डी. एम. मिश्र की ग़ज़लें
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डी. एम. मिश्र |
अगर पृथिवी पर पर्यावरण नहीं होता तो यहां जीवन भी नहीं होता। लेकिन जैसे जैसे हम विकास की राह पर आगे बढ़े वैसे वैसे हमने अपने इस बहुमूल्य पर्यावरण को ही नष्ट किया। जल, थल, वायु के अलावा आज और तमाम तरह के प्रदूषण हैं जिन्होंने जीवन के समक्ष विकट चुनौतियां खड़ी कर दी हैं। इन सबका जिम्मेदार मनुष्य ही है। विकास की अंधी दौड़ में हम लगातार अपने पांवों पर ही कुल्हाड़ी मारते जा रहे हैं। अभी भी संभलने के लिए समय है। कहीं ऐसा न हो कि समय हाथ से निकल जाए और फिर कुछ करने की संभावना ही न बचे। यह कैसी विडम्बना है कि हम अपने यहां जल के भण्डार को लगातार नष्ट करते जा रहे हैं और अन्य ग्रहों उपग्रहों पर जल की बूंदें तलाश रहे हैं। होना तो यह चाहिए कि वर्ष के एक एक दिन को हम पर्यावरण दिवस के रूप में मनाते लेकिन यह भी महज पांच जून तक सिमट कर रह गया है। पर्यावरण को बचाने की हम सबकी जिम्मेदारी है। गज़लकार डी. एम. मिश्र की ग़ज़लें पढ़ते हुए हमें उस अतीत की याद आती है जब पर्यावरण के प्रति हमारे मन में मान सम्मान होता था। इन अर्थों में डी. एम. मिश्र जनपक्षधर गज़लकार के रूप में दिखाई पड़ते हैं। उनके सरोकार आम जनता के हैं। उनकी चिंताएं आम आदमी की हैं। विश्व पर्यावरण दिवस पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ। आइए इस अवसर पर हम पहली बार पर पढ़ते हैं पर्यावरण पर डी. एम. मिश्र की कुछ उम्दा ग़ज़लें।
पर्यावरण पर डी. एम. मिश्र की ग़ज़लें
1
गर सलामत नहीं है ये पर्यावरण
कौन ज़िंदा बचेगा यहाँ एक क्षण
बाग़ महफ़ूज़ अपना तभी मानिए
एक पत्ते का भी जब न होवे क्षरण
क्यों हरे पेड़ों को काटने पर तुले
इनके हाथों में ही अपना जीवन-मरण
इन फ़ज़ाओं में क्यों घोलते हो ज़हर
एक इंसान का क्या यही आचरण?
जब हवा शुद्ध हो और जल स्वच्छ हो
तब समझना है अनुकूल वातावरण
चहचहाते हैं पक्षी सवेरा हुआ
दे रहा हमको आवाज़ नवजागरण
गुल खिलें, सबके चेहरे पे मुस्कान हो
घर का अपने रखें ऐसा वातावरण
2
रक्त का संचार है पर्यावरण
साँस की रफ़्तार है पर्यावरण
मन खिले, आँगन खिले, उपवन खिले
प्रकृति का श्रृंगार है पर्यावरण
फूल, फल या छाँव की ख़्वाहिश तो फिर
समृद्धि का भी द्वार है पर्यावरण
जन्म से लेकर मरण तक साथ दे
ज़िन्दगी का सार है पर्यावरण
उन परिन्दों के लिए भी सोचिए
उनकी भी दरकार है पर्यावरण
पेड़ रोते हैं कुल्हाड़ा देख कर
किस क़दर लाचार है पर्यावरण
कम से कम गमले में ही पौधे लगा लें
क्योंकि ये आधार है पर्यावरण
3
ऐसी चली विकास की आँधी न पूछिए
दिल थाम के बैठा हूँ तबाही न पूछिए
आरा लिए तो कोई कुल्हाड़ा लिए खड़ा
कितनी हुई पेड़ों की कटाई न पूछिए
बिल्कुल नहीं सरकार को पर्यावरण की फ़िक्र
आयेगी जो इस बार सुनामी न पूछिए
पर्यावरण ख़राब तो सब कुछ ख़राब है
दम घुट रहा लोगों का, बिमारी न पूछिए
शासन का कोई डर नहीं सब बेलगाम हैं
कैसे जला रहे हैं पराली न पूछिए
इतना धुआँ है दूर तलक दिख नहीं रहा
मर जाइए मौसम की ख़राबी न पूछिए
पैसे हो कमाना तो ग़लत काम कीजिये
होती हराम की जो कमाई न पूछिए
4
नहीं चलता हो अपना वश तो मुँह खोला नहीं जाता
उमड़ता हो अगर ज़ज़्बात तो रोका नहीं जाता
कि जिन पेड़ों की छाँवों के तले बचपन गुज़ारा था
उन्हें कटते हुए, गिरते हुए देखा नहीं जाता
हरे पेड़ों को उनको काटने पर दुख नहीं होता
मगर हमसे तो सूखा पेड़ भी काटा नहीं जाता
हरे पेड़ों का कटना जुर्म है, पाबंदियाँ भी हैं
मगर शासन करे वह जुर्म तो माना नहीं जाता
सड़क चौड़ी कराओ शौक़ से, इसके लिए पर क्या
हज़ारों पेड़ काटे जायेंगे सोचा नहीं जाता
उठाता हूँ नज़र जिस ओर वीराना नज़र आता
बयाबां में हसीं मंज़र कोई ढूँढा नहीं जाता
न हो बरसात अच्छी और सावन भी रहे सूखा
यक़ीनन फिर हमारा साल वो अच्छा नहीं जाता
5
ढो रही सारे शहर की गंदगी मैं
जी रही अभिशाप में ऐसी नदी मैं
थे कभी कान्हा यहाँ बंशी बजाते
सबसे दूषित आज वो जमुना नदी मैं
आदमी के पाप से गँदला गयी हूँ
सोन,गंगा, गोमती, गोदावरी मैं
मैं नदी हूँ , जानती भी हूँ हक़ीक़त
पर विवश हूँ झेलने को त्रासदी मैं
इक से इक घड़ियाल हैं पर डर नहीं है
आदमी की जात से घबरा रही मैं
आप तो तालाब, कुआँ खोद लेंगे
इन परिंदों की तो लेकिन ज़िन्दगी मैं
आँसुओं से मेरे आ सकती प्रलय भी
इसलिए रो भी नहीं सकती कभी मैं
6
बचपन में छुट्टी के दिन इस तरह बिताता था
मैं अपने पुरखों के नाम पे पेड़ लगाता था
अपनी बगिया गाँव की सबसे सुंदर बगिया थी
दुपहर में अक्सर मैं वहीं पे खाट बिछाता था
भेड़-बकरियाँ नन्हें पौधों को चर लें न कहीं
उनके चारों तरफ़ कंटीले तार बिछाता था
घर के चारों तरफ़ हमारे क्यारी होती थी
गमलों में भी तरह- तरह के फूल खिलाता था
हमजोली बच्चों की भी इक टोली होती थी
बँसवारी के नीचे मैं चौपाल लगाता था
गौरेया दालान में मेरे अंडे दे जाती
उन अंडों को बिल्ली से हर समय बचाता था
सम्पर्क
मोबाइल : 7985934703
बहुत बहुत धन्यवाद डॉ साहब
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