निर्मला सिंह से कथाकार शर्मिला जालान की बातचीत
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हिम्मत शाह |
समकालीन भारतीय कला के दिग्गज हिम्मत शाह का कल 2 मार्च 2025 को 92 वर्ष की उम्र में दिल का दौरा पड़ने से जयपुर में निधन हो गया। उन्होंने मूर्तिकला में एक अनूठी शैली विकसित की और उनकी कलाकृतियां दुनिया भर में प्रसिद्ध हुईं। शाह की कृतियों में कांस्य और टेराकोटा माध्यम का अद्भुत प्रयोग देखने को मिलता है। बहुत मामूली सी समझने जाने वाली बेजान मिट्टी उनके हाथ के संस्पर्श से जीवंत व जागरूक हो उठती थी। हिम्मत शाह अपने रेखांकन रेखाओं से बनाते थे। लेकिन अमूर्त किस्म की लगने वाले इन रेखांकनों से कई भाव लिए मानव आकृतियों के चिन्ह दिखाई पड़ने लगते थे। यही उनकी विशिष्टता थी। उनकी कलाकृतियों में कुछ कलाकृति काग़ज़ को सिगरेट से जला कर बनायी गयी हैं। हिम्मत शाह को पहली बार की तरफ से भावभीनी श्रद्धांजलि। अमूर्त युवा चित्रकार निर्मला सिंह एक दशक से ज्यादा समय से हिम्मत शाह के सान्निध्य में थीं। उनके निधन पर निर्मला सिंह से कथाकार शर्मिला जालान ने हिम्मत शाह के बारे में बातचीत की है। आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं निर्मला सिंह से कथाकार शर्मिला जालान की बातचीत।
निर्मला सिंह से कथाकार शर्मिला जालान की बातचीत
“हिम्मत शाह: कला, सादगी और अमूर्तता की अनूठी पहचान”
शर्मिला जालान : हिम्मत शाह से आपकी पहली मुलाकात कब और कैसे हुई?
निर्मला सिंह : सन् 2013 और 20.14 में जवाहर कला केंद्र में कलाकारों का एक ग्रुप शो था। जयपुर के हमारे एक परीचित बैंक के अधिकारी राजेश आर्य जी ने हिम्मत शाह से मेरी मुलाकात करवाई थी।
मैंने उन्हें हिम्मत शाह या शाह सर न कह कर ‘सर’ कह कर संबोधित किया।
‘सर’ को नमस्ते किया और उन्होंने भी नमस्ते कहा। फिर बोले, “चलो, चाय पीने चलते हैं।” इस तरह ‘सर’ के इस सरल स्वभाव को देख कर मैं मन ही मन बहुत खुश हो गई थी। कला-जगत में पहली बार किसी के साथ मेरा चाय पीना हुआ। यह मेरी उनसे पहली मुलाकात थी।
शर्मिला जालान : हिम्मत शाह की कला और उनके कार्यों में आपको कौन-सी विशिष्टता या ऊर्जा दिखाई देती है, जिसने आपको प्रभावित किया?
निर्मला सिंह : उनका ‘जिन्दा काम’। जिसे आप सजीव भी कह सकते हैं। कभी-कभी मैं सोचती हूँ कि सर किस मन:स्थिति में होते होंगे जब वे ऐसा सजीव काम कर पाते थे।
उनकी बनाई मूर्तियों की त्वचा में मुझे स्पंदन महसूस होता था। उनके हर काम में एक ऊर्जा थी और वही उनका सिद्धांत बन गया। उनके काम के साथ-साथ उनके बोलने में भी मैं बहुत ऊर्जा महसूस करती थी।
शर्मिला जालान : उनके काम की कौन सी विशेषता आपको सबसे ज्यादा प्रभावित करती थी? क्या उनके किसी खास चित्र या शिल्प से आपकी यादें जुड़ी हैं?
निर्मला सिंह : उनका टेराकोटा का काम बहुत ही सुंदर है। उसे देख ऐसा लगता है कि उसमें कोई दर्शन छुपा है – सब पा कर सब छोड़ देने का भाव।
उनके बनाए हुए सभी ‘हेड’ मुझे बहुत सुंदर लगते हैं। 6 महीने पहले ही जब उनसे बात हो रही थी उन्होंने मुझे एक राजस्थान की महिला का स्कल्पचर दिखाया, जिसकी नाक लंबी थी, गर्दन भी लंबी थी, और उसके चारों ओर राजस्थान का वातावरण था। उन्होंने कहा, “मैं ऐसा बहुत काम करूंगा।“ उनकी सबसे बड़ी देन मुझे लगती है। फॉर्म की उत्पत्ति, आकार का आविष्कार। जिसे उन्होंने मिट्टी में बनाया है। कांसे से बनाया है।
शर्मिला जालान : एब्स्ट्रेक्टशन चित्रकला के क्षेत्र में हिम्मत शाह की तकनीक और दृष्टिकोण के बारे में आपका क्या विचार है? क्या उनके काम ने आपकी शैली को किसी रूप में प्रभावित किया?
निर्मला सिंह : एब्स्ट्रेक्टशन उनके सभी फॉर्म में विद्यमान था। वे फार्म पर काम करते थे, और उनके द्वारा बनाए ‘हेड’ (सर) की जब मैं स्टडी करती हूं तो वह मुझे बहुत प्रभावित करता है और यह उनका मेरे जीवन में योगदान है।
उनकी प्रतिभा को नापना मेरे वश में नहीं है। लेकिन उनके द्वारा दिए गए फॉर्म विश्व प्रसिद्ध है और रहेंगे।
मैं यह भी कह सकती हूं कि एक्सट्रैक्शन सर की हंसी में था। जब वह हंसते थे तो मुझे वहाँ एब्स्ट्रेक्टशन दिखाई देता था। जैसे बहुत सारे फॉर्म निकल रहे हो। सर के द्वारा मैंने कला जगत का रूप जाना।
शर्मिला जालान : आपके अनुसार, हिम्मत शाह की कला किस तरह से भारतीय संस्कृति या वैश्विक कला जगत पर एक छाप छोड़ती है?
निर्मला सिंह : हिम्मत शाह की कला भारतीय कला की धरोहर है। उनके बनाए मूर्ति शिल्प उनके भारतीय होने का प्रमाण है । उन्होंने अपने स्कल्पचर में जो बनावट अपनाई उसमें जल, वायु, अग्नि, पृथ्वी, आकाश का समावेश है। भारत की धरती का रंग उनके मूर्ति शिल्प में दिखाई पड़ता है।
अमूर्त प्रभाव भी दिखाई पड़ता है। जो भारतीय दर्शन में है, और यही हिम्मत शाह है। यही उनके जीवन की शैली भी है। वही तो है एब्स्ट्रेक्शन इसलिए उनका जीवन विरक्त भाव से जुड़ा हुआ है। कभी-कभी मुझे वह कहते थे- मैं पैसों का क्या करूंगा! मैंने बड़ी कार ले ली, कानों में हीरा पहना, लेकिन शरीर उसे कैसे बचा सकूंगा!!
उनका जीवन सादगीपूर्ण और प्रभावशाली था। वे मन से बच्चों जैसे थे। लेकिन निर्णय लेने की क्षमता उतनी ही मजबूत थी।
कभी-कभी मैं उन्हें बातों ही बातों में कह देती थी कि सर आप जिस व्यक्ति से बात कर रहे थे, वह अच्छा इंसान नहीं है। वह कहते- ‘चिंता मत करो। मैं जानता हूं। किसको क्या चाहिए।’
शर्मिला जालान : उनके निधन के बाद, आप उन्हें किस रूप में सबसे अधिक याद करेंगी? उनके कौन से विचार या सिद्धांत आपके दिल में हमेशा जीवित रहेंगे?
निर्मला सिंह : उनका स्वभाव आत्म निरीक्षण का था। उनके साथ रह कर साधारण इंसान भी कला की सोच रख सकता था और संसार को अपनी कला के द्वारा कुछ दे सकता था। वह यह नहीं कहते थे कि, ’यह करो या वह कहो’। वह कहते थे तुम कौन हो? तुम स्वयं को पहचानो। अपने से बात करो। अपने आप ही रास्ते खुलेंगे। पेंटिंग की सोच बड़ी बातों में नहीं, छोटी-छोटी बातों में होती है।
इसी रूप में वे मेरे अंदर बसे रहेंगे।
सम्पर्क
ई मेल : sharmilajalan@gmail.com
इस इंटरव्यू में हिम्मत शाह का कला और जीवन के प्रति दृष्टिकोण सामने आता है. कलाकार को बाहरी और आसपास की चीजों के अलावा अपने आप को भी जानना-पहचानना चाहिए - यह उनके कला-जीवन का मार्गदर्शक तत्व जान पड़ता है. उनकी जीवंतता, इसके साथ ही युवा कलाकारों के प्रति उनके सच्चे अनुराग का परिचय निर्मला सिंह के माध्यम से मिलता है. अच्छी सार्थक बातचीत.
जवाब देंहटाएं-शिवदयाल
बहुत आभार। 🙏
हटाएंशर्मिला जालान।