समकालीन गुजराती कविताओं का अनुवाद

 

रजनीकांत एस शाह


हर कविता की अपनी अलग भाव-भूमि होती है। भाषा उसकी अभिव्यक्ति का मुख्य माध्यम होती है। हर कवि अपनी तरह से भाषा को समृद्ध करने का कार्य करता है। इन अर्थों में देखा जाए तो गुजराती भाषा एक समृद्ध भाषा है जिसमें अनेक रचनाकारों ने अपनी रचनाओं का सृजन किया है। रजनीकांत एस. शाह ने गुजराती की बेहतरीन रचनाओं को सामने लाने का महत्त्वपूर्ण प्रयास किया है। इस क्रम में उन्होंने गुजराती के कुछ उन कवियों को अनुवादित और रेखांकित किया है जिन्होंने बेहतर लेखन किया है। अनिल चावडा, प्रफुल्ल रावल, रमेश पारेख, कुंदनिका कापडिया और रमेश शाह की कविताओं के अनुवाद उन्होंने पहली बार को उपलब्ध कराए हैं। तो आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं कुछ समकालीन गुजराती कविताओं का हिन्दी अनुवाद। अनुवादक हैं रजनीकांत एस. शाह।

 


समकालीन गुजराती कविताओं का अनुवाद 

सभी कविताओं के अनुवादक : डॉ. रजनीकान्त एस. शाह




अनिल चावडा 


1.पुत्री की विदाई


कवि : अनिल चावडा



इतने बरस जिसने घर को रखा उष्मित

मेंहदी रचा कर चला आज घर का वह उजास

बिटिया के जाने से ऐसा लगता 

गया ताक से दीया

नहीं जुड़ेगा अब यह मुहल्ला 

चाहे सिओ जितना

पड़ते ही उसके पदचिह्न सर्वत्र हो जाता रजवाड़ा।

मेंहदी रचा कर चला आज घर का वह उजास

रंगोली में पड़ेगी नहीं रे

पहले जैसी बेलबूटेदार छाप 

दूर दूर रे चली जाएगी

घर की यह दौलत

अश्रुभीनी होगा सबकी अँखियों का झरुखा 

मेंहदी रचा कर चला आज घर का वह उजास।


   

प्रफुल्ल रावल



2. मन की माया  

कविश्री-   प्रफुल्ल रावल

अनुवादक - रजनीकान्त एस. शाह


वृक्ष फैलाये केवल मन की माया 

तने के भीतर छिपी बैठी है किसकी छाया?

वृक्ष फैलाए केवल मन की माया

धरती से उसका नाता ऐसा तो है गाढ़ा

वही रखता है उसका पेट तृप्त और ठंडा

बहते पवन के संग झूम कर गीत खुशियों के गाए

वृक्ष फैलाए केवल मन की माया    

बादल संग मेल करा कर खींच लाये जल को वह

मिट्टी की महक का आनंद है उठाता संसार

मीठे कलरव के साथ सूर सारे दौड़ आए

वृक्ष फैलाए केवल मन की माया.

   

रमेश पारेख 



3. प्रभात


कवि : रमेश पारेख

अनुवादक : डॉ.रजनीकान्त एस. शाह 


कोमल कोमल धूप भुरभुरा कर प्रभात मेरी 

आँखों को मीठास चखाता

यह मेरे मरजादी मुहल्ले को धीरे-धीरे 

पंखियों का कलरव नहलाता

मेरी इस दहलीज में ये अमर्याद हवाएँ 

लाल चटख मंद लहरें उंडेलती

वहाँ यह झूमता पेड़, मुझे उस पर बैठी 

कोयल दिखाता!

पगडण्डी से, संकरी गली से, मोहल्ले से, कमरे से 

हौले-हौले रात बुझती 

सुनहली गंध का तालाब बन गई, जरा सूरज ने 

छू लिया कि मेरी छाती 

देखो, प्रभात तो मुझे भी फूंक मार कर

बांसुरी की भांति बजाता है!



कुंदनिका कापडिया 



4. और कुछ नही चाहिए   


कवयित्री - कुंदनिका कापडिया 

अनुवादक : डॉ.रजनीकान्त एस. शाह 


वे अपनी वेदना की बातें करते हैं 

और खुद के लिए रोते हैं;

पर आपके लिए नि:शब्द रात्रि में किसने आंसू बहाये हैं?

आप तो चतुर्दिक आ रहे हैं।

हम यदि खुद से तनिक बाहर निकलें 

अपनी शतसहस्त्र कामनाएँ, आवेग, उत्पातों को दरकिनार करें 

अपने मन का कोलाहल शांत करें 

और आपके झीने स्वर को सुनने के लिए कान धरें 

एक दिन नहीं, कुछ दिन नहीं, नित्यप्रति  

विश्वास, श्रद्धा और प्रेमपूर्वक आपके सम्मुख हों 

पवित्र और स्नेहिल, निरहंकारी और निर्दंभ बनें 

तो हमें बोध हों, निश्चय ही ज्ञात हो, भगवान!

कि आप तो एकदम सन्निकट हैं 

ह्रदय की धड़कन से निकट 

शरीर को छू रही हवा सदृश स्पर्श्य। 

हमें बोध हो कि 

हम पर अपनी कृपा बरसाने के लिए 

आप भी हमारी प्रतीक्षा में हैं।

पर संसार के राजमार्ग पर से गुजर रहे 

लाखों-करोड़ों लोगों को अचानक रोक कर मैं यदि पूछूं 

तुम्हें जीवन में क्या चाहिए?

तो कौन मुझे स्नेहस्निग्ध स्वरों में बतायेगा कि

मुझे और कुछ नहीं चाहिए,

मात्र भगवान चाहिए।



5. उत्सव बन गई


कवि : रमेश शाह 

अनुवादक : डॉ.रजनीकान्त एस.शाह 


मेरी सारी संवेदनाएँ अवसर हो गई,

फूल खिले और जिंदगी उत्सव हो गई,

यहाँ वहाँ टहलते टहलते बाग

          मेरी आँख में समा गया,

फूलगंधित बहा पवन,

          सांस वह महका गया;

क्यारियाँ सारी हरितोत्सव बन गई,

           फूल खिले और जिंदगी उत्सव हो गई,

फूल के संग बात चली ,

           और फिर खीलता रहा,

अंजुरी भर भर जिंदगी की 

           हर खुशी अपनाता चला,

जिंदगी खुद फूल का आसव बन गई,

           फूल खिले और जिंदगी उत्सव हो गई।



सम्पर्क


रजनीकांत एस. शाह 

2, शीलप्रिय, विमल नगर सोसाइटी

नवाब बाजार, करजण, बड़ोदरा

गुजरात 391240


मोबाइल - 09924567512

ई मेल : navkar1947@gmail.com


टिप्पणियाँ

  1. आदरणीय संपादक जी,
    नमस्कार। आपका बहुत धन्यवाद कि आपने मेरे द्वारा अनूदित गुजराती की समकालीन रचनाओं के अनुवाद मात्र स्वीकार ही नहीं किया, आपने अपने मंच पर रखकर समादृत किया। गुजराती की ये सुंदर रचनाएँ दूर दूर के ऐसे भावों तक पहुँचेंगी जो गुजराती नहीं जानते हैं। आपकी इस उदारता के आगे धन्यवाद शब्द छोटा पड़ रहा है। आपने मेरे अनुवाद कर्म को सराहा है और मुझे आगे इसी क्षेत्र में प्रवृत्त रहने के लिए प्रेरित किया है- मैं बहुत गद्गद हूँ।
    आपका यह मंच सदैव साहित्य और भावों के बीच सेतु बनकर जोडता रहे यही शुभकामना।

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  2. समकालीन गुजराती कविताओं को हिंदी में पढ़ कर प्रसन्नता हुई। अनुवादक श्री रजनीकांत शाह जी को साधुवाद।

    जवाब देंहटाएं

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