प्रदेश में प्रजातंत्र की स्थापना हो। पशु-समाज में इस 'क्रांतिकारी’ परिवर्तन' से हर्ष की लहर दौड़ गयी कि सुख-समृद्धि और सुरक्षा का स्वर्ण-युग

ध्रुव शुक्ल की किताब 'वा घर सबसे न्यारा' पर नितेश व्यास बाबजी की काव्यात्मक समीक्षा 'छाछ जगत बपरानी'।

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   शास्त्रीय संगीत की दुनिया में कुमार गन्धर्व आज भी एक प्रतिमान हैं। लोक संगीत को शास्त्रीय से भी ऊपर ले जाने वाले कुमार जी ने कबीर को जैसा गाया है, वह अदभुत और अविस्मरणीय है। शायद ही कोई गायक उस ऊंचाई को स्पर्श कर पाए। उनकी गायकी में मालवा की धुन और वे लोक गीत भी गूंथे हुए हैं, जो वहां की मिट्टी से जुड़े हैं। यह वर्ष इस अप्रतिम गायक का जन्मशताब्दी वर्ष भी है। कवि ध्रुव शुक्ल ने कुमार गन्धर्व जी की जन्मशती के अवसर पर 'वा घर सबसे न्यारा' जैसी महत्त्वपूर्ण किताब लिखी है। इस किताब को पढ़ कर नितेश व्यास ने एक काव्यात्मक समीक्षा लिखी है। आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं ध्रुव शुक्ल की किताब 'वा घर सबसे न्यारा' पर नितेश व्यास बाबजी की काव्यात्मक समीक्षा 'छाछ जगत बपरानी'।   छाछ जगत बपरानी नितेश व्यास बाबजी 1. जैसे सूरज हर प्रभात में  लेता है नया जन्म हर कविता से जन्मता है कवि हर राग से जन्म होता है गायक का होने  विराग 2. अनाहत को आहत करने की साधना में लीन रही देह गेह जो सबसे न्यारा स्वर सजाते रहे उसे श्वास के आवागमन की लय धड़कन की ताल से मिल रचती रही राग होने  विराग 3.