मार्कण्डेय की कहानी 'पान-फूल'
मार्कण्डेय अपनी तरह के अलग कथाकार रहे हैं। नई कहानी आंदोलन में उनकी कहानियों का आस्वाद अलग है। उनका मानना था कि रचनाएं सहज भाव से रची जानी चाहिए। रचनाओं पर विचारधारा थोपने को वे कतई पसन्द नहीं करते थे। क्योंकि खुद उनके मुताबिक विचारधारा कहानी को उसके सहज अंजाम तक पहुंचाने की बजाए उसे भटका देती है। ‘पान फूल’ उनका पहला कहानी संग्रह है। और इसी क्रम में 'पान फूल' उनकी पहली कहानी भी है। अपने पहले कहानी संग्रह 'पान फूल' की भूमिका में मार्कण्डेय जी स्पष्ट रूप से लिखते हैं- “सामाजिक संदर्भों का वास्तविक चित्रण नए कथाकारों की कहानियों का प्रमुख तत्व बन गया। जीवन के सुख-दुःख को इन्होंने संदर्भों से उठा कर अपनी कहानियों का विषय बना लिया। जाहिर है कि कहानी की रचना-प्रक्रिया के क्षेत्र में यह बड़ा परिवर्तन था और इसने नई कहानी को सीधे प्रेमचंद से जोड़ दिया।” आज मार्कण्डेय की पुण्य तिथि पर उनकी स्मृति को नमन करते हुए हम प्रस्तुत कर रहे हैं मार्कण्डेय की कहानी पान फूल। 'पान-फूल' मार्कण्डेय "माँ, मैं बाहल नहीं जाऊँगी। मुझे डल लगता हैऽ ऊं ऽ... ऊं ऽ... ऊं ऽ... " जा