मनोज कुमार पाण्डेय की कहानी 'न्याय विभाग ने मरे हुए व्यक्ति के साथ भूल सुधार किया'
साहित्य कोरी कल्पना मात्र नहीं होता
बल्कि वह यथार्थपरक विडम्बनाओं को कल्पनाओं के सहारे सशक्त तरीके से आगे लाने का
काम करता है. होता भी है कि हम जिसे कहानी समझते होते हैं वह एक समय में हकीकत में
तब्दील हो जाती है. अगर विडंबनाएं समाप्त हो जाएँ तो वह साहित्य भी बेमानी हो
जाएगा जिनको ले कर उसे रचा गया था. युवा पीढ़ी में भी कई ऐसे रचनाकार हैं जो अपनी
रचनाओं के जरिए अपने समय की विडम्बनाओं को उभारने में सफल दिखायी पड़ते हैं. मनोज कुमार
पाण्डेय ऐसे ही कहानीकार हैं. हाल ही में उनकी एक कहानी 'न्याय विभाग ने मरे हुए व्यक्ति के साथ भूल सुधार किया' प्रयागपथ
पत्रिका के हालिया अंक में छपी है. वास्तव में यह कहानी ‘स्वर्णदेश की लोक कथाएँ’ नाम से लिखी जा रही कहानियों की शृंखला का
हिस्सा है। इस श्रृंखला की
कुछ कहानियाँ पहल, कथादेश, हंस, बनास जन,
स्वाधीनता, सबद और जानकीपुल आदि पर प्रकाशित हो चुकी हैं। आज पहली बार पर
प्रस्तुत है मनोज कुमार पाण्डेय की कहानी 'न्याय विभाग ने मरे हुए व्यक्ति के साथ भूल सुधार किया'.
न्याय
विभाग ने मरे हुए व्यक्ति के साथ भूल सुधार किया
मनोज
कुमार पांडेय
स्वर्ण देश में एक बार
अजीब घटना घटी। हुआ यह कि कंप्यूटर की गलती से स्वर्ण देश की करोड़ों प्रजाओं में
से एक रामलाल का नाम मृतकों की सूची में दर्ज हो गया। यह होना था कि सभी संबंधित
जगहों पर उसका नाम खटाखट मृत व्यक्ति के रूप में दर्ज होता चला गया। यह सब इतना
तेजी से हुआ कि उसे इसके बारे में कुछ पता ही नहीं चल पाया। रामलाल को यह कभी पता
चलता भी नहीं अगर वह भूतपूर्व सरकारी कर्मचारी न रहा होता। वह भी उस जमाने का जब
भूतपूर्व कर्मचारियों को पेंशन वगैरह मिला करती थी।
जब रामलाल
अपनी पेंशन लेने के लिए बैंक पहुँचा तो खलबली मच गई। बैंक में पेंशन के लिए उसने
अपना कागज बढ़ाया और वह कागज एक जिम्मेदार बैंक कर्मचारी के पास जा पहुँचा। कर्मचारी
ने पूरी जिम्मेदारी से उसके कागज की कंप्यूटर में एंट्री की। कंप्यूटर ने जवाब में
उसे जो बताया उससे कर्मचारी के होश ही उड़ गए। उसने सहमी हुई आँखों से रामलाल की
तरफ देखा और चीख कर बेहोश हो गया। बैंक
कर्मचारी की चीख बैंक में खतरे की घंटी की तरह बजी। सभी बैंक कर्मचारी सतर्क हो गए
और बैंक का शटर तत्काल बंद कर दिया गया।
बैंक में सब तरफ एक घबराई हुई फुसफुसाहट फैल
गई। सभी लोग कुछ अप्रिय घटने का इंतजार करने लगे। इसके बावजूद जब कोई घटना नहीं
घटी तब एक दूसरे कर्मचारी का ध्यान बैंक के बेहोश कर्मचारी की तरफ गया। तुरंत ही
अनेक कर्मचारी उसे घेर कर इकट्ठा हो गए। उसके चेहरे
पर पानी छिड़का गया। पानी की ठंडक ने उसकी चेतना वापस लौटाई। होश में आते ही उसने
रामलाल की तरफ देखा। वह कर्मचारी के हाल पर चिंतित सामने ही खड़ा था।
कर्मचारी को दोबारा डर लगा पर इस बार वह बेहोश
नहीं हुआ। उसने फुसफुसाते हुए साथी कर्मचारी के कान में कुछ कहा। साथी कर्मचारी ने
अविश्वास से रामलाल की तरफ देखा। उसे लगा कि कोई रामलाल के नाम पर घोटाला करने आया
है। उसने कंप्यूटर पर रामलाल की तसवीर को ध्यान से देखा। रामलाल की दस्तखत जाँची।
वह सब कुछ इस कदर मिल रहा था कि कंप्यूटर भी कोई गड़बड़ी नहीं पकड़ पा रहा था। साथी
कर्मचारी ने रामलाल को अंदर बैंक मैनेजर के कमरे में आने का इशारा किया।
रामलाल अब तक किसी मूर्ख की तरह यह सब देख रहा
था। उसे समझ में ही नहीं आया कि उसे ही बुलाया जा रहा है। कर्मचारी के दोबारा कहने
पर वह तुरंत बैंक मैनेजर के कमरे में पहुँचा। बैंक मैनेजर बैंक कर्मचारी के साथ रामलाल
वाले मसले पर ही गौर कर रहा था। उसने रामलाल पर एक उड़ती सी नजर डाली और दोबारा
कंप्यूटर की स्क्रीन पर व्यस्त हो गया। बड़ी देर के बाद उसने अपना सिर ऊपर उठाया और
रामलाल को एकटक देखने लगा। उसके देखने में ऐसा कुछ था कि रामलाल को लगा कि उससे
कोई भारी गलती हो गई है।
उसने
डरते हुए पूछा। क्या हुआ साहब, मुझसे कोई गलती हुई है क्या? अब बैंक मैनेजर
मुस्कराया। उसने कहा कि अब तुम कोई गलती कर सको यह संभव ही नहीं है। रामलाल को लगा
कि मैनेजर उस पर तंज कर रहा है। उसके चेहरे पर एक दीनता उतर आई। उसने कहा कि ऐसा न
कहें हुजूर। बताएँ कि मुझसे क्या अपराध हुआ है। मैनेजर ने कहा कि अब तुम कोई अपराध
कर ही नहीं सकते। सचाई यह है कि तुम मर चुके हो। अब तुम्हें पेंशन नहीं दी जा
सकती। स्वर्णदेश अभी इतना भी उदार नहीं हुआ है कि मृतकों को भी पेंशन देता रहे।
रामलाल
को कुछ भी समझ में नहीं आया। जब वह मैनेजर के समझाने से नहीं समझा तब कई
कर्मचारियों ने उसे समझाने की कोशिश की। उसकी समझ में ही नहीं आ रहा था कि जब वह
जिंदा है और सशरीर सामने बैठा है तो उसे मृतक कैसे करार दिया जा सकता है। वह बहस
पर उतर आया। वह देर तक अपने जिंदा होने के पक्ष में तर्क देता रहा। बदले में
मैनेजर ने कहा कि हमारे रिकार्ड के हिसाब से तुम मर चुके हो। बेहतर यही होगा कि अब
तुम यहाँ से जाओ। बैंक मैनेजर की इस शराफत के बावजूद जब रामलाल टस से मस नहीं हुआ
तो बैंक के गार्ड और कर्मचारियों ने मिल कर उसे बैंक के बाहर फेंक
दिया।
रामलाल
बहुत देर तक बैंक के बाहर खड़ा रहा। जो कुछ उसके साथ हुआ उसे समझने में वह खुद को
असमर्थ पा रहा था। एक बार फिर से उसने अंदर जाने की कोशिश की पर इस बार गार्ड
सतर्क था। उसने कहा कि ज्यादा परेशान किया तो मार ही डालूँगा। कोई केस वेस भी नहीं
होगा क्योंकि तुम तो पहले से ही मरे हुए हो। वह बाहर आ गया। अब वह कहीं बैठ कर चाय पीना चाहता था और अपनी हालत पर शांति से सोचना चाहता
था। जब वह चाय पी कर उठा और पैसे देने के लिए
उसने अपनी जेब तलाशी तो पाया कि जेब फटी हुई थी और उसके पास एक नए पैसे भी नहीं
थे। रामलाल ने चाय वाले को देख कर अपने हाथ जोड़े और कहा कि उसे पता नहीं था कि उसके पास
चाय पीने के पैसे नहीं हैं। चाय वाले ने उसे देखा और जाने का इशारा किया।
अब
रामलाल ने अपनी हालत पर गौर किया। उसके कपड़े कई जगह से फटे हुए थे। एक दो जगहों पर
चोट के निशान थे। गाल पर एक जगह खून चुहचुहा कर सूख गया था। उसकी आँखों में गहरी
निराशा पसरी हुई थी जो बहुत ध्यान से देखने पर ही दिखाई देती थी। आँखों के नीचे की
झुर्रियाँ और कालापन अचानक से बढ़ गया था। उसने हाथों से चोट वाली जगहों को सहलाने
की कोशिश की तो पाया कि उसके हाथों पर उसका नियंत्रण पहले जैसा नहीं रहा। उसकी
उँगलियाँ काँप रही थीं। उसने खुद को अपनी उम्र से बहुत ज्यादा बूढ़ा महसूस किया।
क्या वह सचमुच मर चुका है, उसने सोचा।
घर
पहुँचने के लिए उसे पैसे की जरूरत थी जो कि उसके पास नहीं था। एक दो लोगों से उसने
फुसफुसाते हुए मदद की गुहार लगाई पर वे उसकी बात नहीं समझ पाए और आगे बढ़ गए। उसने
पाया कि उसे सुनना तो दूर लोगों ने देखा तक नहीं। फिर किसी और से मदद माँगने की
उसकी हिम्मत नहीं पड़ी। वह पैदल ही घर की तरफ चल पड़ा। जब तक वह घर पहुँचता रात हो
चुकी थी। डबडबाई हुई आँखों से उसने देखा कि बिजली नदारद थी। सब तरफ अँधेरा पसरा हुआ
था। उसे बहुत खुशी हुई कि उसे किसी को मुँह नहीं दिखाना पड़ेगा।
घर
पहुँचकर वह चुपचाप अपने बिस्तर पर लेट गया। देर तक उसे किसी ने नहीं देखा। लेटे
हुए उसने सुना कि उसकी पत्नी इस बात पर चिंतित हो रही थी कि वह अभी तक घर नहीं
लौटा था। इतनी देर तो आज तक कभी नहीं हुई, उसकी पत्नी ने कहा। रामलाल ने पत्नी को
बताना चाहा कि वह आ चुका है पर उसके मुँह से आवाज नहीं निकली। जब बिजली आई तो
पत्नी ने उसे लेटे हुए देखा। वह नाराज होने लगी कि वह वहीं बगल में लेटा है और वह
हलकान हो रही है। रामलाल ने धीरे से पत्नी की तरफ देखा। उसने किसी तरह ताकत जुटाई
और पत्नी से कहा कि वह मर चुका है।
पत्नी
चौंक गई। कहीं वह शराब वगैरह पी कर
तो नहीं आया। उसने मुँह सूँघा। रामलाल इस सब से अविचलित वैसे ही लेटा रहा। अब
पत्नी ने बेटे को बुलाया। बेटा बेरोजगार था और दिन भर झल्लाया हुआ रहता था। वैसे
ही झल्लाते हुए वह आया और माँ से पूछ बैठा कि क्या हुआ, क्यों चिल्ला रही हो?
पत्नी ने रामलाल की तरफ इशारा किया। रामलाल वैसे ही लेटा हुआ था। बेटे ने उसे
उठाया और माँ से पानी लाने को कहा। जब पत्नी ने उसका मुँह धुला और अपने आँचल से
पोछा तो बैंक से निकलने के बाद पहली बार रामलाल को अपने जीवित होने का एहसास हुआ।
वह फफक फफक कर रोने लगा।
बाद
में जब किसी तरह वह सारी बात बता पाया तो पत्नी परेशान हो उठी। जिस पर बेटा एक बार
फिर झल्ला उठा। उसने कहा कि इसमें इतना रोने धोने की क्या बात। ऐसी गलतियाँ हो
जाती हैं और वह एक दो दिन में इसे सही करवा देगा। दरअसल बैंक वाली बात बताते हुए
रामलाल ने अपने मार खाने की बात छुपा ली थी। उसने यह भी नहीं बताया था कि वह बैंक
से घर तक पैदल आ रहा है। जब बेटा चला गया तो पत्नी ने उसे उठाया और खाना ले आई।
उसने चुपचाप खाना खाया। उसने पत्नी को बताना चाहा कि खाने में नमक नहीं है पर उसके
मुँह से आवाज नहीं निकली। खाना खा कर
वह अपने बिस्तर पर रात भर लेटा रहा। उसे नींद नहीं आई और उसने करवट भी नहीं बदली।
रामलाल के बेटे ने उसे
पुनर्जीवित कराने की बहुतेरी कोशिशें की। जहाँ जरूरत महसूस हुई वह रामलाल को भी ले
गया। दोनों महीनों एक विभाग से दूसरे विभाग के बीच चक्कर काटते रहे पर रामलाल के
जीवित होने का कोई साक्ष्य नहीं मिला। दरअसल यह पता ही नहीं चल पा रहा था कि इस
सिलसिले की शुरुआत कहाँ से हुई। और जब तक यह न पता लगता तब तक स्थिति में कोई भी
परिवर्तन संभव नहीं था। रामलाल दिन पर दिन चुप और मरा मरा सा होता जा रहा था। इसी
अनुपात में रामलाल का बेटा दिन पर दिन झल्लाता जा रहा था। वह अपने पिता की तरफ
देखता और पाता कि वह दिन शायद बहुत दूर नहीं जब सरकारी कागज आखिरी तौर पर सही
साबित हो जाएँ।
रामलाल की पत्नी दिन भर घर पर रहती और रोती।
वह सरकारी कागजों पर विधवा हो चुकी थी। उसका पूजा-पाठ बढ़ गया था। इस बीच उसने न
जाने कितनी मनौतियाँ मान डाली थीं। वे सभी उसके पति के फिर से जीवित होने के संबंध
में थीं। वह सोचती कोई तो देवता उस पर कृपालु होगा। कोई तो देवी उसका सुहाग अमर
करेगी पर अपनी ही सोची इन बातों पर उसका भरोसा टूटता जाता। पति और बेटे के घर रहने
पर वह खुश रहने और ज्यादा सक्रिय दिखने की कोशिश करती। इसकी बावजूद पति की चुप्पी
बढ़ती जाती और उसी अनुपात में बेटे का झल्लाना बढ़ता जाता। वह एकदम अकेली हो गई थी।
वैधव्य ऐसा ही होता होगा, एक दिन उसने सोचा।
रामलाल का बेटा जब सब
तरफ से निराश हो गया तब एक दिन उसे मीडिया की याद आई। वह अपनी मूर्खता पर बेहिसाब
झल्लाया कि उसे यह बात पहले क्यों नहीं सूझी। इसके बाद वह तमाम अखबारों और चैनलों
के दफ्तरों के चक्कर काटने लगा। ज्यादातर अखबारों को उसकी खबर छापने लायक नहीं
लगी। एक दो अखबारों ने रामलाल के जिंदा रहते हुए मर जाने की अजीबोगरीब खबर छापी भी
तो उसकी प्लेसिंग ऐसे पन्नों पर की कि इस खबर पर शायद ही किसी का ध्यान गया हो। शुरुआत
में उसे अखबारों से जो आश्वासन मिल रहे थे जल्दी ही वह भी बंद हो गए।
यही
हाल चैनलों का भी था। एक तो वहाँ घुसते हुए ही उसकी टाँगें काँपतीं। दूसरे कोई बात
कर भी लेता तो वह अपनी बात कायदे से न समझा पाता। एक दो लोगों ने उसकी बात समझी तो
तत्काल ही सवाल किया कि मरा हुआ व्यक्ति कहाँ पर है? उन लोगों ने उससे कहा कि वह
मरे हुए व्यक्ति को अपने साथ ले कर
आए तभी कुछ संभव हो सकता है। बेटे ने कहा कि वह अगले दिन अपने मरे हुए बाप को साथ
ले कर आएगा। बात यह थी कि बेटे की झल्लाहट अब
उसके काबू के बाहर जा रही थी। उसका दिमाग नकारात्मक खयालों से दिन रात भरा रहता।
वह
किसी को देखता और उसका मन करता कि वह उसे उठा कर पटक दे। किसी बच्चे को देखता तो उसका मन कान उमेठने या चिकोटी काटने का
करता। किसी लड़की को देखता तो उसे मसल देने के खयाल आते। किसी बूढ़े को देखता तो
अकारण ही क्रोध और झल्लाहट से भर जाता। कई बार जब रात को उसे नींद न आ रही होती तो
उसकी बेतरह इच्छा होती कि वह कुछ ऐसा करे कि पूरा मुहल्ला जाग जाए। वह पत्थर उठाता
और किसी भी घर की तरफ पूरा जोर लगा कर
मारता। जब मुहल्ले में हल्ला गुल्ला होता तो वह उस सब से निस्पृह हो कर अपने बिस्तर पर जा लेटता और एकटक छत देखता रहता। तब उसकी
अपनी हरकतें छत पर किसी चलचित्र की तरह चलने लगतीं। उसे कई बार पछतावा होता कि वह
कितनी वाहियात बातें सोचता रहता है।
कई
दफा वह रोने लगता और देर तक रोता रहता। कभी उसे लगता कि वह पागल हो रहा है और छत
पर वह पागल की धज में प्रकट हो जाता। इस बीच उसकी कल्पना शक्ति जबरदस्त हो गई थी।
वह कुछ भी सोचता और वह सामने घटित होने लगता। वह कई बार अपने को भीख माँगता हुआ
देख चुका था। वह देखता कि उसके घर में चीजें समाप्त हो रही हैं और चीजें समाप्त हो
जातीं। वह कल्पना करता कि अब घर में कुछ खाने को नहीं बचा है और अगले दिन सूखी
रोटी ही हिस्से आती। वह सोचता कि उसकी माँ गायब हो गई है और वह गायब हो जाती। कई
कई दिनों तक दिखाई देना तो दूर उसकी आवाज भी न सुनाई पड़ती। ऐसे ही चलता रहा तो वह
दिन दूर नहीं कि वह किसी की हत्या कर बैठेगा, उसने सोचा।
अगले
दिन जब वह पिता को ले कर चैनल के दफ्तर पहुँचा तो
उसका बहुत गर्मजोशी से स्वागत किया गया। वहाँ दोनों को ठंडा पिलाया गया और एसी की
हवा खिलाई गई। इसके बाद रामलाल से कहा गया कि अगर वह अपने आप को फिर से जीवित करने
की माँग को ले कर आत्मदाह की घोषणा करे तो चैनल उसकी माँग उठाने को तैयार है। रामलाल ने जिन
आँखों से ऊपर देखा उनमें एक बुझी हुई आग के अलावा कुछ नहीं था। इसके बाद चैनल वाले
रामलाल के बेटे को अलग ले गए और समझाया कि सचमुच आत्मदाह थोड़ी करना होगा। यह बस
आत्मदाह का नाटक होगा। एकदम असली जैसा। थोड़ा बहुत जल भी गए तो क्या फर्क पड़ता है।
न्याय
चाहिए तो खतरा तो उठाना ही पड़ेगा। इसके बाद इस बात की पूरी संभावना है कि रामलाल फिर
से जीवित हो जाए। रामलाल का बेटा तैयार हो गया। उसने कहा वह उन्हें फिर से जिंदा
देखने के लिए कुछ भी करने को तैयार है। बेटे के तैयार हो जाने के बाद चैनल के
जिम्मेदार लोगों ने बताया कि अब जब तक मामला निपट नहीं जाता तब तक उन दोनों के
रहने और खाने पीने की व्यवस्था चैनल करेगा। और उन्हें न्याय दिलाने के लिए चैनल
कुछ भी करने को तैयार है। बेटे ने स्वीकृति दी जिस पर रामलाल ने भी सिर हिलाया
जिसका मतलब कुछ भी हो सकता था।
एक
दिन बाद चैनल पर घोषणा की गई - ‘एक मुर्दे की दिल दहला देने वाली दास्तान : अभी
जिंदा हूँ मैं’ - देखिए ठीक सात दिन बाद। इसके बाद चैनल पर चलाने के लिए बहुत सारी
पंच लाइनें तैयार की गईं। चुनी गई लाइनें नीचे दी जा रही हैं। - मर करके भी जिंदा
हूँ - जान नहीं शर्मिंदा हूँ, मुर्दे ने किया चिता में प्रवेश करने का एलान - क्या
आग उसे जला पाएगी, मुर्दे का एलान - सड़क पर ही बनेगा श्मशान। ये तमाम पंच लाइनें
दिन-रात चैनल पर चिता की लपटों की तरह से जलती रहतीं। इसके बाद आग तेज करने के लिए
चैनल ने कुछ और मसाले डालने शुरू किए। चैनल ने रोज इस मसले से थोड़ा थोड़ा खेलना
शुरू किया।
जैसे
कि एक दिन इस मसले पर बातचीत के लिए चैनल ने एक तांत्रिक, एक साहित्यकार और टैरो
कार्ड रीडर को आमने सामने बैठाया। बहुत धुआँधार बहसें हुईं। और उन बहसों की गर्मी
पूरे स्वर्णदेश में फैल गई। लोग गर्मी से बेहाल होने लगे। सोशल मीडिया पर भी यह
बहस फैल गई और इस बहस में अनेक लोग खेत रहे। अंततः इस सब का असर यह हुआ कि स्वर्णदेश
के न्याय मंत्री ‘स्वतंत्र प्रभार’ को एक आपात बैठक बुलानी पड़ी। इस बैठक में बैंक
मैनेजर से ले कर थाने के दरोगा तक सब को बुलाया गया। कई रिटायर्ड न्यायाधीश, वरिष्ठ पत्रकार
और वकील भी विशेष रूप से आमंत्रित किए गए।
न्याय
मंत्री इस मसले को बहुत ही गंभीरता से ले रहा था। राजा तक यह खबर पहुँच गई थी और
उसने गुप्त मंत्री की मार्फत संदेश भिजवाया था कि इस मसले पर जो कुछ भी तय पाया
जाय राजा को उसकी तत्काल खबर की जाय। न्याय मंत्री ‘स्वतंत्र प्रभार’ को लगा कि
यही सही मौका है। इस पर अगर वह चौका मार पाया तो हो सकता है कि अगले कुछ दिनों में
उसे कैबिनेट मंत्री का दर्जा मिल जाय। यह मंत्री मन ही मन गुप्त मंत्री से ईर्ष्या
करता था और किसी भी तरह से गुप्त मंत्री जैसी हैसियत हासिल करना चाहता था। गुप्त
मंत्री यह बात जानता था इसलिए वह इसके खिलाफ राजा के कान भरता रहता था और इस बात
की पूरी कोशिश करता था कि न्याय मंत्री कभी भी राजा से अकेले में न मिलने पाए।
इन
सब बातों को ध्यान में रखते हुए न्याय मंत्री ने बैठक के पहले एक लंबा भाषण दिया।
जब वह थक गया तो बैठ गया और बैठक में शामिल लोगों से सुझाव माँगे। पहला सुझाव
दरोगा से मिला कि मार के फेंक देते हैं साले को कहीं। कागज पर तो पहले से ही मरा
हुआ है। कोई क्या उखाड़ लेगा? कुछ लोग मुस्कराए जरूर पर ज्यादातर लोगों ने मन ही मन
दरोगा से सहमति व्यक्त की। बैंक मैनेजर ने कहा कि उसे वसूली वालों से उठवा लेते
हैं या फिर उसके नाम से कुछ फर्जी लोन पास करा देते हैं। खुद ही मुँह छुपाता भागता
फिरेगा। भूतपूर्व न्यायाधीश की राय अलग थी। उसने कहा कि यह राज्य की अवमानना का
मामला है। इस तरह से तो पूरी व्यवस्था ही नष्ट हो जाएगी।
तब
न्याय मंत्री ने भूतपूर्व न्यायाधीश से सहमति व्यक्त करते हुए दरोगा और बैंक
मैनेजर को डपटा और कहा कि सब कुछ सिस्टम से होना चाहिए। इस पर भारत देश की एक सुपर
हिट फिल्म का उदाहरण देते हुए भूतपूर्व न्यायाधीश ने कहा कि जैसे गब्बर से लोगों
को खुद गब्बर बचा सकता था वैसे ही राज्य से किसी को सिर्फ राज्य ही बचा सकता है।
रामलाल ने मीडिया में जा कर जो कुछ कहा है वह
ब्लैकमेलिंग है और कोई भी संप्रभु सरकार ब्लैकमेलिंग के आगे नहीं झुक सकती। बैठक
में इस मुद्दे पर भी बात हुई कि मीडिया की असली भूमिका क्या होनी चाहिए।
एक
जमाने के क्रांतिकारी पत्रकार ने कहा कि मीडिया का काम सरकारी योजनाओं को जनता के
बीच ले जाना है न कि जनता में असंतोष फैला कर उसे गैरकानूनी कामों की तरफ ले जाना।
पत्रकार ने यह भी सुझाव दिया कि उस चैनल का आधे दिन का सरकारी विज्ञापन रोक दिया
जाय। अंततः यह तय पाया गया कि रामलाल को गिरफ्तार किया जाय और उस पर हिंसा और
उन्माद फैलाने का मुकदमा चलाया जाय। बेहतर हो कि उस पर देशद्रोह का मुकदमा भी
चलाया जाय। पर समस्या यह है कि वह कागज पर मृतक सूची में दर्ज है इसलिए उसे चुपचाप
उठाया जाय और यह सब कार्यवाही गुप्त रखी जाय।
इस
पर न्याय मंत्री ने कहा कि जब किसी के साथ न्याय हो तो उसमें दूसरों के लिए सबक भी
छुपा हुआ होना चाहिए। अगर यह सब पूरी तरह से गुप्त रख कर किया गया तो प्रजा को यह जरूरी सबक कैसे मिलेगा कि उसे हर हाल में कानून का
पालन करना चाहिए। तो मेरा आदेश यह है कि इस मसले पर कार्यवाही कुछ इस तरह से की
जाय कि जनता को वह सब कुछ पता चले जो कि हम चाहते हैं पर इस बात का जनता के पास
कोई भी प्रमाण न हो। इस काम में मीडिया हमारा सहयोग करके अपनी खोई हुई विश्वसनीयता
दोबारा हासिल कर सकती है। इसमें उस चैनल का भी सहयोग लिया जाय जिसने इस मसले को
लापरवाही से उठाया था। अगर वह सहयोग के लिए तैयार हो तो उसकी सजा माफ कर दी जाय।
उसी रात रामलाल को
चुपचाप गिरफ्तार कर लिया गया। इसमें उस मीडिया हाउस ने सरकार का पूरा सहयोग किया
जिसने रामलाल को छुपा रखा था। रामलाल के बेटे को रामलाल की नौकरी के कागज पत्तर
लाने के बहाने पहले ही घर भेज दिया गया। अगले दिन जब बेटा आया तो उससे पूछा गया कि
वह अपने पिता को साथ क्यों नहीं लाया। बताया गया कि बेटे के जाने के थोड़ी देर बाद
ही रामलाल भी यह कहकर निकल गया था कि बेटा उन कागजों को नहीं ढूँढ़ पाएगा और उसे
रामलाल की मदद की जरूरत होगी।
मीडिया
हाउस ने बेटे पर इल्जाम लगाया कि उसने अपने पिता को कहीं छुपा दिया है और उसका
चैनल से जो करार हुआ था उससे मुकरना चाहता है। चैनल ने धमकी भी दी कि बेटे को इसकी
भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। आखिर चैनल निर्धारित दिन और समय पर अब क्या दिखाएगा। खैर
चैनल को कोई विशेष समस्या नहीं हुई। उस दिन दिखाने के लिए उसने किसी दूसरे मुर्दे
को पकड़ लिया जो बार बार जलाए जाने के बावजूद अगले दिन फिर प्रकट हो जाता था। इस
कार्यक्रम को जबरदस्त टीआरपी मिली।
उधर
बेटे की समझ में नहीं आ रहा था कि अब वह क्या करे। पिता मृत पहले से ही थे, अब
गायब भी हो गए थे। अब उसके पास इस बात का किसी भी तरह का कोई साक्ष्य नहीं बचा था
कि उसके पिता कभी थे भी। रामलाल की पत्नी दिन भर बेआवाज रोती रहती। रोते रोते एक
दिन वह अदृश्य हो गई। बेटे को उसकी रुलाई तो सुनाई पड़ती पर रोने की आवाज कहाँ से आ
रही है यह बात वह कभी न जान पाता। अब उसकी झल्लाहट गायब हो रही थी। इसके बदले एक
गुस्सैल इरादा आकार ले रहा था कि वह इस पूरी व्यवस्था को तहस नहस कर दे। अपने उसी गुस्सैल
इरादे के साथ एक दिन वह भी गायब हो गया।
उधर रामलाल के मसले पर गुप्त रूप से अदालत
बैठी थी। पाँच विद्वान न्यायाधीशों की ज्यूरी इस मसले पर न्याय करने बैठी थी।
रामलाल को यह आजादी दी गई थी कि अपना पक्ष खुद रख सकता है। इतना ही नहीं अदालत ने
यह भी कहा कि वह चाहे तो अदालत उसके लिए वकील की भी व्यवस्था कर सकती है। रामलाल
के कुछ न बोलने को अदालत ने अपनी अवमानना माना और इसके लिए अलग से केस चलाने की
व्यवस्था की। कई दिनों तक सभी पक्षों पर बारीकी से गौर करने के बाद अदालत ने पाया
कि चूँकि आरोपी रामलाल सरकारी साक्ष्यों के अनुसार मर चुका है इसलिए उसे कार्यवाही
के दौरान मृत रामलाल कहा जाए।
साथ
ही यह भी कहा गया कि मृतक का दर्जा हासिल करते ही उसके समस्त मानवाधिकार समाप्त हो
गए हैं इसलिए आगे की कार्यवाही के समय यह बात भी ध्यान में रखी जाय। पूरे मसले पर
गौर करने के बाद विद्वान न्यायाधीशों ने कहा कि राज्य गलती कर ही नहीं सकता। और
अगर उससे किसी वजह से कोई चूक हो ही जाती है तो वह सार्वजनिक रूप से उसे मान नहीं
सकता। अगर राज्य इस तरह से अपनी गलतियाँ मानने लगे तब उसकी उस हनक का क्या होगा
जिसके दम पर वह शासन करता है। ऐसे में प्रजा का राज्य और उसकी व्यवस्था पर भरोसा
बना रहे इसके लिए यह जरूरी है कि यह व्यक्ति मर ही जाय।
इसकी
पत्नी रोते रोते अदृश्य हो चुकी है। बेटे का कहीं पता नहीं है इसलिए इसके परिवार
वालों के नजरिए से भी इसके जीवित रहने का कोई आधार नहीं बनता। अदालत चाहती तो यह
भी आदेश दे सकती थी कि यह मृत व्यक्ति आत्महत्या करे और राज्य को किसी भी तरह की
परेशानी या दुविधा से बचाए, जो कि इसका कर्तव्य भी है। पर हमारे देश का कानून
आत्महत्या को गैरकानूनी मानता है इसलिए हम ऐसा नहीं करेंगे। हम इस मृत रामलाल को फाँसी
की सजा भी नहीं दे सकते है क्योंकि जो है ही नहीं उसकी कैसी सजा और कैसी फाँसी। और
फिर फाँसी के बाद जो शव होगा भला वह किसका होगा?
अदालत
ने पाया कि इस केस में बहुत से तकनीकी झंझट हैं। बेहतर तो यही होता कि मृत व्यक्ति
चुपचाप बना रहता। ऐसे में मृत व्यक्ति के रूप में इसका जीवन भी बचा रहता और स्वर्णदेश
की व्यवस्था पर कोई सवाल भी न उठता। इसने ऐसा नहीं किया इसलिए अब हमें ही कुछ करना
पड़ेगा। यह ज्यूरी पूरी सहमति से रामलाल नाम के इस मृत व्यक्ति को गायब करने का
आदेश देती है। अदालत का आदेश है कि इसे कम से कम पाँच सौ डिग्री सेंटीग्रेट तापमान
पर किसी कड़ाहे में डाल दिया जाय। जिससे की यह सीधे भाप बन कर उड़ जाय। यही सच्चा तरीका है जिससे कि स्वर्णदेश की कानून व्यवस्था भी बनी
रहे और न्याय भी हो।
आइंदा
कोई ऐसा केस आए तो बार बार अदालत का कीमती वक्त बर्बाद करने की जगह इस केस और इस
फैसले को हमेशा के लिए बाध्यकारी नजीर समझा जाय।
सम्पर्क
फोन : 08275409685
ई-मेल : chanduksaath@gmail.com
(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग वरिष्ठ कवि विजेन्द्र जी की हैं.)
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (17-11-2018) को "ओ३म् शान्तिः ओ३म् शान्तिः" (चर्चा अंक-3158) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
दिल दहला देनेवाली कहानी। पठनीयता भी गजब की। यथार्थ कितना नाटकीय होता है!
जवाब देंहटाएंमानवीय मूल्यों के क्षरण की पराकाष्ठा का यथार्थ चित्रण
जवाब देंहटाएंमानवीय मूल्यों के क्षरण की पराकाष्ठा का यथार्थ चित्रण ...बहुत बहुत बधाई......
जवाब देंहटाएंSuch a wonderful lines, publish your book online with Book rivers
जवाब देंहटाएं