अशोक मित्रन की तमिल कहानी 'दो मिनट' हिंदी अनुवाद - श्रीविलास सिंह।

 

अशोक मित्रन

 

 

अशोक मित्रन का जन्म 22 सितंबर, 1931 को सिकंदराबाद, आंध्र प्रदेश में हुआ था। उनका मूल नाम त्यागराजन था। 21 साल की उम्र में, वह अपने पिता की मृत्यु के बाद वे चेन्नई चले गए, जहाँ उन्होंने एक दशक तक जेमिनी स्टूडियो में काम किया। बाद में 1966 में वे पूर्णकालिक लेखक बन गए।  उन्होंने "अशोक मित्रन" का छद्म नाम लिया। 1980 और बाद में, उनके कई कार्यों का अंग्रेजी और कई भाषाओं में अनुवाद किया गया। उनके सरल शब्दों और विचारों को स्पष्टता में व्यक्त करते हुए उन्हें सबसे प्रभावशाली तमिल लेखकों में से एक के रूप में रखा गया। वर्तमान समय। अशोकमित्रन" जब उन्होंने लिखना शुरू किया। 1980 और उसके बाद के दौरान, उनकी कई रचनाओं का अंग्रेजी और कई भाषाओं में अनुवाद किया गया। उनके सरल शब्दों और विचारों को स्पष्टता से व्यक्त करते हुए उन्हें वर्तमान समय के सबसे प्रभावशाली तमिल लेखकों में से एक के रूप में स्थापित किया। उन्होंने लिखने के लिए अशोकमित्रन" का छद्म नाम अपनाया। 1980 और उसके बाद के दौरान, उनकी कई रचनाओं का अंग्रेजी और कई भाषाओं में अनुवाद किया गया। उनके सरल शब्दों और विचारों को स्पष्टता से व्यक्त करते हुए उन्हें वर्तमान समय के सबसे प्रभावशाली तमिल लेखकों में से एक के रूप में स्थापित किया। 23 मार्च 2017 को 85 वर्ष की उम्र में मित्रन का निधन हो गया।

उनके उपन्यास और लघु कथाएँ पात्रों के सामने आने वाली कठिनाइयों के बीच सूक्ष्म व्यंग्य और हास्य की भावना से चिह्नित हैं। इस कहानी का तमिल से अंग्रेजी अनुवाद किया है पदमा नारायण और सुब्बा श्री कृष्णस्वामी ने। कहानी का अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद किया है कवि कहानीकार और अनुवादक श्रीविलास सिंह ने तो आइए आज पहली बार पर पढ़ते हैं अशोक मित्रन की तमिल कहानी 'दो मिनट'

 


दो मिनट (तमिल कहानी)



अशोक मित्रन


अंग्रेजी अनुवाद : पद्मा नारायणन & सुबाश्री कृष्णास्वामी

अंग्रेज़ी से हिंदी अनुवाद : श्रीविलास सिंह 

 

 

1

 

मुझे एक स्पेनिश लेखक की कहानी का ध्यान आता है। मैं लेखक का नाम अथवा कहानी का शीर्षक स्मरण नहीं कर पाता हूँ। बस यह कहानी मेरे मस्तिष्क से दूर जाने से इनकार करती है…. एक स्पेनिश नाटककार जिसने अनेक सफल नाटक लिखे।  अभी वह एक शानदार नाटक लिख रहा है। यह बहुत अच्छे से रूपाकार ग्रहण कर रहा है। केवल अंतिम अंक लिखा जाना शेष है। इसी समय-बिंदु पर उसे फ्रांको के निरंकुश शासन का विरोध करने और उसके विरुद्ध षड्यंत्र रचने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया जाता है। उसे सुबह गोली मार दी जानी है। समूची रात्रि एक भी विचार नाटककार के मस्तिष्क में नहीं आता। सुबह तड़के 6.58 बजे ही फ्रांको के आदमी उसे दीवार के सामने खड़ा कर देते हैं। मात्र दो मिनट और, और नाटककार को गोली मार दी जाएगी, जैसे ही सिपाहियों को अपने प्रमुख से आदेश प्राप्त होगा। उन दो मिनटों में, लेखक का मस्तिष्क एकदम से क्रियाशील हो उठता है। नाटक पूरा हो जाता है। मात्र यही नहीं बल्कि नाटक की एक एक पंक्ति लेखक के मस्तिष्क में सम्पादित भी हो जाती है और उसका मंचन भी हो जाता है। वह अचंभित है। क्या मृत्युदंड रद्द कर दिया गया? वह किस प्रकार नाटक पूरा कर पाया? ठीक सात बजे, लेखक की गोलियों से छलनी देह, धराशायी हो जाती है।”

 

जब उसने यह विशिष्ट अंश समाचार पत्र में पढ़ा, वह बेचैन हो गया। आजकल, दुकानदार हर चीज प्लास्टिक बैग्स में पैक करते हैं।  लेकिन मूंगफली अभी भी अखबार में लपेट कर दी जाती है। कितना सौभाग्य था कि उसने आज मूंगफली खरीदी थी।

 

वह उस दूकान पर वापस गया जहाँ से उसने मूंगफली खरीदी थी। “क्या तुम्हारे पास वह अखबार है, यह पन्ना जिसका टुकड़ा है?” उसने पूछा।

 

“यहाँ देख लो। ये भी रद्दी कागज के टुकड़े हैं। कोई पूरा अखबार यहाँ नहीं है।”

 

किसी ने इस पन्ने को अन्य कागजों के साथ वजन के हिसाब से मूंगफली की इस दूकान पर बेच दिया था, बच्चों की कापियों के पन्ने, शेयर्स के प्रार्थना पत्र, और एक नाटक के मंचन के प्रचार की पर्चियां इत्यादि। तो, यह पन्ना मूंगफली विक्रेता के पास किसी जगह से किसी तरह आ गया होगा। संभवतः जिस व्यक्ति ने दुकानदार को रद्दी कागज बेचे थे, उसने किसी और दुकान से एक रुपये की मूंगफली खरीद ली होगी। क्या जो लोग खाने के लिए मूंगफली खरीदते हैं वे वह कागज इकठ्ठा करते हैं जिसमें लपेट कर मूंगफली मिलती है? नहीं, जैसे ही वे मूंगफली खा चुकते हैं, कागज को मरोड़ कर दूर फेंक देते हैं। और तब, जैसे इसी बात की प्रतीक्षा कर रही हो, एक गाय आएगी और तुड़े मुड़े कागज को खा जाएगी। अभी भी शहर में घूमती बहुत सी गायें होंगी।

 

वह घर चला आया और उसने उस समाचार पत्र को पुनः अधिक सावधानी से पढ़ा। वह दस या बारह वर्ष पुराना होना चाहिए। अथवा और भी पुराना। कितनी चतुराई से लेखक ने एक सूचना के आधार पर एक सम्पूर्ण कहानी निर्मित कर ली है। इस संक्षिप्त अंश से भी मूल कहानी के विस्तार का अनुमान लगा पाना संभव था। कोई इतनी शानदार कहानी के लेखक का नाम अथवा रचना का शीर्षक किस प्रकार भूल सकता था?

 

वह भी, तमाम तरह की चीजे भूल चुका था। विशेषतः उन पुस्तकों और कविताओं के नाम जो उसने पढ़ी थी, मित्रों के नाम, पड़ोसियों के नाम…. चलो नाम भूल जाना तो ठीक है किन्तु वह चहरे भी भूल चुका था। वह अब उन व्यक्तिओं में से भी अधिकांश के चहरे स्मरण नहीं कर सकता जो उसके जीवन में किसी समय विशेष में महत्वपूर्ण रहे थे। यदि उन चेहरों को भूल जाना इतना दुखद था, तो उन के चेहरों को भूल जाना कितना अधिक दुख दायक होगा जो उसके करीबी और प्रिय थे। पीड़ा के साथ ही, लज्जा का कष्ट भी होगा। जिस व्यक्ति ने यह अंश लिखा होगा उसने भी ऐसी ही पीड़ा को अपना ह्रदय कुतरते हुए महसूस किया होगा।

 

यह भूल जाना बहुत बड़ी बात नहीं प्रतीत होता कि उसने चाबी का गुच्छा कहाँ रखा था, सिक्के, छतरी अथवा कलम कहाँ रखा था। दुनिया भर में लोग इस तरह की चीजें भूलते हैं और उन्हें ढूंढते हैं। किन्तु क्या चेहरे और कहानियां भी उसी भांति भूली जा सकती हैं? एक बार भुला कर, क्या उन्हें भी कभी ढूंढा जा सकता है? उसने अपने माँ-बाप के चेहरों को अपने मस्तिष्क में लाना चाहा। उसे अम्मा को कैसे स्मरण करना चाहिए? किन वस्त्रों में और किस आयु में? यदि वह अपनी स्वयं की माँ का चेहरा भूल चुका था, तो क्या यह कोई आश्चर्य था कि वह किसी पढ़ी हुई कहानी अथवा उसके लेखक नाम भूल सकता था?

 

उसने उस पन्ने को पुनः पुनः पढ़ा। कहानी की बगल में ही संपादक के नाम एक पत्र था और किसी अन्य संपादक द्वारा की गयी आलोचना का संपादक द्वारा दिया गया मुंहतोड़ जवाब। वे अधिकांशतः अन्य पृष्ठों पर जारी रहते थे। इसलिए उस कहानी और पात्र के अतिरिक्त अन्य कोई भी चीज पूरी नहीं थी।

 

उसने कुछ अन्य कहानियों को भी याद करने का प्रयत्न किया जो उसने पढ़ीं थी और भूल चुका था। एक समृद्ध, मातृविहीन लड़की प्रेम में पड़ जाती है। यद्यपि उसके पिता उसके चयन का समर्थन नहीं करते किन्तु वे विवाह के लिए सहमत हो जाते हैं और विवाह निश्चय ही संपन्न होता है। विवाह की रात्रि को ही वह बदमाश उसके सभी आभूषण और धन ले कर फरार हो जाता है।  उसके पश्चात्, न तो लड़की और न ही उसके पिता ही घर से बाहर कदम रखते हैं। शीघ्र ही पिता का देहांत हो जाता है। उनकी पुत्री की इच्छाओं के विरुद्ध उनका अंतिम संस्कार घर के बाहर संपन्न होता है। बहुत से साल गुजर जाते हैं। लड़की कभी घर से बाहर नहीं जाती। किसी बाहरी व्यक्ति को उस आवास में भीतर जाने की अनुमति नहीं है। घर के लिए आवश्यक सभी वस्तुएं, जैसे राशन और दूध इत्यादि का हिसाब और भुगतान एक पुरुष सेवक द्वारा किया जाता है। एक दिन लड़की - जो अब एक वृद्ध महिला है - मर जाती है। उसकी अंत्येष्टि के पश्चात् शहर के महत्वपूर्ण लोग घर के भीतर जाते हैं। शयन कक्ष में, विशाल पलंग के आधे हिस्से में एक सूख चुकी, क्षय होती, किसी समय के दूल्हे के वस्त्र पहने एक पुरुष देह पड़ी है। यह लड़की का पति है....... इस बात के चिन्ह हैं कि कोई उस देह की बगल में प्रत्येक रात्रि सोता रहा था। एक तकिये पर लड़की के बाल मिलते हैं।

 

उसने यह कहानी पढ़ने के पश्चात् कई घंटे मानों किसी सम्मोहन में गुजारे थे। लड़की ने एक कंकाल के बगल में सोते हुए कुछ चालीस अथवा पचास वर्ष व्यतीत किये थे। और उस व्यक्ति का क्या जिसने उससे विवाह किया था? वह दूल्हे के लिबास में रहते हुए ही किस तरह मर गया था? क्या उसने उसके मर जाने के पश्चात् उसे कपड़े पहनाये थे? एक शव की बगल में एक के बाद एक इतने दिनों तक सोते रहने के लिए उसकी मानसिक अवस्था क्या रही हो सकती थी? और उस लेखक की मनो-दशा का क्या जिसने ऐसे ह्रदय वाली लड़की की कहानी लिखी थी। वह लेखक का नाम नहीं स्मरण कर पा रहा था। वह कहानी का शीर्षक भूल चुका था। किन्तु वह लड़की का नाम अभी भी स्मरण कर सकता था। एमिली।

 

वह केवल कहानी को स्मरण कर पा सका जिसका शीर्षक वह भूल चुका था। जो उसे स्मरण रखना चाहिए था वह था लेखक का नाम। उसे अखबार जिसमें मूंगफली लपेटी गयी थी, उसमें छपी कहानी का शीर्षक और लेखक के नाम की स्मृति भी वापस पानी चाहिए। उसे कम से कम एक अनुमान लगाना चाहिए।

 

वह उस दिन कुछ भी खा-पी नहीं सका। ऐसा प्रतीत हुआ मानों मूंगफली ने उसका पेट चार-पांच दिन के लिए भर दिया था।  उसने उन सब चीजों को, जिसे उसने जीवन भर में पढ़ा था, कालक्रमानुसार स्मरण करना चाहा। सबसे पहले उसकी स्कूल की पाठ्यपुस्तकें थीं। जो कुछ दिमाग में आया वह वे सारी मूंछें और दाढ़ियां थीं जो उसने उन किताबों के तमाम चेहरों पर बिना किसी अपवाद के बनायीं थीं। कई बार की पिटाई के पश्चात् ही उसकी किताबों में मौजूद चेहरों पर मूंछ बनाने की आदत छूट सकी थी।

 

काफी समय तक वह सोचता रहा था कि मूंछें केवल कुछ चेहरों पर उगती थी, अन्यों पर नहीं। कि किसी व्यक्ति की मूंछे उसके जन्म से ही निर्धारित होती थी, बहुत कुछ उसकी आँखों, कान अथवा नाक की भांति। यदि नहीं तो क्यों हिटलर की मूंछ उसकी नाक के नीचे एक छोटे से वर्गाकार चौकोर की भांति थी जबकि अभिनेता इरोल फ्लिन की ठीक उसके ऊपरी होठ के ऊपर एक प्यारी सी लकीर की भांति। इरोल फ्लिन को किसी तलवार युद्ध की स्पर्धा में नहीं उपस्थित होना था; उसे बस मूछों को खड़ा कर के एक बार मुस्कराना भर था। राजकुमारियां सम्मोहित  हो जाती, दुश्मन भय से भाग खड़े होते।

 

कितने वर्ष हुए जब उसने इरोल फ्लिन की कोई फिल्म देखी थी? इरोल फ्लिन की मृत्यु हुए लगभग तीस वर्ष हो चुके होंगे। उसकी कोई फिल्म देखना किसी को पूरे एक हप्ते तक प्रसन्न रख सकता था। एक झाड़ू में भी सरसराहट हो सकती थी। और वह एक तलवार बन जाती। सभी चौपाया जानवर चौकड़ी भरते घोड़े प्रतीत होते। खपरैल के मकान महलों जैसे नजर आते। राजकुमारियां अपनी सहेलियों के संग झरोखों से दर्शन दिया करती। 

 

 


 

 

2

 

 

“अरे! क्या गड़बड़ है? इस घर में दुर्गन्ध कैसी है?” मेरा छोटा भाई हँसता हुआ बाहर बरांडे में खड़ा है।

 

“हँसने की कौन सी बात है?”

 

“क्या, दा?” वह हँसता हुआ ऊपर अपने भाई के पास चला गया।

 

“उधर देखो, थम्बी।” उसने उस जगह की ओर संकेत किया जहाँ एक साईकिल खड़ी थी। साईकिल की सीट पर एक शव, तराजू के डंडे की भांति रखा था।

 

घर में एक शव! कोई शव को साईकिल पर छोड़ गया था। क्या यह कहीं ऊपर से गिरा था? यह लाश ठीक सीट के बीच में गिरी थी और अगल बगल झूल रही थी। न्याय के देवता के तराजू की भांति। वह एक देवता था अथवा एक देवी? वह जो भी रहा हो, वे आँख पर पट्टी बांधे ही रहेंगे। लेकिन अब शव का क्या किया जाना था?

 

वह बुरी तरह कांप रहा था। जहाँ तक उसके भाई की बात थी, वह हँस रहा था और घर में एक शव पाए जाने के परिणामों को समझ पाने में अक्षम, दृश्य का आनंद ले रहा था। परिवार का सबसे बड़ा सदस्य होने के कारण उसी को सबसे पहले मामले में घसीटा जायेगा।

 

मेरी मदद करो, दा। आओ इसे कहीं छुपा दें।”

 

“हम इसे वहाँ तालाब में क्यों नहीं फेंक देते ?”

 

अकस्मात् मकान के सामने एक तालाब प्रगट हो गया। एक बहुत बड़ा तालाब। पानी से लबालब भरा हुआ। अभी तक उस जगह, जहाँ वे रहते थे, एक भी ऐसा घर नहीं था जिसमें एक कुंआ भी हो। इस घर के लोग भी पिछली शाम तक बाहर पाइप से भर कर पानी लाते थे।

 

अब एक विशाल तालाब, बिलकुल घर के सामने ही। एकाएक वह गली एक राज मार्ग में परिवर्तित हो गयी। अब यहाँ से रथ गुजरेंगे।

 

उसने और उसके भाई ने मिल कर शव को उठाया और उसे तालाब में फेंक दिया। बाहर प्रकाश मद्धिम था। फिर भी कुछ लोग जागे हुए हो सकते थे। क्या होगा यदि उन्होंने देख लिया हो?

 

जैसे जैसे भोर हुई उसकी दुश्चिंता बढ़ती गयी। उसके पेट में कुछ महीन मिट्टी की भांति घुमड़ रहा था। वह बेचैन था। जैसे जैसे सूरज चढ़ता गया, उस के सिर की पीड़ा असहनीय होती गयी। उसने निर्णय लिया कि वह स्वयं पुलिस के समक्ष समर्पण कर देगा। किन्तु वह स्वयं को जेल में डालने हेतु क्या कारण बताएगा? कोई क्यों स्वयं को मात्र इसलिए बंदीगृह में भिजवाना चाहेगा कि उसने एक शव पड़ा पाया था? फिर वे पूछ सकते थे कि शव कहाँ था। एक शव को एक तालाब में फेंकना अपराध माना जा सकता था। इसके लिए कड़ी से कड़ी क्या सजा हो सकती थी? क्या उसे वास्तव में इस तरह के मुद्दे पर स्वयं को प्रताड़ित करना चाहिए?

 

उसके तर्क ने उसकी दुश्चिंता को कम नहीं किया। जब ऐसा प्रतीत हो रहा था कि मानों उसका सिर फट जायेगा, एक पुलिस निरीक्षक और एक कांस्टेबल आ पहुंचे। दो अन्य ने शव को तालाब में से छान निकाला और उसे गली में रख दिया।

 

“क्या वह तुम्हीं थे जिसने यह शव तालाब में फेंका था?”

 

“हाँ, मैं ही था। मैं अकेला ही था। लेकिन उसे मैंने नहीं मारा था।  मुझे नहीं पता कि शव यहाँ कैसे आ गया था।”

 

“क्या तुम निश्चित रूप से शव को नहीं पहचानते?” निरीक्षक ने पूछा।

 

“नहीं, मैं सचमुच नहीं पहचानता।”

 

“ठीक से देखो, फिर बताओ।”

 

“मुझे नहीं देखना है। मैं शव को नहीं पहचानता।”

 

“पहले उसे एक बार देखो, फिर मुझे बताओ।” निरीक्षक की आवाज धमकाने वाली थी। उसने मृतक के चहरे की ओर देखा। 

 

ये उसके पिता थे।

 

“अप्पा, अप्पा!”

 

“क्या, दा? तुमने अपने पिता को मार डाला और अब विलाप कर रहे हो और उनका नाम पुकार रहे हो?”

 

“मेरे पिता को मरे अट्ठारह साल हो गए। एकदम ठीक ठीक कहूं तो उन्नीस साल।”

 

“तो तुम कह रहे हो कि यह तुम्हारे पिता का शव नहीं है?”

 

“ये मेरे पिता हैं। निश्चित रूप से मेरे पिता। पिता जो काफी समय पूर्व मर चुके हैं...... मैंने ही उनकी चिता को मुखाग्नि दी थी।”

 

“पुलिस स्टेशन आओ दा। तुम कुछ कहानी सी बना रहे हो।”

 

हर चीज किसी फिल्म सी प्रतीत हो रही थी। उसे एक न्यायाधीश के समक्ष प्रस्तुत किया गया - जो उस पापी की ओर देखना भी नहीं चाहता था जिसने अपने पिता को मार डाला था। न्यायाधीश ने कहा, “कल इसे फाँसी पर लटका दो।”

 

“कल प्रातः ठीक पांच बजे।”

 

“केवल एक अनुरोध था।”

 

“क्या है? स्वतंत्रता अथवा आजीवन कारावास का कोई अवसर नहीं है।”

 

“बस एक छोटी सी विनती। पांच की बजाय मुझे पांच बज कर दो मिनट पर फाँसी पर लटकाया जाये।”

 

“दो मिनट में क्या अंतर पड़ जायेगा?”

 

“हर चीज उसी दो मिनट पर निर्भर है। मात्र दो मिनट।”

 

“ठीक है, तुम्हें ठीक पांच बज कर दो मिनट पर फाँसी दी जाएगी।”

 

जब उसकी पत्नी और बच्चे विलाप करते हुए उसके चारों ओर खड़े थे, उसने उन सब से कहता हुआ महसूस किया कि यह सब एक असंगत तमाशा था। विलाप करने की बजाय, कितना अच्छा होता यदि उन्होंने उन दो कहानियों के बारे में कुछ विवरण दिए होते।

 

उसे कारागार में डाल दिए जाने के बावजूद भी उसके विचार स्पेनिश नाटककार और लड़की, एमिली के इर्द-गिर्द घूमते रहे। उसने सोचा कि उसके पिता का शव उसके पास मात्र उन्हीं दोनों के कारण आया था। उसके पिता उसके बारे में चिंता करते थे।  और उसी के साथ-साथ, उनमें मजाक का भाव भी बहुत बढ़िया था।

 

उसने एक निद्राविहीन रात्रि बितायी। और उसके दोनों प्रश्नों के सम्बन्ध में कोई जवाब नहीं था। जेल के अधिकारी उसकी फाँसी की तैयारी करने हेतु चार बजे ही आ गए थे। यद्यपि उसने उनके सभी आदेशों का पालन किया, उसका मस्तिष्क स्पेन और अमेरिका में ही उलझा हुआ था।

 

ठीक 4:55 बजे उसे तख्ते पर चढ़ा दिया गया और फंदा उसके गले में डाल दिया गया। यदि वे उसके पैरों के नीचे के तख्ते को सरका देंगे, तो वह झटके से लटक जायेगा और मर जायेगा। उसके नीचे जाने की गति के कारण फंदा उसकी गर्दन के मूल को तोड़ देगा। जब ऐसा हो जायेगा, उसे मृत घोषित कर दिया जायेगा। किन्तु उसकी ऐंठती हुई देह दस से पंद्रह मिनट और वहीँ लटकी रहेगी।

 

पांच बज गए। उसके पास जीने को मात्र दो मिनट और शेष हैं।  यह नहीं कहा जा सकता कि मात्र स्पेन की किताबें ही स्पेनिश में थी। वह भाषा दुनिया के अनेक हिस्सों में बोली जाती थी। वहां भी बहुत से लेखक थे। स्पेनिश भाषा तीन चौथाई लैटिन अमेरिका में बोली जाती थी। वहीँ का कोई लेखक स्पेनिश नाटककार के बारे में कहानी लिखे हो सकता था। लेकिन कौन? फ्रैको के विरुद्ध क्रांति के काल खंड पर आधारित एक कहानी।  यह 1940 के पहले का कोई समय होना चाहिए। दक्षिण अमेरिका का कौन लेखक ऐसी कहानी लिखे हो सकता था?

 

यह उसके मस्तिष्क में रोशनी के एक झमाके की भांति आया। कहानी का नायक स्पेन का एक नाटककार नहीं था।  वह चेक नाटककार था।  जो उसे घसीट कर गोली मारने के लिए ले गए, वे फ्रैंको के सिपाही नहीं थे। वे जर्मन नाज़ी थे। कौन व्यक्ति यह कहानी लिखे हो सकता था..... नहीं, जिस व्यक्ति ने कहानी लिखी वह बोर्हेस था। लुई जोर्ग बोर्हेस। यह कहानी उसी के द्वारा लिखी गयी होनी चाहिए। लेकिन चाहे जितना भी नाज़ी सैनिकों ने उसे प्रताड़ित किया हो और उसे मार डाला हो, कहानी के नायक ने-नाटककार ने - वह जो रहस्य जानता था उन्हें नहीं बताया : वह नाटक जो वह लिख रहा था। मात्र दो मिनटों में, उसने वह नाटक पूरा कर लिया था, एक नहीं दो-दो बार सम्पादित कर लिया था, हर छोटी बड़ी चीजों को जाँच लिया था, और अंततः अपनी कल्पना में उसका मंचन भी कर लिया था। कोई कह सकता था कि यह एक चमत्कार था। एक गुप्त चमत्कार।  कहानी अपने आप में एक गुप्त चमत्कार थी।

 

एमिली की कहानी भी संभवतः उसी समय के आस-पास लिखी गयी हो सकती थी। यदि यह वास्तव में कोई पुरानी कहानी रही होती आप उसे एडगर एलेन पो की कह सकते थे। किन्तु यह बीसवीं शताब्दी की कथा थी। यदि ऐसी कहानी अमेरिका में बीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में लिखी गयी होती, तो यह केवल एक ही लेखक की हो सकती थी : विलियम फॉकनर। केवल वही इसे लिख सकते थे। यह बात इतने लम्बे समय तक इतनी आसान क्यों नहीं रही। मस्तिष्क अत्यधिक तीव्रता से तभी कार्य करता है जब किसी के पास जीवित रहने के लिए केवल कुछ मिनट रहते हैं। तभी उसने सही निष्कर्ष निकाला। जो चीजें वर्षों और महीनों से अस्पष्ट थीं वे एक झमाके के साथ शीशे की भांति स्पष्ट हो गयीं। अब वह मर सकता था। किन्तु बस एक और विवरण बचा हुआ था। वह मूंगफली वाला अखबार। उस पर छपी कहानी कौन लिखे हो सकता था ? किसने लगभग कुछ बीस वर्ष पूर्व तमिल में बोर्हेस के बारे में लिखा हो सकता था? उसके सौ से अधिक पाठक नहीं रहे होंगे। कौन तमिल लेखक था जिसने मात्र सौ पाठकों के लिए लिखा होगा?

 

आह! क्या मूर्खता है! यह छोटा सा विवरण कैसे इतनी देर से अज्ञात रहा हो सकता था? ये का ना सु * थे, जिन्होंने मात्र सौ पाठकों के लिए लिखा था। कागज का टुकड़ा उस पत्रिका से फाड़ा गया रहा होगा जिसमें का ना सु संपादक थे। उन सौ पाठकों में से एक की मृत्यु हो गयी होनी चाहिए। उसकी पत्नी और बच्चों ने उसके सामानों की जाँच की होगी। उन्होंने उसके इकट्ठा किये हुए पुराने कागजात फेंक दिए होंगे। अथवा उन्हें मूंगफली बेचने वाले की दुकान पर बेच दिया होगा। का ना सु भी नहीं रहे थे। उनकी मृत्यु के समय, उनके स्वयं के लम्बे समय पूर्व मर चुके पिता प्रगट हुए थे मानों उन्हें लेने आये हों। यह कहना गलत था कि यम के दूत किसी व्यक्ति को परलोक ले जाने हेतु आते हैं। उसके स्वयं के मामले में, उसके पिता एक शव के रूप में आये थे। उसके पिता ने उन प्रश्नों के उत्तर उसे उपलब्ध करा दिए जो उसे कुतर रहे थे और खाये जा रहे थे। जो कुछ शेष था वह था मृत्यु के समय उनका साथ देना। हर चीज तैयार थी।

 


 

 

3

 

...... कहीं एक घड़ी दस. बारह, बीस इत्यादि बजा रही थी। यह एक पचास वर्ष पुरानी दीवार घड़ी थी। उसकी घंटियों के अव्यवस्थित हो जाने के पश्चात् उस इलाके के लोगों ने कभी उसमें चाबी नहीं भरी थी। किसी ने, जिसे निश्चय ही इस बात का ज्ञान नहीं रहा होगा, उसमें चाभी भर दी होगी इसीलिए वह निरंतर बज रही थी।

 

आवाज के असहनीय हो जाने के पश्चात्, वह उठ बैठा और उसने लाइट जला दी। घड़ी अभी भी बज रही थी। समय ठीक पांच बज कर दो मिनट हुआ था।

 

*****

@कहानी के समस्त अधिकार लेखक स्वर्गीय अशोक मित्रन के उत्तराधिकारियों और अनुवादकों पद्मा नारायणन और सुबाश्री कृष्णास्वामी के पास हैं।  

 

* का ना सु = प्रसिद्ध तमिल लेखक का. ना. सुब्रमण्यम         



(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग्स स्व विजेंद्र जी की हैं।)

 

 

 


 


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