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रमाकांत नीलकंठ का समीक्षात्मक आलेख 'अल्पमत स्वर का लोक की दृष्टि से बहुमत विस्तार'

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  नेपोलियन बोनापार्ट ने एक बार कहा था यदि रूसो नहीं हुआ होता तो फ्रांसीसी क्रान्ति नहीं हुई होती। नेपोलियन के इस वक्तव्य से हम रचना की अहमियत को समझ सकते हैं। टॉमस पेन की किताब 'कॉमन सेंस' ने कुछ इसी तरह की भूमिका अमरीकी क्रान्ति के सन्दर्भ में निभाई थी। आमतौर पर कविता से लोग तमाम तरह की अपेक्षाएं पाल लेते हैं। वैसे सच तो यही है कि कोई भी रचना सीधे तौर पर क्रान्ति का कारक नहीं बनती, बल्कि वह क्रान्ति यानी कि बदलाव का रास्ता तैयार करती है। कवि राहुल राजेश का मानना है कि "क्रांति का सीधा और सबसे सटीक अर्थ है बदलाव। और यह बदलाव कविता से नहीं बल्कि आपसे आएगी। आपकी कविता से नहीं वरन् आपके आचरण से, आपके चरित्र से, आपके जीवन से आएगी। …और सबसे सच्चे अर्थों में यही क्रांति है। और अधिक सही कहें तो यह क्रांति नहीं, अन्त:क्रांति है।" रमाकांत नीलकंठ का मानना है कि राहुल राजेश अन्त:क्रांति के वादी हैं। कथित रक्त क्रांति के नहीं। वह गांधी के करीब हैं, मार्क्स के नहीं। यद्यपि वह हैं अपनी तरह के। राहुल राजेश का हाल ही में तीसरा कविता संग्रह 'मुस्कान क्षण भर' प्रकाशित हुआ है। इ...

अरुण देव के कविता संग्रह पर यतीश कुमार की समीक्षा

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  मृत्यु को जीवन का अन्त माना जाता है। हमारे आध्यात्मिक और दार्शनिक परम्परा में इसे नए जीवन का आरम्भ भी माना जाता है। इसी क्रम में आत्मा को अमर बताया गया है। बहरहाल आज भी यह गूढ़ सवाल है कि मृत्यु के बाद होता क्या है। वैसे यह सच है कि जीवन के साथ मृत्यु अटूट रूप से जुड़ी हुई है। मृत्यु जीवन का अंतिम सौन्दर्य है। जहां मृत्यु  नहीं, दरअसल वह जीवन ही नहीं। यानी मृत्यु  के बिना जीवन संभव ही नहीं। मृत्यु के थपेड़ों से लगातार जूझते हुए जीवन अपनी रौ में चलता ही रहता है। जीवन की खासियत यह है कि हरेक जीवधारी अपने ही समान संतानोत्पत्ति कर जीवन की मशाल अपनी अगली पीढ़ी को थमा देता है। इस तरह मृत्यु का सामना करता हुआ जीवन अमरता के मिथक को सच कर दिखाता है। अरुण देव ने मृत्यु जैसे जटिल मुद्दे पर दार्शनिक अंदाज में विचार करते हुए महत्त्वपूर्ण कविताएं लिखी हैं जो 'मृत्यु कविताएं' संकलन में संकलित की गई हैं। इस संकलन की समीक्षा की है कवि यतीश कुमार ने। तो आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं अरुण देव के कविता संग्रह पर यतीश कुमार की समीक्षा 'स्याह मृत्यु का अहसास'। स्याह मृत्यु का एहसास यतीश ...

गौरव पाण्डेय की कविताएं

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  गौरव पाण्डेय  पुलिस का नाम आते ही सामान्य तौर पर मन मस्तिष्क में एक सिहरन सी होती है। यह सिहरन भय पैदा करती है। बच्चों को डराने के लिए लोग कहते हैं चुप रहो नहीं तो पुलिस पकड़ ले जायेगी। लोग बाग यह भी कहते हैं पुलिस किसी की नहीं होती। पुलिस किसी को नहीं छोड़ती। हालांकि पुलिस कानून व्यवस्था को बनाए रखने के लिए और लोगों को निर्भीक निडर बनाने के लिए नियुक्त की जाती है लेकिन आमतौर पर ऐसा दिखाई नहीं पड़ता। पुलिस किसी भी समस्या को अपनी तरह से सुलझाने का प्रयास करती है। आम जनता के लिए जो पुलिस भय का बायस होती है, नेताओं और अधिकारियों के सामने बेवश, निरीह और लाचार नजर आती है। कवि गौरव पाण्डेय ने पुलिस को केन्द्र बना कर कुछ महत्त्वपूर्ण कविताएं लिखी हैं जिसमें से कुछ के शीर्षक तो वही हैं जो आम जनता के बीच प्रचलित हैं। कुछ अलग तरह की इन कविताओं में गौरव पुलिस को एक सामान्य जनता की नजर से देखते हैं और उसे अपनी कविताओं में दर्ज करते हैं। आइए आज पहली बार हम पढ़ते हैं गौरव पाण्डेय की कविताएं। गौरव पाण्डेय की कविताएं पुलिस रक्षा करती है  पुलिस रक्षा करती है विधायक जी की सांसद जी की, मा...

सुरेश कुमार का आलेख 'उन्नीसवीं सदी का उत्तरार्द्ध और स्त्री पाठ्यक्रम की निर्मितियां'

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  सुरेश कुमार  पाठ्यक्रम का निर्माण अपने आप में बड़ा चुनौतीपूर्ण कार्य होता है। यह पाठ्यक्रम पीढ़ियों को बनाने का काम करता है और इसकी अनुगूंज जिन्दगी भर बनी रहती है। उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध में भारत अंग्रेजों की गुलामी से तो जूझ ही रहा था खुद भारतीय हिन्दू समाज अपने अन्दर की कई तरह की कुरीतियों से जूझ रहा था। ऐसे में स्त्रियों को शिक्षित करने के लिए पाठ्यक्रम तैयार करना काफी मुश्किलों भरा था। आज जैसे गूगल बाबा या फिर इंटरनेट पर सर्च करने की सुविधा नहीं थी। फिर भी इस दिशा में कई उल्लेखनीय कार्य हुए। इस कार्य पर एक खोजपरक नजर डाली है सुरेश कुमार ने। अपने अध्ययन में सुरेश यह पाते हैं कि इन पाठ्यक्रमों के द्वारा  स्त्रियों को नियंत्रित करने का प्रयास किया गया। ऐसी परिस्थिति में हिन्दी भाषी क्षेत्र में स्त्री पाठ्यक्रम निर्मितियों की यह कवायद स्त्रियों के बौद्धिक विकास के बजाय पितृसत्तावादी मूल्यों को मजबूत करती दिखायी देती है।   सुरेश कुमार स्वतंत्र शोध अध्येता हैं। इन दिनों नवजागरण कालीन साहित्य पर स्वतंत्र शोध कार्य कर रहें है। इनके लेख हंस, तद्भव, पाखी, कथाक...