मंगलेश डबराल की कविताएं
मंगलेश डबराल |
मंगलेश डबराल की कविताएँ अपने समय का साक्षात्कार हैं। उनका सपना एक बेहतर दुनिया है, जिसे वही रच सकता है जिसमें इंसानियत हो। लेकिन जैसे पक्ष का प्रति पक्ष होता है वैसे ही कुछ ऐसी ताकतें भी होती हैं जो सब कुछ अपनी मुट्ठी में कर लेना चाहती हैं। ये दरअसल मनुष्य और मनुष्यता के शत्रु होते हैं। समय के साथ यह शत्रु भी अपने पैंतरे बदलता है। पहले जैसे अब वह खुल कर सामने नहीं आता बल्कि आपका अनन्यतम बन कर आपको चोट पहुंचाता है। कल मंगलेश जी का जन्मदिन था। इस अवसर पर कवि की स्मृति को नमन करते हुए आज पहली बार पर हम प्रस्तुत कर रहे हैं कवि मंगलेश डबराल की कविताएँ।
मंगलेश डबराल की कविताएँ
नए युग में शत्रु
अंततः हमारा शत्रु भी एक नए युग में प्रवेश करता है
अपने जूतों कपड़ों और मोबाइलों के साथ
वह एक सदी का दरवाज़ा खटखटाता है
और उसके तहख़ाने में चला जाता है
जो इस सदी और सहस्राब्दी की ही तरह अथाह और अज्ञात है
वह जीत कर आया है और जानता है कि उसकी लड़ाइयाँ बची हुई हैं
हमारा शत्रु किसी एक जगह नहीं रहता
लेकिन हम जहाँ भी जाते हैं पता चलता है वह और कहीं रह रहा है
अपनी पहचान को उसने हर जगह अधिक घुला-मिला दिया है
जो लोग ऊँची जगहों में भव्य कुर्सियों पर बैठे हुए दिखते हैं
वे शत्रु नहीं सिर्फ़ उसके कारिंदे हैं
जिन्हें वह भर्ती करता रहता है
ताकि हम उसे खोजने की कोशिश न करें
वह अपने को कंप्यूटरों टेलीविज़नों मोबाइलों
आइपैडों की जटिल आँतों के भीतर फैला देता है
किसी महँगी गाड़ी के भीतर उसकी छाया नज़र आती है
लेकिन वहाँ पहुँचने पर दिखता है वह वहाँ नहीं है
बल्कि किसी दूसरी और ज़्यादा नई गाड़ी में बैठ कर चल दिया है
कभी लगता है वह किसी फ़ैशन परेड में शिरकत कर रहा है
लेकिन वहाँ सिर्फ़ बनियानों और जाँघियों का ढेर दिखाई देता है
हम सोचते हैं शायद वह किसी ग़रीब के घर पर हमला करने चला गया है
लेकिन वह वहाँ से भी जा चुका है
वहाँ एक परिवार अपनी ग़रीबी में से झाँकता हुआ टेलीविजन देख रहा
जिस पर एक रंगीन कार्यक्रम आ रहा है
हमारे शत्रु के पास बहुत से फ़ोन नंबर हैं ढेरों मोबाइल
वह लोगों को सूचना देता है आप जीत गए हैं
एक विशाल प्रतियोगिता में आपका नाम निकल आया है
आप बहुत सारा क़र्ज़ ले सकते हैं बहुत-सा सामान ख़रीद सकते हैं
एक अकल्पनीय उपहार आपका इंतज़ार कर रहा है
लेकिन पलट कर फ़ोन करने पर कुछ नहीं सुनाई देता
हमारा शत्रु कभी हमसे नहीं मिलता सामने नहीं आता
हमें ललकारता नहीं
हालांकि उसके आने-जाने की आहट हमेशा बनी रहती है
कभी-कभी उसका संदेश आता है कि अब कहीं शत्रु नहीं है
हम सब एक दूसरे के मित्र हैं
आपसी मतभेद भुलाकर आइए हम एक ही प्याले से पिएँ
वसुधैव कुटुंबकम् हमारा विश्वास है
धन्यवाद और शुभरात्रि।
वर्णमाला
एक भाषा में अ लिखना चाहता हूँ
अ से अनार अ से अमरूद
लेकिन लिखने लगता हूँ अ से अनर्थ अ से अत्याचार
कोशिश करता हूँ कि क से कलम या करुणा लिखूँ
लेकिन मैं लिखने लगता हूँ क से क्रूरता क से कुटिलता
अभी तक ख से खरगोश लिखता आया हूँ
लेकिन ख से अब किसी खतरे की आहट आने लगी है
मैं सोचता था फ से फूल ही लिखा जाता होगा
बहुत सारे फूल
घरों के बाहर घरों के भीतर मनुष्यों के भीतर
लेकिन मैंने देखा तमाम फूल जा रहे थे
जालिमों के गले में माला बन कर डाले जाने के लिए
कोई मेरा हाथ जकड़ता है और कहता है
भ से लिखो भय जो अब हर जगह मौजूद है
द दमन का और प पतन का सँकेत है
आततायी छीन लेते हैं हमारी पूरी वर्णमाला
वे भाषा की हिंसा को बना देते हैं
समाज की हिंसा
ह को हत्या के लिए सुरक्षित कर दिया गया है
हम कितना ही हल और हिरन लिखते रहें
वे ह से हत्या लिखते रहते हैं हर समय
माँगना
जब भी खुद पर निगाह डालता हूँ
पलक झपकते ही माँ स्मृति में लौट आती है
मैं याद करता हूँ कि उसने मुझे जन्म दिया था
कभी-कभी लगता है वह मुझे लगातार जनमती रही
पिता ने मुझ पर पैसे लुटाये और कहा
शहरों में भटकते हुए तुम कहीं घर की सुध लेना भूल न जाओ
दादा ने पिता को नसीहत दी
जैसा हुनरमंद मैंने तुम्हें बनाया उसी तरह अपने बेटे को भी बनाओ
दोस्तों ने मेरी पीठ थपथपायी
मुझे उधार दिया और कहा उधार प्रेम की कैंची नहीं हुआ करती
जिससे मैंने प्रेम किया
उसने कहा मेरी छाया में तुम जितनी देर रह पाओ
उतना ही तुम मनुष्य बन सकोगे
किताबों ने कहा हमें पढ़ो
ताकि तुम्हारे भीतर चीजों को बदलने की बेचैनी पैदा हो सके
कुछ अजीबोगरीब है जीवन का हाल
वह अब भी जगह-जगह भटकता है और दस्तक देता है
माँगता रहता है अपने लिए
कभी जन्म कभी पैसे कभी हुनर कभी उधार
कभी प्रेम कभी बेचैनी
पिता का चश्मा
बुढ़ापे के समय पिता के चश्मे एक-एक कर बेकार होते गए
आँख के कई डॉक्टरों को दिखाया विशेषज्ञों के पास गए
अन्त में सबने कहा — आपकी आँखों का अब कोई इलाज नहीं है
जहाँ चीज़ों की तस्वीर बनती है आँख में
वहाँ ख़ून का जाना बन्द हो गया है
कह कर उन्होंने कोई भारी-भरकम नाम बताया।
पिता को कभी यक़ीन नहीं आया
नए-पुराने जो भी चश्मे उन्होंने जमा किए थे
सभी को बदल-बदल कर पहनते
आतशी शीशा भी सिर्फ़ कुछ देर अख़बार पढ़ने में मददगार था
एक दिन उन्होंने कहा — मुझे ऐसे कुछ चश्मे ला कर दो
जो फुटपाथों पर बिकते हैं
उन्हें समझाना कठिन था कि वे चश्मे बच्चों के लिए होते हैं
और बड़ों के काम नहीं आते।
पिता के आख़िरी समय में जब मैं घर गया
तो उन्होंने कहा — संसार छोड़ते हुए मुझे अब कोई दुःख नहीं है
तुमने हालाँकि घर की बहुत कम सुध ली
लेकिन मेरा इलाज देखभाल सब अच्छे से करते रहे
बस यही एक हसरत रह गई
कि तुम मेरे लिए फुटपाथ पर बिकने वाले चश्मे ले आते
तो उनमें से कोई न कोई ज़रूर मेरी आँखों पर फिट हो जाता।
मेरा दिल
एक दिन जब मुझे यकीन हो गया
कि मेरा दिल ही सारी मुसीबतों की जड़ है
इस हद तक कि अब वह खुद एक मुसीबत बना हुआ है
मैं उसे डॉक्टर के पास ले गया
और लाचारी के साथ बोला -- डॉक्टर! यह मेरा दिल है
लेकिन यह वह दिल नहीं है
जिस पर मुझको कभी नाज था*
डॉक्टर भी कम अनुभवी नहीं था
इतने दिलों को दुरुस्त कर चुका था
कि खुद दिल के पेशेवर मरीज से कम नहीं लगता था
उसने कहा तुमने जरूर मिर्जा गालिब को गौर से पढ़ा है
मैं जानता हूँ यह एक पुराना दिल है
पहले यह पारदर्शी था, लेकिन धीरे-धीरे अपारदर्शी होता गया
और अब उसमें कुछ भी दिखना बंद हो गया है
वह भावनाएँ सोखता रहता है और कुछ प्रकट नहीं करता
जैसे एक काला विवर सारी रोशनी सोख लेता हो
लेकिन तुम अपनी हिस्ट्री बताओ
मैंने कहा -- जी हाँ, आप शायद सही कहते हैं
मुझे अक्सर लगता है, मेरा दिल जैसे अपनी जगह पर नहीं है
और यह पता लगाना मुश्किल है कि वह कहाँ है
कभी लगता है, वह मेरे पेट में या हाथों में चला गया है
अक्सर यही भ्रम होता है कि वह मेरे पैरों में रह रहा है
बल्कि मेरे पैर नहीं यह मेरा दिल ही है
जो इस मुश्किल दुनिया को पार करता आ रहा है
डॉक्टर अपना पेशा छोड़ कर दार्शनिक बन गया
हाँ-हाँ -- उसने कहा -- मुझे देखते ही पता चल गया था
कि तुम्हारे जैसे दिलों का कोई इलाज नहीं है
बस, थोड़ी-बहुत मरम्मत हो सकती है, कुछ रफू वगैरह
ऐसे दिल तभी ठीक हो पाते हैं
जब कोई दूसरा दिल भी उनसे अपनी बात कहता हो
और तुम्हें पता होगा, यह जमाना कैसा है
इन दिनों कोई किसी से अपने दिल की बात नहीं कहता
सब उसे छिपाते रहते हैं
इतने सारे लोग लेकिन कहीं कोई रूह नहीं
इसीलिए तुम्हारा दिल भी अपनी जगह छोड़ कर
इधर-उधर भागता रहता है, कभी हाथ में, कभी पैर में
*मिर्जा ग़ालिब का शेर ‘अर्ज़े नियाज़े इश्क़ के क़ाबिल नहीं रहा, जिस दिल पे मुझको नाज़ था वो दिल नहीं रहा’
इन सर्दियों में
पिछली सर्दियाँ बहुत कठिन थीं
उन्हें याद करने पर मैं इन सर्दियों में भी सिहरता हूँ
हालाँकि इस बार दिन उतने कठोर नहीं
पिछली सर्दियों में चली गई थी मेरी माँ
मुझसे एक प्रेमपत्र खो गया था
एक नौकरी छूट गई थी
रातों को पता नहीं कहाँ-कहाँ भटकता रहा
कहाँ-कहाँ करता रहा टेलीफ़ोन
पिछली सर्दियों में
मेरी ही चीज़ें गिरती रही थीं मुझ पर
इन सर्दियों में पिछली सर्दियों के कपड़े निकालता हूँ
कंबल टोपी मोज़े मफ़लर
उन्हें ग़ौर से देखता हूँ
सोचता हुआ पिछला समय बीत गया है
ये सर्दियाँ क्यों होगी मेरे लिए पहले जैसी कठोर!
अशाश्वत
सर्दी के दिनों में जो प्रेम शुरू हुआ
वह बहुत सारे कपड़े पहने हुए था
उसे बार-बार बर्फ़ में रास्ता बनाना पड़ता था
और आग उसे अपनी ओर खींचती रहती थी
जब बर्फ़ पिघलना शुरू हुई तो वह पानी की तरह
हल्की चमक लिए हुए कुछ दूर तक बहता हुआ दिखा
फिर अप्रैल के महीने में जऱा-सी एक छुवन
जिसके नतीजे में होंठ पैदा होते रहे
बरसात के मौसम में वह तरबतर होना चाहता था
बारिशें बहुत कम हो चली थीं और पृथ्वी उबल रही थी
तब भी वह इसरार करता चलो भीगा जाए
यह और बात है कि अक्सर उसे ज़ुकाम जकड़ लेता
अक्टूबर की हवा में जैसा कि होता है
वह किसी टहनी की तरह नर्म और नाज़ुक हो गया
जिसे कोई तोड़ना चाहता तो यह बहुत आसान था
मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि यह प्रेम है
पतझड़ के आते ही वह इस तरह दिखेगा
जैसे किसी पेड़ से गिरा हुआ पीला पत्ता।
यथार्थ इन दिनों
मैं जब भी यथार्थ का पीछा करता हूँ
देखता हूँ वह भी मेरा पीछा कर रहा है मुझसे तेज भाग रहा है
घर हो या बाजार हर जगह उसके दाँत चमकते हुए दिखते हैं
अंधेरे में रोशनी में
घबराया हुआ मैं नींद में जाता हूँ तो वह वहाँ मौजूद होता है
एक स्वप्न से निकल कर बाहर आता हूँ
तो वह वहाँ भी पहले से घात लगाये हुए रहता है
यथार्थ इन दिनों इतना चौंधियाता हुआ है
कि उससे आँखें मिलाना मुश्किल है
मैं उसे पकड़ने के लिए आगे बढ़ता हूँ
तो वह हिंस्र जानवर की तरह हमला करके निकल जाता है
सिर्फ कहीं-कहीं उसके निशान दिखायी देते हैं
किसी सड़क पर जंगल में पेड़ के नीचे
एक झोपड़ी के भीतर एक उजड़ा हुआ चूल्हा एक ढही हुई छत
छोड़कर चले गये लोगों का एक सूना घर
एक मरा हुआ मनुष्य इस समय
जीवित मनुष्य की तुलना में कहीं ज्यादा कह रहा है
उसके शरीर से बहता हुआ रक्त
शरीर के भीतर दौड़ते हुए रक्त से कहीं ज्यादा आवाज कर रहा है
एक तेज हवा चल रही है
और विचारों स्वप्नों स्मृतियों को फटे हुए कागजों की तरह उड़ा रही है
एक अंधेरी सी काली सी चीज
हिंस्र पशुओं से भरी हुई एक रात चारों ओर इकठ्ठा हो रही है
एक लुटेरा एक हत्यारा एक दलाल
आसमानों पहाड़ों मैदानों को लाँघता हुआ आ रहा है
उसके हाथ धरती के मर्म को दबोचने के लिए बढ़ रहे हैं
एक आदिवासी को उसके जंगल से खदेड़ने का खाका बन चुका है
विस्थापितों की एक भीड़
अपनी बची-खुची गृहस्थी को पोटलियों में बाँध रही है
उसे किसी अज्ञात भविष्य की ओर ढकेलने की योजना तैयार है
ऊपर आसमान में एक विकराल हवाई जहाज बम बरसाने के लिए तैयार है
नीचे घाटी में एक आत्मघाती दस्ता
अपने सुंदर नौजवान शरीरों पर बम और मिसालें बाँधे हुए है
दुनिया के राष्ट्राध्यक्ष अंगरक्षक सुरक्षागार्ड सैनिक अर्धसैनिक बल
गोलियों बंदूकों रॉकेटों से लैस हो रहे हैं
यथार्थ इन दिनों बहुत ज्यादा यथार्थ है
उसे समझना कठिन है सहन करना और भी कठिन
नुकीली चीजें
(हिंदी कवि असद ज़ैदी और चेक कवि लुडविक कुंडेरा के प्रति आभार सहित)
तमाम नुकीली चीजों को छिपा देना चाहिए
काँटों-कीलों को वहीं दफ्न कर देना चाहिए जहाँ वे हैं
जो कुछ चुभता हो या चुभने वाला हो
उसे तत्काल निकाल देना चाहिए
जो चीजें अपनी जगहों से बाहर निकली हुई हैं
उन्हें समेट कर अपनी जगह कर देना चाहिए
फूलों को काँटों के बीच नहीं खिलना चाहिए
धारदार चीजें सिर्फ सब्जी और फल काटने के लिए होनी चाहिए
उन्हें उस स्त्री के हाथ में होना चाहिए
जो एक छोटी सी जगह में धुएँ में घिरी कुछ बुनियादी कामों में उलझी है
या उस डॉक्टर के हाथ में होना चाहिए
जो ऑपरेशन की मेज पर तन्मयता से झुका हुआ है
तलवारों बंदू़कों और पिस्तौलों पर पाबंदी लगा देनी चाहिए
खिलौना निर्माताओं से कह दिया जाना चाहिए
कि वे खिलौने को पिस्तौल में न बदलें
प्रतिशोध हिंसा हत्या और ऐसे ही समानार्थी शब्द
शब्दकोशों से हमेशा के लिए बाहर कर दिये जाने चाहिए
जैसा कि हिंदी का एक कवि असद ज़ैदी कहता है
पसलियों में छुरे घोंपने वालों को उन्हें वापस खींचना चाहिए
और मरते हुए लोगों को वापस ला कर उन्हें उनकी बैठकों
और काम की जगहों में बिठाना चाहिए
हत्यारों से कहा जाना चाहिए
कि एक भी मनुष्य का मरना पूरी मनुष्यता की मृत्यु है
दुनिया को इस तरह होना चाहिए
जैसे एक चेक कवि लुडविक कुंडेरा
पहली बार माँ बनने जा रही एक स्त्री को देख कर कहता है
कि पृथ्वी आश्चर्यजनक ढँग से गोल है
और अपने तमाम काँटों को झाड़ चुकी है
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