प्रदीप्त प्रीत की कविताएं

प्रदीप्त प्रीत विधाओं में परस्पर आवाजाही की एक अलग परम्परा रही है। दो अलग अलग विधाओं में काम करते हुए उसे साध लेना आसान काम नहीं होता। लेकिन प्रदीप्त प्रीत ने अपनी कविताओं में यह सम्भव कर दिखाया है। प्रदीप्त रंगमंच से जुड़े हुए हैं। मूलतः कवि हैं। इसलिए उनकी कविताओं में संवादात्मक अभिव्यक्ति प्रायः दिखाई पड़ती है। यह कवि का हुनर है कि संवाद को कविता का अभिन्न अंग बना देता है। कवि अपनी बात को पुरजोर तरीके से कहने के लिए व्यंग्य का सहारा लेता है। यह व्यंग्य कल्पित नहीं बल्कि हमारे समाज में प्रचलित वह कुरीति है जिससे ऊपर से नीचे तक सब परिचित हैं लेकिन उसके बारे में कोई बात नहीं करना चाहता। आज भले ही हम स्वयं को विश्व गुरु कह कर अपनी पीठ खुद ठोक लें लेकिन ज्ञान की बात जब भी आती है वैश्विक स्तर से हमारे शैक्षणिक प्रतिष्ठान कोसों दूर रहते हैं। यह बात सुनने में भले ही तल्ख लगे लेकिन यह हकीकत है कि हमारे यहां जो शोध होते हैं उसमें मौलिकता के नाम पर कुछ होता ही नहीं। मौलिकता के अभाव में ये शोध कुछ भी नया जोड़ पाने में नाकामयाब रहते हैं। हाल ही में सिंगापुर के सुप्रीम कोर्ट ने स...