जयनंदन की कहानी 'मलेच्छ'

मनुष्य ने अपने विकास क्रम की प्रक्रिया में धर्म की खोज की और इसी क्रम में उसने ईश्वर की परिकल्पना की. कालांतर में जब मनुष्य तर्क वितर्क की तरफ मुड़ा और विज्ञान की तरफ बढ़ा तो ये सारी परिकल्पनाएँ आधारहीन लगने लगीं. विज्ञान धर्म के सामने चुनौती प्रस्तुत करने लगा. हालांकि धर्म ने विज्ञान की राह में काम अड़ंगे नहीं लगाये. आज भी यह द्वंद्व जारी है. इसी को केंद्र में रख कर जयनंदन ने एक उम्दा कहानी लिखी है जिसे आज हम पहली बार के पाठकों के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं. तो आइये आज पढ़ते हैं जयनंदन की कहानी मलेच्छ. मलेच्छ जयनंदन शोभित शरण सार्वजनिक सभाओं में ईश्वर , आत्मा और तमाम तरह के धार्मिक क्रिया-कलापों को कोसता था , खारिज करता था और इस तरह के कर्मकांडों की खिल्ली उड़ाता था। लेकिन जब उसके पिता मरे तो उसे सारे विधि-विधान के चक्कर में फंस जाना पड़ा। हृदयाघात से रोहित शरण अचानक गुजर गये। खबर मिलते ही शोभित अपनी पत्नी के साथ टाटा से बस ले कर सुबह ही सुबह नवादा आ गया और फिर वहां से ट्रेकर द्वारा 12 किलोमीटर दूर अपना गांव भुआलचक पहुंच गया। अमेरिका में रह रही अपनी बहन