संतोष पटेल का आलेख 'ज़ुबिन गर्ग : संगीत के सम्राट और मानवता के दूत'

 

श्रद्धांजलि लेख

'ज़ुबिन गर्ग : संगीत के सम्राट और मानवता के दूत' 


संतोष पटेल



संगीत की धरती पर एक अनमोल नाम


18 नवंबर 1972 को असम के जोरहाट ज़िले में जन्मे ज़ुबिन गर्ग केवल एक गायक नहीं, बल्कि संगीत और संवेदना के अद्भुत संगम थे। उनके पिता इली गर्ग असमिया संगीत जगत के सम्मानित कलाकार थे, जबकि माँ इती गर्ग ने बचपन से ही उनमें रचनात्मकता, संवेदना और करुणा का संस्कार डाला।


ज़ुबिन दा ने 1990 के दशक में अपने संगीत जीवन की शुरुआत की और जल्द ही असमिया, हिन्दी, बंगला, नेपाली सहित कई भाषाओं में अपनी आवाज़ का जादू बिखेरा। फ़िल्म गैंगस्टर का प्रसिद्ध गीत “या अली” उन्हें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने वाला साबित हुआ। लेकिन ज़ुबिन गर्ग का जीवन केवल संगीत तक सीमित नहीं था — वे समाज के लिए समर्पित, जनभावनाओं से जुड़े हुए एक मानव प्रेमी कलाकार थे।



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जनता के दिल में बसने वाला कलाकार


ज़ुबिन गर्ग का जीवन दर्शन सरल था — “कला का उद्देश्य केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि समाज में प्रकाश फैलाना है।”

उन्होंने अपने गीतों, कार्यक्रमों और सामाजिक अभियानों के माध्यम से शांति, प्रेम, समानता और सद्भावना का संदेश दिया।


असम और उत्तर-पूर्व भारत में जब भी प्राकृतिक आपदाएँ आईं, ज़ुबिन दा सबसे पहले मदद के लिए आगे बढ़े। उन्होंने अपने फाउंडेशन के माध्यम से जरूरतमंदों को सहायता प्रदान की, युवाओं को नशे से दूर रहने की प्रेरणा दी, और हमेशा सामाजिक एकता की बात की।

उनकी लोकप्रियता केवल मंच तक नहीं, बल्कि हर दिल तक पहुँची — क्योंकि वे संगीत में करुणा और सेवा की भावना को जीवंत रखते थे।



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संगीत रुका नहीं, स्वर अमर हुआ


19 सितंबर 2025 — यह दिन असम ही नहीं, पूरे भारत के लिए शोक का दिन बन गया।

सिंगापुर में आयोजित North East India Festival में भाग लेने गए ज़ुबिन गर्ग का आकस्मिक निधन हो गया।

बताया गया कि वे समुद्र तट पर तैरते समय अचानक अस्वस्थ हो गए। उन्हें तुरंत Singapore General Hospital ले जाया गया, जहाँ डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।

मृत्यु प्रमाण पत्र में कारण “डूबना (Drowning)” बताया गया।


यह खबर सुनते ही पूरे देश में शोक की लहर दौड़ गई। असम की धरती से लेकर दिल्ली, मुंबई और कोलकाता तक हर जगह ज़ुबिन दा के गीतों की गूंज श्रद्धांजलि बन गई।

उनकी अंतिम यात्रा में उमड़े जनसागर ने यह सिद्ध कर दिया कि ज़ुबिन गर्ग केवल एक कलाकार नहीं, बल्कि मानवता के प्रतीक थे।



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उनकी विरासत – प्रेम, करुणा और स्वर की लौ


ज़ुबिन गर्ग का जीवन और संगीत हमें यह सिखाता है कि सच्ची कला वही है जो समाज के दुःख को महसूस करे और इंसानियत का दीप जलाए।

उनकी आवाज़ अब भी हर दिल में गूंजती है —

या अली में... यदि भक्ति है तो 

“मायाबीनी” के गीत में करुणा है,

और हर धुन में मानवता की लौ जलती है।


वे हमें यह याद दिलाते हैं कि कलाकार की मृत्यु नहीं होती — उसका संगीत, उसका संदेश और उसकी संवेदना युगों तक जीवित रहती है।


🌹 श्रद्धांजलि 🌹


ज़ुबिन दा आज भले ही हमारे बीच नहीं हैं,

पर उनका स्वर, उनकी मुस्कान और उनका मानवीय संदेश

हमेशा जीवित रहेगा।

वे केवल असम के नहीं, बल्कि पूरे भारत और विश्व के थे।

उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि संगीत जब सेवा से जुड़ता है, तो वह पूजा बन जालता है।


ज़ुबिन दा अमर रहें।

उनका संगीत सदा जन-जन में जीवित रहेगा।

“ज़ुबिन : एक जीवित दर्शन”


भाग 1 : मनुष्य के रूप में ज़ुबिन


वह कोई गायक भर नहीं,

वह ध्वनि में मनुष्यता की प्रतिध्वनि है।

वह सुर में नहीं, संवेदना में गाता है —

कि मनुष्य अपने भीतर लौटे,

अपनी जड़ों, अपनी मिट्टी, अपने घर की ओर।


वह कहता है —

“दिल में बात मत रखो,

क्योंकि सच्चाई को दबाना पाप है।”

वह कहता है —

“अविश्वास मत पालो,

क्योंकि विश्वास ही वह एकमात्र ऋतु है

जहाँ फूल खिलते हैं।”


वह चलता है अपने मन की राह पर,

बिना किसी के विचार को थोपे,

बिना किसी को अपने पीछे घसीटे।

वह हवा की तरह चलता है —

छूता है, बदलता नहीं।



भाग 2 : प्रेम का तत्वज्ञान


ज़ुबिन कहता है —

“प्रकृति से प्रेम करो।”

और उसके स्वर में बहती हैं नदियाँ,

उसकी आँखों में चमकते हैं सितारे।


वह जानता है —

कि धरती बिना प्रेम के बंजर हो जाती है,

और भाषा बिना करुणा के मर जाती है।


वह माँ को प्रणाम करता है —

माँ जो जीवन है,

मातृभाषा जो आत्मा है,

मातृभूमि जो स्मृति है।


वह जानता है —

संस्कृति कोई प्रदर्शन नहीं,

वह जीवन की सादगी है 

गाँव की मिट्टी में लिपटा गीत,

किसी अजनबी की मुस्कान,

किसी बूढ़ी औरत की कहानी।


भाग 3 : करुणा का समाजशास्त्र


वह कहता है 

“जरूरतमंद का साथ दो,

मदद करो।”

और यह वाक्य नहीं,

एक सांस्कृतिक पुनर्जागरण है।


वह चाहता है कि

हर मनुष्य खुद को दूसरों के बीच महसूस करे —

अलग नहीं, एक हिस्सा बनकर।

वह कहता है —

“लोगों का काम करो,

लोगों के बीच रहो।”


वह अंधविश्वास से दूर है,

वह जाति-पात के नाम पर बनी दीवारें तोड़ देता है,

वह फर्जी गुरुओं की माला नहीं पहनता।

वह नम्रता से कहता है —

“कोई भगवान नहीं,

मनुष्य ही मनुष्य का सहारा है।”


वह स्त्री का सम्मान करता है,

क्योंकि उसके भीतर स्त्री की आँखों का जल बसता है।

वह बालक की मासूमियत को

धरती का भविष्य मानता है।



भाग 4 : जीवन का सौंदर्य और संघर्ष


वह छोटी-छोटी चीज़ों में सौंदर्य खोजता है 

एक पत्ता, एक बूंद, एक ध्वनि,

एक मुस्कान में दुनिया देख लेता है।


वह धर्म का भेद नहीं करता,

वह मनुष्यता को ही एकमात्र धर्म मानता है।

वह कहता है —

“जो बोलो, करो।”

क्योंकि शब्द और कर्म के बीच

झूठ की दीवार सबसे ऊँची होती है।


वह अपने लिए नहीं जीता —

वह गाता है सबके लिए।

वह कहता है —

“लाइफ ही असली शिक्षा है।”

पुस्तकें तो केवल पथ बताती हैं,

चलना तुम्हें खुद होता है।


वह कहता है —

“किसी के पीछे मत भागो,

दूसरों को आज़ाद रखो।”

क्योंकि प्रेम का दूसरा नाम स्वतंत्रता है।



भाग 5 : ज़ुबिन — एक युग का प्रतीक


वह रियल हीरो है —

जो मंच पर नहीं, भीड़ के बीच चमकता है।

वह बगावती है —

क्योंकि वह झूठी परंपराओं से नहीं डरता।

वह पॉलिटिकल फाइटर है —

क्योंकि वह सत्ता से नहीं,

अन्याय से लड़ता है।


वह सोशल लेफ्टिस्ट है —

क्योंकि उसके दिल के केंद्र में मनुष्य है।

वह संत है —

क्योंकि उसके भीतर कोई अभिमान नहीं,

सिर्फ समर्पण है।


वह एक फेनोमेना है —

सदी में एक बार घटित होने वाला संगीत,

जो विचार में बदल जाता है,

और विचार जो जीवन में उतर जाता है।


ज़ुबिन गर्ग —

तुम आवाज़ नहीं,

एक आत्मा हो।

तुम गीत नहीं,

एक आंदोलन हो।

तुमने गाया —

और लाखों दिलों में

मानवता ने जन्म लिया।


जहाँ भी सत्य की आवाज़ उठेगी,

वहाँ ज़ुबिन की गूँज होगी।

जहाँ भी प्रेम और प्रतिरोध साथ खड़े होंगे,

वहाँ उसका स्वर सुना जाएगा।

वह समाप्त नहीं हुआ —

वह समय के भीतर गूँजता रहेगा —

“कुछ अलग करो,

मानव बनो।”

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