पंखुरी सिन्हा की कविताएं

 




आज जब दुनिया में नफ़रत और घृणा अपने चरम पर है, तब प्रेम ही वह भरोसा है जो हमें आश्वस्त करता है कि अन्ततः सब बेहतर होगा। ढाई आखर के इस प्रेम के विस्तार की सीमा नहीं है। यह असीम और अनन्त है। यह प्रेम ही है जिसके बारे में आमतौर पर यह कहा जाता है कि इसके बूते किसी से कोई भी काम कराया जा सकता है। प्रेम ही वह अनुभूति है जिसके लिए हम मरने मारने पर उतारू हो जाते हैं। अपनी एक अपेक्षाकृत लम्बी कविता अच्छी पार्टी और प्रेम में पंखुरी सिन्हा लिखती हैं 'प्रेम तो ऐसा होता है/ जिसमें कोई जान ले ले/ किसी की'। लेकिन दुर्भाग्यवश प्रेम भी इन दिनों एक जुमला बनता जा रहा है। जो प्रेम किसी भी बन्धन को स्वीकार नहीं करता, उसी को समाज के उद्धत लोग निर्धारित करने वाले ठेकेदार बनते जा रहे हैं। प्रेम को सीमाओं में बांधने का प्रयास किया जा रहा है। जो ऐसा कर रहे हैं वे नहीं जानते कि पहले भी प्रेम ने किसी तरह के अवरोध को स्वीकार नहीं किया और न ही वह आगे ऐसा करेगा। यही तो प्रेम की उदात्तता है। यही प्रेम की ताकत है। आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं पंखुरी सिन्हा की कविताएं।



पंखुरी सिन्हा की कविताएं 



दुःख लिखना आसान नहीं है


दुःख लिखना आसान नहीं है

जैसे चोरी के बाद आपसे कहा जाए 

पुलिस में न्याय याचिका 

न लिखवा कर 

लिखें कविता 

सारे हाथ पैर 

बेकार हैं सरकारी तंत्र के 


कोई क़ानून नहीं 

इस किस्म की चोरी को 

करने के लिए सम्बोधित 

कि आपका लगभग

हासिल ग्रीन कार्ड 

करवा कर ड्राप 

रद्द कर दिया 

पीएचडी में दाखिला 

और मेरी ही यूनिवर्सिटी ने

बुलाया बॉर्डर पैट्रॉल को 

और मुझे कर के घोषित 

इललीगल एलियन सौंप दिया उन्हें! 


जबकि बचा था मेरा एम ए पेपर 

ग्रेड होने को 

और तकनीकी रूप से 

मैं छात्रा थी वहां की 

विचित्र बात है कि कोई कानून नहीं 

इस सारी विडम्बना में 

रत्ती भर भी न्याय दिलवाने के लिए!


और वो बताते नहीं थकते दरअसल 

मैं कहाँ कहाँ गलत थी 

और कितनी गलत थी मैं! 


विदेशी ज़मीन के टुकड़े 

और आबोहवा से 

प्यार करना भी गलत है! 


दुःख बदलता है रंग

बगीचे में किसी कमीलियन गिरगिट सा 

नींबू के सफ़ेद फूलों पर बैठी 

सफ़ेद तितली सा भी 

जो उड़ जाती है 

फिर लौटने को 

और लाल गुलाब पर 

सफ़ेद मकड़े सा 

नज़र आता है दुःख 


दूर छिटक देने पर अपनी देह से 

सुन्दर चीज़ों में भी 

मन की कोई बंद सी सांकल थामे

खटखटाता लगातार 

कोई अदृश्य सी चौखट!






अच्छी पार्टी और प्रेम


प्रेम भी इन दिनों एक जुमला है 

नफरत की तरह 

हालाकि, केवल विलोम नहीं हैं वे 

एक आधारभूत अंतर है 

उनमें 

बहुत आसान है 

नफरत करना 

और बहुत कठिन प्रेम!


या मुमकिन है यह 

पूरा पूरी सही न हो 

बस भीड़ बहुत हो 

और इसी से मारा मारी 

फिर, कितनी भलमनसाहत 

बची हुई है अभी! 


बस, वो बेच रहे हैं नफरत 

अफीम की तरह 

समय मार्क्स के बहुत बाद का 

और बहुत ख़राब है


मुमकिन है, यदि प्रगतिवादी 

या बुद्धिजीवी 

विरोध न करें लगातार 

तो हिन्दूवाहिनी जैसी 

संस्थाएं लोगों को बाहर 

निकालें अपने ही घरों से 

और मुमकिन है 


नागरिकता रजिस्टर 

उपक्रम हो उसी का 

लेकिन, इससे यह साबित नहीं होता 

कि दूसरी पार्टियां प्रेम करती हैं 

जनता से 

बस, कम नफरत 


वैसे बहुत से सबूत हैं 

मेरे पास इस अच्छी पार्टी के 

लोगों के निजी प्रेम प्रसंगों में 

दाखिल हो जाने के 


फिलहाल, हतप्रभ हूँ 

कि सोशल मीडिया पर ठीक तब

नफरत का धंधा करने वालों पर 

इलज़ाम लगा है 

प्रेम की परिभाषाएं गढ़ने का 

प्रेम में हस्तक्षेप का 

जब कि, तथाकथित 

अच्छी पार्टी का पक्ष 

न लेने पर 

सम्बन्ध विच्छेद कर लिया है 

एक संभावित प्रेमी ने 

एक लम्बा वक़्त जाया करने के बाद 

बातें करते


कितना वक़्त है पुरुषों के पास 

उन्हें लगता है 

अनंत और समय से परे है 

उनकी प्रजनन की क्षमता 


और वक़्त ही नहीं 

कितनी ताकत है 

उन पुरुषों के पास भी 

जो कितनी नफासत 

कितनी खूबसूरती से 

खींचते हैं विवाहित 

अविवाहित स्त्रियों को

प्रेम में अपने 

अपने बाहुपाश में 


वे प्रेम कर रहे होते हैं 

जब बार बार वे बुलाते हैं 

खुद से बीस साल छोटी लड़की को 

अपने शयनागार में 

और यकीन मानिये 

बहुत कुशल प्रेमी होते हैं वे 

उदारवादी, क्रांतिकारी 

विचारधाराओं के बुर्जुआ


उनकी पुकार उद्वेलित करती है 

उनकी प्रेमिकाओं को 

जब वे तैयार कर रही होती हैं 

खुद को अपनी ज़िन्दगी के लिए 


और दोस्तों, हम गिनिथ पैल्ट्रो की 

फिल्म 'द परफेक्ट मर्डर' के 

सेट पर 

नहीं बिताते जीवन 

लेकिन, जीवन में 

पुरुषों के बीच 

एक अद्भुत संधि वार्ता होती है 

नियंत्रण को ले कर 

वे स्त्रियों के हाथों में 

आने ही नहीं देना चाहते 

उनकी अपनी चाभी 

कई बार 


स्त्रियां इसे भी नहीं समझतीं 

आपसी प्रेम की भी 

बढ़ती ही जाती हैं 

जटिलताएं

विडम्बनाएं


प्रेम तो ऐसा होता है 

जिसमें कोई जान ले ले 

किसी की 

और जान लेने की क्रिया 

दोनों जगह दंडनीय है 


चाहे वह प्रेम में हो 

या नफरत में 


चलिए, चलते चलते 

कुछ और हिमायत प्रेम की


कम जानें ली जा सकती हैं 

प्रेम में 

नफरत में हत्या की बनिस्पत 

लेकिन, ज़रा सोचिए

इतने किस्मों की 

माप तौल 

राजनैतिक गोटीबाज़ी के बीच 

कितना बौना 

कितना तुच्छ 

कितना बेचारा है प्रेम!



(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग कवि विजेन्द्र जी की है।)



सम्पर्क 


ई मेल nilirag18@gmail.com

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