भोलानाथ गहमरी के गीत

 




भोजपुरी गीतों का आकलन प्रायः कुछ भोंडे गायकों के अश्लील गानों से किया जाने लगा है। लेकिन भोजपुरी गीतों का यह विकृत सच है। भोजपुरी तो सनेह और जियरा की भाषा है। भोजपुरी में बेहतरीन गीतों और गायकों की एक समृद्ध परम्परा रही है। मोहम्मद खलील से ले कर आज के गायक भरत व्यास और शारदा सिन्हा तक। रफी ने भी कुछ उम्दा भोजपुरी गीत गाए हैं जो दिल जीत लेते हैं। 'कि रस चुवेला' गीत को याद करिए, ऐसी मधुरता और ऐसे अर्थ सन्दर्भ दुर्लभ हैं। भोला नाथ गहमरी भोजपुरी के ऐसे गीतकार रहे हैं जिन्होंने एक से बढ़ कर एक गीत लिखे जिसे कई महत्त्वपूर्ण गायकों ने अपना स्वर दिया। गहमरी जी का एक संग्रह भी 'लोक रागिनी' नाम से प्रकाशित हुआ था। लेखक अखिलेश श्रीवास्तव चमन के पास लोक रागिनी की वह दुर्लभ प्रति है जिसे गहमरी जी ने अपने हस्ताक्षर के साथ उन्हें दिया था। हमारे आग्रह पर चमन जी ने गहमरी जी के गीत उपलब्ध कराए हैं। इसके लिए हम उनके आभारी हैं। आइए आज पहली बार पर पढ़ते हैं भोला नाथ गहमरी के गीत। गीत के साथ हमने लोक रागिनी की वह भूमिका भी दी है जो बीते समय में प्रकाशन की दुश्वारियों को भलीभांति रेखांकित करता है।



कुछ बातें अपनी भी 


बहुत दिनों से प्रयासरत रहने के पश्चात आज 'लोकरागिनी' का प्रकाशन आपके हाथों में सौंप कर मुझे अत्यंत प्रसन्नता हो रही है और संभवतः आप जैसे सुधी पाठकों को भी हो रही होगी। इस पुस्तक में अनेक प्रचलित धुनों का समन्वय है जिन्हें आज के साहित्य परिप्रेक्ष्य में रचनाओं के साथ ही दोनों पर विशेष ध्यान दिया गया है। मैंने विगत 40 वर्षों में कोई खंडकाव्य अथवा महाकाव्य का विकास सृजन नहीं किया है। अब तक मैं अपने को लोक गीतों से ही जोड़ता घटाता रहा हूं। लोक धुनों पर गीत लिखना और गायक कलाकारों को समर्पित करते रहना जैसे मेरी प्रकृति सी बन गई। यही कारण है कि लगभग 300 के आसपास विभिन्न आकाशवाणी एवं दूरदर्शन के गायक कलाकारों द्वारा मेरे गीत प्रसारित हो चुके हैं।


लोकरागिनी से पूर्व लोक गीतों के मेरे दो और प्रकाशन हो चुके हैं। पहला बयार पुरवइया 1964 और दूसरा अंजुरी भर मोती 1980 में। इस प्रकार अपने पाठकों और गायकों को कुछ दे कर मुझे बहुत ही संतोष हुआ है। किंतु आज भी पटना, गोरखपुर, लखनऊ, इलाहाबाद, वाराणसी और रीवा तक के आकाशवाणी कलाकारों के बहुधा पत्र आते रहते हैं कि मैं उन्हें दो चार ताजे और नए गीत भेज दूं। इस तरह मैं सदैव उनकी मदद करता रहा हूं।

 

दरअसल आज आकाशवाणी पर इतनी अधिक संख्या में गायक कलाकार हैं जिनकी इस समय गणना कर पाना कठिन है। अतः यह एक समस्या है कि विभिन्न लोक धुनों पर नए गीत कहां से प्राप्त हों। उनका कहना है कि सारे के सारे पुराने गीत गाते गाते घिस चुके हैं और उन्हीं गीतों को बार-बार कोई दोहराना नहीं चाहता। ऐसी स्थिति में ही मेरे मस्तिष्क में एक विचार कौंध उठा और बीच में ही अपने एक प्रबंध काव्य का सृजन रोक कर इस 'लोक रागिनी' के प्रकाशन में जुट गया। वह भी इसलिए कि किसी रचनाकार के लिए सबसे बड़ी समस्या हो गई है प्रकाशन की। वैसे तो मुझे बहुत कुछ अच्छे अच्छे प्रकाशको के कटु अनुभव से किसी प्रकाशक के पास जाने की हिम्मत नहीं हुई और मेरी यह पुस्तक 'लोक रागिनी' स्वयं के प्रकाशन से श्रृंगाररित है। जो भी है, जैसी भी है, आपके सामने है। मैंने गायकों को दृष्टिगत रख कर ही भोजपुरी लोक गीतों के खास खास प्रचलित धुनों को अपनाते हुए नए-नए गीत देने का प्रयास किया है। इस तरह इस संकलन में पूरबी, कहंरवा, झूमर, खेमटा, विदेशिया, होली, चैता, कजली, जंतसार, विवाह गीत और सोहर के साथ देवी गीत भी दिया गया है। ऐसे प्रत्येक गीत के पूर्व में मैंने अपने प्रिय गायकों के लिए टिप्पणियों के साथ कुछ आवश्यक संकेत भी दिए हैं जिन्हें मनन कर समझना भी चाहिए।


एक बात और भी बता देना चाहता हूं कि लोक धुनों में इतनी अधिक शाखाएं हैं और इनके इतने अंग हैं, जिनका अध्ययन बड़ा ही कठिन है। एक ही धुन के कितने प्रकार बनते गए हैं यह बिरला ही कोई बता पाएगा। जहां तक मैंने अध्ययन करके पाया है, उसे राग के प्रारंभ में ही समझा कर लिखता गया हूं। मैं आकाशवाणी पर लोकगीतों का स्वर परीक्षक भी रहा हूं इस नाते मैं विश्वास के साथ कहने का साहस कर रहा हूं कि आज के बहुत से गायक कलाकारों को रागों की विस्तृत जानकारी है ही नहीं। उदाहरण के लिए बहुत से कलाकार देवी गीत को देवी राग ही समझते हैं जो बिल्कुल गलत है। इसी तरह प्रकार पूरबी भी गाने वाले यह नहीं बता पाते कि वह कौन सी पूरबी गा रहे हैं। हां, कुछ धुनें ऐसी जरूर पाई गई हैं जो अकेली हैं। जैसे सोहर, विदेशिया, चइता या छठ के गीत इत्यादि। राग विदेशिया की उत्पत्ति तो पारंपरिक धुनों के बहुत बाद स्वर्गीय श्री भिखारी ठाकुर से हुई है। इस पर कोई विवाद नहीं हो सकता और ना है। आज के माहौल में हमारी पारंपरिक लोक धुनें बहुत तेजी से लुप्त होती जा रही हैं। यह दुखद स्थिति है और हमें लोक धुनों की रक्षा करनी चाहिए। आज की युवा पीढ़ी हमारे संस्कार गीतों से कोसों दूर होती जा रही है जिनके ऊपर फिल्म सिनेमा जगत का अत्यधिक प्रभाव पड़ चुका है। किसी विशेष अवसर पर आज की ग्रामीण बहनें फिल्मी धुनों पर संस्कार के भोंड़े और भद्दे गीतों को अपनाने लगे हैं। जन्म से मरण तक हमारी भोजपुरी गीतों की जो धरोहर है उनका न तो कोई सानी है और ना ही कोई विकल्प। निश्चित ही इस अपार भंडार का क्षय होना हमारे लिए चिंता का विषय है। हमें अपने संस्कार और संस्कृति पर आज भी गर्व है। जिसके संस्कार गीतों में गाली भी अत्यंत आत्मीयता का बोध कराते हुए निकट का रिश्ता जोड़ती हो, उसे आप क्या कहेंगे?


सच पूछें तो इस पुस्तक के गीतों को ले कर मैंने यही प्रयास किया और यही ध्येय रखा है कि हमारी पारंपरिक धुनों को दोबारा ढहने ना पाए और इसी उद्देश्य को लेकर ही सदैव काम आने वाली प्रचलित तथा लोकप्रिय रागों पर मैंने नए नए गीतों का सृजन कर अपने पाठकों को परोसने का मात्र प्रयास किया है। लोक धुनों के गीतों को प्रवाह और रिदम (वाद्य) पर सही-सही बैठा पाने की पहली शर्त है। मेरी मान्यता है कि कविता और गीत में अंतर है। मैंने अपनी कुछ साहित्यिक कविताओं को वाद्य पर कभी जाने नहीं दिया। वे सभी के सभी स्वान्तः सुखाय तथा साहित्य की श्री वृद्धि हेतु ही लिखी गई है। वैसे मैंने फिल्मों में जो भी गीत लिखे उसमें भी साहित्य से दूर नहीं जा सका। भद्दे और अश्लील गीतों के लिए मैंने कभी निर्माताओं से समझौता नहीं किया। साथ ही अपनी भोजपुरी फिल्मों के गीतों को भी लोक धुनों से बाहर नहीं जाने दिया। आप भी इस बात से परिचित होंगे कि हिंदी खड़ी बोली की फिल्मों में जहां भी कोई एक गीत लोक धुन पर आया वह पूरी फिल्म हिट हो गई। अतः लोक धुनों में जो मिठास, जो आकर्षण और गति है वह आज की आधुनिक धुनों में कदापि नहीं मिलती। उपशास्त्रीय संगीत की बेजोड़ गायिका सुश्री गिरिजा देवी का विश्व में अपना एक स्थान है। उनका ही कहना है कि 'मैं जो भी गीत गाती हूं वह मुझे अत्यंत प्रिय है क्योंकि वह सभी के सभी लोकगीतों के समीप हैं। और लोकगीतों ने ही शास्त्रीय संगीत को बचा रखा है।' सच मानिए उनका यह कहना यथार्थ और निर्विवाद है। 'लोक रागिनी' का प्रकाशन और इसके आकार प्रकार तथा साज-सज्जा पर विचार करने में मेरा काफी समय निकल गया। इस संकलन में कुल 151 गीत दिए गए हैं जिनके अंत में अपनी कुछ साहित्यिक रचनाएं भी हैं। आज के समय में किसी पुस्तक का प्रकाशन बड़ा ही कठिन और साहसपूर्ण कार्य है। आफसेट की छपाई और कागज की महंगाई से कुछ लेखक बंधु अपनी हिम्मत छोड़ बैठते हैं। आज की परिस्थिति में हल्की-फुल्की सौ डेढ़ सौ पृष्ठों की पुस्तकों के मूल्य सत्तर अस्सी रुपए हो गए हैं। अतः 224 पृष्ठों की इस पुस्तक का मूल्य ₹145 रखा गया है। मुझे आशा ही नहीं, पूर्ण विश्वास है कि हमारे पाठकगण और प्रिय गायक कलाकार मेरे विचारों से सहमत होंगे। मैंने इस संकलन में अपने पूर्व प्रकाशन से 5-7 लोकप्रिय तथा ख्याति प्राप्त गीतों को पुनः प्रकाशित किया है, जिनसे मेरे कवि की पहचान बन सकी थी। इनमें कुछ गीत तो लोग अपना गीत बताते हुए मंचों पर पढ़ते अथवा गाते रहते हैं। गीतों की पंक्तियों से प्रभावित होना या उनके बिंबो और भावों को अपनी रचना में समेटना तो क्षम्य भी है किंतु कभी-कभी उसे पूरे जड़ से उखाड़ कर हनुमानवादी प्रक्रिया के रूप में कार्यान्वित कर गुजरने को आप क्या कहेंगे? इसीलिए ऐसे भी कुछ पूर्व के गीत मैंने पुनः अपने पाठकों के सामने रखने की धृष्टता किया है।


इस संकलन के प्रकाशन में हमारी तमाम कठिनाइयों को सहज भाव से दूर करने में श्रद्धेय श्रीयुत श्रीराम त्रिपाठी आईपीएस, संप्रति पुलिस अधीक्षक भदोही (ज्ञानपुर) ने बहुत बड़ा योगदान किया है। जिनके प्रति मैं आभारी ही नहीं सदैव ऋणी रहूंगा। यही कारण कि मैं अपनी यह 'लोक रागिनी' उनको हृदय से समर्पित कर रहा हूं। मेरे शिष्य और शिष्याओ की एक लंबी कतार है, जिनके सहयोग से ही मेरे भीतर का कवि जीवित रहा है। उनमें स्वर्गीय मोहम्मद खलील को मैं आज भी स्मरण करता हूं जिन्होंने अपनी गायकी कला और स्वर साधना से मेरे सैकड़ों गीतों को ख्याति तथा ऊंचाई प्रदान किया है। उनके पश्चात आकाशवाणी एवं दूरदर्शन के सुविख्यात गायक श्री लल्लन सिंह गहमरी का, जो मेरे छोटे भाई और शिष्य भी हैं, का आभार मानता हूं, जो मेरे साथ जुड़े रह कर अपने स्वर और गायकी कला से ख्याति अर्जित किया है। प्रयाग से गाजीपुर आने के बाद मेरी शिक्षा दीक्षा के अंतर्गत एक नाम आता है ठाकुर चंद्रमोहन सिंह का, जिन्होंने बड़ी लगन के साथ आकाशवाणी और दूरदर्शन पर अपनी गायकी कला से श्रोताओं को प्रभावित किया है। मेरे ऐसे ही शिष्यों में इलाहाबाद के उमेश चंद्र कनौजिया, पूर्वांचल के पुरुषोत्तम सिंह, कामेश्वर सिंह और आनंद सिंह भी हैं जो निश्चित रूप से स्वर साधक हैं और लोक गीतों में आकाशवाणी तथा मंच पर अपना स्थान बना चुके हैं। मेरी अनेक शिष्याओं में प्रमुख रूप से सुश्री सरोज बाला, संतोष श्रीवास्तव, संज्ञा तिवारी, कुमारी सरिता शिवम, अर्चना श्रीवास्तव, गायत्री पांडेय, कनक लता, निशा श्रीवास्तव और मधु बाला जैसे नाम हैं जिनके सुरीले कंठों ने मेरे तमाम गीतों को संवारा सजाया है।


मैं अपने उन तमाम मित्रों और प्रशंसकों का ऋणी हूं जिनकी प्रेरणा से मेरी रचनाएं अंकुरित और पल्लवित होती रही हैं। उनमें सर्वश्री सतीश त्रिपाठी आई.ए.एस., बाबूराम यादव आई.ए.एस., पंचदेव सिंह, डॉक्टर विवेकी राय, श्री विलास तिवारी, श्रीकृष्ण तिवारी, युक्तिभद्र दीक्षित, रणजीत सिंह, राहगीर बनारसी, श्रीधर शास्त्री, श्रीपाल सिंह क्षेम, सूंड फैजाबादी, डॉ सत्य नारायण, राज नारायण सिंह यादव, विजय प्रकाश महशर, ईश्वरी लाल जी, डॉ विश्वनाथ प्रसाद, कैलाश गौतम, पांडेय कपिल, डॉक्टर प्रभुनाथ सिंह, प्रेम शंकर चौबे, लाल जी शास्त्री, डॉ रत्नाकर पांडेय, गुलाब चंद्र, हरि नारायण हरीश, विजय शंकर त्रिपाठी, विश्वनाथ पांडेय बेखटक, ठाकुर विश्वनाथ सिंह, गजाधर प्रसाद गंगेश, श्री राम जी, घनश्याम शर्मा, मदन मोहन मनुज, रामधनी राम, राम प्रकाश श्रीवास्तव, देव नारायण सिंह राकेश, मुहम्मद सलीम राही, डॉ महेंद्र सहाय, रविंद्र श्रीवास्तव जुगानी, एस. एन. मिश्र, डी. एन. राय, केवल कुमार, बुद्धि सागर तिवारी, अखिलेश कुमार श्रीवास्तव, राजबहादुर एडीएम, आनंद संधिदूत, कृपा शंकर, चंद्रभान सिंह, कपिल मुनि पंकज, रामजी केसरी के साथ ही साथ सुश्री डॉक्टर मृदुल लता, डॉ विभा राय, मीनू खरे राज्यश्री बनर्जी और पुत्री ज्योत्सना श्रीवास्तव का विशेष नाम है।


मैं हिंदी के उत्कृष्ट विद्वान और भोजपुरी के महापंडित डॉक्टर कृष्ण देव उपाध्याय का हृदय से आभारी हूं जिन्होंने मेरी रचनाओं का गहराई से अध्ययन करते हुए उस पर अपनी सम्मति व्यक्त की है। साथ ही अपने अनुज समान और छंद विधा के मर्मज्ञ भोजपुरी के सुविख्यात रचनाकार कविवर चंद्रशेखर मिश्र के लिए भी बहुत ही कृतज्ञ हूं जिन्होंने ऐसे शुभ अवसर पर हमें हृदय से दो शब्द आशीर्वाद स्वरुप लिखा है। अंत में इस संकलन के प्रकाशन, कंपोजिंग और छपाई में तन मन से जुड़े काशी ग्राफिक्स प्रेस के प्रोपराइटर श्री सत्यदेव उपाध्याय और विश्वंभर देव उपाध्याय का विशेष आभार मानता हूं जिन्होंने 'लोक रागिनी' को अपनी ही पुस्तक समझते हुए एक सुंदर रूप देने का अथक प्रयास किया है। प्रकाशन के इस अवसर पर उन पुण्य आत्माओं को प्रणाम करता हूं जिन्होंने मुझे जन्म देकर कर्तव्य मार्ग पर चलना सिखाया। और साथ ही अपनी स्वर्गीय भार्या के सामने आज भी नतमस्तक हूं जिसने हमारी रचनाधर्मिता को सदैव प्रोत्साहित किया है। 


मैं एक बार पुनः अपने प्रिय पाठकों और श्रोताओं से इस प्रकाशन की छोटी बड़ी भूल के लिए क्षमा याचना करते हुए आशा करता हूं कि मुझे जैसे निरीह और अल्प बुद्धि वाले व्यक्ति की इस पुस्तक 'लोक रागिनी' को अपने प्यार और स्नेह से खींचते रहेंगे।


भोलानाथ गहमरी



भोलानाथ गहमरी के गीत



आहि रे बालम चीरई


कवने खोंतवा में लुकइलू 

 आहि  रे  बालम  चीरई

            आहि रे बालम।।


बन बन ढूंढलीं, दर दर ढूंढलीं

ढूंढलीं नदी के तीरे

सांझ के ढूंढलीं, रात के ढूंढलीं

ढूंढलीं होत फजीरे


जन में ढूंढलीं, मन में ढूंढलीं

ढूंढलीं बीच बजारे 

हिया हिया में पइठि के ढूंढलीं

ढूंढलीं विरह के मारे


कवने अंतरा में समइलू 

आहि  रे  बालम  चीरई।

            आहि रे बालम।।


गीत के हम हर कड़ी से पूंछलीं 

पूंछलीं राग मिलन से 

छंद छंद लय ताल से पूंछलीं

पूंछलीं सुर के मन से,


किरन किरन से जा के पूंछलीं

पूंछलीं नील गगन से

धरती औ पाताल से पूंछलीं

पूंछलीं मस्त पवन से


कवने सुगवा पर लोभइलू 

आहि  रे  बालम  चीरई।

            आहि रे बालम।।


मन्दिर से मस्जिद तक देखलीं

गिरिजा से गुरुद्वारा

गीता अउर कुरान में देखलीं

देखलीं तीरथ सारा।


पण्डित से मुल्ला तक देखलीं

देखलीं घरे कसाई

सगरी उमिरिया छछनत जियरा

कब लें तोहके पाईं


कवने बतिया पर कोंहइलू 

आहि  रे  बालम  चीरई।

            आहि रे बालम।।



कटहर के लासा


प्रीति में ना धोखा देई, प्यार में ना झांसा

प्यार करीं अइसन, जइसे कटहर के लासा।।


ई ना हउवे आगि जवन, धधके बीनु धूआँ 

ई ना हउवे ताल तलइया, ई ना हउवे कुआँ 

प्यार हउवे मछरी जवन, पानी में पियासा।।

                                          प्रीति में ना।।


होख भईया लैला मजनू, होख हीर रांझा

होख तूं पतंग जइसे, डोरी संग माँझा 

प्यार हउवे दुनिया जवन, देख ले तमाशा।।

                                      प्रीति में ना।।


जाति के ना पांति के, ना धरम के दोहाई 

बोले के ना चाले के, ना रूप सुघराई

प्यार हउवे जवना के की, कवनो नाहीं भासा।।

                                          प्रीति में ना।।


रतिया के दीन करे, सुनू मोरे मीता 

अपना के मीठ लागे, दुनिया के तीता

प्यार ह बजावे जवन, कपरे पर तासा।।

                                    प्रीति में ना।।

 


आधी आधी रतिया


आधी आधी रतिया के बोले कोईलरिया

चीहुकि उठे  गोरिया  सेजरिया से  ठाढ़

                                 चीहुकि उठे।।


अमवा मोजरि गइले, महुआ कोंचाई गईले 

मोरे बिरहिनिया के, निदिया भोराई गइले 

                रही  रही  नेहिया  के,  बहली  बयरिया

                 खुलन लागे सुधिया, के दिहलो केवाड़।

                                                   चीहुकि उठे।।


फुलवा फूला गइले, भंवरा लोभा गइले

कवने कसुरवा से पीया घरे नाहीं अइले

                लीखि लीखि पतिया पठवली विपतिया 

                 बहन  लागे  रतिया  नयन  जलधार।।

                                               चीहुकि उठे।।


पंछी उड़न लागे, गगन मगन लागे

मनवां के पिंजरा से सुगना बोलन लागे

             हमरो सनेहिया ना  गुने  निरमोहिया

              दईब जाने कहिया ले कटिहनि गाढ़

                                            चीहुकि उठे।।





जियरा बहके लला 


मोरा फागुन में जियरा बहके लला 

मोरा  फागुन   में  जियरा  बहके।

                      मोरा फागुन में ।।


अबीर उड़त गलियन में

बसावे हमें अंखियन में

               अंक लगावे कसि के

               आरे अंक लगावे कसि के लला।

                                    मोरा फागुन में।।


चढि के कवन गोरी अपनी अटारी

हँसि हँसि के मारे भरल पिचकारी

                सगरे मदन रस छलके

                आरे सगरे मदन रस छलके लला।

                                       मोरा फागुन में।।


कहीं उठे गीत, कहीं सगुनाई

कहीं बाजे ढोल, कहीं शहनाई

                   कहीं अंगना में कंगना खनके

                   आरे अंगना में कंगना खनके लला।

                                           मोरा फागुन में।।


अगिन धधकावे


चैन नाहीं चइत महिनवा 

हो रामा, घरवा अंगनवा।।


बैरन हो गइले दिन दुपहरिया

कसि कसि मारे बान पछुआ बयरिया 

                बेंधे मोहे संझिया बिहनवा

                 हो रामा, घरवा अंगनवा।।  चैन.।।


बन बन टेसू अगिन धधकावे

लाले लाले सेमरा जिया के ललचावे 

                 बइठी अगोरेला सुगनवा

                  हो रामा, घरवा अंगनवा।। चैन.।।


अमवां के बारी कुहुके कोयल कारी

बिरहा जगावे बीरहिन के अनारी 

                   रोजे डहकावे परनवा

                    हो रामा, घरवा अंगनवा।। चैन.।।



लहर मारे ना


जंतवा पिसत मोरे हथवा पिरइले 

                  कि घिसि गइले ना

                  पिया अंगुरी के पोरवा 

                                   कि घिसि.।।


संझिया सबेरे तोरी बटिया निहारी 

                           लहर मारे ना

                पिया सुधि के सगरवा 

                           लहर मारे ना।।


सगरी देवलिया पर खिंचली लकीरिया 

                             कि दिन दिन ना

                        चुवे अंखिया से लोरवा

                             कि दिन दिन ना।।


आगि लागे सई दूई सौ के नोकरिया

                            बैरन भईले ना

                   हमरे आंखि के कजरवा

                               बैरन भईले ना


 


 


मन तोरा पापी


तोहरी पिरितिया पीया बदरी के छाहीं,

छनही में हां, अऊरी छनही में नाहीँ।।


 तूं भंवरा हर नन्हीं कली के

का पतियाऊं तोरा बात छली के

कबों आंख फेरे कबों डारे गलबाहीं 

                              छनही में.।।


हम परबस पंछी पिंजरा के

दरद ना जाने मोरा तूं जियरा के 

प्रीति अकेले हम कब ले निबाहीं 

                           छनही में.।।


छिछली नदी के करी कौन बड़ाई

सागर रहित त थहतीं गहराई

मन तोरा पापी हम केतना ले थाहीं

                                  छनही में.।।



जियरा मोर भरमाईल बा


चिरई तोहरा पीछे जियरा मोर भरमाईल बा

गतरे गतर बेधाईल बा ना।।


होठ गुलाबी खिले कमल दल

झील भाईली तोरी अखियां

अंचरा उड़े, उड़े रे मन मोरा

दिनवा कटे ना रतिया

त चिरई सझुरल जिनिगी हमरो फेरू अंझुराईल बा                                                                                   गतरे गतर।।


गांव गांव में नगर नगर में 

उड़ालू पंख पसारि के

नजर नजर पर तूं चढ़ी गईलू

देखे सभे निहार के

त चिरई प्रीति के बंगला तोहरे बदे छवाईल बा                                                                                   गतरे गतर।।


बारी उमरिया तोहरी एक दिन

चढ़ी के भईल सयानी

चन्दन के पिंजरा में बोले

लगलू मीठी बानी 

त चिरई चोर भईल चित जाने कहां लुकाईल बा                                                                                   गतरे गतर।।






हो गइली फकीर


ऊठेला करेजवा में पीर बारी धनिया

                                      ऊठेला.।।


तोहरे कारन गोरी घर बार छोड़लीं

छोड़लीं नगरिया के लोग

ओही कलकतवा के छोड़लीं नौकरियां

माटी भाले सोना के सरीर बारी धनिया

                                        ऊठेला.।।


सोनवा के पिंजरा सबुज रंग सुगना

बोलेला पिरितिया के बैन

नित गोहरावे तोरे नान्हें के नईयाँ 

टपके नयनवा से नीर बारी धनिया

                                        ऊठेला.।।


कंचन काया मोरा हो गइले पराया

जियरा भइल बदनाम

चढ़ती उमरिया में भभुती रमवलीं 

तोरा पीछे हो गईलीं फकीर बारी धनिया

                                        ऊठेला.।।



नेहियाँ लगा गइलू हो


कवने सुगना मे गोरी तूं लुभा गइलू हो।

                                          कवने।।


उड़ी-उड़ ऊँचे अकसवा में बोले, 

पंख पसारे पवन संग डोले, 

अइसना से नेहियाँ लगा गइलू हो ।

                                  कवने०।।


प्रीति के रोति जे ना किछु जाने, 

ना  जियरा के दरद पहिचाने 

ओकरे पर जिनिगी लुटा गइलू हो।

                                   कवने०।।


बस में रहे ना तोरी चढ़ली उमरिया, 

बेदरदी नाही लिहले खबरिया, 

सगरे तू जोग भुला गइलू हो।

                              कवने०।।


गीत-गजल जेके भजन न भावे, 

एक निरमोही तोरा मन भरमावे, 

सगरे तू जोग भुला गइलू हो।

                              कवने०।


कवने०

टिप्पणियाँ

  1. अनुज संतोष जी, इस नेक कार्य के लिए आपको कोटिशः साधुवाद। विस्मृत हो चुके अपनी तरह के अकेले भोजपुरी गीतों के अप्रतिम रचनाकार स्व. गहमरी जी को आपने जिस प्रकार याद किया है वह वंदनीय है। गहमरी जी लोक को सिर्फ लिखते नहीं थे बल्कि उसे जीते थे। मेरा नामोल्लेख करने के लिए आपका आभार।

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