के. विक्रम राव का आलेख 'यान जब चांद पर बसेगा, तब इश्को सुखन का क्या होगा?'
मनुष्यता के इतिहास में आज का दिन एक यादगार दिन है। आज के ही दिन 20 जुलाई 1969 को नील आर्मस्ट्रांग ने पहली बार चांद पर कदम रखा था। हमारे लिए ग्रहों उपग्रहों की दुनिया खुल गई। चांद के बारे में जो तमाम बातें शायर कहा करते थे, वह एकबारगी ध्वस्त हो गईं। मनुष्यता के लिए एक नई खिड़की खुली। इस यादगार दिन को शब्दबद्ध किया है प्रख्यात पत्रकार के. विक्रमराव ने। तो आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं के. विक्रम राव का आलेख 'यान जब चांद पर बसेगा, तब इश्को सुखन का क्या होगा?'
'यान जब चांद पर बसेगा, तब इश्को सुखन का क्या होगा?'
के. विक्रम राव
प्रेमी जन हेतु आज का दिन संताप का है, संत्रास वाला भी। मगर वैज्ञानिकों के लिए कीर्तिमान है, यशस्वी भी। आज ही के दिन (20 जुलाई 1969) अंतरिक्ष यात्री नील आर्मस्ट्रांग और बज़ एल्ड्रिन के नेतृत्व में नासा का अपोलो-11 मिशन चंद्रमा पर सफलतापूर्वक उतरा था। इस ऐतिहासिक उपलब्धि को मान्यता देते हुए, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2021 में 20 जुलाई को “अंतर्राष्ट्रीय चंद्रमा दिवस” के रूप में घोषित किया था। अब तो चंद्रयान-2 लैंडर- “विक्रम” भी गत शनिवार को लांच हो गया। इस उपग्रह के प्रति मानव का जिज्ञासा-भाव बदल रहा है। यह अजूबा नहीं रहेगा। अर्थात चौदहवीं का चांद उपमावाला आकर्षण खो जाएगा। मगर मिर्जा असदुल्ला खान “ग़ालिब” की उस मशहूर पंक्ति का क्या होगा जिसमें इस शायर ने भावना व्यक्त की थी कि उन्हें दुनिया वालों की ईद से कोई मतलब नहीं है क्योंकि जब “हमारा चांद दिख जाता, हमारी ईद हो जाती।” आज मिर्जा साहब होते तो इस वैज्ञानिक करतब पर जरूर गम जाहिर करते।
मिर्जा गालिब से जुदा राय थी लेबनानी कवि खलील जिब्रान की। उनका मानना था कि जो इंसान ने हासिल कर लिया वह कुछ नहीं, जो उसकी तमन्ना है उस पर सोचें। अर्थात चांद के आगे गौर किया जाए, क्योंकि उसका काला पक्ष भी है, उजाले भाग के साथ। तनिक सादृश्य रहा जब आशिक रोमियो ने चांद की सौगंध खाई तो प्रेयसी जूलियट से शेक्सपियर ने कहलवाया था :
“चांद तो घटता-बढ़ता रहता है। तुम्हारा प्रेम भी वैसा न हो।”
तो चंद्रयान से हुये युगांतकारी परिवर्तन से अब चांद कैसे जानेगा कि ललचायी नजरों से चकोर उसे निहार रहा है। फिर हमारे शायर आरजू लखनवी किससे कहेंगे : “गोरे गोरे चांद से मुंह पर काली-काली आंखें।” तभी पल्ला सरका तो इस शायर ने देखा “बादल में बिजली है।” लखनऊ वाले ही मियां जावेद अख्तर ने तो कह दिया था चांद से कि “कभी तो जमीं पर आ। बैठेंगे, बात करेंगे। अगर लाज आती है तो घने बादल ओढ़ कर आ।” फिलवक्त अब चंद्रयान (24 अगस्त को चार लाख किलोमीटर का सफर तय कर) बस जाएगा चांद पर। अतः चंद्रयान से बच्चों में सहज उत्सुकता उपजेगी है। मामा का क्या हो गया? लक्ष्मी का भाई चांद कहलाता है। आखिरी यह शाश्वत मामा उपजे कहां से? स्कन्द पुराण के अनुसार क्षीर सागर के मंथन में से चौदह रत्न निकले थे। चंद्रमा उन्हीं में से एक है।
चंद्रयान की ऐतिहासिक घटना से उसके प्रक्षेपण केंद्र श्रीहरीकोटा से करीब सौ किलोमीटर दूर चेन्नई (माइलापोर) में अपने पुराने (1948) स्कूल “चिल्ड्रंस अकादमी” की याद मुझे आ गई। तब बस्ते में पत्रिका तेलुगु की “चंदामामा” शोभा बढ़ाती थी। इसका प्रकाशन बाल पत्रकारिता के क्षेत्र में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण घटना हुई। चंदामामा पढ़कर मैं बड़ा हुआ हूँ। सत्तर साल बीते। लगता है। कल ही का तो किस्सा है। हमलोग मद्रास (चेन्नई) के रायपेटा में रहते थे। पिताजी ‘इंडियन रिपब्लिक’ अंग्रेजी दैनिक के संपादक थे। इस दैनिक के संचालक मंडल में आंध्र केसरी टी. प्रकाशम् (मद्रास राज्य के मुख्यमंत्री), डॉ. पट्टाभि सीतारामय्या (कांग्रेस अध्यक्ष, जिन्हें नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने हराया था) आदि थे। वहाँ चंदामामा के प्रकाशक बी. नागी रेड्डी की आत्मजा जया और नीलम संजीव रेड्डी के पुत्र मेरे सहपाठी थे। स्वतंत्रता-सेनानी (नेशनल हेराल्ड, लखनऊ, के सम्पादक श्री के. रामा राव) का पुत्र होने के नाते मुझे भी उस छात्र समूह में आत्मीयता और तादात्म्य मिलता था।
उस रात (20 जुलाई 1969) भूमंडल डुलाने वाली इतनी बड़ी घटना हुई थी जो न इसके पहले कभी हुई थी, न इसके बाद आज तक हुई है। स्थल था विश्व के बाहर, अंतरिक्ष में। दूर शशिलोक पर आर्मस्ट्रांग ने चांद पर पैर रखा। दुनिया से वह जीते जी परलोक में चला गया था। भले ही उसकी इस हरकत के परिणाम से शायर और कवियों में, प्रेमी युगलों में काफी नीरसता व्यापी थी।
हम पत्रकार साथी अहमदाबाद के आश्रम रोड (दूसरे छोर पर बापू का साबरमती आश्रम है) के ''टाइम्स आफ इंडिया'' कार्यालय में इस युगांतकारी घटना की प्रतीक्षा कर रहे थे। रात के लम्हे बीतते जा रहे थे। हम सब टेलिप्रिंटर के पास ही उत्सुकता से खड़े थे। एक फ्लैश आया। राइटर संवाद समिति का था कि : ''चांद पर नील उतर गये। टहल रहे है।''
अब हम सारे सबएडिटरों और रिपोर्टरों के सामने प्रश्न था कि प्रथम पृष्ठ की इस खबर को कैसे प्रस्तुत जाये? बाकी दैनिकों से होड़ लगी थी। तब टीवी का प्रचलन ज्यादा था नहीं। वर्णनात्मक रपट तो नासा (अमेरिकी अंतरिक्ष केन्द्र) से छन—छन कर आ रही थी। हम सबका तात्कालिक प्रयास रहा कि अहमदाबाद के निवासी वैज्ञानिकद्वय डा. विक्रम साराभाई और डा. पी. राम पिशारोटी (केरल के) की प्रतिक्रिया ले ली जाये। आर्यभट्ट अंतरिक्ष यान के शिल्पी रहे थे डा. साराभाई। डा. पिशारोटी ने रिमोर्ट-सेंसिंग द्वारा मौसम का ज्ञान प्रसारित कर कीर्ति अर्जित की थी। यहां तक तो सिर्फ हम रिपोर्टर का काम था।
आगे का जिम्मा था डेस्क वालों का। प्रश्न था कि इतनी नवेली रोमांचक खबर को सजाया—परोसा कैसे जाये? तय था कि आठ कालम की बैनर हैडिंग होगी। रात्रि पाली के चीफ सब एडिटर (शिफ्ट इंचार्ज) थे सीवी रामानुजम। बड़े योग्य थे। बस खामी यही थी कि मदिराप्रेमी थे। अत: वादा हुआ कि प्रथम पृष्ठ पर छपने के लिये भेजने के बाद रामानुजम को उनका पसंदीदा पदार्थ भेंट दिया जायेगा। हालांकि गुजरात में आज भी मद्यनिषेध है। चूंकि मैं शराब—कबाब से सख्त परहेजी हूं, तो यह कार्य मुझे ही सौंपा गया। तब मेरी एक शर्त थी कि मेरा चमत्कारिक सुझाव माना जाये। इसे रामानुजम ने स्वीकार भी कर लिया। मेरी सलाह थी कि चांद पर आदमी का पहुंचना इहलोक की सर्वाधिक बड़ी खबर है। अत: इसे ''टाइम्स'' के मास्टहेड (मस्तक—लाइन) के ऊपर छापा जाये। शीर्षक रामानुजम ने दिया —''Man on the Moon''. अपने जीवन में इतना आह्लाद हमे कभी भी नहीं हुआ था। हालांकि कई दशकों से कम्पायमान वाकयों की रिपोर्टिंग कर चुका था।
सम्पर्क
K Vikram Rao
Mobile -9415000909
E-mail –k.vikramrao@gmail.com
बहुत सुंदर प्रस्तुति
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