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हरीश चन्द्र पाण्डे की कविताएं

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  हरीश चन्द्र पाण्डे  ये ऐसी कविताएं हैं, जिन्हें आप चाहें तो भी एक सांस में नहीं पढ़ सकते, इनकी यही खूबसूरती है कि इन्हें थोड़ा थम थम कर, थोड़ा रम रम कर पढ़ना पड़ेगा। ये कवि हरीश चन्द्र पाण्डे की कविताएं हैं। कवि की सूक्ष्म संवेदनाओं में पगी हुई ये कविताएं पढ़ने में ऊपर से तो सहज, सरल और सुन्दर लगती हैं, लेकिन ये ऐसी सूक्ष्म संवेदनाएं हैं, जिनसे हो कर गुजरते हुए हम सहसा चकित हो जाते हैं। जिन दृश्यों और घटनाओं से हो कर गुजरना हमारे लिए रोजमर्रा की बात है उसे यह कवि न केवल अपने में अनुस्यूत करता है बल्कि अपने काव्य कौशल से उसे खास बना देता है। ये कविताएं दिखती मासूम सी हैं, पर गहरे वार करती हैं। पढ़ने वाले को बेचैन कर देती हैं। सोचने और सिहरने पर मजबूर कर देती हैं। अपनी कविताओं में कवि ने जहां एक तरफ जीवन की सुन्दरता को खुबसूरती से उकेरा है, वहीं दूसरी तरफ जीवन की विद्रूपताओं को भी जस का तस रख दिया है। ये वे कविताएं हैं जो सहज ही पढ़ने वाले के जीवन संगीत से जुड़ जाती हैं। ये कविताएं संगीत के उस ताल की तरह हैं जो कभी द्रुत होता है तो कभी विलंबित। कविताएं लिखने वाल...

हरीश चन्द्र पाण्डे की कविताएँ

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  हरीश चन्द्र पाण्डे   हर शहर में एक बदनाम गली होती है। होती कहना गलत होगा, बल्कि बना दी कहना ज्यादा मुनासिब होगा। हालांकि, उजाले में बदनाम गली कोई जाना नहीं चाहता, लेकिन अधिकांश लोग ऐसे होते हैं जो इसे बदनाम बनाए रखने में कोई कोताही नहीं करते। बदनाम गली में सब बदनाम ही नहीं होता, बल्कि वहां जीवन के खूबसूरत कल्ले भी फूटते हैं। इनके भी अपने कुछ अरमान होते हैं। इनके भी अपने कुछ जरूरी सवाल होते हैं। हालांकि ये जरूरी सवाल अक्सर अलक्षित रह जाते हैं। कवि इस अलक्षित को ही लक्षित करने का प्रयास करता है। और जब यह कवि हरीश चन्द्र पाण्डे हों, तो हमसे कुछ भी अलक्षित नहीं रह पाता। यही तो हमारे इस उम्दा कवि की पहचान है। कवि भरत प्रसाद ने सुदूर शिलांग से 'देशधारा' नामक एक पत्रिका आरम्भ की है जिसके प्रवेशांक में हरीश चन्द्र पाण्डे की कविताएं प्रकाशित हुई हैं। आज पहली बार पर हम इन्हीं कविताओं को प्रस्तुत कर रहे हैं। तो आइए आज पहली बार पर पढ़ते हैं हरीश चन्द्र पाण्डे की कविताएं। हरीश चन्द्र पाण्डेय की कविताएँ बदनाम गली में यह माँओं की गली भी है  बच्चे गली में खेलते रहते हैं। कभी उसका बेटा ...

हरीश चन्द्र पाण्डे की कविताएँ

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    सामान्य तौर पर केन्द्र अक्सर बनाया जाता है। लेकिन कुछ लोग ऐसे होते हैं जो अपने कृतित्व और व्यक्तित्व के चलते खुद केन्द्र बन जाते हैं। इसके लिए उन्हें किसी कन्धे या सहारे की जरूरत नहीं पड़ती। हरीश चन्द्र पाण्डे ऐसे कवि हैं जिन्होंने अपनी कविताओं के द्वारा खुद को साबित किया है। पक्षधर के हालिया अंक में हरीश चंद्र पाण्डे की दस कविताएँ अष्टभुजा शुक्ल की विस्तृत टिप्पणी के साथ प्रकाशित की गई है। हम इस आलेख और कविताओं को साभार यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं।  अन्ततः सिर्फ कवि : हरीश चन्द्र पाण्डे अष्टभुजा शुक्ल हिन्दी कविता में जिसे नवें दशक से अभिहित करने की कोशिशें हुईं, उसके कई अब के उल्लेखनीय कवियों की पृष्ठभूमि के केन्द्र में पहले का सांस्कृतिक शहर इलाहाबाद रहा। आशय यह कि तब के कवियों की जनपदीयता भले किंचित् भिन्न रही हो लेकिन उनकी युवा-चेतना और संवेदना का नाभिक अब का प्रयागराज ही रहा। स्वाभाविक रूप से इस कविता पर अस्सी के दशक का प्रभाव और दबाव शुरुआती दौर में दिखा किन्तु कालान्तर में आए वैश्विक परिवर्तनों के मद्देनजर इसने अपने काव्य-प्रत्यय और मुहावरे अर्जित करने और उन्हें व...

हरीश चन्द्र पाण्डे की कविताएँ

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  हरीश चन्द्र पाण्डे  - कविता इस दुनिया को संवेदनशील नजरिए से देखने की वह विधा है जिसे एक कवि हू ब हू शब्दांकित कर देने की क्षमता रखता है। ऐसा तभी हो सकता है जब दृष्टि सूक्ष्म होने के साथ साथ विचार मानवीय हों। कोरोना काल समूची मानव प्रजाति के लिए त्रासद समय है। प्रवासी मजदूरों के पलायन की गाथा एक अमिट इतिहास बन चुकी है। कोरोना का कहर आज भी जारी है और प्रवासी मजदूरों की दिक्कतें अभी भी अपारावार हैं। कवि हरीश चन्द्र पाण्डे ने इन प्रवासी मजदूरों की त्रासदी को काव्यबद्ध किया है। इन प्रवासियों के लिए अपने ही राज्य किसी राष्ट्र की शक्ल लिए खड़े हो गए तो जिले राज्य की शक्ल में आड़े आ गए। और तो और उनका गाँव जहाँ वे कभी भी बेखटके चले आते थे , वहाँ पहुंचने के लिए उन्हें क्वारंटाइन होना पड़ा। आज पहली बार पर हरीश चन्द्र पाण्डे की कविताएँ प्रस्तुत हैं। ये कविताएँ पहल के ऐतिहासिक 125 वें अंक में प्रकाशित हैं।       हरीश चन्द्र पाण्डे की कविताएँ     डूबना एक शहर का : प्रसंग टिहरी   अपने डूबने में यह हरसूद का समकालीन था शहरों की बसासत के ...