सुधा अरोड़ा की कहानी 'देह धरे का दंड'

सुधा अरोड़ा पितृसत्तात्मक समाज स्त्रियों पर अपना वर्चस्व कायम रखने के सारे पितृसत्तात्मक समाज स्त्रियों पर अपना वर्चस्व कायम रखने के सारे तिकड़म तो करता ही है वह उन्हें महज एक 'वस्तु' की तरह देखता है और व्यवहार भी करता है। इस क्रम में स्त्रियां पुरुषों के उस व्यवहार का अनायास ही शिकार होती हैं जिसकी कल्पना वे स्वयं नहीं करतीं। धर्म की आड़ में स्त्रियों का यह शोषण कुछ अधिक ही होता है। साधु महात्मा का बाना ओढ़े ढोंगी लोग इसका नाजायज फायदा उठाते हैं। धर्म इन ढोंगियों के लिए सर्वाधिक सुरक्षित शरणस्थली साबित होता है। सुधा अरोड़ा ने अपनी कहानी 'देह धरे का दंड' के जरिए इस ढोंग को करीने से उद्घाटित करती हैं। सुखदेव जी महाराज हर वर्ष अपने शिष्यों समेत तनेजा परिवार के घर पधारते हैं और इस अवसर पर अपने भक्तों को कृतार्थ करते हैं। धर्म की आड़ में सब कुछ इस व्यवस्थित तरीके से चलता है कि इन ढोंगियों की हरकतों को परिवार के लोग भी भांप नहीं पाते। आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं सुधा अरोड़ा की एक बेजोड़ कहानी 'देह धरे का दंड'। 'देह धरे का दंड' सुधा अरोड़ा पूरी रात विश...