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गौरांशी चमोली की कविताएं

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गौरांशी चमोली गौरांशी चमोली का जन्म   14-10-2000 को उत्तरकाशी में हुआ।   अभी अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी बैंगलुरू से जीवविज्ञान में स्नातक के पहले वर्ष की छात्रा हैं। कविता इन्हें विरासत में मिली है। गौरांशी की कविताओं को पढ़ कर यह कहा जा सकता है कि इनमें भविष्य का एक उम्दा कवि छिपा हुआ है। कविता के लिए जो सुस्पष्ट दृष्टि और वैचारिक आधार जरुरी होते हैं वह इस कवि के पास है। कहीं पर भी प्रकाशित गौरांशी की ये पहली कवितायें हैं। नए कवि का कविता की दुनिया में स्वागत करते हुए हम आज पहली बार पर प्रस्तुत कर रहे हैं गौरांशी की कविताएँ।  गौरांशी चमोली की   कविताएं                                                    दोस्त पेड़ उसने झुक कर हवाओं को सलाम किया घंटों बगल में बहती नदी से बातें की चिडियों से बादलों की खोज ख्रबर ली उनके बच्चों को पूर्वज चिडियों के किस्से सुनाए सूरज से कुछ देर और रूकने का निवेदन किया और इस बात पर रूठे चांद को सर्दियों का वास्ता दे मना लिया। मैं भी कुछ दिनों से इसकी छांव में बैठने लगी थी अपने तने से अडार दे देता था चुपचाप सु

विष्णु खरे पर स्वप्निल श्रीवास्तव का आलेख 'विचार–विमर्श के परिक्षेत्र'

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विष्णु खरे विष्णु खरे हिंदी साहित्य के कुछ ऐसे विरल कवियों में से रहे हैं जो अपनी से बेबाक बयानी के लिए जाने गए । विष्णु जी ने शहरी जीवन की कुछ ऐसी विरल कविताएं लिखीं जो उन्हीं के विट का कवि लिख सकता था। वे न केवल अपनी कविता बल्कि अपने गद्य, विशेष तौर पर सिनेमा पर लेखन के लिए जाने गए। पिछले साल 19 सितंबर को विष्णु जी का निधन हो गया। कवि स्वप्निल श्रीवास्तव ने काफी पहले उन पर एक आलेख लिखा था जो विष्णु जी की नजर में भी आया था। विष्णु जी को सुखद आश्चर्य हुआ था कि कोई उनकी बाद की पीढ़ी का कवि उनकी कविताओं को इस तरह से देखता है। आज पहली बार प्रस्तुत है विष्णु खरे पर स्वप्निल श्रीवास्तव का लिखा आलेख 'विचार विमर्श के परीक्षित परिक्षेत्र'।   विचार – विमर्श के परिक्षेत्र स्वप्निल श्रीवास्तव विष्णु खरे विरल अनुभव के कवि हैं। इसलिए हिन्दी कविता में उनकी उपस्थिति   अलग हैं। उन्हें पसंद करने वालों से ज्यादा नापसंद करने   वालों की तादाद हैं। उनकी कविताएँ परम्परागत नहीं हैं। बल्कि वे जोखिम उठा कर कविताएँ लिखते हैं। विष्णु खरे छोटी कविताओं के कवि नह