डॉ० राका प्रियंवदा की रपट
12 अक्टूबर 2014, को नटराज एवं सांस्कृतिक संस्थान, 346 बिहारीपुर कहरवान में संयोजक संजय सक्सेना ने प्रख्यात समालोचक डॉ० रामविलास शर्मा की 102वीं जयन्ती के अवसर पर विचार-गोष्ठी का आयोजन अपने आवास पर किया। इस गोष्ठी की एक रपट पहली बार के लिए हमें भेजा है ने डॉ० राका प्रियंवदा ने। आइए पढ़ते हैं यह रपट।
डॉ रामविलास शर्मा की 102वीं जयन्ती के अवसर पर विचार-गोष्ठी का आयोजन
बरेली, दिनांक 12 अक्टूबर 2014, को नटराज एवं सांस्कृतिक संस्थान, 346 बिहारीपुर कहरवान में संयोजक श्रीयुत संजय सक्सेना ने उपर्युक्त विषय पर विचार गोष्ठी का आयोजन अपने आवास पर किया। खुले आसमान के तले हल्के प्रकाश में। विद्युत के आलोक में।
इस विचार गोष्ठी की अध्यक्षता जाने-माने कथा-समालोचक मधुरेश ने की। अपने सारगर्भित सम्बोधन में मधुरेश जी कहा कि आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के बाद डॉ० रामविलास शर्मा अग्रगण्य समालोचक माने जाते है। वास्तव में उन्होंने आचार्य शुक्ल की आलोचना का विकास करने के लिए हिन्दी साहित्य की समालोचना की। परम्परा का मूल्यांकन किया। वेदों का गम्भीर अध्ययन किया। आधुनिक दृष्टि से। साथ-ही-साथ दर्शनशास्त्र का भी। साहित्य की रचना भाषा में होती है। इसलिए उन्होंने अपने जीवन के बहुमूल्य दस वर्ष भारत के प्राचीन भाषा परिवार और हिन्दी नामक महत्वपूर्ण तीन खण्ड़ी ग्रन्थ लिखने में बिताये। उन्होंने अनेक भाषा वैज्ञानिक पुरातन मान्यतएँ अपने शोध से खण्डित कर दी। भाषा विज्ञान के आधार पर उन्होंने सिद्ध किया आर्य भारत के ही मूल निवासी थे। अनेक भाषाई तत्व से भारत से अन्य देशों में पहुँचे हैं। उन्होने इस मिथक का भी खण्डन किया कि आर्यों ने यहाँ के मूल निवासियों पर आक्रमण किया था। प्रो० मधुरेश ने आगे कहा कि रामविलास जी अपने परिवार और साहित्य दोनो के पुरखों का बहुत आदर करते थे। इसीलिए उन्होंने आलोचना से आदि कवि बाल्मीकि, कालिदास, भवभूति, तुलसीदास, भारतेन्दु हरिशचन्द, प्रेमचन्द, महाकवि निराला, महाकवि प्रसाद, महादेवी वर्मा, वृन्दावन लाल वर्मा, आचार्य किशोरीदास वाजपेयी का सम्यक मूल्यांकन किया। प्रो० मधुरेश ने बताया कि डॉ० शर्मा उपन्यासकारों में पे्रमचन्द को, आलोचकों में आचार्य रामचन्द शुक्ल को और कवियों में महाप्राण निराला को महान् सृष्टा मानते थे। निराला जी से तो बडे आत्मीय सम्बन्ध थे। निराला जी भी डा० शर्मा के बहुत बडे प्रशंसक थे। पी-एच० डी० की उपाधि मिलने से पहले ही निराला जी रामविलास शर्मा को डॉ० कह कर सम्बोधित किया करते थे। उस समय साहित्य जगत् में निराला जी का घनघोर विरोध हो रहा था। विशेष रूप से उनके मुक्त छन्द का। इसीलिए डॉ० शर्मा ने अपने कवि का मूल्यांकन करने के लिए निराला की साहित्य साधना नामक तीन खण्ड़ी ग्रन्थ तल्लीनता से लिखा और सिद्ध किया कि तुलसीदास के बाद हिन्दी के कोई दूसरे महाकवि है तो निराला। प्रो० मधुरेश ने यह भी बताया कि डॉ० शर्मा अन्य मार्क्सवादी आलोचकों से भिन्न थे। क्योंकि उन्होने प्राचीन भारतीय साहित्य को रूढि़वादी समझ कर उपेक्षित समझा। इसके विपरीत डॉ० शर्मा ने कहा कि हमारे देश की परंपरा में जो प्रगतिशील बाते हैं हमे उनकी खोज करनी चाहिए। डॉ० शर्मा के अपने आग्रह थे। आप उन्हें दुरआग्रह भी कह सकते हैं। उन्होने रामचरितमानस में नारियों और शूद्रों की निन्दा की है। तुलसीदास में अनेक अन्तविरोध है। लेकिन डा० शर्मा उन्हें प्रक्षिप्त मानते है। डॉ० शर्मा ने आजीवन सामतीमूल्यों पूँजीवादों समाजों और साम्राज्यवादी दुष्ट नीतियों का पुरजोर विरोध किया। और किसानों और मजदूरों की एकता के लिए हिन्दी जाति की अवधारणा के लिए आजीवन संघर्ष किया।
इससे पूर्व श्रीमती चारू मिश्रा द्वारा सरस्वती वंदना प्रस्तुत की गई। मुख्य अतिथि प्रो० मधुरेश द्वारा द्वीप प्रज्वलित किया गया। और माँ सरस्वती और डॉ० शर्मा के प्रति मालाओं से श्रद्धा व्यक्त की गई। डॉ० राका प्रियंबद्धा ने डा० शर्मा के कर्मठ जीवन का परिचय प्रस्तुत करते हुए, उन्हें प्राप्त अनेक सम्मानों एवं पुरस्कारों तथा उनके विपुल लेखन का विस्तार से परिचय प्रस्तुत किया गया। डा० विपिन सिन्हा ने डा० शर्मा की लोकधर्मी कविताओं पर अपना आलेख पढ़ा। रमेश गौतम ने डा० शर्मा की हिन्दी नवजागरण विषयक अवधारणा का महत्व समझाया। अंग्रेजी के प्रोफेसर डॉ० टी०ए० खान ने, कीटस् के काव्य पर किए गए डॉ० शर्मा के शोध कार्य की चर्चा पर अपना पर्चा अंग्रेजी में पढ़ा। हिन्दी और अग्रेजी की विदुषी प्राचार्य डॉ० सरोज मार्कण्डेय ने (रिटायर्ड) डॉ० शर्मा के बारे में आत्मीय संस्मरण सुनाकर उनकी उदारता की प्रशंसा की।
विचार गोष्ठी के संचालक डॉ० अमीर चन्द वैश्य ने कहा कि डॉ० शर्मा ने भक्तिकालीन कवियों को वर्गीय दृष्टि से देखा परखा है। यह माना कि डॉ० शर्मा ने कुछ पंक्तियों में नारियों की निन्दा की है। और शूद्रों की भी। लेकिन उन्होंने दुराचारी ब्राह्मणों को भी क्षमा नहीं किया है। उत्तर काण्ड में लिखा है कि विप्र निरक्षर होते हैं। लोलुप होत हैं कामी होते हैं दुष्ट होते हैं और दूसरों की औरतों को घर में डाल लेते है। धर्म का धन्धा भी करते हैं। वास्तविकता यह है कि मानस में प्रत्येक मांगलिक अवसर पर नारियों की सुंदरता का और उनके स्वभाव का प्रभावपूर्ण वर्णन किया है। धनुष भंग होने के बाद तुलसी लिखते है - “सखिन मध्य सिय सोहैं कैसे/छवि-गन मध्य महाछवि जैसे।” और इसके बाद डॉ० वैश्य ने जयपुर से कवि विजेन्द्र द्वारा प्रेषित रामविलास शर्मा विषयक आलेख का वाचन किया। विजेन्द्र ने अपने आलेख में यह बात रेखांकित किया है कि डॉ० शर्मा ने हिन्दी और अग्रेजी के कवियों की आलोचना करते हुए लोकधर्मी प्रतिमानों पर अपना ध्यान केन्द्रित किया है। वे चाहते थे कि हिन्दी कविता में किसानों के चित्र आने चाहिए। मजदूरों का जीवन आना चाहिए प्रकृति का सम्पूर्ण परिवेश चित्र रूप में प्रत्यक्ष होना चाहिए। उन्होंने इस बात पर खेद व्यक्त किया कि डॉ० नामवर सिंह ने कविता के नए प्रतिमान में केदारनाथ अग्रवाल-नागार्जुन-त्रिलोचन जैसे लोकधर्मी कवियों की उपेक्षा करके आलोचना का स्तर गिराया। डॉ० शर्मा ने नामवर सिंह को नई कविता का वकील इसीलिए कहा है। वास्तविकता यह है कि कविता के नए प्रतिमान में अमरीकी नई समीक्षा के सिद्धान्तों की भरमार है, जिनसे हिन्दी की लोकधर्मी कविता कोई सम्बन्ध नहीं है।
इतिहासविद् रंजीत पाचले ने डॉ० शर्मा के इतिहास बोध का समर्थन करते हुए कहा कि उन्होंने जिस आर्य आक्रमण का खण्ड़न किया है वह विगत वर्षों में किए गए प्रामाणिक शोध से सत्य प्रमाणित हुआ है। आर्य भारत के ही निवासी थे। यह सत्य डी एन ए टेस्ट द्वारा सिद्ध किया जा चुका है। वास्तविकता यह है कि जिन आर्यो को गौर वर्ण का माना गया उनमें राम और कृष्ण भी शामिल है। लेकिन दोनो ही शामिल है। वास्तविकता यह है कि हमारी जन्मभूमि यही थी, कहीं से हम आए थे नहीं।
और अन्त में धन्यवाद ज्ञापित किया गया रिटायर्ड प्रो० एन एल शर्मा द्वारा उन्होंने रामविलास शर्मा के एक-एक वर्ण की व्याख्या की। रा का मतलब है जनवादी राजनीति जो पूँजीवाद का विरोध करती है। म का अर्थ है देश भाषा और साहित्य एवं संस्कृति के प्रति ममता। वि का मतलब विलक्षण प्रतिभा जो डॉ० शर्मा में थी। ला का मतलब है लावण्य अर्थात् भाषा में भावों एवं विचारों का लावण्य जो डॉ० शर्मा के काव्य और समालोचना साहित्य में लक्षित होता है। स का अर्थ है सर्वसमावेशी प्रतिभा यह भी डॉ० शर्मा की प्रमुख विशेषता है।
प्रस्तुति
डॉ० राका प्रियंवदा
नटराज सामाजिक एवं सांस्कृतिक संस्थान,
346 कहरवान, बिहारीपुर
बरेली
मो०- 09259577276
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