मनोज कुमार पांडेय की कहानी 'गाली रोड'

 

मनोज कुमार पाण्डेय 


हमारे आस-पास जीवन की विविधताएं इतनी अधिक होती हैं कि वे खुद में एक कहानी का रुपाकार ले लेती हैं। कहानी के पात्र हमारे इर्द गिर्द ही खड़े नजर आने लगते हैं और सारा घटना क्रम एक वास्तविक दृश्य की तरह हमारी नज़रों के सामने से गुजरने लगता है। मनोज पाण्डेय उस जमीन से जुड़े कथाकार हैं जिसकी जड़ें लोक में गहरे तक फैली हुई हैं। 'गाली रोड' इसी तरह की कहानी है जिसे पढ़ते हुए अपना परिवेश याद आता है। कहानी में स्वाभाविक तौर पर कई पात्र हैं। इन पात्रों एक लड़की है जो आधारहीन प्रेम प्रसंग को अपने सपनों के हकीकत में जीते हुए ही मुम्बई की अभिनेत्री बनने का ख्वाब संजोने लगती है। एक पत्र 'भंडाफोड़ टाइम्स' है, जो स्टिंग ऑपरेशन के हवाले से ऐसी चटपटी खबरें प्रकाशित करता है तो उसकी टी आर पी बढ़ा सके। एक बाबा है जिसकी गालियां लोगों के लिए आशीर्वाद जैसी हैं और इस आशीर्वाद को पाने के लिए समाज के कद्दावर लोग सक्रिय हैं। मनोज कहानी में लिखते हैं 'पूरा परिहासपुर बाबा की गालियों का ही तो दास है। हर कोई बाबा से गाली खाना चाहता है, इसलिए असली बात हैं गालियाँ। हो सकता है कि बाबा कल को न रहें पर उनकी गालियाँ तब भी रह सकती हैं। हम उन्हें रिकार्ड कर के रख सकते हैं। उनकी ध्वनि और नाद सुन सकते है।' हास्य विनोद के पुट में लिखी गई इस कहानी को एक बार पढ़ना शुरू कीजिए तो अन्त तक पढ़ना ही पड़ता है। इस तरह कहानी में वह रस बना रहता है जो उसे रोचक बनाए रखता है। किसी भी कहानी की यह ताकत होती है। इस कहानी को पढ़ते हुए श्रीलाल शुक्ल के कालजई उपन्यास राग दरबारी की याद आती है। 'वनमाली कथा' का नवम्बर-दिसम्बर 2025 अंक एक दस्तावेजी अंक है जिसमें अपने समय के तमाम चर्चित कथाकारों की कहानियां एक साथ प्रकाशित हुई हैं। मनोज पाण्डेय की कहानी 'गाली रोड' इस अंक में छपी है। आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं मनोज कुमार पांडेय की कहानी 'गाली रोड'।



'गाली रोड'


मनोज कुमार पांडेय


परिहासपुर नाम का एक कस्बा है। यह एक पतली सी सड़क के दोनों तरफ बसा हुआ है। इस सड़क का नाम चर्चित समाजसेवी और भूतपूर्व विधायक बच्चू लाल सिंह उर्फ ‘मोटर भैया’ के नाम पर रखा गया था। इसकी वजह यह थी कि मोटर भैया की कोशिशों से ही यह सड़क बन पाई थी। कस्बे की स्मृतियों में यह बात भी दर्ज है कि इस सड़क का उद्घाटन मोटर भैया ने मोटरकार चला कर किया था तो इससे हुआ यह कि सड़क का नाम तो रखा गया था ‘बच्चू लाल सिंह रोड’ पर कस्बे के लोगों ने इसे हमेशा मोटर भैया रोड के नाम से ही जाना। बाद में भैया भी हट गया और इस तरह से यह रोड बनी - 'मोटर रोड'।


कस्बे के लोगों को इस नाम से कोई दिक्कत नहीं थी पर मुश्किल यह आई कि मोटर भैया का मी टू हो गया। कस्बे के अखबार 'भंडाफोड़ टाइम्स' ने एक स्टिंग आपरेशन सार्वजनिक कर के बताया कि अखबार के लिए कुछ कागज वगैरह की व्यवस्था करवाने के लिए मोटर भैया ने भंडाफोड़ टाइम्स के सम्पादक जगत नरायन पांडेय उर्फ ‘आजाद केसरी’ से चुम्मे की माँग की। अब किसी लड़की से चुम्मा माँगा गया होता तब तो कस्बा बर्दाश्त कर लेता पर एक अधेड़ हो रहे अविवाहित लड़के से चुम्मा माँगने पर पूरे कस्बे को अपने लड़कों की इज्जत खतरे में नजर आई। कस्बे के लोगों ने मोटर भैया के कस्बे में घुसने पर पाबन्दी लगा दी और ऐलान किया कि ऐसे चुम्माचारी व्यक्ति के नाम पर सड़क का नाम नहीं हो सकता। 


इस तरह से सड़क के नाम बदलने की बात आई।  


असली समस्या इसके बाद आई। समस्या यह आई कि सड़क के जितने भी वैकल्पिक नाम आए सबको किसी न किसी ने उड़ा दिया और कस्बे की परम्परा के मुताबिक सड़क का कोई नया नाम तभी रखा जा सकता था जब कम से कम तीन चौथाई लोग उस नए नाम पर सहमत हों। तो ऐसे में ऐलान किया गया कि कस्बे के सभी जीवित लोगों में से किसी एक के नाम पर इस सड़क का नाम रखा जाएगा। वे सभी लोग अपना नाम पर्ची पर लिख कर एक बक्से में डालें जो चाहते हैं कि उनके नाम पर सड़क का नाम रखा जाय। लोग गुप्त रूप से दूसरों का नाम भी प्रस्तावित कर सकते हैं। सभी नामों में से ऐसे दस नाम छाँटे जाएँगे जिनके नाम की ज्यादा पर्चियाँ मिलेंगी। फिर इन दस नामों के बीच चुनाव कराया जाएगा। और बात सभी दावेदार गाँठ बाँध लें कि वे मीटू से बच कर रहें। अगली बार अगर मीटू हुआ तो सड़क का नया नाम रखने का पूरा खर्च आरोपी व्यक्ति से वसूला जाएगा।


पर्चियों में जो दस नाम टॉप पर रहे, वे हैं - शकुन्तला देवी (बेटी - मेवाराव हलवाई, उम्र - इक्कीस साल), इलाके के वर्तमान विधायक रामपाल यादव, मुन्ना (पुत्र - रामलोचन तिवारी, उम्र - बाईस साल), जमुना देवी (मुन्ना की माँ), पत्रकार जगत नरायन पांडेय उर्फ ‘आजाद केसरी’, बाबा गालीदास, मेवाराव हलवाई (शकुन्तला देवी के पिता और परिहासपुर की इकलौती टॉकीज के मालिक), कवि रामप्यारे गुप्ता उर्फ ‘बागी अरमान’, कस्बे के इंटर कॉलेज के प्रिंसिपल पी. एल. सिंह तथा रामलोचन तिवारी (कस्बे के पुरोहित, मुन्ना के बापू तथा जमुना देवी के पति)। तय पाया गया कि एक महीने बाद चुनाव होगा तब तक ये दसों लोग अपनी उम्मीदवारी साबित करें कि सड़क का नाम उनके नाम पर भला क्यों रखा जाय। 


यह भी तय किया गया कि जब तक सड़क का नया नाम नहीं चुन लिया जाता तब तक यह सड़क  बिना नाम के ही जानी जाएगी यानी कि ‘बेनाम रोड’।


अब वक्त आ गया है कि हम इन दसों लोगों से परिचित हो लें तथा इनके बीच के आपसी सम्बन्धों तथा तनावों पर भी नजर रखें। इन दस लोगों में से कुल पाँच लोग ऐसे हैं जो मात्र दो परिवारों से आते हैं। मुन्ना, जमुना देवी और रामलोचन तिवारी एक परिवार से तथा शकुन्तला देवी और मेवालाल हलवाई दूसरे परिवार से। देखा जाए तो ये दस के दस चरित्र किसी न किसी जुनून के हवाले हैं। उनके इस जुनून ने परिहासपुर की जड़ता को ध्वस्त कर दिया है। यहाँ हर रोज कुछ न कुछ रोचक और मनोरंजक घटता रहता है और इस तरह से परिहासपुर में गॉसिप और परिहास का माहौल बना रहता है।

 

मुन्ना मिमिक्री मास्टर हैं तो पुरोहित जी पर आधुनिक जीवन शैली एक जुनून की तरह से छाई हुई है। उनकी पत्नी जमुना को हँसने-रोने और मुकेश के दुख भरे गीतों का जुनून है। दूसरी तरफ हलवाई मेवाराम का सपना है कि उनकी दुकान कस्बे की ही नहीं बल्कि देश की जानी-पहचानी दुकान बने। वह नए-नए स्वाद की मिठाइयाँ बनाने का प्रयोग करते रहते हैं। उनकी बेटी शकुन्तला मॉडल बनना चाहती हैं और इस रास्ते सीरियलों और फिल्मों में जाना चाहती हैं। पत्रकार महोदय ऐसा अखबार निकालना चाहते हैं जिसकी गूँज परिहासपुर के बाहर भी सुनने को मिले। नेता राजपाल यादव मंत्री बनना चाहते हैं तो कवि ‘बागी अरमान’ अपनी पत्रिका निकालना चाहते हैं जिसमें देश भर के कवि छपने के लिए लालायित रहें। उनका सपना अपना एक प्रकाशन हाउस खोलने का भी है जिससे तीस लाख सालाना से कम रायल्टी किसी भी लेखक को न जाए। वे कविता के लिए नोबेल पुरस्कार भी पाना चाहते हैं।


प्रिंसिपल पी. एल. सिंह उर्फ पिद्दी लाल सिंह इतनी बढ़िया अँग्रेजी सीखना चाहते हैं कि अपने कॉलेज की अँग्रेजी अध्यापिका को अपनी अंग्रेजी से प्रभावित कर सकें, जिस पर कि वह आशिक हैं। उन्होंने उन जगहों पर छुपे हुए कैमरे लगा रखे हैं जहाँ-जहाँ अंग्रेजी टीचर का उठना बैठना होता है। वे दिन भर अपने कंप्यूटर पर बैठ कर अंग्रेजी टीचर को निहारा करते हैं। उनका चपरासी हरीराम उनका राजदार है। वह सब खबरें ला कर उन्हें देता है और बदले में सुविधाएँ लेता है। 


बाबा गालीदास शान्ति से अपना पागलपन जीना चाहते हैं। परिहासपुर के ज्यादातर परिहासी लोग मानते हैं कि बाबा की गालियाँ वरदान की तरह फलित होती हैं। यह अलग बात है कि इस चक्कर में बाबा बेचारे हमेशा प्लास्टर और पट्टियों में नजर आते हैं। वे अकेले हैं जिन्हें इस बात का कोई होश ही नहीं हैं कि सड़क का नाम उनके नाम पर रखे जाने का क्या मतलब है। उनके लिए सड़क का एक ही मतलब है कि उस पर चलते हुए उन पर पत्थर और कूड़ा बरसता है जिसके जवाब में बाबा गालीदास के मुँह सबसे अश्लील और घिनौनी गालियाँ निकलती हैं। 


जल्दी ही एक सुबह हम देखते हैं कि परिहासपुर की दीवालों पर चिपके हुए भंडाफोड़ टाइम्स में खबर छपी है कि मुन्ना और शकुन्तला का चक्कर चल रहा है। इस खबर का परिहासपुर पर गहरा असर है। मुन्ना खबर की मिमिक्री कर रहे हैं। शकुन्तला रोमांचित हैं कि उनका नाम छपा है अखबार में। खबर झूठी है तो क्या हुआ! आज परिहासपुर में उनकी तसवीर और नाम छपा है कल पूरे देश में छपेगा। कल को वे हीरोइन और मॉडल बनेंगी तो इस तरह की न जाने कितनी खबरें उनके आगे-पीछे घूमेंगी। 


मुन्ना के पिता रामलोचन तिवारी उर्फ पुरोहित जी मुन्ना को ढूँढ़ रहे हैं कि जी भर के कूट सकें। मुन्ना की माँ रो रही हैं और मुकेश के गाने सुन रही हैं। कवि ‘बागी अरमान’ आहें भरते हुए वियोग की कविताएँ लिख रहे हैं तो दूसरी तरफ शकुन्तला के तमाम आशिक अपने को लुटा-पिटा महसूस कर रहे हैं और पत्रकार महोदय को ढूँढ़ रहे हैं कि हाथ-पैर तोड़ कर उन्हें भी खबर बना सकें। शकुन्तला के पिता मेवाराम हलवाई ने अपने प्रगतिशील होने की घोषणा करते हुए कह दिया है कि वे बच्चों की पसन्द के साथ हैं। इस बात से हत्प्रभ प्रिंसिपल और विधायक लोगों को उकसा रहे हैं कि इससे तो पूरी सामाजिक व्यवस्था ही डगमगा जाएगी।


अपनी बात पर अमल करने के क्रम में मेवाराम हलवाई मुन्ना के पिता रामलोचन तिवारी को बुलाते हैं और समधी के रूप में स्वागत करते हैं। मुन्ना के पिता भड़क जाते हैं और कहते हैं कि यह सम्बन्ध कभी नहीं हो सकता। तब पुरोहित और जजमान वाले सम्बन्ध के नाते मेवाराम पुरोहित रामलोचन से कहते हैं कि वे उनके लिए चुपचाप ऐसा अनुष्ठान करें जिससे सड़क उनके नाम पर हो जाए। रामलोचन तिवारी जब इस बात पर भी भड़कते हैं तब मेवालाल उन्हें उनके प्रोफेशनल एथिक्स की याद दिलाते हैं और कहते हैं कि यह काम तो उन्हें करना ही पड़ेगा। रामलोचन तिवारी मेवाराम की पुरोहिताई से इस्तीफा दे कर पैर पटकते हुए चले जाते हैं। पीछे से मेवाराम चिल्लाते हैं कि यह पीढ़ियों से चला आया सम्बन्ध है इसलिए बिना किसी सोच-विचार के आपका इस्तीफा नामंजूर किया जाता है।


इसके बाद मेवाराम पत्रकार आजाद केसरी को बुलाते हैं और पूछते हैं कि मुन्ना और शकुन्तला की खबर उन्हें कैसे और कहाँ से मिली? आजाद केसरी ने जवाब में कहा कि एक पत्रकार अपनी खबर  के स्रोतों को कभी नहीं बता सकता, यह न सिर्फ उसका हक है बल्कि उसकी प्रोफेशनल एथिक्स के भी खिलाफ है। इससे स्रोत का जीवन खतरे में पड़ सकता है और आप तो उसे मिठाई खिला-खिला कर भी मार सकते हैं। तब मेवालाल भंडाफोड़ टाइम्स के लिए अपनी मिठाई की दुकान का एक बड़ा विज्ञापन देने की बात करते हैं। इसके लिए उनकी शर्त है कि पत्रकार को पुरोहित के बारे में कुछ ऐसी बात पता लगानी है जिसे पुरोहित ने अब तक छुपा कर रखा हो। शर्त यह है कि जब तक मेवाराम न चाहें यह खबर भंडाफोड़ में छापनी नहीं है। पत्रकार आजाद केसरी इस बात से बहुत खुश होते हैं और सोचते हैं कि अब समय आ गया है कि वे अपनी जासूसी कम्पनी भी शुरू कर दें।


दूसरी तरफ इस खबर के चुलबुले नायक मुन्ना जानना चाहते हैं कि यह झूठी खबर आखिर छापी ही क्यों गई है? वे रात में ‘छोटा शहंशाह’ नाम के भूत का रूप धर के पत्रकार को डराते हैं तो पता चलता है कि यह खबर उसने विधायक के कहने पर छापी थी। इसके लिए विधायक ने उसे लाख रुपये का विज्ञापन दिया था। विधायक का उद्देश्य यह था कि वह दस दावेदारों में से पाँच मजबूत दावेदारों को एक साथ कमजोर कर सके। इसीलिए विधायक ने सभा बुला कर पहले ही एलान कर दिया था कि सड़क का नाम चाहे जिसके नाम पर रखा जाए पर वह उसे टाइगर श्राफ के गाल सा चिकना बनवा कर ही दम लेगा। चाहे इसके लिए उसे सरकार गिराने की धमकी ही क्यों न देनी पड़े।


अगले दिन कॉलेज में शकुन्तला मुन्ना को देखती हैं तो लम्बाई में थोड़ा छोटे लगने के बावजूद मुन्ना उन्हें क्यूट लगते हैं। अपनी खास इमेजिनेशन पावर से वह तुरन्त देख लेती हैं कि मुन्ना उनकी बगल में लड़की के भेष में बैठ कर फिल्म देख रहे हैं। अगले दिन वह परिहासपुर के मरकहे साँड़ की पीठ पर खड़े  हो कर शकुन्तला की छत पर ‘लव लेटर’ फेंक रहे हैं। अपनी कल्पना में साँड़ की पीठ पर खड़े हो कर चिट्ठी फेंकते मुन्ना उन्हें अपने लिए एकदम परफेक्ट लगे। शकुन्तला मुन्ना की मिमिक्री वाले हुनर और लोकप्रियता से भली-भाँति परिचित हैं और खुद भी बम्बई जाने और छा जाने का अरमान रखती हैं इसलिए यह स्वाभाविक ही है कि वे मुन्ना के बारे में सोचें कि क्या पता मुन्ना भी कल को राघव की तरह लाखों का दिल किल करें। 


शकुन्तला तय करती हैं कि वे मुन्ना को रोज एक प्रेमपत्र लिखेंगी पर उन्होंने तय किया है कि वे मुन्ना को बताएँगी नहीं कि वे कौन हैं। यह बात मुन्ना को खुद ही पता लगानी है। दिखावे के लिए वे मुन्ना से झगड़ा भी प्लान करती हैं कि अपना मुँह देखा है जो चले हो मुझसे इश्क लड़ाने। विशेष रूप से वह अपने मुन्ना से लम्बी और खूबसूरत होने की बात भी करने वाली हैं। बदले में मुन्ना उनको सच्ची बात बताने की बजाय उनकी मिमिक्री करेंगे। शकुन्तला क्रोधित होंगी पर भीतर ही भीतर यह सब उन्हें गजब का फिल्मी मामला लगेगा।


पत्रकार आजाद केसरी का पार्टटाइम काम भंडाफोड़ है पर उनका मुख्य काम फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी है। परिहासपुर में ऐसा कोई कार्यक्रम नहीं होता जिसमें वह अपने कैमरे के साथ हाजिर न रहते हों। इसलिए परिहासपुर का ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं है जिसकी तसवीर उनके कैमरे में कैद न हो। परिहासपुर में लोग तसवीरें खिंचाने की बजाय उनसे बोल भर देते हैं और वे तसवीरें बना देते हैं। वे गुप्त रूप से एक और काम करते हैं। ये लड़कियों की तसवीरें उनके आशिकों को बेचते भी हैं और कोई कायदे से पैसा लगाने को तैयार हो तो मनचाही लड़की के साथ फोटोशॉप वाली तसवीर भी बना देते हैं। बाकी पत्रकार हैं ही सो किसी भी कार्यक्रम में जाएँ हमेशा इनकी नजर किसी स्कूप पर ही होती है। इनकी नाक इतनी तेज है कि जहाँ स्कूप नहीं होता वहाँ भी यह बहुत ही खतरनाक टाइप के स्कूप सूँघ लेते हैं।

शकुन्तला हर हफ्ते अपनी सहेलियों के साथ फिल्म देखने जाती हैं। जिस शो में वे जाती हैं उस दिन टाकीज के मालिक और उनके पिता मेवाराम हलवाई बालकनी को बुक घोषित कर देते हैं। फिल्म देखते हुए शकुन्तला को परदे पर उनके अखबारी प्रेमी मुन्ना दिखाई देते हैं और वह मुन्ना के साथ पूरा एक गीत गाती हैं। उधर मेवालाल हलवाई एलान करते हैं कि वह हफ्ते में एक शो मुफ्त में दिखाया करेंगे। यह शो परिहासपुर के लोगों के लिए आरक्षित होगा और दर्शकों को इंटरवल में लड्डू भी खिलाया जाएगा।


इस ऐलान के तुरन्त बाद पत्रकार ‘आजाद केसरी’ मेवाराम को पुरोहित रामलोचन की कुछ ऐसी तसवीरें ला कर देता है जिसमें पुरोहित जी हाफ पैंट और बिना बाँह की टी शर्ट में दिखाई दे रहे हैं। वे किसी रेस्तराँ में बैठे हैं और सींक कबाब खा रहे हैं। एक प्लेट बिरयानी भी सामने रखी हुई है। एक तसवीर में वे पेड़ के ऊपर चढ़ कर अपने कपड़े बदल रहे हैं। एक और तसवीर में वे हैट लगाए हुए हैं और सिगरेट पी रहे हैं। मेवाराम इतना खुश होते हैं कि पत्रकार को गले ही लगा लेते हैं और बोलते हैं कि अब से साल भर तक चाहे जितनी भी मिठाई समोसे भकोसो, सब फ्री। पत्रकार घबरा कर पूछता है, और विज्ञापन? मेवाराम विज्ञापन की रकम ला कर देते हैं और कहते हैं कि विज्ञापन अपनी जगह है और ईनाम अपनी जगह पर यह तसवीरें तुम्हें किसी भी कीमत पर छापनी नहीं हैं न ही किसी को दिखानी हैं। खुद पुरोहित को भी नहीं। मेवाराम की दुकान पर करीब पन्द्रह सोलह साल के दो बच्चे काम करते हैं जो हर बात को अलग अलग भाव-भंगिमाओं में रिपीट करते चलते हैं। वे एक दूसरे से कहते हैं कि ‘यह तसवीरें उन्हें किसी भी कीमत पर छापनी नहीं हैं न ही किसी को दिखानी हैं। खुद पुरोहित को भी नहीं' और अपने काम में लग जाते हैं।


मेवाराम हलवाई पुरोहित के यहाँ पहुँचते हैं। वहाँ तसवीरें दिखा कर वह पुरोहित को बाध्य करते हैं कि पुरोहित उनकी सफलता के लिए एक अनुष्ठान करें। वे सिनेमाहाल में इंटरवल में जो लड्डू वगैरह बाँटेंगे, पुरोहित को उन्हें भी अभिमंत्रित करना है जिससे कि जो भी लड्डू खाए, मेवाराम हलवाई के गुण गाए। पुरोहित की पत्नी जमुना तसवीरों के बारे में सुन भर पाती हैं पर सच्ची बात नहीं जान पातीं। उन्हें लगता है कि पुरोहित का सम्बन्ध किसी और स्त्री से है। वे मुकेश के दर्द भरे नगमों को और तेज कर देती हैं। देर रात सचाई जानने के लिए वह मेवाराम के घर पहुँचती हैं। वहाँ उन्हें छुप के जाते हुए पत्रकार देख लेता है और फोटो खींच लेता है। 


अगले दिन भंडाफोड़ टाइम्स में जमुना की तसवीर छपती है जिसमें वह छुप कर हलवाई की दुकान में दाखिल हो रही हैं। परिहासपुर में तरह-तरह की बातें शुरू हो जाती हैं पर जमुना की जान उसी तसवीर शब्द में अटकी हुई है। एक दिन पहले मेवाराम से उन्हें कुछ भी नहीं पता चल पाया था। उन्हें लगता है कि तसवीरों की बात इतनी गुप्त रखी जा रही है तो वह जरूर बहुत गन्दी तसवीरें होंगी। अब उन्हें रामलोचन के व्यवहार में खटकने वाली ऐसी बहुत सारी बातें याद आती हैं जिनके चलते उन्हें पहले ही शक होना चाहिए था। आज उन्हें मुकेश और ज्यादा अपने लगे और उनके गाए हुए न जाने कितने दर्दभरे नगमें उनके भीतर से एक साथ गुजर गए। 


उन्होंने तय किया कि परिहासपुर की अपनी साथी औरतों के साथ गन्दी तसवीरों के खिलाफ आन्दोलन खड़ा करेंगी। भले ही इससे रामलोचन तिवारी ही नंगें हों पर यह न्याय की लड़ाई है और परिहासपुर की बहू-बेटियों के हित की बात है। जमुना ने तय किया कि यह आन्दोलन मेवाराम हलवाई की दुकान के सामने किया जाएगा। उन्होंने विधायक, प्रिंसिपल, पत्रकार और कवि से इस बात के लिए समर्थन माँगा। तीनों न सिर्फ तैयार हो गए बल्कि कवि बागी अरमान ने आन्दोलन के लिए नारा और गीत तैयार करने का भी वचन दिया।


मुन्ना को जब पता चला कि उनके पूज्य पिता जी के खिलाफ उनकी उतनी ही पूज्य माता जी आन्दोलन करने जा रही हैं तो वे विचलित हो गए। उन्हें यह भी पता चला कि कुछ तसवीरें हैं जिनके तार उनके उनके पिता जी से जुड़े हुए हैं। तस्वीरों की बात आते ही वे जान गए कि इस फसाद के पीछे आजाद केसरी के सिवा और कोई हो ही नहीं सकता। छोटा शहंशाह रूप में सचाई जानने के बाद उन्हें अपने बाप पर प्यार आता है और वे पत्रकार से उन तसवीरों की रील झटक लेते हैं। मुन्ना यह भी तय करते हैं कि जब तक सड़क का नामकरण नहीं कर लिया जाता तब तक वे रोज अँधेरी रातों में छोटा शहंशाह बन कर निकलेंगे। उधर पत्रकार भी लगा हुआ है। वह किसी भी कीमत पर छोटा शहंशाह की तसवीर लेना चाहता है और जानना चाहता है कि परिहासपुर में यह अचानक कहाँ से आ टपका। 


उधर शकुन्तला को किसी अनजान व्यक्ति के पत्र मिलने शुरू होते हैं कि किस तरह से वह मुन्ना से बेहतर है। शकुन्तला भले नहीं जानतीं पर हम जानते हैं कि ये सज्जन नोबेल पुरस्कार के तमन्नाई महाकवि ‘बागी अरमान’ हैं। आजकल ये एक तरफ परिहासपुर पर एक महाकाव्य लिख रहे हैं दूसरी तरफ शकुन्तला के प्रेम में डूबे हुए हैं। ये आजकल कविजनोचित कन्फ्यूजन के शिकार हो कर, तुक मिलाते हुए बोल-बोल कर कभी विरह की कविताएँ लिखते हैं कभी मिलन की। तमन्ना यह है कि जल्दी से जल्दी प्रेम कविताओं की यह किताब पूरी हो जाए जिसे ये शकुन्तला को समर्पित कर के उनके सामने अपनी पहचान उजागर कर सकें।





शकुन्तला को इस खेल में मजा आ रहा है पर उन्होंने अपने आप को परिहासपुर के अब तक के पहले फैशन कम्पटीशन पर एकाग्र कर रखा है जो उनके पिता की टॉकीज यानी कि शाकुन्तलम टॉकीज में सम्पन्न होगा। प्रतिभागियों से एक सवाल शाकुन्तलम टॉकीज के बारे में अनिवार्य रूप से पूछा जाना है। मसलन शाकुन्तलम टॉकीज का ‘शाकुन्तलम’ कहाँ से लिया गया है? शाकुन्तलम टॉकीज में सबसे ज्यादा समय तक चलने वाली फिल्म कौन सी है? कौन सी फिल्म तीसरे दिन ही उतार देनी पड़ी थी? शाकुन्तलम टॉकीज का फेवरेट हीरो कौन है, आदि-आदि। इस फैशन कम्पटीशन का विज्ञापन जाहिर है कि भंडाफोड़ टाइम्स में ही छपेगा। इसमें सिर्फ परिहासपुर के निवासी ही शामिल हो पाएँगे। मुन्ना इसमें शामिल होंगे और मिमिक्री का तड़का भी लगाएँगे। इसमें जज के रूप में प्रिंसिपल, जमुना देवी और मेवाराम हलवाई - जिसे स्वाद की सही पहचान हो वह सब कुछ जज कर सकता है - होंगे। पुरस्कार वितरण विधायक जी के कर-कमलों से होगा।


फैशन कम्पटीशन की तैयारी के दौरान ही मुन्ना को पता चलता है कि उन्हें रोज एक खत लिखने वाली लड़की शकुन्तला ही हैं। अब मुन्ना भी इस खेल में अलग तरह से रस लेते हुए खेलना शुरू करते हैं। वे तय करते हैं कि फैशन शो में वे ऐसे दुष्यन्त बनेंगे जिसकी अँगूठी खो गई है और इस वजह से उनकी शकुन्तला उन्हें पहचान नहीं पा रही हैं। कवि बागी अरमान को जब यह बात पता चलती है तो वे क्रोधित हो  जाते हैं। वे भंडाफोड़ टाइम्स में इस बात की प्रेस रिलीज दे कर आते हैं कि कैसे महाकवि कालिदास की रचनाओं को तोड़ा और मरोड़ा जा रहा है। उन्होंने चेतावनी दी कि वे यह बर्दाश्त नहीं करेंगे और इस अपसंस्कृति के खिलाफ चौराहे पर धरना देंगे और जरूरत पड़ी तो भूख-हड़ताल भी करेंगे।


इधर इस तरह की धमकियों से बेअसर मुन्ना और शकुन्तला करीब आ रहे हैं। उनका रोमांस बढ़ रहा है और रोमांस का विरोध भी। खुद मुन्ना के पिता पुरोहित जी विरोध में उतर आए हैं पर मुन्ना को उनके विरोध का ज्यादा डर नहीं है। उनके पास तुरुप का इक्का यानी पुरोहित जी की तसवीरें हैं। इधर मुन्ना की माँ यानी जमुना देवी भी मुन्ना के साथ हो गई हैं। वे बिना नाम लिए पुरोहित जी पर ताने कसती रहती हैं कि छुप-छुप के गुलछर्रे उड़ाने की तुलना में खुलेआम डंके की चोट पर इश्क करने में बहादुरी है। यह नहीं कि आपके कारनामों की तसवीरें सब तरफ घूम रही हों और आप पाक-साफ भी बने रहें। 


विधायक रामपाल, प्रिंसिपल के साथ मिल कर अपने लोगों के माध्यम से इस बात की हवा बनाता है कि मुन्ना और शकुन्तला को रेस से बाहर कर दें क्योंकि वे जाति के बाहर जा कर प्रेम कर रहे हैं और कस्बे के सामने गलत मिसाल प्रस्तुत कर रहे हैं। मेवाराम हलवाई और मुन्ना की माँ जमुना देवी को भी इस रेस से बाहर करने का प्रस्ताव किया जाता है क्योंकि वे इस प्रेम के समर्थन में हैं। स्थितियाँ कुछ ऐसी बनती हैं कि ये प्रस्ताव रखने के लिए पुरोहित रामलोचन तिवारी को आगे किया जाता है। प्रस्ताव पर निर्णय बाद में होगा पर मुन्ना के घर में बँटवारा हो गया है। जमुना देवी और मुन्ना एक तरफ हैं तो पंडित रामलोचन तिवारी दूसरी तरफ।  


इसी के साथ विधायक सड़क को चौड़ी कराने तथा सीमेंटेड बनाने का प्रस्ताव ले कर आता है। सड़क चौड़ी होगी तो कई घर और दुकानें टूटेंगी। विधायक का कहना है कि इससे विकास होगा। बड़ी गाड़ियाँ भी आ जा सकेंगी। लोग इस डर के मारे विरोध भी नहीं कर पा रहे हैं कि उन्हें परिहासपुर के विकास का विरोधी मान लिया जाएगा। तब मुन्ना अपनी माँ के साथ मिल कर पर्यावरण के नुकसान को केन्द्र में रख कर विरोध का खाका तैयार करते हैं कि सड़क चौड़ी हुई तो बहुत सारे पेड़ कटेंगे। प्रदूषण बढ़ेगा। दूसरे सीमेंटेड सड़क में बहुत सारा पानी खर्च होगा। परिहासपुर में पानी की समस्या होगी। इसलिए चौड़ी सीमेंटेड सड़क विकास नहीं विनाश है। इस आन्दोलन की नेता भी मुन्ना की माँ जमुना देवी हैं। ये आन्दोलन रो-रो कर किया जाएगा। जैसे कुछ लोग हँस-हँस के तनाव भगाते हैं वैसे ही जमुना देवी औरतों को रुला-रुला के स्वस्थ करती हैं। रोती हुई औरतें अपना दुख कहती हैं और रोती हैं। गुस्सा करती हैं और रोती हैं और तनावमुक्त हो कर हँसते हुए जाती हैं। ये आन्दोलन भी इसी राह चलेगा।


मुन्ना को लगता है कि अगर उन्हें भी अपने विपक्षियों के बारे में कुछ पता चल पाए तो सब ठीक हो सकता है। इसके लिए वह अपनी मिमिक्री कला और छोटा शहंशाह के बहुरूप का इस्तेमाल करते हैं। जैसे कि वे अंग्रेजी टीचर की आवाज में प्रिंसिपल को फोन करते हैं और मिलने का माहौल बनाते हैं। मिलने का एक ड्रेस कोड भी होगा। वह प्रिंसिपल को घाघरा चोली में बुलाते हैं, बहाना यह कि कोई देखे भी तो टीचर के लिए बेइज्जती की बात न हो। उधर प्रिंसिपल की आवाज में अंग्रेजी टीचर को भी ऐसे ही फोन जाता है। प्रिंसिपल और अंग्रेजी टीचर का मिलन होता है जिसमें अंग्रेजी टीचर प्रिंसिपल को प्रेम से मारती हैं पर प्रिंसिपल उफ तक नहीं करते। मुन्ना वीडियो बनाते हैं और चले आते हैं। उधर प्रिंसिपल का उफ तक न करना अंग्रेजी टीचर को अच्छा लगता है और दो दिल मिलने की तरफ बढ़ते हैं। और तब उन्हें यह भी खयाल आता है कि अगर उन्होंने एक दूसरे को नहीं बुलाया तो आखिर बुलाया किसने?   


इसी तरह पत्रकार के लिए तो छोटा शहंशाह ही काफी है। इधर पत्रकार की नीयत में भी खोट आ गया है। भले ही अब उसके पास रामलोचन उर्फ पुरोहित जी की तसवीरें और रील नहीं बची है पर उन बातों की सच्ची जानकारी तो है ही। वह सोचता है कि पुरोहित को ब्लैकमेल किया जा सकता है। वह पुरोहित से उनकी कमाई में आधा हिस्सा माँगता है। इधर जमुना देवी भी बाउंड्री पार दिन भर गन्दी तसवीरों का ताना मारती रहती हैं। उधर मेवाराम हलवाई के यहाँ उन्हें उन्हीं तसवीरों की वजह से रोज जा कर अनुष्ठान वगैरह करना पड़ रहा है। कुल मिला कर रामलोचन तिवारी जी के सितारे आजकल गर्दिश में चल रहे हैं जबकि उनके भीतर की बात यह है कि कई दिनों से उनके भीतर कबाब और बिरयानी खाने की इच्छा जोर मार रही है पर डर के मारे वे कहीं जा नहीं पा रहे हैं। और तो और एक दिन बाप-बेटे के सैद्धान्तिक झगड़े में मुन्ना भी तसवीरों की बात करते हैं तो पुरोहित जी का दिल ही टूट जाता है। 


इसलिए जब रोड के नामकरण के सन्दर्भ में मुन्ना आदि के नाम वापस लेने के लिए सभा बुलाई जाती है तो इसी सभा में पुरोहित जी खुद ही अपने सारे भेद खोलते हैं और अपना नाम वापस लेते हैं। वे कहते हैं कि उन्हें भी तो खुलेआम अपनी पसन्द का काम करने, कपड़े पहनने और पसन्द के भोजन की आजादी मिलनी चाहिए। अब उनसे यह नाटक न हो पाएगा। प्रिंसिपल को मौका मिलता है और वह माइक पर रामलोचन तिवारी को सदाचार का ज्ञान देना शुरू करते हैं। जब वे पूरे जोर-शोर से परिहासपुर के लोगों को भाषण पिला रहे होते हैं तो पीछे परदे पर उनका स्टिंग वीडियो चलता है जिसमें वह अंग्रेजी टीचर से मार खा रहे हैं। पूरा परिहासपुर एक साथ हँसता है और प्रिंसिपल साहब वापस आ कर अपनी कुर्सी पर मुँह लटका कर बैठ जाते हैं। तभी अंग्रेजी टीचर सामने आती हैं और कहती हैं कि ‘प्यार किया कोई चोरी नहीं की’ इसलिए चुप चुप आहें भरने और डरने की कोई जरूरत नहीं हैं। वे उनके साथ  हैं। बस प्रिंसिपल साहब बीच-बीच में मुफ्त की बढ़त लेने के लिए जो सदाचार का भाषण बाँटना शुरू कर देते हैं वह बन्द कर दें तो वे बहुत प्यारे आदमी हैं। 


अंग्रेजी मास्टर बोल ही रही होती हैं कि पीछे एक दूसरा वीडियो चलना शुरू होता है जिसमें मुन्ना प्रिंसिपल का स्टिंग वीडियो बनाते दिख रहे हैं। प्रिंसिपल मुन्ना पर अपनी निजता के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए उन्हें नामकरण प्रतियोगिता से बाहर करने की माँग करते हैं। जाहिर है कि अनेक लोग इस बात का समर्थन करते हैं। पर एक दूसरी राय यह भी निकलती है कि प्रिंसिपल के पाखंड को उजागर कर मुन्ना ने कोई इतना भी ज्यादा गलत काम नहीं किया है कि उन्हें इस प्रक्रिया से ही बाहर कर दिया जाए। अगर लोग उन्हें नापसन्द करते हैं तो उनका नाम वैसे भी नहीं चुना जाएगा। पर प्रिंसिपल साहब अपनी निजता के परिहास का विषय बन जाने से दिल से आहत हैं इसलिए वे थाने जा कर मुन्ना के खिलाफ एफ आई आर करते हैं।  





आखिरकार मुन्ना गिरफ्तार होते हैं। शकुन्तला फैशन प्रतियोगिता स्थगित कर देती हैं और एलान करती हैं कि जब तक मुन्ना थाने से वापस नहीं आएँगे तब तक अन्न का एक दाना भी अपने मुँह में नहीं डालेंगी। उधर मुन्ना की माँ जमुना ने भी एलान किया है कि वे अपनी जान खा-खा कर देंगी। चौराहे पर जमुना देवी का अनशन शुरू होता है। बीच-बीच में मुकेश के दर्द भरे नगमें बज रहे हैं। जमुना के साथ में और भी बहुत सारी औरतें, पुरुष और बच्चे हैं। जमुना रोती जाती हैं और खाती जाती हैं। साथ के लोग इस दर्द को गाते जाते हैं।


प्रिंसिपल के कॉलेज में छात्र-छात्राएँ भी हड़ताल पर हैं कि मुन्ना को रिहा किया जाए और प्रिंसिपल को बर्खास्त किया जाए। इस पूरे प्रकरण में विधायक रामपाल खुश हैं कि प्रिंसिपल के रूप में एक और प्रतिद्वन्द्वी कमजोर हो रहा है पर वह मुन्ना की लोकप्रियता से डरा भी हुआ है। उसकी पूरी कोशिश है कि मुन्ना जेल से छूटने न पाएँ तथा उन पर कुछ और भी केस बना दिए जाएँ। उसने दरोगा को फोन किया है कि इस दिशा में और भी संभावनाएँ तलाशी जाएँ।


कवि बागी अरमान का महाकाव्य पूरा हो गया है, जिसकी नायिका शकुन्तला हैं और नायक वे खुद हैं। वे अपने महाकाव्य की पांडुलिपि ले कर शकुन्तला से मिलने जाते हैं कि वे ओठों से छू कर के उनका गीत अमर कर दें। उधर शकुन्तला ने ठान तो लिया है कि जब तक मुन्ना नहीं छूटेंगे तब तक अन्न का एक दाना तक नहीं खाएँगी पर अब उन्हें भूख भी लग रही है। सो वे कविताएँ पढ़ते हुए कहती हैं कि ये तो बहुत टेस्टी कविताएँ हैं। कवि जी इन कविताओं का हलवा बनवा कर लाएँ तो इन्हें खा कर वह अपना अनशन तोड़ सकती हैं और तब भरे हुए पेट के साथ कवि जी के बारे में भी गौर से सोच सकती हैं।


कवि बागी अरमान का दिल ही टूट जाता है। वे दिल के दर्द के मारे बेहोश होते हैं। शकुन्तला थाने पहुँचती हैं कि उन्होंने कवि का दिल तोड़ दिया है इसलिए उन्हें भी गिरफ्तार किया जाए। उधर मेवाराम अपनी बेटी का यह कारनामा सुनते ही बाबा गालीदास की शरण में पहुँचते हैं। वे बाबा को ढेला मारते हैं पर बाबा आज बन्दरावतार में हैं। वे बन्दरों की तरह खिखिया कर उन्हें खदेड़ लेते हैं पर गाली एक भी नहीं देते। मेवाराम भी भागते-भागते थाने पहुँचते हैं और उनके पीछे बाबा गालीदास भी। बाबा गालीदास वहाँ टँगी हुई किसी की वर्दी पहन लेते हैं और एकदम पुलिस वाला बर्ताव करने लगते हैं जैसे कि उन्हें कुछ हुआ ही नहीं है। पुलिस वाले भी बाबा गालीदास को बड़ा वाला बाबा मानते हैं इसलिए वे उनके आदेश का पालन करते हैं। 


थानेदार बाबा गालीदास आदेश देते हैं कि परिहासपुर के युवा हृदय सम्राट मुन्ना को तत्काल बाइज्जत बरी किया जाय। एक पुलिस वाला बाबा के कान में कहता है कि बाबा सर हम मुन्ना को छोड़ तो सकते हैं पर बाइज्जत बरी करने का काम तो जज और अदालत का है। बाबा गालीदास पुलिस वाले को गाली देते हुए कहते हैं कि मैं जहाँ बैठ जाता हूँ वही जगह परिहासपुर की सुप्रीम कोर्ट होती है। मैं कह रहा हूँ कि मुन्ना को बाइज्जत बरी किया जाय तो मुन्ना को बाइज्जत बरी किया जाय। नहीं तो हम तुम सब पर अटेम्प्ट ऑफ कोर्ट का मुकदमा चलाएँगे। 


इसके बाद मुन्ना तत्काल बरी कर दिए जाते हैं। मेवालाल शकुन्तला के साथ उनका आशीर्वाद लेने जाते हैं तो गालीदास उन्हें गाली देते हुए कहते हैं कि एक दिन हमको भी पिक्चर देखनी है रसगुल्ला खाते हुए। मेवालाल इस बात पर गद्गद हो जाते हैं तब गालीदास उन्हें लात मारते हुए कहते हैं कि तब जाओ व्यवस्था करके बताओ हमको, यहाँ क्यों तेल लगा रहे हो। जल्दी भागो नहीं तो तुमको बाइज्जत अंदर करवा दूँगा। पुलिस वालों पकड़ो इस मिठाई वाले पिक्चर वाले को।


मुन्ना के छूटने की खबर जमुना को लगती है। मुन्ना के लिए किया जा रहा खाने और रोने वाला अनशन समाप्त किया जाता है पर अब तक जमुना देवी बहुत ज्यादा खा चुकी हैं इसलिए उनकी तबीयत खराब हो गई है। रोते-रोते आँसू भी सूख चुके हैं। इसलिए उन्हें अस्पताल ले जाना पड़ता है। बगल में कवि बागी अरमान भी भर्ती होते हैं। आगे से वे सिर्फ दर्द के शायर होंगे। उधर जब जमुना देवी को डाक्टर खतरे से बाहर कर देते हैं तो मुन्ना और शकुन्तला को भी स्पेस मिलता है कि वे एक गाना गा सकें। पत्रकार उनके गाने का वीडियो बनाता है पर गाना खत्म होने के बाद वह देखता है कि गाने का कोई वीडियो बना ही नहीं है। दरअसल मुन्ना और शकुन्तला यह गाना बस खयालों में ही गा रहे थे, असल में नहीं।

वह दिन करीब आ गया है कि सड़क के नामकरण के लिए बैठक बुलाई जाए। इसलिए परिहासपुर में काम बहुत ज्यादा है और समय बहुत कम। अब समय आ गया है कि सारे प्रतिद्वंद्वी अपने अपने लिए लड़ें। दूसरों की कमियाँ जानें। इसी चक्कर में रात में फिर से छोटा शहंशाह निकलता है। उधर पत्रकार भी निकला हुआ है। एक दिन पहले ही वह रामपाल द्वारा बनवाई जा रही सड़क के बारे खबर छाप चुका है कि ‘टाइगर श्राफ के गालों में गहरी दरारें - कौन सी क्रीम मिटाएगी यह दरार... भ्रष्टाचार के खिलाफ भंडाफोड़ टाइम्स की जंग... अब आर या पार।’ आज नेता जी ने उसे बुलाया है और ईमानदारी से बिना डरे अपनी पत्रकारिता करने के एवज में पत्रकार के लिए ईनाम की घोषणा की है। 


ईनाम में रामपाल उसे जूते मारता है। पत्रकार पंखा पकड़ के लटक जाता है कि उसके पास नेता जी के खिलाफ साक्ष्य हैं तो वह कहता है उसके पास भी पत्रकार को देने के लिए लाखों के विज्ञापन हैं। सच्चे पत्रकारों को हमेशा से ऐसे ईनाम मिले हैं। इसलिए पहले ईनाम दिया जा रहा है और तुम्हारे जैसे सच्चे और साहसी पत्रकार की रोजी रोटी और पत्रकारिता चल सके इसलिए बाद में विज्ञापन भी मिलेगा। छोटा शहंशाह इस पूरी घटना का वीडियो बनाता है और जाते वक्त बोलता है कि अब इसका इनसाफ छोटे शहंशाह की अदालत में होगा। 


जब बैठक होती है तो सबके ऊपर कोई न कोई आरोप है। सब अपने पर लगे आरोपों की सफाई देते हैं। बाबा गालीदास पुलिस की वर्दी में हैं और व्यवस्था देख रहे हैं। उनका नाम आता है तो वे गायब पाए जाते हैं क्योंकि उनकी वर्दी पर जो नाम लिखा है वह वही अपना चुके हैं। वे कहते हैं कि गालीदास के गायब होने की रिपोर्ट लिखी जाय। पंडित रामलोचन पहले ही सब कुछ स्वीकार कर चुके हैं। मुन्ना जाति बाहर प्रेम के आरोप को स्वीकार करते हैं और कहते हैं कि अगर परिहासपुर के लोगों को यह प्रेम स्वीकार नहीं है तो वे यह कस्बा छोड़ने के लिए तैयार हैं और अपना नाम वापस ले रहे हैं। शकुन्तला भी अपना नाम वापस लेती हैं और अपना समर्थन मुन्ना को देती हैं। इस तरह से अपना नाम वापस लेने के बावजूद मुन्ना फिर से दौड़ में आ जाते हैं।


रामपाल अपने भाषण में कहते हैं कि सड़क उसके नाम पर होनी चाहिए जो उसे बनवा सके। उसकी देख-रेख कर सके। तब पीछे उनका और पत्रकार का वीडियो चलता है। जनता पत्थर फेंकती है। पत्रकार आजाद केसरी कहते हैं कि उसकी वजह से ही मोटर भैया का मीटू हुआ था इसलिए सड़क अब उन्हीं के नाम पर होनी चाहिए और अब तो जनता ने भी देख लिया है कि अपने काम के लिए मुझे कभी चुम्मा देना पड़ता है तो कभी जूते खाने पड़ते हैं फिर भी वह ये सब करता हूँ तो आखिर किसके लिए... सिर्फ और सिर्फ परिहासपुर के लोगों के लिए। तब रामलोचन चिल्लाते हैं कि और ब्लैकमेलिंग किसके लिए करते हो? पत्रकार को भाषा में दोबारा ईनाम मिलना शुरू होता है।


कवि बागी अरमान को बोलने के लिए बुलाया जाता है तो वे बस एक शब्द बोलते हैं - शकुन्तला। इस तरह शकुन्तला फिर से रेस में आ जाती हैं। जमुना देवी अपने पति का समर्थन करती हैं और अपना नाम वापस लेती हैं। मेवाराम हलवाई कहते हैं कि मैं भी पुरोहित जी का समर्थन करता हूँ अगर वे मुन्ना और शकुन्तला के ब्याह को राजी हों तो। पुरोहित कहते हैं कि वे तो कब के राजी हैं और अब वे पुरोहित भी कहाँ रहे। वे यह काम छोड़ चुके हैं। अब वे परिहासपुर के चौराहे पर बाम्बे हेयर कटिंग सैलून खोलेंगे जो वे बचपन से ही करना चाहते थे। समर्थन और विरोध के स्वर उठते हैं पर पंडित अडिग रहते हैं।


आखिरकार यह राय बनती है कि सड़क उसी के नाम पर हो सकती है जो सच्चा हो और सच्चे हृदय से परिहासपुर का भला चाहता हो। जिसके नाम पर कोई दाग न हो। बल्कि दाग लगने की संभावना भी न हो। ऐसे दो नाम हैं एक बाबा गालीदास और दूसरे जमुना देवी। बाकी सब पर कोई न कोई दाग है। ऐसे में परिहासपुर के लोगों को चाहिए कि वह इन दो ही नामों पर विचार करें। लेकिन जमुना देवी परिवार वाली हैं। उनका झुकाव अपने परिवार की तरफ हो सकता है। ऐसे में बाबा गालीदास ही सबसे बढ़िया विकल्प हैं। जनता तो बाबा की पहले से ही भक्त है। 


कवि बागी अरमान कहते हैं कि उनके नाम पर भी कोई दाग नहीं है। तब पॉवर प्वाइंट के माध्यम से छोटा शहंशाह बताते हैं कि उन पर कौन-कौन से दाग हैं। उधर पत्रकार आजाद केसरी को लग रहा है कि उसने छोटा शहंशाह को कहीं तो देखा है पर कहाँ...?  उधर बाबा गालीदास के पक्ष में सर्वसम्मति बन चुकी है। सब तरफ उनका ही नाम है। उनकी जय-जयकार हो रही है पर वे पुलिस की वर्दी में हैं इसलिए चिल्लाते हैं कि सब लोग व्यवस्था बना कर रखें नहीं तो एक-एक के पिछवाड़े में...। तभी एक कौआ उनकी वर्दी पर बीट करता है और वे अपनी वर्दी उतार कर फेंक देते हैं। वर्दी उतारते ही वह फिर से अपने रूप में आ जाते हैं और बाबाछाप गाली बकते हैं। परिहासपुर के लोग बाबा का जयकारा लगाते हैं और सड़क का नाम रखा जाता है - बाबा गालीदास रोड। 


यहीं पर फिर एक पेंच फँस जाता है। प्रिंसिपल कहते हैं कि पूरा परिहासपुर बाबा गालीदास को किस बात के लिए जानता है? उनकी गालियों के लिए ही न! पूरा परिहासपुर बाबा की गालियों का ही तो दास है। हर कोई बाबा से गाली खाना चाहता है, इसलिए असली बात हैं गालियाँ। हो सकता है कि बाबा कल को न रहें पर उनकी गालियाँ तब भी रह सकती हैं। हम उन्हें रिकार्ड कर के रख सकते हैं। उनकी ध्वनि और नाद सुन सकते है। शकुन्तला जोड़ती हैं कि हम उन गालियों का रिमिक्स भी बना सकते हैं। बाबा गालीदास इस बात पर खुश हो कर पूरे परिहासपुर की स्त्रियों और पुरुषों से पूरी डिटेलिंग के साथ अत्यन्त नजदीकी सम्बन्ध कायम करने की बात करते हैं। 


परिहासपुर के लोग इस बात पर बाबा गालीदास का जयकारा लगाते हैं और सर्वसम्मति से परिहासपुर की मुख्य सड़क का नाम रखा जाता है - गाली रोड।


(‘वनमाली कथा’ के नवम्बर-दिसम्बर 2025 अंक में प्रकाशित) 


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मनोज कुमार पांडेय

7 अक्टूबर 1977 को इलाहाबाद के एक गाँव सिसवाँ में जन्म। लम्बे समय तक लखनऊ और वर्धा में रहने के बाद 2020 से फिर से इलाहाबाद में।

कुल छह किताबें - ‘शहतूत’, `पानी’, `खजाना’, 'बदलता हुआ देश’ और ‘प्रतिरूप’ (कहानी संग्रह), ‘प्यार करता हुआ कोई एक’ (कविता संग्रह) - प्रकाशित। कई किताबों का सम्पादन। देश की अनेक नाट्य संस्थाओं द्वारा कई कहानियों का मंचन। कई कहानियों पर फिल्में भी। अनेक रचनाओं का उर्दू, पंजाबी, नेपाली, मराठी, उड़िया, बांग्ला, गुजराती, मलयालम तथा अंग्रेजी आदि भाषाओं में अनुवाद। कहानी और कविता के अतिरिक्त आलोचना और सम्पादन के क्षेत्र में भी रचनात्मक रूप से सक्रिय।

कहानियों के लिए स्वयं प्रकाश स्मृति सम्मान (2021) वनमाली युवा कथा सम्मान (2019), राम आडवाणी पुरस्कार (2018), रवीन्द्र कालिया स्मृति कथा सम्मान (2017), स्पन्दन कृति सम्मान (2015), भारतीय भाषा परिषद का युवा पुरस्कार (2014), मीरा स्मृति पुरस्कार (2011), विजय वर्मा स्मृति सम्मान (2010), प्रबोध मजुमदार स्मृति सम्मान (2006)। 


(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग्स कवि विजेन्द्र जी की हैं।)



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ई-मेल : chanduksaath@gmail.com

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