कुंदन सिद्धार्थ की कविताएं
कुंदन सिद्धार्थ |
कवि परिचय
नाम : कुंदन सिद्धार्थ
जन्म तिथि: 25 फरवरी, 1972
जन्म स्थान: बिहार के पश्चिमी चंपारण जिले के हरपुर गाँव में
साहित्यिक कृतित्व: 'अक्षरा', 'आवर्त', 'वागर्थ', 'पहल', 'दोआबा', 'बहुमत', 'आजकल', 'मुक्तांचल', 'नया पथ', 'बिंब-प्रतिबिंब', 'समकालीन परिभाषा', 'सृजन सरोकार', 'समकालीन भारतीय साहित्य' पत्रिकाओं में तथा 'समावर्तन' में रेखांकित कवि के रूप में एवं 'समकालीन जनमत' के वेबसाइट, 'अविसद' और अन्य ब्लॉगों पर एवं ऑनलाइन साहित्यिक पत्रिकाओं में कविताएँ प्रकाशित।
'हंस', 'धर्मयुग', 'संडे ऑब्जर्वर' में वैचारिक आलेख प्रकाशित; मध्यप्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन के मंचों पर काव्य-पाठ।
कुछ कविताओं का मराठी, नेपाली, अंग्रजी और भोजपुरी में अनुवाद।
कवि और समालोचक गणेश गनी के संपादन में संयुक्त कविता संकलन 'यह समय है लौटाने का' प्रकाशित; सुमन सिंह के संपादन में प्रेम कविताओं के साझा संग्रह 'सदानीरा है प्यार' में कविताएँ प्रकाशित; कवि और अनुवादक जगदीश नलिन के संपादन में सृजनलोक प्रकाशन से प्रकाशित हिंदी कविताओं के अंग्रेजी अनुवाद की पुस्तक 'ऑन नो टाइम' में कविताएँ सम्मिलित; कवि-संपादक दफ़ैरून श्रीवास्तव के संपादन में संयुक्त काव्य संग्रह में कविताएँ चयनित; राजेंद्र शर्मा के संपादन में संयुक्त काव्य संग्रह 'कोरोना के कवि (खंड एक)' में कविताएँ सम्मिलित; कवि और अनुवादक जगदीश नलिन के संपादन में हिंदी कविताओं के भोजपुरी अनुवाद के संकलन 'कोठिला' में कविताएँ सम्मिलित; पहला काव्य संग्रह शीघ्र प्रकाश्य।
सम्प्रति: आजीविका हेतु पश्चिम मध्य रेल, जबलपुर में कार्यरत।
हमारा यह मनुष्य जीवन विविधवर्णी है। सुख और दुःख से सजा होता है यह। दुनिया का समृद्धतम व्यक्ति भी ऐसा दावा नहीं कर सकता कि वह दुःख से रहित है। सबके अपने अपने दुःख होते हैं। सबके अपने अपने हिस्से के दुःख होते हैं। दुःख में अपनों का साथ हमें संभालता है और फिर से जीवन की मुख्य धारा में सक्रिय करने के लिए तैयार करता है। कवि कुंदन सिद्धार्थ जीवन की इन सूक्ष्मतम अनुभूतियों को अपनी कविता में इस तरह उकेरते हैं जैसे ये हमारी खुद की अनुभूतियां हों। कवि की सफलता भी तो तो यही होती है कि वह खुद के निजी मनोभावों को सार्वजनिक मनोभावों में बदल देता है। कवि को यह पता है कि मनुष्य की अपनी समस्याएं हैं। वह अजूबा नहीं है। वह प्रकृति से संचालित होता है। अपनी कविता कठिन दिनों में वे लिखते हैं - "नदी नहीं थे हम/ जो अपने अकेलेपन से घबड़ाये/ एक दिन किसी संगम पर हो जाते एकाकार/ हमेशा-हमेशा के लिए/... हवा तो बिल्कुल नहीं थे हम/ जो छुप जाते किसी कोने-अँतरे/ और ढूँढ़ने से भी कभी हाथ नहीं आते/ चाहे कोई लाख कोशिश कर ले।" कवि कविता के लिए भटकता नहीं बल्कि अपने अनुभवों से ही काव्य पंक्तियां निकाल कर शब्द बद्ध कर देता है। आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं कुंदन सिद्धार्थ की कविताएं।
वसंत
वसंत के दिन थे
जब हम पहली बार मिले
पहली बार
मैंने वसंत देखा
अचरज
मैं प्रेम करता रहा
वह अचरज करती रही
इसी तरह कई युग बीत गये
न मैंने प्रेम करना छोड़ा
न उसने अचरज करना
प्रेम दुनिया का सबसे बड़ा अचरज है
तभी जाना
मैं कहीं भी रहूँ
तुम्हें देखना
और प्रार्थना में खड़े होना
एक ही बात है
तुम्हें प्रेम करना
क्या ठीक उसी तरह नहीं है
जैसे खुद को प्रेम करना
तुम्हें पा कर
खुद को पाने का एहसास
यूँ ही तो नहीं होता
दो साँसों के बीच की जो दूरी है
क्या उतनी भी दूरी है हमारे बीच
मुझे तो नहीं लगता
क्योंकि मैं कहीं भी रहूँ
वहीं होते हो तुम
प्रार्थना में मौन
और प्रेम में तृप्ति की तरह
प्रेम के पक्ष में प्रार्थना
आँखों में नमी बनी रहे
इसी तरह
इसी तरह भर आते रहें कंठ
धड़कते रहें हृदय इसी तरह
इसी तरह गले रुँधते रहें
इसी नमी में
इसी नम एकांत में
एकांत के इसी सघन मौन में
अंकुरित होता रहेगा प्रेम
जीवित रहेगा
संरक्षित रहेगा
बीज बन कर
तुझमें
मुझमें
हमेशा के लिए
आषाढ़-मिलन
एक बार
आषाढ़ के महीने में
मिले थे हम
बादल थे
हवा थी
धूप-छाँह का खेल था
अब-तब पड़ रही फुहारें थीं
और तुम थे
फिर आषाढ़ आया है
बादल हैं
हवा है
धूप-छाँह का खेल है
अब-तब पड़ रही फुहारें हैं
और तुम भी हो
आषाढ़
तब क्या हमारे मिलने से आता है
जब मैंने कहा, तुम हँस पड़े
देखना
आज देर रात तक
बरसेगा पानी
अमर्त्य
न जप, न तप
न कठोर ध्यान-साधनाएँ
न कुंभ-स्नान
न चारों धाम यात्रा
इनमें से कुछ भी नहीं करना मुझे
अमरत्व पाने के लिए
प्रेम की सँकरी गली में
है मेरा रहवास
चैन की नींद आती है
कविताओं की कुटिया में
यूँ मैं करता हूँ प्रेम
और लिखता हूँ कविताएँ
अब मैं कभी नहीं मरूँगा
अधूरा प्रेम
एक दिन
मैं नहीं रहूँगा
एक दिन
तुम खो जाओगे
बचा रह जायेगा प्रेम
जो हम कर नहीं पाये
अधूरा छूट गया प्रेम
प्रतीक्षा करेगा पूरे धैर्य के साथ
फिर से हमारे धरती पर लौटने की
अधूरा छूट गया प्रेम
भटकेगा इस सुनसान में
उसकी आत्मा जो अतृप्त रह गयी
मैं आऊँगा रूप बदल कर
तुम भी आना
हम करेंगे प्रेम जी भर के
अधूरा जो छूट जाता है
पीछा करता है जन्मों-जन्मों
तुम्हीं ने कहा था
बरसों पहले
अंतिम शरणगाह
दुख की एक नदी थी
जिसमें हम दोनों को उतरना था
हम प्रेम करने लगे
सुख का एक आकाश था
जिसमें हम दोनों को उड़ना था
हम प्रेम करने लगे
अपने खारे आँसुओं से
हमने मीठे पानी की एक झील बनायी
और उम्र भर नहाते रहे
कोमल भरोसे से खड़ा किया
प्रेम का ऊँचा पहाड़
और शिखरों पर चढ़ इठलाते रहे
हमने उम्मीदों का
एक हरा-भरा जँगल लगाया
और भटकते रहे
बेपरवाह
बावजूद इसके
प्रेम को नहीं मिल पायी साबूत ठौर
कि हम आँख मूँद सुस्ता सकें
देह मिट जाने तक
हम सिर्फ़ सपनों में मिलते रहे
वहीं पूरी कीं सारी इच्छाएँ
हम प्रेम करते थे
सपने ही बने
हमारी अंतिम शरणगाह
पहली बार
प्रेम आया
तो वसंत आया
पहली बार
रँग
प्रेम करने वालों की ही ईज़ाद हैं
फूल
पहली बार प्रेमियों के सामने खिले
पहली बार
जब कोयल कूकी
पुकारा पपीहरा
निहारा चकोर
तब वे प्रेम में थे
रची गयी
जब पहली कथा
पहली कविता
जब धरती पर उतरी
बीज बना होगा प्रेम
भक्ति जगी होगी प्रेम में
प्रेम में ही उठे होंगे प्रार्थना के स्वर
पहली बार
किसी चेहरे पर
आयी होगी हँसी प्रेम में
प्रेम में ही
मुस्कराये होंगे किसी के ओठ
आँसू गिरे होंगे पहली बार
प्रेम के वियोग में
प्रेमियों ने ही गाया होगा
पहला गीत
कठिन दिनों में
जब तक साथ रहे
सफर में हमेशा बनी रही
कहीं अकेले भटक जाने की आशंका
आज नहीं तो कल कभी भी
कई कठिन कोशिशों के बावजूद
हम नहीं हो सके आश्वस्त
कि हम एक-दूसरे के लिए बने हैं
जन्म-जन्मांतर तक
हमारी तमाम मुलाकातों के पीछे
पल-पल मौजूद रही चिंता
कैसे बचा लें मैली होने से
अपनी कोरी चादरें
निष्कलंक
यूँ हम खतरे में जिये
कि भविष्य पर नहीं है
हमारा तनिक अधिकार
सँजो लें कल की खातिर
ऐसा कुछ भी नहीं
अतीत की धूल झड़ गयी बीच राह
न जाने कब अचानक
बस सँवारते रहे वर्तमान
करते रहे अपने होने का एहसास
जीते रहे प्रेम
भरपूर
पंछी नहीं थे हम
जो उड़ जाते गगन में दूर तलक
और बना लेते किसी दरख़्त के कोटर में
अपना खूबसूरत आशियाना
नदी नहीं थे हम
जो अपने अकेलेपन से घबड़ाये
एक दिन किसी संगम पर हो जाते एकाकार
हमेशा-हमेशा के लिए
हवा तो बिल्कुल नहीं थे हम
जो छुप जाते किसी कोने-अँतरे
और ढूँढ़ने से भी कभी हाथ नहीं आते
चाहे कोई लाख कोशिश कर ले
हम आदमी थे
और जीवन के उन कठिन दिनों में
सबसे ज्यादा बचते रहे
आदमी से
●
(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग्स कवि विजेन्द्र जी की हैं।)
सम्पर्क
आई सी 16, सैनिक सोसाइटी,
शक्तिनगर, जबलपुर,
मध्यप्रदेश 482001
ईमेल : kundansiddhartha25@gmail.com
मोबाइल नंबर : 7024218568, 9009309363
कुंदन की कविताओं में प्रेम की गहरी अनुभूति है । अपने प्रेमानुभव को वह कविता में सहजता से अभिव्यक्त करते हैं
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