संजीव बख्शी की कहानी 'डॉ. मिश्रा'


संजीव बख्शी


आम जीवन में एक सामान्य व्यक्ति को कई तरह की दुश्वारियों का सामना करना पड़ता है। उसे सामना करना पड़ता है उस संवेदनहीन प्रशासनिक मशीनरी का जो अपनी तरह से ही सोचने और काम करने के लिए अभ्यस्त है। डॉ मिश्रा नामक इस कहानी में संजीव बख्शी ने इसी प्रशासनिक संवेदनहीनता को उभारने का सफल यत्न किया है। आइए आज पहली बार पर पढ़ते हैं संजीव बख्शी की कहानी 'डॉ. मिश्रा'



डाक्‍टर मिश्रा





संजीव बख्शी



चैतू राम, इस बार बहुत दिन में आए क्‍या बात हैॽ सब ठीक तो हैंॽ डॉ. मिश्रा ने चैतू राम से पूछा। 

चैतू राम अक्‍सर रविवार शाम को बाजार की खरीदारी के बाद मिलने, डॉ. मिश्रा के अस्‍पताल में आ जाया करता था पर आज तो रविवार भी नहीं था और आज चैतू राम सुबहसुबह ही अस्‍पताल में आ गया था सो डॉ. मिश्रा का पूछना वाजिब था। 


क्‍या बताऊँ साब, दाई कल से उल्‍टीदस्‍त से परेशान रहिस हे, आज सुबहसुबह बेहोश हो गे हे। मैं हा दौड़त आय हौं साब। अभी मोर साथ चलो डाक्‍टर साब, मैं ले जाए बर आए हौं। चैतू राम ने एक ही साँस में पूरी बात कह दी। 

चैतू का गाँव सड़क से काफी भीतर है। करमतरा, जो बघमर्रा हो कर जाते हैं। खैरागढ़ से दस किलोमीटर जालबांधा जहाँ तक गाड़ी जाती है, भले ही रास्‍ता गढ्ढों से भरा है, उसके बाद तो पैदल ही जाना है तीन किलो मीटर मेड़मेड़। खेतीकिसानी के समय में मेड़ पर चलना और कठिन हो जाता है। और फिर काली मिट्टी वाली  जमीन। 


डॉ. साब ने चैतू को सबसे पहले पानी पिलाया और फिर उससे दाई के बारे में पूरी पूछताछ की। उसने चैतूराम से कहा कि देखो चैतूराम, आज कल सरकार उल्‍टीदस्‍त आदि की बीमारी के लिए बहुत काम कर रही है। इसके लिए योजनाएँ बनाई गई हैं। अस्‍पतालों में डाक्‍टरों को इसके लिए विशेष हिदायत दिए गए हैं कि ऐसे मरीज जब भी मिले तो तत्‍काल उस पर कार्यवाही की जाए। दवाइयों की सारी व्‍यवस्‍था है। कोई रूपए पैसे की जरूरत नहीं। सब कुछ निशुल्‍क हो जाता है। तुम ऐसा करो कि जाओ और सरकारी अस्‍पताल में जा  कर  डाक्‍टर से मिलो और बताओ कि दाई को ऐसाऐसा हो गया है। 


चैतूराम ने डॉ. मिश्रा के कहने पर सरकारी अस्‍पताल जाने का तय किया और तुरंत उठ कर चला गया। अस्‍पताल में अभी झाड़ूपोंछा का काम चल रहा था। अभी कोई डाक्‍टर, नर्स आदि नहीं आए थे। पूछने पर बताया गया कि दस बजे के पहले कोई नहीं आएगा। अभी आठ ही बजे थे सो चैतू राम एक कोने पर बैठ गया। उसके दिमाग में तो दाई की तबियत को ले  कर चिंता थी और वह जल्‍दी से जल्‍दी डाक्‍टर को बता कर उसे साथ ही गाँव ले जाना चाहता था। 


दस बजे नर्स व अस्‍पताल के अन्‍य कर्मचारी आए और अपने-अपने काम करने में लग गए। चैतू राम ने उन्‍हें बताने  की कोशिश की पर कोई उसकी बात सुनने को तैयार नहीं था। चैतू राम बोलना शुरू  करता ही कि वे टोक देते कि डाक्‍टर साब आएंगे तो उन्‍हें बताना। पूछने पर कि वे कब तक आएंगे, बता दिया जाता कि अभी आते ही होंगे। देखतेदेखते ग्‍यारह बज गए तब आए डाक्‍टर साब। आते ही वे अपनी कुर्सी पर नहीं बैठे  बल्‍कि वे भीतर जाकर कुछ कागज पतरी देखने लगे। चैतूराम उन्‍हें  भीतर जा  कर बताना चाहा तो कहा गया कि अभी वे आते हैं, इंतजार करें। 



चैतू राम रोने की स्थिति में आ गया था पर रो नहीं रहा था। अपने आप को रोक कर रखा हुआ था। डाक्‍टर साब आए और बैठे कुर्सी टेबिल पर तो चैतूराम लपक कर उनके पास गया और बताया कि उसकी दाई को कल से उल्‍टीदस्‍त हो रही है और आज बेहोश हो गई है। डाक्‍टर साब उलट कर चैतू राम को गुस्‍सा से बोलने लगे कि कल ही क्‍यों नहीं आएॽ कल आना था। अब जब मरने की स्थिति आ जाती है तब यहाँ अस्‍पताल आते हैं, वह भी मरीज को ले  कर नहीं आए हैं, क्‍या कर सकते हैंॽ डाक्‍टर ने कहा कि मरीज को ले  कर आओ फिर देखते हैं क्‍या कर सकते हैं। 


चैतू राम ने कहा कि देखिए डाक्‍टर साब, मेरी दाई आने की स्थिति में नहीं है। थोड़ी भी ठीक होती तो मैं ले आता। कुछ करो डाक्‍टर साब। अब चैतू ऐसा कहते हुए रोनहुत हो गया था। 


डाक्‍टर ने उसे कहा कि मैं तो अस्‍पताल छोड़ कर जा नहीं सकता। ऐसा करो तुम एक और डाक्‍टर हैं जूनियर, अभी आते होंगे, उनके आने पर उनसे मिलो और उन्‍हें बताओ। 


चैतूराम उस  डाक्‍टर के इंतजार में फिर उस कोने पर बैठ गया और दरवाजे की ओर देखने लगा। आधे घंटे के बाद डाक्‍टर आ गया। उसके पीछेपीछे चैतूराम गया और उसे चलतेचलते बताने लगा कि उसकी दाई बेहोश हो गई है। 

‘‘तो मैं क्‍या करूँॽ’’ जूनियर डाक्‍टर ने कहा और अपने काम में लग गया जैसे वह बहुत व्‍यस्‍त है। 

चैतूराम ने कहा कि डाक्‍टर साहब ने उनसे मिलने के लिए कहा है। इसलिए आपको बता रहा हूँ। 
‘‘अच्‍छा तो बताओ क्‍या बात हैॽ’’ डाक्‍टर ने कहा।

‘‘मेरी दाई को कल से उल्‍टीदस्‍त हो रही है और आज सुबह से वह बेहोश है तो डर के मारे मैं सुबहसुबह ही सायकिल से यहाँ आ गया। आप मेरे साथ चलो और दाई का इलाज कर दो डाक्‍टर साब।’’ चैतूराम ने हाथ जोड़ कर डाक्‍टर से निवेदन किया। 


‘‘मैं कैसे जाऊंगाॽ अस्‍पताल की गाड़ी और एंबूलेंस दोनों बनने के लिए गैराज गई हैं। कोई गाड़ी नहीं है, जाने के लिए। कहाँ है भाई तुम्‍हारा गाँवॽ’’ 

‘‘दस किलो मीटर जालबांधा सड़क है, उसके बाद तीन किलोमीटर पैदल मेड़मेड़ जाना है बघमर्रा, उसके आगे ही है करमतरा मेरा गाँव।’’ चैतूराम ने बताया। चैतूराम हमेशा सायकिल से इसी रास्‍ते खैरागढ़ आताजाता है। मेड़ पर तो वह सायकिल नहीं चला सकता क्‍यों‍कि लाटा पकड़ता है। कभीकभी तो सायकिल को कंधे से उठा कर चलना होता है। पर चाहे दिन हो या रात वह हमेशा आनाजाना कर लेता है। आज डाक्‍टर को ले जाने के लिए जब उसने बताया तो उसे ही लगने लगा कि काश उसका गाँव सड़क पर होता तो कोई भी तुरंत जाने के लिए तैयार हो जाता। 



‘‘मैं अपनी मोटर सायकिल से चला भी जाता पर तीन किलोमीटर पैदल भी चलना है। देखते हैं क्‍या हो सकता है। पर उल्‍टीदस्‍त का मामला है इसके लिए विशेष सेल बनाया गया है, पहले वहाँ इसे दर्ज कराना होगा। इसलिए पास ही आधे किलोमीटर दूर में कार्यालय है, वहाँ चले जाओ और दर्ज करवा कर आ जाओ। तब तक देखता हूँ, गैराज से बात करता हूँ, कितना समय लगेगा गाड़ी बनने मेंॽ’’ जूनियर डाक्‍टर लगभग टरकाते हुए चैतूराम से कहा और फिर वह अपने काम में व्‍यस्‍त हो गया। 


चैतूराम ने कार्यालय कहाँ है पूछताछ कर वहाँ के लिए रवाना हो गया। कार्यालय पहुँच कर उसने चपरासी को बताया कि उसकी दाई को कल से उल्‍टीदस्‍त हो रही है। चपरासी ने कहा कि जो बाबू इस काम को देखता है वह आज छुट्टी में है, उसके बदले कौन काम करेगा यह देखना है। 

चैतूराम ने चपरासी से कहा कि भैया मुझे बता देना कि उस बाबू साहब के बदले कौन काम देख रहा है। मुझे जल्‍दी दर्ज कराना है। 

चपरासी ने उसे बैठने का इशारा किया और भीतर चला गया। चैतूराम वहीं पर एक बेंच पर बैठ गया। इंतजार करने लगा। उसे दाई की चिंता हो रही थी। पर कर ही क्‍या सकता था। 

चपरासी कार्यालय के प्रभारी साहब से मिला और बताया कि बड़े बाबू आज छुट्टी में है साब उसके बदले में कौन काम देखेगाॽ गाँव से एक आदमी प्रकरण दर्ज करवाने आया है। उसे क्‍या बताऊँॽ चपरासी को साहब ने डाँट दिया देख नहीं रहे हो, मैं किसी से जरूरी बात कर रहा हूँ, तुम बीच में आ कर कैसे बात करने लगते होॽ तमीज नहीं है। थोड़ी देर बाद आना और बताना क्‍या बात है। 
बेचारा चपरासी वापस चला गया और जाकर फिर चैतूराम को बताया कि देखो जैसे ही साहब फ्री हो जाते हैं मैं उनसे पूछ कर तुम को बताता हूँ कि कौन बाबू तुम्‍हारा काम देखेगा। 


चपरासी दो तीन बार साहब के चेंबर में गया पर हर समय साहब मोबाइल फोन से बात कर रहे थे, देख कर वह वापस आ गया। उसे डाँट पड़ गई थी इसलिए वह देख रहा था कि साहब खाली हो जाएँ तो बात करूँ। उसे चैतूराम का चेहरा देख कर ही आभास हो गया था कि चैतूराम जल्‍दी में है और गंभीर मामला है। 
खाली देख कर हिम्‍मत कर चपरासी ने पूछ लिया कि ‘‘बड़े बाबू साहब नहीं आए हैं शायद छुट्टी में हैं तो उनका काम कौन देखेगा साहब आर्डर कर देते तो एक गाँव का आदमी आया है, उसे दर्ज करवाना है साहब।’’


‘‘बड़े बाबू कैसे छुट्टी में चला गयाॽ मैंने तो उसे छुट्टी नहीं दी है। आजकल क्‍या हो रहा है, कार्यालय का अनुशासन ही खत्‍म हो गया हैॽ कोई भी बिना स्‍वीकृत कराए छुट्टी में चला जाता है। देखो उसका आवेदन कहाँ हैॽ तुरंत मेरे पास लाओ।’’ 

‘‘जी साहब, पर यह बता दीजिए साब कौन करेगा उसके बदले में काम तो गाँव से आया है उसका काम हो जाएगा।’’ 

‘‘मैं जो कह रहा हूँ वह पहले करो और मुझे शिक्षा देने की जरूरत नहीं है।’’ 
‘‘जी साब।’’ 

चपरासी दौड़ कर गया और बड़े बाबू के टेबिल पर से एक आवेदन जो उसने पेपरवेट के नीचे दबा कर रखा था उसे उठा कर ले आया और साहब के सामने रख दिया। ‘‘यह है साब  आवेदन बड़े बाबू का’’
‘‘सब लोगों को बुला कर लाओ’’
‘‘जी साब’’
चपरासी दौड़कर गया और सबको बुला कर ले आया। 


सबको डाँट लगाते हुए साहब ने कहा ‘‘यह क्‍या हो रहा है अनुशासन इस कार्यालय में है या नहीं। देखो बड़े बाबू बिना स्‍वीकृत कराए ही आवेदन टेबिल पर रख कर छुट्टी पर चले गए। ऐसे ही काम चलेगा क्‍याॽ’’
सब लोग चुपचाप खड़े साहब की बात सुन रहे थे। 
साहब ने कहा ‘‘मैं अभी बड़े बाबू पर कार्यवाही करता हूँ तब पता चलेगा आटा दाल का भाव।’’
किसी एक ने बीच में कहा ‘‘साब दो साल में ही रिटायरमेंट है बड़े बाबू का, क्‍यों कार्यवाही करते होॽ उसके बाल बच्‍चे हैं।’’


‘‘तो समझाओ उसे ऐसा दोबारा नहीं होना चाहिए। आप लोग भी नोट कर लो कोई ऐसा दोबारा न करे अन्‍यथा मैं कार्यवाही करूंगा तो कोई न कहे कि पहले से बताया नहीं।’’ साहब ने कहा और सबको वापस जाने का इशारा कर दिया। 
सब चले गए और अपने काम में लग गए। 

चपरासी ने फिर कहा ‘‘साब वो गाँव वाला आया है।’’
ठीक है देखते हैं उसका काम कौन करेगा। रामू को जरा बुला दो। 
चपरासी ने रामू बाबू को जिद कर जल्‍दी बुला कर साहब के सामने ले आया। 
‘‘रामू तुम क्‍या कर रहे होॽ बड़े बाबू आज नहीं आए हैं तो ऐसा करो कि उसका भी काम तुम देख लो।’’ साहब ने कहा।

‘‘मैं कैसे देखूंगा साब मेरे पास वैसे ही बहुत काम है। शाम तक मुझे प्रोजेक्‍ट का काम भी पूरा करना है। मैं क्‍याक्‍या देखता रहूँगा।’’ रामू ने कहा और बिना इंतजार किए वापस चला गया। साहब ने चपरासी से कहा कि कोई दूसरा बाबू को बुलाओ। 

चपरासी ने साहब से यहाँ तक कह दिया कि ‘‘साहब आप कहें तो रजिस्‍टर में मैं दर्ज कर देता हूँ।’’


साहब ने कहा नहीं जैसे मैं कहता हूँ, वैसा करो। कोई और बाबू को बुला दो। दूसरा बाबू आया और उसने जवाब दिया ‘‘मैं करने को बड़े बाबू का काम तो कर दूंगा पर उसकी आलमारी की चाबी मेरे पास नहीं है। उसके घर से मंगवाना होगा तब ही काम हो सकता है।’’ 

‘‘ठीक है, चाबी मंगवा लो और एक गाँव का आदमी आया है, इंतजार कर रहा है, उसका काम कर दो।’’ साहब ने कहा। 

बाबू ने तुरंत चपरासी से कहा कि बड़े बाबू से उनके घर जा कर आलमारी की चाबी ले कर जाओ। 

चपरासी ने सिर हिला कर हाँ कहा और बाहर निकल गया। उसकी नजर चैतूराम पर पड़ी, वह चपरासी का इंतजार ही कर रहा था। चपरासी ने उससे कहा ‘‘कौन काम करेगा इसका आर्डर हो गया है। अब मैं बड़े बाबू के घर जा रहा हूँ चाबी लेने के लिए। उसके बाद तुम्‍हारा काम हो जाएगा।’’ 


यह सब करतेकरते चार बज गए थे। चपरासी अपना सायकल उठा कर निकल गया था। आधे घंटे बाद चपरासी आया और चैतूराम से कहा, आओ अंदर बाबू से मिलाता हूँ। उसने उसे साथ भीतर ले जा कर बाबू से मिलवा दिया और बताया कि काफी देर से यह इंतजार कर रहा है बाबू साहेब। इसका काम जल्‍दी कर दो। बाबू ने आलमारी खोल कर पंजी निकाल लिया और चैतूराम से पूछ कर जानकारी दर्ज कर दिया और एक कागज बना कर उसे दिया कि इसे अस्‍पताल में जा कर दिखाना। 


चपरासी ने अलग ले जा कर चैतूराम के कान में खुसुरफुसुर की और चैतूराम ने जेब से निकाल कर बीस रूपए चपरासी के हाथ पर रख दिया और कहा बस इतने ही हैं मेरे पास। 


चैतूराम कागज ले कर अस्‍पताल गया तो देखता है कि अपना काम निबटा कर डाक्‍टर साहेब चले गए हैं। अस्‍पताल में नहीं हैं। उसने पूछताछ की तो पता चला कि तीन बजे तक उनकी ड्यूटी रहती है। उसके बाद दोनों डाक्‍टर घर चले गए हैं। चैतूराम ने कहा कि क्‍या मैं उनके घर चला जाऊँॽ तो जवाब मिला कि‍ जूनियर डाक्‍टर तो नांदगाँव शहर से आनाजाना करते हैं सो खैरागढ़ में नहीं मिलेंगे। 



चैतूराम कागज को लिएलिए अस्‍पताल से वापस आ गया और फिर डॉ. मिश्रा के पास आया। डॉ. मिश्रा दोपहर का काम निबटा कर लंच लेकर आराम कर रहे थे कि उनकी घंटी बजी। चपरासी ने आ कर बताया कि सुबह जो आपसे मिलने आया था वही फिर से आया है।


डॉ. मिश्रा निकल कर आए और चैतूराम से पूछा कि अब तक तुम गाँव नहीं गएॽ

चैतूराम ने पूरा का पूरा सुना दिया कि सरकारी अस्‍पताल में क्‍याक्‍या हुआ। 
अब आप ही हैं मेरे भगवान आप पर ही भरोसा है। आप चल कर मेरी दाई को देख दो डाक्‍टर साब। चैतूराम ने हाथ जोड़ कर डॉ. मिश्रासे कहा। डॉ. मिश्राकी आँखों में आँसू आ गए। दूसरी ओर उनको गुस्‍सा आ रहा था सरकारी व्‍यवस्‍था पर। सरकार ने कितना कुछ नियम कायदा बनाया है। निर्देश दिए हैं कि ऐसा कोई केस होने पर तत्‍परता से उसे ठीक किया जाए। पर हो कुछ और रहा है। 

‘‘मैं अभी तैयार हो कर आता हूँ फिर चलते हैं।’’  
डॉ. मिश्रा तैयार हो कर आए और स्‍टाफ को कहा कि उसके दोनों दवाईयों के बैग जीप में रख दें। 
चैतूराम को लेकर डॉ. मिश्रारवाना हो गए। 

रास्‍ते में डाक्‍टर मिश्रा ने चैतूराम से पूछा कहाँ जाना हैॽ 
‘‘जालबांधा तक तो गाड़ी जाएगी। उसके बाद गाड़ी वहीं छोड़ कर फिर पैदल ही मेड़मेड़ जाना होगा डा साहेब।’’ 
‘‘कितना किलोमीटर पैदल हैॽ’’
‘‘तीन किलोमीटर में बघमर्रा है उसके पीछे ही करमतरा मेरा गाँव है। वहीं चलना है।’’ 
जालबांधा पहुँचतेपहुँचते शाम छह बज गए थे और ठंडी का समय था सो कुछ ज्‍यादा शाम होने लगी थी जंगल झुरमुट में छह बजे से और ज्‍यादा अंधेरा लगने लगता है।


जालबांधा में जीप को खड़ी कर के दोनों पैदल निकल गए। दोनों बैग चैतूराम ने संभाल लिया और पीछेपीछे डॉ. मिश्रा पैदल चलने लगे। डॉ. मिश्रा का ऐसा पहला मौका नहीं था कि उसे गाँव जाना पड़ रहा है। इसके पहले भी रातरात को वे दूरदूर तक गाँव गए हैं। कभी नदी पार कर तो कभी पहाड़ की चढ़ाई कर। 


रास्‍ते में वे चैतूराम से गाँव के बारे में बात करतेकरते चल रहे थे। कोई आधा किलो मीटर ही चले होंगे कि डॉ. मिश्रा को लगा कि अब जूता पहन कर चला नहीं जाएगा। काली मिट्टी होने के कारण जूता में लाटा पकड़ रहा था। दोनों जूतें भारी लग रहे थे। उन्‍होंने दोनों जूतों को निकाल कर हाथ के हवाले कर दिया और नंगे पैर चलने लगे। एक हाथ में वे टार्च रखे हुए थे। चैतूराम की चाल तेज थी। डॉ. मिश्रा समझ रहे थे कि वह जल्‍दी से जल्‍दी गाँव पहुँचना चाहता है। डॉ. मिश्रा उतनी तेजी से चल नहीं पा रहे थे। एक तो काली मिट्टी और फिर नंगे पांव। पलट कर देखता तो चैतूराम थोड़ा रूकता और फिर तेजी से चलने लगता। मेड़ पर बबूल के झाड़ थे उसके कांटे फैले हुए थे जो अब डॉ. मिश्राके पैरों के पंजे में लगातार चुभ रहे थे। डॉ. मिश्रा को इसका आभास होता था पर वे चले जा रहे थे। यह सोच कर कि जो भी हो एक बार मंजिल पर पहुँच जाएँ और मरीज को देख लें फिर सब ठीक कर लेंगें। 

बघमर्रा आने पर चैतूराम ने बताया कि बघमर्रा आ गया डाक्‍टर साहेब। अब बस इसके पीछे ही मेरा गाँव है। डॉ. मिश्रा पीछेपीछे चलते रहे। 

करमतरा आ गया और फिर चैतूराम का घर। 
मिट्टी का घर लिपापुता सामने परछी। गाँव के कुछ लोग परछी में बैठे चैतूराम का इंतजार कर रहे थे। सब चुपचाप थे। 

चैतूराम ने उनसे कुछ कहा भी पर कोई जवाब नहीं दे रहा था। चैतूराम भीतर गया और दाई को देखा तो दहाड़ मार रो पड़ा। दाई नहीं रही डाक्‍टर साहेब। दाई नहीं रही। 

गाँव वालों ने बताया कि दोपहर तक दाई इंतजार की फिर उसका ये हाल हो गया। 

रोतेरोते चैतूराम का बुरा हाल था। रोतेरोते वह कह रहा था गाँव वाले कोई तो मुझे शहर आ कर बता देते। सड़क तक आ कर बता देते। कोई तो सूचना दे देते। डाक्‍टर साहेब को बबूल के कांटे नहीं चुभते। लहूलुहान हो गए हैं डाक्‍टर साहेब के पैर। 


‘‘क्‍यों किसी ने मुझे सूचना नहीं दीॽ’’ 

‘‘क्‍या हो गया था सबकोॽ’’


(बया से साभार)



सम्पर्क



मोबाइल नम्बर : 9981874114

ई मेल : buxysanjeev@gmail.com


टिप्पणियाँ

  1. संजीव जी,
    मुझे खुशी है आप सोशल मीडिया पर पर कहानी डॉ मिश्रा प्रकाशित की यह समय की आवश्यकता है।

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  2. वाह,,,,
    *कोई तो मुझे सूचना डी देते। डाक्टर साहेब को बबूल के कांटे नहीं चुभते। लहूलुहान हो गए है डाक्टर साहेब के पैर।*
    आदरणीय, यह रचना चैतू राम के निश्चल भाव को अंत में प्रगट करता है।

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  3. नौकरशाही की घातक और मारक जटिलताओं के बीच किसी डाक्टर में तो संवेदनशीलता बची हुई है गनीमत है।वह कष्ट उठाकर साथ गया चैतूराम के गनीमत है ।यह अपवाद है और अच्छा अपवाद है।चैतूराम की ज़िंदगी तो देश के बुनियादी आदमी की तिल तिल खत्म होती ज़िन्दगी का उदाहरण है।कौन है इसके लिए जिम्मेदार ?यह सवाल बचा रह जाता है मुंह फाड़े हुए। मुक्तिबोध के शब्दों में कहूं तो इसीलिए हर रचना अधूरी रह जाती है। बहुत बहुत मुबारक।

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  4. बहुत ही मार्मिक कहानी है, कहानी में नौकरशाही ढ़ूलमूल रवैये को बखूबी दिखाया गया है। जैतूराम आम गरीब नागरिक का प्रतिनिधित्व करता हुआ दिखाई देता है।

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  5. Gajab kahani hai. Apni maan ki tabiyat ki chinta ki bajay Dr. Mishra ke paanw mein gade kaante ki chinta mein ghule ja rahe Chaituram ki maanviyata aur samvedanshilta is kahani ki aatmaa hai. Yeh samvedanshilta gaon mein, visheshtah Chhattisgarh ke gaonon mein dekhne ko milti hai. Badhai swikarein maanyawar. Hari Om.
    Harihar Vaishnav

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  6. क्या कहूँ समझ में नहीं आता... यह कहानी नहीं हकीकत है। हम असंवेदनशीलता की सारी हदें लांघ चुके हैं। क्या अफसर, क्या डॉक्टर, नर्स, कंपाउंडर, टीचर, बाबू, इंजीनियर, पंडित-पुरोहित, मौलवी,... दिनो दिन यह लिस्ट इतनी लम्बी होती जा रही है कि इसे इलास्टिक की तरह खींचा जा सकता है। कभी कभी तो लगता है कवि लेखकों की भी तो संवेदनशीलता भी कागजों तक सिमट गई है... हम सब मशीनों में तब्दील होते जा रहे हैं।
    बहरहाल अच्छी कहानी के लिए संजीव बख्शी जी को हार्दिक बधाई।

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  7. क्या कहूँ समझ में नहीं आता... यह कहानी नहीं हकीकत है। हम असंवेदनशीलता की सारी हदें लांघ चुके हैं। क्या अफसर, क्या डॉक्टर, नर्स, कंपाउंडर, टीचर, बाबू, इंजीनियर, पुलिस, पंडित-पुरोहित, मौलवी,... दिनो दिन यह लिस्ट इतनी लम्बी होती जा रही है कि इसे इलास्टिक की तरह खींचा जा सकता है। कभी कभी तो लगता है कवि लेखकों की संवेदनशीलता भी तो कहीं कागजों तक नहीं सिमट गई है... ऐसा लगता है हम सब मशीनों में तब्दील होते जा रहे हैं।
    बहरहाल अच्छी कहानी के लिए संजीव बख्शी जी को हार्दिक बधाई।

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