शमशेर बहादुर सिंह से विनोद दास की बातचीत

शमशेर बहादुर सिंह शमशेर बहादुर सिंह हिन्दी के अपने ढब के अनूठे कवि हैं। उन से यह बातचीत लगभग 33 साल पहले संभव हुई थी। कवियों के कवि शमशेर बहादुर सिंह से विनोद दास की बातचीत। शमशेर जी से दो-तीन बार मिलने पर यह बातचीत पूरी हुई। वह लखनऊ प्रवास में पत्रकार-कवि अजय सिंह के यहाँ ठहरे हुए थे। बातचीत दो दौर में हुई। पहली बार घर में चारपाई पर बैठे हुए बातचीत हुई। दूसरी बार बातचीत बाहर हुई। काफी अरसे से वह बाहर नहीं निकले थे। अखबार पढ़ने के बाद वह शोभा सिंह के आग्रह पर बाहर निकले। चलते-चलते बातचीत शुरू हुई। कुछ दूर चलने पर वह थक कर बैठ गए। फिर घर लौट कर बातचीत पूरी हुई। मेरी कोशिश सारे यथार्थ को देखने की है। देहरादून यह सुनते ही शमशेर जी मानो जाग गए। उनका समूचा शरीर हरकत में आ गया। ऐसा लगा मानो ठहरी हुईं पत्तियाँ अचानक हवा चलने से धीमे-धीमे हिलने लगीं। थोड़ी देर पहले सो कर उठने से उनमें जो उनींदापन व्याप्त था, वह न जाने कहाँ फ़ना हो गया। वे आहिस्ता-आहिस्ता देहरादून घाटी में उतरते गए। अपने चौड़े काले फ्रेम के चश्मे को उन्होंने सीधा किया और कहने लगे : देहरादून से मेरा रिश्ता गहर...