रुचि उनियाल की कविताएं
रुचि उनियाल जैसे जैसे हम समझदार होने की तरफ कदम बढ़ाते हैं वैसे-वैसे रूढ़ियां और परंपराएं हमें अपनी जकड़ में आबद्ध करने लगती हैं। मान्यताएं हमारी बौद्धिक चेतना से दो दो हाथ करने लगती हैं। कवि के सामने यह एक बड़ी चुनौती होती है। हिन्दू धर्म में पितरों को तर्पण देने की प्रथा ऐसी ही है। स्वाभाविक रूप से अपने पितरों के लिए हमारे मन में आदर और सम्मान होता है। हिन्दू परम्परा में पितृ पक्ष में पितरों को तर्पण देने का प्रचलन है। लेकिन हमारे पितर अब किस जीवधारी के रूप में होंगे, और उन्हें किस तरह तर्पण किया जाए, इसे ले कर कवयित्री रुचि उनियाल संशयग्रस्त हैं और अपने मनोभावों को कविता में इस तरह अभिव्यक्त करती हैं : "कैसे चीन्ह लूँ किसी कुत्ते में तुम्हारी छवि?/ कैसे करूँ विश्वास कि,/ तुम उसी कौवे के रूप लौटे हो/ जिसे तुम भी नहीं स्वीकारते थे/ काँव-काँव सुन कर/ और उड़ा देते थे छज्जे से उसे/ इस डर से कि,/ गौरैया के घोंसले से खा लेगा उसके अण्डे"। कविता के अन्त में वह एक सवाल खड़ा करती हैं जो मानीखेज है 'क्या तुम तृप्त हो जाओगे पिता?' आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं रुचि उनियाल की ...