राजकमल चौधरी की कहानी 'खरीद-बिक्री'
हिंदी-मैथिली की सबसे धारदार भाषा और सबसे तीक्ष्ण अभिव्यक्ति वाले लेखक राजकमल चौधरी की कल 13 दिसम्बर 2024 को 95वें वी जयंती थी। मित्र पुष्यमित्र ने कुछ साल पहले उनकी एक मैथिली कहानी खरीद-बिक्री का हिंदी में अनुवाद किया था। राजकमल चौधरी की स्मृति को नमन करते हुए आज पहली बार पर हम प्रस्तुत कर रहे हैं यह कहानी। 'खरीद-बिक्री' राजकमल चौधरी (मूल मैथिली कथा का हिन्दी अनुवाद : पुष्यमित्र) दरभंगा टावर के पास विश्वास बाबू का होटल. दीवार पर टंगा है लिप्टन कंपनी का नया कैलेंडर। बहुत देर से देख रहा हूं- -चाय की हरी-हरी पत्तियां चुनती, खासी लड़की, काफी उघरा, मांसल चित्र...। लड़की आगे लंबी हुई जा रही है, वक्ष के अग्रभाग में गहरी धारी पड़ गयी है। चित्रकार की अंतर्दृष्टि ने तूलिका को वस्त्र के भीतर तक पहुंचा दिया है, यह है कला! लिप्टन के सुस्वादु चाय के संग चाय के पत्ते चुनने वाली लड़की की मांसल, श्याम देह का संस्पर्श। कला गुरू मम्मट ने कहा था- कला का उदेश्य है रसोद्रेक! दो साल पहले, छोटे भाइयों के उपनयन संस्कार में गांव गया था। मेरे दालान के पीछे जो लड़की गोइठा ठोक रही थी, वह भी इसी चाय वाली...