संदेश

मार्कण्डेय की कहानी 'पान-फूल'

चित्र
    मार्कण्डेय अपनी तरह के अलग कथाकार रहे हैं। नई कहानी आंदोलन में उनकी कहानियों का आस्वाद अलग है। उनका मानना था कि रचनाएं सहज भाव से रची जानी चाहिए। रचनाओं पर विचारधारा थोपने को वे कतई पसन्द नहीं करते थे। क्योंकि खुद उनके मुताबिक विचारधारा कहानी को उसके सहज अंजाम तक पहुंचाने की बजाए उसे भटका देती है। ‘पान फूल’ उनका पहला कहानी संग्रह है। और इसी क्रम में 'पान फूल' उनकी पहली कहानी भी है। अपने पहले कहानी संग्रह 'पान फूल' की भूमिका में मार्कण्डेय जी स्पष्ट रूप से लिखते हैं- “सामाजिक संदर्भों का वास्तविक चित्रण नए कथाकारों की कहानियों का प्रमुख तत्व बन गया। जीवन के सुख-दुःख को इन्होंने संदर्भों से उठा कर अपनी कहानियों का विषय बना लिया। जाहिर है कि कहानी की रचना-प्रक्रिया के क्षेत्र में यह बड़ा परिवर्तन था और इसने नई कहानी को सीधे प्रेमचंद से जोड़ दिया।” आज मार्कण्डेय की पुण्य तिथि पर उनकी स्मृति को नमन करते हुए हम प्रस्तुत कर रहे हैं मार्कण्डेय की कहानी पान फूल। 'पान-फूल' मार्कण्डेय "माँ, मैं बाहल नहीं जाऊँगी। मुझे डल लगता हैऽ ऊं ऽ...  ऊं ऽ...  ऊं ऽ... " जा

रुचि बहुगुणा उनियाल का संस्मरण 'मास्टर जी की छड़ी'

चित्र
  रुचि बहुगुणा उनियाल  अपने घर परिवार में बच्चों की गतिविधियां, उनकी शरारतें, उनकी चालाकियां और उनकी मासूमियत देख कर हमें सहज ही अपना बचपन याद आ जाता है। और याद आ जाती हैं बचपन की प्यारी शरारतें। इन दिनों पहली बार पर हम महीने के तीसरे रविवार को रुचि बहुगुणा उनियाल के संस्मरण को पहली बार पर प्रस्तुत करते हैं। तकनीकी कारणों से पिछले दो महीने से हम इसे प्रकाशित नहीं कर पा रहे थे, जिसके लिए हमें खेद हैं। अब इसे धारावाहिक रूप से नियत समय पर प्रस्तुत करने की हम हरसंभव कोशिश करेंगे। तो आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं  रुचि बहुगुणा उनियाल का संस्मरण 'मास्टर जी की छड़ी'। 'मास्टर जी की छड़ी' रुचि बहुगुणा उनियाल  प्राप्ति-प्रियम स्कूल से लौटे, आदतन प्रियम की बक-बक चालू है। लेकिन आज प्राप्ति का मूड़ कुछ उखड़ा-उखड़ा लग रहा है। उसे पूछा कि क्या हुआ तो सामने से कोई जवाब नहीं मिला। थोड़ी देर तक चुपचाप उसे देखने के बाद मैंने प्राप्ति को सुनाने के लिए कहा, ‘कि दोनों फटाफट कपड़े बदल लो फिर खाना खाओ, अभी मैंने गर्मागर्म कढ़ी बनाई है ठंडी हो जाएगी'। दरअसल प्राप्ति को कढ़ी, फाणुं, चैंसु,

के. विक्रम राव का आलेख 'गरचे टेलीफोन न बनता!'

चित्र
  ग्राहम बेल  आज यह सोचना ही कठिन लगता है कि क्या होता अगर दुनिया में टेलीफोन न होता। टेलीफोन का आविष्कार वह आविष्कार है, जिसने मानव जीवन और इस दुनिया को पूरी तरह बदल कर रख दिया। आज हम टेलीफोन से मोबाइल युग में पहुंच चुके हैं। हर हाथ में मोबाइल ने समूचा परिदृश्य को ही सहज बना दिया है। पल भर में दुनिया की खबरें हमारे सामने होती हैं। सात समन्दर पार अपने किसी प्रियजन से बात करना कोई आश्चर्य की बात नहीं है। आज टेलीफोन की 148वीं जन्मगांठ पर विशेष रूप से पहली बार पर वरिष्ठ पत्रकार के. विक्रम राव का आलेख 'गरचे टेलीफोन न बनता!' प्रस्तुत किया जा रहा है।    गरचे टेलीफोन न बनता! तो कैसा आलम होता? के. विक्रम राव         सोचिए यदि टेलीफोन न होता तो? दुनिया दूरियों में खो जाती। पृथकता गहराती। फासले लंबाते। मानवता बस चिंदी चिंदी ही रह जाती। मगर आज ही के दिन (10 मार्च) ठीक 148 साल पूर्व एक घटना ने सब कुछ बदल डाला। तभी 29-वर्षीय एलेक्जेंडर ग्राहम बेल ने टेलीफोन को इजाद किया। उनका तुक्का भिड़ गया। उनकी टोपी में तुर्रा तभी से लग गया। एकदा वे तार का एक सिरा पकड़े अलग कमरे में दूसरा छोर पकड़े मित्र

पूजा की कविताएं

चित्र
  पूजा समाज में तमाम विद्रूपताओं के बावजूद साहित्य हमेशा मनुष्यता का पक्षधर रहा है।  घटाटोप अंधियारे के दौर में भी वह उम्मीद का दामन कभी नहीं छोड़ता। इस अर्थ में कहा जाए तो साहित्य प्रगतिशील मूल्यों को बढ़ावा देता है। वह जूझता है  रूढ़ियों से, संकीर्ण परंपराओं से, बने बनाए मूल्यों से। पूजा युवा कवयित्री हैं। वे  अपनी कविताओं के जरिए उन प्रगतिशील मूल्यों को बढ़ावा दे रही हैं, जिन पर आजकल प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से तमाम प्रहार किए जा रहे हैं। वे उन पितृसत्तात्मक  परंपराओं से जूझती दिखाई पड़ती हैं जिसने सदियों  से स्त्रियों को दोयम दर्जे का नागरिक बनाए रखा है।  पूजा की एक उम्दा कविता है  'बारिश'। इस कविता में वे बड़ी साफगोई से मां और बाबा की बारिश में फर्क बताती हैं। बीते फरवरी में  हमने  'वाचन पुनर्वाचन' नामक स्तम्भ को पहली बार पर फिर से आरम्भ किया था। इस  स्तम्भ  के अन्तर्गत एक कवि दूसरे कवि पर लिखता है।  इसी क्रम में  कुछ बिल्कुल नए कवियों पर टिप्पणी करेंगे अग्रज कवि नासिर अहमद सिकन्दर। साथ ही कवि की कुछ नवीनतम कविताएं भी प्रस्तुत की जायेंगी।  इस  शृंखला  को फिर से आरम्