संदेश

ट्रेसी के. स्मिथ की कविताएं

चित्र
  Tracy K. Smith मनुष्य की कल्पना का कोई सानी नहीं। इस कल्पना शक्ति ने ही मनुष्य को आज ब्रह्मांड का सर्वश्रेष्ठ प्राणी बना दिया है। अपनी कल्पनाओं को यथार्थ रूप देने के क्रम में मनुष्य विज्ञान की तरफ बढ़ा। इस विज्ञान ने उसके जीवन को पूरी तरह बदल कर रख दिया। अब तक हम विज्ञान कथाओं के बारे में सुनते आए थे। ये कथाएं मुख्य रूप से या तो कहानी के रूप में लिखी जाती रही हैं या फिर औपन्यासिक स्वरूप में। लेकिन अमरीकी कवयित्री ट्रेसी के. स्मिथ ने विज्ञान को अपनी कविताओं का विषय बनाया है जो उन्हें और कवियों से अलग करता है। अमरीकी कवयित्री ट्रेसी के. स्मिथ के अब तक कुल पांच संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। 'लाइफ ऑन मार्स' के लिए ट्रेसी को 2011 का प्रतिष्ठित पुलित्जर पुरस्कार प्रदान किया गया। ट्रेसी के. स्मिथ की कविताओं का हिन्दी अनुवाद किया है कवयित्री बालकीर्ति ने। कम समय में ही बालकीर्ति ने कविताओं के अनुवाद में बेहतरीन काम किया है। उनके अनुवाद हमेशा प्रवहमान होते हैं। इसीलिए वे मूल कविता के करीब लगते हैं। तो आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं ट्रेसी के. स्मिथ की कविताएं। कुछ बातें कवयित्री  ट्रे

राजेन्द्र कुमार की कविताएं

चित्र
  राजेन्द्र कुमार आमतौर पर यह माना जाता है कि कवि को कोई स्पष्टीकरण देने से बचना चाहिए और इसकी कोई खास जरूरत भी उसके लिए नहीं होती। लेकिन जब बात कविता की हो तो विषय कुछ भी हो सकता है। स्पष्टीकरण अपनी बात को पुख्तगी के साथ रखने का प्रयास होता है। कवि अपनी इस कविता में लिखते हैं : 'बात यह है कि मैं जीवन में इतना डूब गया हूं/ कि मौत मुझे सतह पर नहीं पा सकती' यह पंक्ति काफी महत्वपूर्ण है। कवि जीवन से गहरे तौर पर जुड़ा हुआ है। कवि की तमाम कविताएं इसकी तस्दीक करती हैं। हालांकि राजेंद्र कुमार की छवि एक आलोचक की है लेकिन आलोचना में भी उनका कवि स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ता है। आज राजेंद्र कुमार जी 81 वर्ष के हो गए। जन्मदिन पर प्रिय कवि को बधाई और शुभकामनाएं। आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं राजेंद्र कुमार की कविताएं। राजेन्द्र कुमार की कविताएं  स्पष्टीकरण यह बात नहीं कि मैं जीवन से ऊब गया हूँ बात यह है कि मैं जीवन में इतना डूब गया हूँ कि मौत मुझे सतह पर नहीं पा सकती । हाँ, उसे मिल सकते हैं                   मेरी उखड़ी हुई साँसों के बुलबुले                   जो हैं इतने ज़्यादा चुलबुले      

सदानन्द शाही की कविताएं

चित्र
  परिवर्तन प्रकृति का नियम है। समय बीतने के साथ पुरानी चीजें बदलती हैं। हम स्वाभाविक रूप से कई जगहों पर आते जाते रहते हैं और इन बदलावों को शिद्दत के साथ महसूस करते हैं। ये जगहें हमारी स्मृति का अटूट हिस्सा बन जाती हैं। इस बीतते हुए वक्त के साथ ही इलाहाबाद भी काफी बदल गया है। अब वह इलाहाबाद से प्रयागराज हो गया है। इलाहाबाद का नाम ही नहीं, कई चीजें, बातें और रवायतें भी एक एक कर बदल गई हैं जिसे कवि सदानन्द शाही ने अपनी एक कविता में रेखांकित किया है। हाल ही में कवि का एक संग्रह 'माटी पानी' लोकायत प्रकाशन से प्रकाशित हुआ है। कवि को नए संग्रह के लिए बधाई एवम शुभकामनाएं। आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं इसी संग्रह में प्रकाशित सदानन्द शाही की कुछ कविताएं। सदानन्द शाही की कविताएं कभी किसी यात्रा से लौटिए कभी किसी यात्रा से लौटिए  तो लगता है कि  आप वही नहीं लौटे हैं  जो गए थे कुछ का कुछ हो गये हैं कभी कोई किताब आती है  और चुपचाप बदल देती है  आपके होने को कभी कोई आवाज  कभी संगीत की कोई तान  कभी कोई दृश्य  कभी कोई चित्र  कभी कोई भाव  कभी कोई विचार  मन को छू लेता है  और कंचन कर देता है  आप