शशिभूषण मिश्र का आलेख 'युगीन सामाजिक अंतर्विरोध और अमरकांत की कहानियाँ'

अमरकांत लेखक भविष्यदृष्टा नहीं होता। आमतौर पर वह अपनी रचनाओं में अपने समय और समाज की विडंबनाओं को ही अभिव्यक्त करता है। ये विडम्बनाएं जब तक बनी रहती हैं, लेखन की प्रासंगिकता तब तक बनी बची रहती हैं। अमरकांत ऐसे ही कहानीकार थे जिनकी अपने समय की नब्ज पर पकड़ थी। आजादी के बाद के भारत की कथा व्यथा को गहरे तौर पर जानना हो तो अमरकांत को पढ़े बिना बात नहीं बनेगी। शशिभूषण मिश्र अमरकांत की कहानियों की तहकीकात करते हुए उचित ही लिखते हैं 'अमरकांत की कहानी आजादी के बाद के भारत की बस्तियों की हकीकत बन जाती है। अमरकांत ने पांच दशक पहले जिस सर्वग्रासी संकट की ओर ध्यान खींचा था वह आज और गहरा हो गया है। ध्यान रहे लेखन पर बात करते हुए न उस युग को दरकिनार किया जा सकता है और न आज के हालतों को। हमारे समाज का यह बहुत पुराना रोग है कि वह सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा तो कर नहीं सकता किन्तु उसे नष्ट करने में सबसे आगे रहता है। इसीलिए गली की इंटें अगर उखड़ जाएं तो उसे सही करने के बजाए, बची-खुची ईटें उखाड़ कर अपने घर में रख लेने में ही वह अपनी सबसे बड़ी होशियारी समझता है।' कल अमरकांत के ...