बंधु कुशावर्ती का आलेख "अमृत लाल नागर के निवास की साक्षी हवेली 'कोठी साहजी'"

 




यह एक तीखा सच है कि हम अपने साहित्यिक सांस्कृतिक विरासतों के प्रति हमेशा उदासीन या लापरवाह रहते हैं। कई एक देश इन विरासतों को संभालने सहेजने के लिए तत्पर रहते हैं लेकिन हमारे यहां इस तरह की कोई परम्परा ही नहीं पनपने पाई। प्रख्यात रचनाकार अमृत लाल नागर लखनऊ में जिस हवेली में रहे उसे संरक्षित करने का कोई भी प्रयास नहीं किया गया। इसी तरह का हश्र अन्य रचनाकारों के निवास स्थलों का भी हुआ। केदार नाथ अग्रवाल, दूधनाथ सिंह, रवीन्द्र कालिया, लाल बहादुर वर्मा के निवास स्थलों को बेच दिया गया। राज्य की तरफ से संरक्षित किए जाने की उम्मीद करना बेमानी ही है। बंधु कुशावर्ती ने अपने इस आलेख में उन प्रयासों को रेखांकित करने का प्रयास किया है जो नागर जी के निवास की साक्षी हवेली कोठी साह जी को संरक्षित कराने के लिए किए गए। आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं बंधु कुशावर्ती का आलेख "अमृत लाल नागर के निवास की साक्षी हवेली 'कोठी साहजी'"।


"अमृत लाल नागर के निवास की साक्षी हवेली 'कोठी साहजी'"


बंधु कुशावर्ती



विख्यात हिन्दी लेखक अमृत लाल नागर का लगभग 33 बरसों तक निवास रही चौक, लखनऊ स्थित हवेली 'कोठी साहजी' का यह सदर दरवाजा़ है।  

     

यहाँ नागर जी ने कितनी स्फुट रचनाओं से ले कर सन 1957-58 से निधन-पर्यन्त कहानियाँ, नाटक उपन्यास आदि लिखे हैं, उसे क्या बताना, वह तो सर्वविदित है। परन्तु देश-विदेश के छोटे-बडे़, ख्यात्-प्रख्यात्, नये-वयः वृद्ध कितने रंगकर्मी, फिल्मकार, विचारक-मनीषी इस हवेली में आये, उनसे और नागर जी से कितना-कैसा संवाद हुआ, कैसी प्रीतिकर और अविस्मरणीय यादों और नागर जी के लखनवी अन्दाज़ के आतिथ्य व बतरस की मोहक स्मृतियाँ ले कर लोग इस हवेली से प्रसन्न बदन गये!


भगवती बाबू- यशपाल और नागर जी नाम से जुडी़- 'लखनऊ की कहानी-उपन्यास की त्रयी की जीवन्त बैठकों, श्रीनारायण चतुर्वेदी, राम विलास शर्मा, अज्ञेय, ठाकुर प्रसाद सिंह, भगवती सिंह, धर्मवीर भारती, कमलेश्वर, श्रीलाल शुक्ल प्रभृति साहित्यकारों के अलावा, नागरजी के चौथे दर्जे से कालीचरन हाईस्कूल में सहपाठी रहे लेखक-पत्रकार ज्ञान चन्द जैन के साथ की यारबासी-भरी बैठकें- इन सबका लेखा-जोखा कहीं नहीं है किन्तु; बेशक बडे़ इमामबाडे़ के दौर में बनी यह हवेली नागर जी के निवास के दौर के 33 बरसों के पल-पल की साक्षी है!


अपवादस्वरूप ही लोगों को पता होगा कि 1856 ई. में बेगम हज़रत महल ने अँगरेजों से मोर्चा लेने की खा़तिर जिस अँधियारी भोर में समूचे अवध को एकजुट करने के कौल के साथ लखनऊ छोडा़ था, वह अँधियारी रात बेगम हजरत महल ने (कालान्तर में नागर जी का निवास बनी) इसी हवेली---'कोठी साहजी' में ही बितायी थी!


यह भी कम ही लोग जानते हैं कि ऐसे ऐतिहासिक महत्त्व की गौरवशाली कोठी साहजी के वंशधरों ने 20वीं सदी के पहले दशक में; इसी इमारत में 'लक्ष्मण सदन' नाम से एक प्रकाशन-संस्था का संचालन करते हुए अनेक पुस्तकें भी प्रकाशित की थीं! 


23 फरवरी 1990 को अमृत लाल नागर जी के निधन के बाद तब की सरकार के मुख्यमन्त्री मुलायम सिंह यादव इसी कोठी साहजी में जब नागरजी के परिवार के बीच शोक-संवेदना प्रकट करने आये थे तो जाने से पहले यह वादा कर गये थे कि वे यथा प्रस्ताव इस हवेली के उत्तराधिकारियों से 'कोठी साहजी' के अधिग्रहण की   कार्यवाही उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से करने तथा इस हवेली एवं इसके परिसर को लखनऊ के चौक-क्षेत्र की ऐतिहासिक, साहित्यिक व सास्कृतिक-धरोहरों का संग्रहालय बनाने की योजना के स्वरूप में साकार करेंगे!




 
           

इस सम्बन्ध में विधिवत् न केवल सीधे माननीय मुख्यमन्त्री मुलायम सिंह यादव तक बल्कि; उत्तर प्रदेश की बाद की सरकारों समेतअखिलेश यादव की सरकार तक एतद्विषयक सुनियोजित-सुविचारित प्रस्ताव व प्रतिवेदन नागर जी के सुपुत्र डाॅ. शरद नागर की ओर से अनवरत ही प्रस्तुत किये जाते रहे हैं। यह भी ध्यान रहे कि ये प्रतिवेदन और प्रस्ताव जिला अधिकारी, लखनऊ विकास प्राधिकरण तथा नगर निगम, लखनऊ के एवं सरकार के संस्कृति-विभाग के माध्यम से भी समय-समय पर सन् 2013 तक बराबर भेजे जाते रहे है़ं किन्तु; खेद कि किसी सरकार ने उपर्युक्त प्रस्तावों और प्रतिवेदनों को कभी भी करणीय नहीं माना!

  

अपवाद छोड़ दें तो 30 वर्ष से अधिक पुराना महत्त्व का अभिलेख एवं 150-200 वर्ष से ज़्यादा पुरानी सांस्कृतिक- ऐतिहासिक इमारतें 'संरक्षणीय-धरोहर की श्रेणी' की में आ जाती हैं। नागर जी जैसी लखनऊ की बडी़ साहित्यिक तथा सांस्कृतिक शख्सियत के नाते बल्कि; ऊपर वर्णित-इंगित तथ्यों के नाते भी; समझा जा सकता है कि हर स्तर पर "कोठी साहजी" को कैसी बदहालियों व उपेक्षाओं को झेलते रहने के लिये अभिशप्त मान कर छोड़ देने का अन्तहीन सिलसिला जारी ही रहा है!

    

यदि ऐसा न होता तो चौक के जिस हुसैनाबाद इलाके के सतखण्डा, पिक्चर गैलरी,चौक घण्टा घर व शाही तालाब-परिक्षेत्र को 'सरंक्षणीय (हेरिटेज-जोन) क्षेत्र' मानने की आड़ में दरअस्ल मुस्लिम वोट बैंक के लिये अखिलेश सरकार ने करोडो़ं रुपये पानी की तरह कमीशनखोरी में भी सर्फ़ कर दिये, बमुश्किल इस सर्फ़ हुई धनराशि के दस प्रतिशत अंश में ही; इसी क्षेत्र में आधा किलोमीटर से भी कम फासले के भीतर बदहाली-ग्रस्त 'कोठी साहजी' नामक ऐतिहासिक-ह़वेली की सहेज-सम्हाल और सरंक्षण के काम को भी बेशक और बेहतर-अंजाम दिया जा सकता था। परन्तु मुख्यमन्त्री अखिलेश यादव और समाजवादी-पार्टी वाली उनकी सरकार के लिये न कोठी साहजी वोट बैंक थी और न साहित्यकार अमृत लाल नागर की अहम-शख़्सियत ही वोट बैंक थी! इसलिये इसकी तरफ से हर तरह से आँखें मूँदे रखते हुए सदैव उपेक्षणीय रवैय्ये को का़यम रखना लखनऊ के कवियों लेखकों, साहित्यकारों, संस्कृतिकर्मियों आदि की बडी़ जमात समेत, उत्तर प्रदेश की सभी सरकारों का स्थायी-भाव बना रहा है।

       

यहीं बताना जरूरी है कि जिस 'सरक्षणीय-परिक्षेत्र' के बहाने से हुसैनाबाद के मुस्लिम वोट बैंक की खा़तिर पिछली सपा सरकार के आखि़री दौर में करोडो़ं सर्फ़ हुए, उसी से लगे शीशमहल इलाके में, संसदीय-चुनाव 2019 के मद्द-ए-नज़र, सपा से भाजपा में आ कर गुपचुप भी और देखते ही देखते भी; बेपेंदी के एक राजनीतिक लोटे ने 'अमृत लाल नागर साहित्यकार द्वार' इसलिये तामीर कर दिखाया, ताकि सपा में रहते इन जनाब ने जो करोडो़ं का मनमाना वारा-न्यारा किया है, उसकी महफूजियत पर भाजपा की सत्ता के लोग ही आँच देते हुए कहीं गडे़-मुर्दे न उखाड़ने लग जायँ; और---साथ ही नागर जी के नाम पर इस इलाके के 'हिन्दू वोट बैंक' को, भाजपा के खत्ते में लाने का नाटक मुमकिन होता हुआ भी दिखाया जा सके!

       

नाम से भी नवाब इन जनाब की महारत है कि रहे ये किसी भी दल में हों किन्तु; सत्तासीन काँगरेस, बसपा, सपा या भाजपा में आ कर मुहा-मुँही तक की नज़दीकी का़यम कर लेने में इनको कभी भी देर कतई नहीं लगी! अन्यथा गान्धी जी की हत्या से क्षुब्ध जिन नागर जी ने संघ और गोडसे की कथित 'हिन्दू राष्ट्रवादी संस्कृति की झण्डा-बरदारी के बरखि़लाफ' हो कर 'गोलवरकर, ढोलवरकर, पोलवरकर' जैसा विस्फोटक-लेख लिखा हो और जो बहुतेरी शख्सियतों के निकट हो कर भी हमेशा राजनीति के सभी दलों से ले कर राजनीतिक-व्यक्तित्त्वों के प्रति भी  निरपेक्ष रहे, उन अमृत लाल नागर के नाम पर द्वार बनवा कर कोई बेपेंदी के लोटे जेसा पाल्हा-बदलू वोट-बैंक की खा़तिर नागर जी को "हिन्दू वोट बैंक का मोहरा" बनाये!

       

परन्तु यह भी हुआ है, और इस पर लखनऊ के किसी एक भी लेखक-साहित्यकार ने प्रतिरोध-विरोध में कुछ भी नहीं कहा-किया है! अस्तु;

   

यह जमात नागर जी का निवास रही "कोठी साहजी" को उसकी ऐतिहासिकता और महत्ता के नाते बदहाली से बचाने के लिये आवाज़ उठायेगी, किसी तरह की कारगर या ठोस पहल-क़दमी भी करेगी, यह आशा; दुराशा ही बनी रहनी है!



बंधु कुशावर्ती



सम्पर्क 


मोबाइल : 09721899268

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