आन्ना अख़मातवा की कविताएं
आन्ना अख़मातवा |
रूसी कवयित्री अन्ना आंद्रेयेवना गोरेंको (23 जून 1889 - 5 मार्च 1966), जो आन्ना अख़मातवा के उपनाम से प्रख्यात हैं, 20वीं शताब्दी की सबसे महत्वपूर्ण कवियों में से एक थीं। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान वह रूसी कविता की आवाज़ के रूप में मुख्य रूप से उभर कर सामने आईं। आन्ना अख़मातवा को रूस की महानतम कवियों में से एक माना जाता है। कविता के अलावा, उन्होंने गद्य भी लिखा, जिसमें संस्मरण, आत्मकथात्मक टुकड़े और अलिकसान्दर सिर्गेयविच पूश्किन जैसे रूसी लेखकों पर साहित्यिक विद्वत्ता भरे लेख शामिल है। उन्होंने इतालवी, फ्रेंच, अर्मेनियाई और कोरियाई कविता का भी अनुवाद किया।अख़मातवा का समय रूस के महान रचनाकारों का समय था जिसमें ओसिप एमिलिविच मनदिलश्ताम, बरीस पसतिरनाक और मरीना स्विताएवा। शामिल हैं। आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं आन्ना अख़मातवा की कविताएं। अनुवाद वरयाम सिंह का है जो रूसी कविताओं के हिन्दी अनुवाद के लिए ख्यात हैं।
आन्ना अख़मातवा की कविताएं
हिन्दी अनुवाद : वरयाम सिंह
मैं उनके साथ हूँ
मैं उनके साथ नहीं हूँ जिन्होंने
शत्रुओं की यंत्रणाओं के हवाले कर दी यह भूमि
मैं उनकी चापलूसी के झाँसे में नहीं आऊँगी
उनके हाथों में नहीं सौंपूँगी अपने गीत।
कैदी की तरह, रोगी की तरह
हर निर्वासित लगता है मुझे दयनीय,
ओ यायावर, अंधकार से भरी है तुम्हारी राह
कसैला तो लगेगा ही दूसरों की रोटी का स्वाद।
यहाँ आग के बेआवाज धुएँ में
शेष बचे यौवन का गला घोंटते हुए
एक भी प्रहार का मुँहतोड़ जवाब
दे नहीं पाए हम आज तक।
मालूम है हमें कि विलंबित मूल्यांकन में
न्यायसंगत ठहराया हर पल...
पर दुनिया में कहीं भी नहीं हैं ऐसे लोग
जो हमसे अधिक हों अक्खड़, अश्रुविहीन और सरल।
ग्रीष्मोद्यान
मैं जाना चाहती हूँ गुलाबों के पास
उस एकमात्र उद्यान में
संसार में सबसे अच्छी बाड़ हो जहाँ
जहाँ प्रतिमाओं को याद हो मेरा यौवन
जिनकी याद आती हो मुझे नेवा की जलधारा के नीचे,
राजसी ठाठ में खड़े मेपलों की महकती खामोशी में
सुनाई देती हो जहाजों के मस्तूलों की आवाज,
और एक हंस पहले की तरह तैरता हो युगों के बीच से
और अपने प्रतिबिंब के सौंदर्य पर होता हो अभिभूत,
मृतप्राय सो रहे हों जहाँ हजार-हजार पाँव
मित्रों और शत्रुओं के, शत्रुओं और मित्रों के,
जहाँ आहिस्ता से बतियाती हो मेरी श्वेत रातें
किसी के गहन गोपनीय प्रेम के बारे में,
मोतियों और मणियों की तरह कुछ चमकता हो जहाँ
पर रोशनी का स्रोत रहस्यमय ढंग से छिपा हो कहीं और।
कविता से
कविता-बहन ने देखा मेरे चेहरे की तरफ,
स्पष्ट और निर्मल थी उसकी दृष्टि
साने की अँगूठी छीनी उसने मुझसे
छीना बहार का प्रथम उपहार।
ओ कविता, कितनी प्रसन्न हैं सभी
कन्याएँ, स्त्रियाँ और विधवाएँ...
अच्छा होगा मर जाना पहियों के नीचे
हथकड़ियाँ पहने घूमने के बजाय।
जानती हूँ, अनुमान लगाते मुझे भी
तोड़ना होगा गुलबहार का नाजुक फूल,
अनुभव होना चाहिए हरेक को इस धरती पर
कैसी यातना होता है प्रेम और कैसा शूल?
सुबह तक मैं जलाए रखूँगी कंदील
रात भी याद नहीं करूँगी किसी को,
मैं नहीं चाहती जानना, हरगिज नहीं
किसी तरह वह चूमता हैं किसी दूसरी को।
कल मुझे हँसते हुए कहेगा दर्पण
'न स्पष्ट है न निर्मल तुम्हारी दृष्टि'
धीरे-से मैं दूँगी उत्तर उसे -
'छीन ले गई है वह मुझसे मेरा दिव्य उपहार।'
एक ही गिलास से
एक ही गिलास से हम नहीं पिएँगे
न पानी, न मीठी शराब
चुंबन नहीं लेंगे सुबह-सुबह
साँझ में झाँका नहीं करेंगे खिड़की से।
तुममें सूर्य प्राण भरता है और मुझमें - चंद्रमा,
मात्र प्रेम के बल जिंदा हैं हम दोनों।
मेरे संग हमेशा रहता है मेरा नाजुक वफादार दोस्त,
तुम्हारे साथ रहती है तुम्हारी खुशमिजाज मित्र
पर मैं अच्छी तरह समझती हूँ उसकी आँखों का भय
तुम्हीं हो दोषी मेरा रुग्णता के।
बढ़ा नहीं पा रहे हम छोटी-छोटी मुलाकातों का सिलसिला
विवश हैं अपना अपना अमन-चैन बचाए रखने के लिए।
मेरी कविताओं में सिर्फ तुम्हारी आवाज गाती है,
और तुम्हारी कविताओं में होते हैं मेरे प्राण।
ओ, ऐसा है एक अलाव जिसे छूने का साहस
कर नहीं पाता कोई भय या विस्मरण...
काश, मालूम होता तुम्हें इस क्षण
कितने प्रिय हैं मुझे तुम्हारे सूखे, गुलाबी होंठ!
सम्पर्क
मोबाइल : 09810647981
अन्ना अख्मतौवा मेरी प्रिय कवयित्री है. उनकी कविताओं में संवेदना और यातना साथ साथ हैँ. वरयाम सिंह के अनुवाद स्वाभाविक हैं
जवाब देंहटाएंस्वप्निल श्रीवास्तव
फैज़ाबाद
सुन्दर रचनाएं |
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