एंटोन कुरनिआ की कहानी 'एक प्रेम कहानी'

 

Anton Kurnia


प्रेम दुनिया की सबसे पवित्रतम भावना है। यह अपनी तरह से चलने का अभ्यस्त होता है। यह किसी किस्म की पाबन्दी को स्वीकार नहीं करता। और अगर पाबन्दी लगाई गई तो उसके खिलाफ संघर्ष करने में यकीन रखता है। इसी बिना पर कोई प्रेम को अंधा, कोई पाप तो कोई स्वर्ग की संज्ञा देता है। प्रेम किसी बन्धन को स्वीकार करता। यह जाति पाति, धर्म, नस्ल, बोली, भाषा किसी की भी परवाह नहीं करता। इसकी अपनी अलहदा वर्णमाला है। और वह इस वर्णमाला पर यकीन करता है। एंटोन कुरनिआ इंडोनेशिया के युवा लेखक हैं। कवि कहानीकार श्री विलास सिंह ने एंटोन कुरनिआ की एक कहानी का अनुवाद किया है। आइए आज पहली बार पर पढ़ते हैं एंटोन कुरनिआ की इंडोनेशियाई कहानी 'एक प्रेम कहानी '।



(इंडोनेशियाई कहानी)

एक प्रेम कहानी



एंटोन कुरनिआ 

हिंदी अनुवाद : श्रीविलास सिंह 



यूसुफ का आत्मालाप


मैं अपने शरीर में एक क्रिस - जावा की एक पारम्परिक कटार - लिए हुए पैदा हुआ था।  यह नौ मोड़ वाली कटार थी। 


मेरे पिता ने कटार को पहली बार देखा। मेरे जन्म के तीन दिन पूर्व, एक शुष्क और खामोश अपराह्न में, कस्बे के एक अस्पताल में मेरी माँ बिस्तर पर पड़ी हुई थी।  मेरे पिता, जो सारी रात नहीं सोये थे, उसकी बगल में बैठे थे और उनींदा सा महसूस कर रहे थे। 


शुरुआत में बस धुआँ था। धीरे धीरे यह गाढ़ा होता गया और कमरे कुहासे से भरे लगने लगे तथा सब की दृष्टि धुंधली हो गयी। मेरी माँ ने सोचा मेरे पिता कमरे के भीतर ही अपनी साधारण क्रेटेक सिगरेट पी रहे हैं; लेकिन उन्होंने अपनी सिगरेट छुई तक न थी। धुआँ गहराता गया। मेरी माँ भय से चीख पड़ी और मेरे पिता को दरवाजा बंद करने को कहा। मेरे पिता अपनी सीट से उठे और दरवाजे की ओर बढे, लेकिन फिर वे रुक गए।  उनका चेहरा पीला पड़ गया था। 


यह सबसे विचित्र दृश्य था। उस धूम्राच्छादित छोटे कमरे के भीतर मेरे पिता ने कुछ वृद्ध व्यक्तियों को देखा जिनके वक्ष नग्न थे और जो प्राचीन वस्त्र, जो कि प्राचीन जावा राज्य के समय में सैनिकों द्वारा पहने जाने वाले वस्त्रों से भिन्न नहीं थे, पहने हुए थे।उन में से एक व्यक्ति एक थाल लाया जिसमें एक खुली कटार (क्रिस) रखी हुई थी।


मेरी माँ भौंचक्की रह गयी। जब वृद्ध व्यक्ति ने वह थाल बिलकुल उसकी जांघों के मध्य की ओर झुकाया तो वह चीख पड़ी। वह अपने सिर पर एक सफ़ेद पगड़ी पहने हुए था। वह अपनी चीख रोक पाती इसके पूर्व ही वह खुली कटार लुप्त हो गयी मानों उसकी कोख ने कटार को उसके शरीर के भीतर खींच लिया हो। बाद में धुँआ समाप्त हो गया। 


तीन दिन पश्चात् मेरा जन्म हुआ। 


एक बारिश भरी साँझ को, जब मस्जिद से आखिरी अज़ान दी जा रही थी, मैं अपनी माँ की कोख से बाहर आया। आकाश अंधकारमय और तारक विहीन था। मेरे पिता ने मेरे दाएं कान में अज़ान के शब्द फुसफुसाए फिर उन्होंने मेरे बाएं कान में इक़ामत पढ़ी। मेरे माता पिता दोनों का विश्वास था कि मेरी देह के भीतर एक कटार है। वे यह भी विश्वास करते थे कि यह किसी बात का संकेत चिन्ह है। 


मेरी माँ ने कहा मैं जब इस दुनिया में लाया गया, मैं रोया नहीं था। मैं बस एक बार चीखा और फिर मैं मौन हो गया - मेरी ऑंखें पूरी तरह खुली हुई थी मानों प्रकाश के लिए भूखी हों। मेरे माँ बाप ने मेरी नाल काटी और उसे मिटटी के एक बर्तन में रख कर हमारे घर के पिछवाड़े गाड़ दिया। 


सातवें दिन मेरे पिता ने मेरे लिए पारम्परिक नामकरण समारोह रखा। मेरी माँ ने बताया कि उस रात वे सब इकट्ठे हुए और उन्होंने पवित्र पुस्तक की भाषा में एक धुन गायी। मेरे पिता ने मुझे बांहों में ले कर समारोह में आये हर व्यक्ति को दिखाया। वे सभी एक वृत्त के आकार में खड़े थे। पुरुष स्त्रियों के आगे खड़े थे। मेरे माता पिता ने फिर मेरे बाल काटे और उन्हें सोने से तौला। जैसे जैसे रात गहराती गयी, हँसी और बातें हवा में घुलती गयीं- मेहमानों ने मेमने का रसेदार गोश्त खाया।


इसी बीच मेरे दादा ने, जिनके बाल सफ़ेद हो चुके थे और जो हमेशा काली पगड़ी पहनते थे, मेरे चेहरे को छुआ और पवित्र कुरआन की कुछ आयतें पढ़ीं। उनका विश्वास था कि उन आयतों का पाठ, मुझे उस तरह के व्यक्ति के रूप में बड़ा होने में मदद करेगा जिसमें पैगम्बर युसूफ की वे सभी विशेषताएं होंगी जो उनमें उनके जीवन काल में थीं। उनकी ही भांति, मुझे मनुष्य मात्र प्रेम करेगा - पुरुष मेरे  मित्र होना चाहेंगे, स्त्रियां मुझे अपने प्रेमियों के रूप में पाना चाहेंगी।


मेरे पिता ने मेरा नाम यूसुफ़ मार्तादिलागा रखा।  युसूफ मेरे पिता का दिया उपहार था। मार्तादिलागा हमारा उपनाम था जो मुझे मेरे परदादा से उत्तराधिकार में प्राप्त हुआ। 


वे मुझे युसूफ कहते हैं लेकिन मैं कोई पैगम्बर नहीं हूँ। मैं बस एक साधारण व्यक्ति हूँ जिसके भीतर एक कटार है। 



वूलां का आत्मालाप   


मैं पूरे चाँद की रात को पैदा हुई थी। आसमान साफ था। अँधेरे आकाश में तारे इस तरह टिमटिमा रहे थे मानों हँसी के साथ मेरा स्वागत कर रहे हों। मेरा नाम वूलां रात्रि है।  इसका अर्थ है “रात्रि में चन्द्रमा”।


मेरे पिता जावा के एक प्रतिष्ठित परिवार की एकमात्र संतान हैं जिन्होंने एक सूडानी महिला से विवाह किया है। वे एक सिविल सर्वेंट के रूप में कार्यरत हैं और हर कोई मुझसे यह कहता है कि मैं उन्हीं की भांति दिखती हूँ। समय के साथ मेरी माँ मुझसे ईर्ष्या करने लगी। एक तिल ठीक मेरी दोनों आँखों के बीच है। बड़े होने पर पुरुष मुझ पर मरते हैं और मेरी मुस्कराहट उन्हें बहुत लुभावनी लगती है।


मैंने कालेज में ही एक मेजर के बेटे से विवाह कर लिया था। मेरे पति सुदर्शन नहीं हैं लेकिन उनकी देह खूबसूरत है। उनके पिता समृद्ध और ताकतवर हैं। उन्हें न सुंदरता और न ही बुद्धि की आवश्यकता है। जब से वे पैदा हुए, उनके परिवार ने उन्हें वह सब कुछ उपलब्ध कराया जो वे चाहते थे। 


मैंने अपने पति से विवाह करने हेतु विद्यालय छोड़ दिया था। विवाह बहुत धूमधड़ाके से हुआ था। आकर्षक उपहारों के साथ, हजारों अतिथि देश भर से आये थे। हम प्रेम के बारे में बहुत अधिक परवाह नहीं करते। फिर मैं गर्भवती हो गयी - हर कोई कहता कि बच्चे के आने के पश्चात् मैं और अधिक खूबसूरत दिखती हूँ। 


मैंने एक नन्ही बेटी को जन्म दिया। जो कोई भी व्यक्ति हमारे जीवन में आया वही उसे लाड़ करता था। मेरे पति एक कंपनी, जो उन्हें उनके पिता ने दी थी, के प्रमुख हैं। इसका अर्थ है मैं एक पुरस्कार में प्राप्त पत्नी के रूप में अपना जीवन जीने हेतु स्वतन्त्र थी। मुझे कोई काम नहीं था। मुझे बस हर रात अपनी देह अपने पति के समक्ष समर्पित करनी पड़ती थी। क्या मैं खुश थी? मैं ख़ुशी के बारे में बहुत परवाह नहीं करती थी।


मैं अपने विवाह से ऊब गयी थी। बिना किसी ख़ास उपलब्धि के वर्ष बीत रहे थे। मैं समृद्ध थी किंतु एकाकी। मेरे पति कम्पनी के मामलों में व्यस्त रहते थे। इसलिए मुझे व्यस्त रहने हेतु प्रयत्न करना पड़ता था। इसी कारण मैं और मेरे पति अलग अलग बढ़ चले— अपने अपने अलग जीवन का सृजन करते हुए।


लेकिन मैंने एक पत्नी और अपने व्यवसाय में एक प्रतिष्ठित परिवार की बहू होने के अपने कर्तव्यों की अवहेलना नहीं की। मैं यह सुनिश्चित करती थी कि मैं किसी भी पारिवारिक अथवा व्यावसायिक समारोह में प्रसन्न और चमकती हुई दिखूं। यह बदले में प्राप्त तमाम ऐशो-आराम की बहुत महँगी कीमत थी। पार्टीज, शॉपिंग, अंतर्राष्ट्रीय यात्रायें। पैसा कभी कोई मुद्दा नहीं था। 


फिर भी, आखिर में, मैं ऊब गयी। 


एक दिन, किसी ने मेरा परिचय एक युवक से कराया। एक पत्रकार। उसके बाल लम्बे थे लेकिन ख़राब नहीं लग रहे थे। उसकी आँखें सुन्दर थीं। उसकी मुस्कराहट प्यारी थी। मैं अपने जीवन में बहुत से सुदर्शन पुरुषों को जानती थी, लेकिन यह उन सब से अलग था। उस में कुछ था जिसने मुझे उसके प्रति आकर्षित किया। 


उसका नाम युसूफ मार्तादिलागा है लेकिन मैं उसे योस बुलाती हूँ।  


उसने बताया कि उसकी देह के भीतर एक नग्न कटार है। निश्चय ही, यह एक मज़ाक था। मैं उसकी बात पर हँसी थी। फिर भी, जब मैं उसके पास आयी, मेरा ह्रदय धड़कने लगा।  मैं प्रेम में थी। 


युसूफ का आत्मालाप  


प्रेम ने हमें पागल कर दिया। यह उसी दिन से, जिस दिन हम पहले पहल मिले थे, तेजी से घटित हुआ। हम दोनों के एक मित्र ने हमारा परिचय कराया था। और उस दिन के बाद से, हम एक दूसरे से मिलने से स्वयं को रोक नहीं पाए। इसकी शुरुआत मोहल्ले में टहलने से हुई। हम साथ साथ डिनर के लिए गए, एक फिल्म देखी, चुम्बन लिया और आखिर में एक दूसरे को अपनी देह समर्पित कर दी। 


मैं महिलाओं के बारे में जानता था। मैं जानता था कि किस प्रकार वे मेरे प्रति आसानी से आकृष्ट हो जाती हैं। कभी कभार मैं उन्हें अपनी ओर आकर्षित किया करता था अन्यथा अधिकांशतः वे ही मुझे ललचाती थीं। स्त्रियां मेरे जीवन में आती जाती रहीं थी; लेकिन इस बार बात कुछ अलग है। 


मैं प्रेम में हूँ। 


वूलां का आत्मालाप 


आज हमारी पहली मुलाकात के बाद की 99वीं साँझ थी। उसके साथ होने से मुझे महसूस होता था मानों हम स्वर्ग में हैं। आज यहाँ हमारी तीसरी रात है। मेरे पति विदेश यात्रा पर हैं। मैं नहीं जानती वे कहाँ गए हैं और मुझे इसकी परवाह भी नहीं है। इसलिए मैं अपने प्रिय के साथ एक खूबसूरत समुद्र तट पर हूँ, जहाँ हमने अपना गुप्त स्वर्ग बना रखा है। 


जब तीन दिन पूर्व हम यहाँ आये, एक जोड़ी इंद्रधनुष दिखाई दिए। योस मेरे पति की कार धीरे धीरे चला रहा था। तब हलकी हलकी बारिश हो रही थी जब वह मेरी ओर झुका और मेरे होठों का चुम्बन लिया। यह मुझे जगाने का उसका तरीका था। 


“उन इंद्रधनुषों को देखो,” वह मेरे कानों में फुसफुसाया। 


बहुत समय हुए जब मैंने आखिरी बार कोई इंद्रधनुष देखा था - इस बार मैंने दो इंद्रधनुष एक साथ देखे! यह सबसे शानदार चीज थी। 


“फ़रिश्ते हमारा स्वागत कर रहे हैं,” मैंने उससे कहा। 


हमने अपने स्वर्ग में तीन लगातार आनंद मनाया। हम समुद्र तट के किनारे किनारे टहलते रहे, ज्वार के साथ बहते रहे, रेत के महल बनाये, समुद्र में तैरे - और हमने इस तरह प्यार किया मानों फिर कल नहीं होगी। 


आज वह मेरी बगल में सोया है। यह हमारी तीसरी रात है। पिछले तीन दिन जादुई थे। हम एक दूसरे से अलग नहीं हो सकते। प्रेम ने हमें पागल कर दिया है। 


योस ने मुझे मेरी स्वयं की देह के बारे में नयी चीजें सिखायीं, जिनके बारे में मैंने पहले सोचा भी नहीं था। और उसने मुझे ऐसी चीजें करने को प्रेरित किया जो मैं बिस्तर में अपने पति के साथ करने के बारे में कल्पना भी नहीं कर सकती। उसने बहुत से निषिद्ध द्वार खोले। उसने मुझे 'असमार्गम' के सम्बन्ध में बताया - प्रेम की कला के सम्बन्ध में जावा की प्राचीन पुस्तक। उसने मुझे आनंद से चीख पड़ने को मजबूर किया। उसने मुझे अपने पर से नियंत्रण खो देने को मजबूर किया। 


मैं अपने स्वार्थी पति की अब बिलकुल परवाह नहीं करती जो मुझे अपने मूर्खतापूर्ण राज्य की एक नाजुक चीज की भांति समझता है, शीशे की कोई वस्तु। और मैं अपनी एकाकी बेटी के बारे में लगभग भूल ही गयी जो उच्च वेतन प्राप्त आयायों और महंगे खिलौनों से घिरी हुई थी। मैं प्रेम में थी। 


क्या प्रेम पाप है?


युसूफ का आत्मालाप   

  

समुद्र तट के किनारे होटल में यह हमारी आखिरी रात है। कल हम अपनी पुरानी जिंदगियों में वापस लौट जायेंगे। मैं आधी रात के बाद से ही जागृत पड़ा हुआ हूँ। जब कि वह मेरी बगल में सोई हुई है। मैं कमरे के अत्यंत क्षीण प्रकाश में महीन चादर से ढंकी उसकी नग्न देह देख सकता हूँ। बालों के एक दो गुच्छे, जो अभी भी पसीने से भीगे हुए हैं, उसके माथे पर पड़े हैं। उसके होठों पर एक मुस्कान है। 


मैं बिस्तर से उठा और बालकनी की ओर चला गया। अँधेरे में समुद्र तट मेरी ओर ताक रहा है। मैं जल में मौजूद नमक की गंध महसूस कर सकता हूँ। रात्रि ने मुझे ढंक लिया है। दूर, अपनी टिमटिमाती रोशनी के साथ मछुआरे की एक नाव जल में हिचकोले ले रही है। करवटें लेती लहरे तेजी से तट की ओर आ रही हैं और टकरा कर बिखर जा रही हैं। 


कभी कभी, समुद्र मुझे डराता है। यह मुझे मृत्यु की याद दिलाता है। और मृत्यु एक भयानक चीज है। 


हमारे मरने के पश्चात् क्या होता है?

क्या कोई स्वर्ग है?

पाप क्या है?

क्या प्रेम पाप है?

क्या प्रेम अँधा है?


प्रेम हर चीज को देखता है।  यह किसी बात का बुरा नहीं मानता। 


हवा महासागर का नमक लिए हुए मुझ से परे बह रही है। मेरी आँखें मछुआरे की नाव से आती रोशनी पर टिकी हुई हैं। समुद्र तट सुनसान और शांत है। रात्रि अँधेरी और ठंडी है। 


किन्तु यहाँ प्रेम है। और मुझे ठण्ड की अनुभूति नहीं हो रही है।


*****  


सम्पर्क

A-5 आशीष रॉयल टावर 

बीसलपुर रोड 

बरेली- 243006

Mob: 8851054620

     

टिप्पणियाँ

  1. शानदार कहानी का बहुत उम्दा अनुवाद। बधाई स्वीकार करें।

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  2. अच्छी कहानी. प्रेम पर कई रचनाएँ दुनिया में लिखी जाती रही हैं फिर भी कुछ न कुछ हर बार बच ही जाता है. यही बचा हुआ आगे किसी दूसरी कहानी-कविता में फिर से सांसे लेने लगता है. सदियों से प्रेम पर लिखा जाता रहा और शायद सदियों तक लिखा जाता रहेगा. युसूफ और वूला का प्रेम भी उसके शाश्वत रूप से हमें रूबरू कराता है. एक शादीशुदा ज़िंदगी से उनके प्रेम का जीवन कितना अलग, उत्सवी और उमंगों भरा है. अच्छी कहानी का बेहतरीन अनुवाद... बधाई श्रीविलास सिंह जी...

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