प्रचण्ड प्रवीर की कहानी 'कॉमेन्ट्री'
'कल की बात' श्रृंखला के अन्तर्गत प्रचण्ड प्रवीर ने कई उम्दा कहानियां लिखी हैं। उनकी यह श्रृंखला जारी है। हमारे आज के जीवन और इस जीवन संघर्ष से जुड़े विषय उनकी इन कहानियों के केन्द्र में हैं। इसी क्रम में आज प्रचण्ड प्रवीर की कहानी 'कॉमेन्ट्री' प्रस्तुत की जा रही है। तो आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं प्रचण्ड प्रवीर की कहानी 'कॉमेन्ट्री'।
कल की बात – 247
कॉमेन्ट्री
प्रचण्ड प्रवीर
कल
की बात है। जैसे ही मैंने अपार्टमेंट की लिफ्ट में कदम रखा, लिटिल मरमेड
का फोन आ गया। उसने तेजी में कहा, “आप जल्दी से आइए। अभी तुरंत।“ और झट से
फोन काट दिया। उसके हुक्म की तामील करना हमारा परम कर्त्तव्य है। लिहाजा हम
उसके दरवाजे पर तशरीफ ले आए। दरवाजा अधखुला था और मेरी आहट सुनते ही
बैंग-बैंग झट से बाहर आयी। उसने तपाक से कहा, “मैंने कहा था आना सन्डे को, सन्डे को, मंडे को चले आए क्यूँ?” १ हमने फौरन जवाब दिया, “मिलना जो चाहे दिल तुमसे जी, तुमसे जी, तुमसे तो बोलो क्या करूँ?”
मेरे
अन्दर आते ही बैंग-बैंग ने कॉमेन्ट्री करना शुरू किया, “नन्ही जलपरी की
पुकार सुन कर सागर के उस पार से एक मददगार आ पहुँचा है। वो बार-बार यह कह
रहा है कि मेरी प्यार लिटिल मरमेड, तुम घबराना मत। भले ही आज मूसलाधार
बारिश हो रही है, भले ही स्कूल की बस खराब हो गयी है, भले ही तुम्हारी कोई
सहेली स्कूल नहीं जा रही है, लेकिन मैं... (मेरी तरफ देख कर), मैं तुम्हें
अपने खटारा स्कूटर से ज़रूर स्कूल छोड़ आऊँगा।“
अब मुझे
सारा माजरा समझ आया। लिटिल मरमेड खाने की टेबल पर बैठी नाश्ता कर रही थी।
उसने मेरी तरफ देखा और फिर गुस्से बैंग-बैंग को कहा, “मैं स्कूल ज़रूर
जाऊँगी।“ कह कर वह टोस्ट में मक्खन लगाने लगी। बैंग-बैंग ने अपनी
कॉमेन्ट्री चालू रखी, “नन्ही जलपरी ने अब आधे जल चुके टोस्ट में मक्खन
लगाया है। देखिए अब वह नमक छिड़कने ही वाली है। ऐसा लगता है कि वह जल्दी ही
इसे खा कर रहेगी। उसकी ललचायी आँखों में टोस्ट को देख कर जो वहशत जागी
है..” इतना ही कहना था कि लिटिल मरमेड कुर्सी से उठ कर बैंग-बैंग को मारने
दौड़ी। मैंने उसे झट से पकड़ कर गोद में उठा लिया। उधर दौड़ से हाँफती
बैंग-बैंग सोफे पर चढ़ कर हँस रही थी।
मैंने बैंग-बैंग
से पूछा, “क्या बात है जो तुम कॉमेन्ट्री कर रही हो।“ बैंग-बैंग ने कहा,
“मैंने यह थ्योरी निकाली है कि अगर दुनिया में हर चीजों पर कॉमेन्ट्री की
जाए तब आप उसे न केवल बेहतर समझते हैं बल्कि उस पर राज कर सकते हैं।“ लिटिल
मरमेड ने गुस्से में कहा, “दीदी की पिटाई होनी चाहिए। न खुद स्कूल जा रही
है न मुझे जाने दे रही है।“ बैंग-बैंग ने कहा, “किसने रोका है? स्कूल बस
आएगी नहीं...।“ उसने मेरी तरफ देखा तभी उन दोनों बच्चियों की माँ ने मुझसे
कहा, “यह मान ही नहीं रही। आपका नाम ले कर कह रही थी आप उसकी मदद ज़रूर
करेंगे। इनके पापा कुछ दिनों के लिए बाहर गए हैं। आप ही समझाइए। एक दिन
स्कूल नहीं जाएगी तो कोई पहाड़ नहीं टूटेगा।“
मैंने
कहा, “कोई बात नहीं। इतना भरोसा करती है मुझ पर तो यही सही। मेरे खटारा
स्कूटर से यह स्कूल पहुँच तो सकती ही है।“ तब तक लिटिल मरमेड ने नाश्ता
खत्म कर के अपनी स्कूल बैग कंधे पर लाद कर मुझसे बोली, “लेट हो रहा है।
जल्दी करो।“ मैंने हामी भरी और अपना हैट सिर पर पहना तब तक बैंग-बैंग की
कॉमेन्ट्री चालू हो गयी,”सागर पार से आया मददगार अपने खटारा स्कूटर पर
नन्ही जलपरी को स्कूल ले जाने को तैयार हो गया है। उसने अपनी हैट सम्भाली
है।...” उसकी कॉमेन्ट्री पर हँसता हुआ मैं बाहर चला आया।
जबतक
मैं रेनकोट पहन कर नीचे आया, लिटिल मरमेड भी रेनकोट पहन कर तैयार थी।
बारिश कुछ कम तेज हुयी लेकिन खत्म नहीं हुयी थी। स्कूटर स्टार्ट कर के हम
दोनों बढ़ चले। स्कूल कुछ तीन-चार किलोमीटर दूर था। सोसाइटी से कुछ ही दूर
आगे बढ़ने पर रास्ते में मेट्रो की खुदाई का काम चल रहा था और वहाँ पानी
जमा था। मैंने पीछे बैठी लिटिल मरमेड से तेज आवाज़ में कहा, “पानी बहुत है।
अगर स्कूटर के साइलेंसर में पानी गया, तब गाड़ी बन्द हो जाएगी। वापस लौटना
पड़ सकता है।“
कभी-कभी अंदेशों की कॉमेन्ट्री ठीक नहीं
होती। जैसे ही हमारा स्कूटर पानी में गया, एकदम से घर्र-घर्र की आवाज़
करते हुए बन्द हो गया। मैंने लिटिल मरमेड को बैठ रहने का इशारा किया और
स्कूटर को घसीट कर पानी के पीछे ले आया। लिटिल मरमेड का चेहरा उतर गया।
उसने कहना शुरू किया, “घनघोर बरसात में, लाख मुसीबतों का सामना करने वाली
बहादुर लड़की को ले जाने वाला स्कूटर पानी में फँस कर खराब हो गया। पर इससे
बहादुर लड़की का हौसला कम नहीं हुआ है। वह देख रही है कि सामने उसकी मदद
के लिए उसकी स्कूल की टीचर मिताली मैडम उसकी तरफ बढती चली आ रही है। मिताली
मैडम अपने छाते में कुछ परेशान लग रही हैं।...“
लिटिल
मरमेड की स्कूल टीचर मिताली मैडम साँवली, तीखी नाक वाली पच्चीस-छब्बीस साल
की आकर्षक लड़की निकली। हलके हरे रंग की सलवार सूट पहने, छतरी सँभाले वह
हमारे पास पहुँची और उसने लिटिल मरमेड से कहा, “आज स्कूल में पानी की
प्रॉब्लम हो गयी है। इसीलिए आज छुट्टी दे दी गयी है। मैं आधे रास्ते से लौट
रही हूँ। तुम भी लौट जाओ।!”
यह सुन कर लिटिल मरमेड
बोली, “धत तेरे की। बहादुर लड़की की सारी मेहनत पर पानी फिर गया। अब उसे
वापस घर चलना होगा। ऐ मददगार, हमें वापस घर ले चलो।“ मैंने मिताली मैडम से
अनुरोध किया, “यह स्कूटर खराब हो गया है। मैं इसे अभी लुढ़का कर घर ले
चलूँगा। क्या आप अपनी स्टूडेंट को घर छोड़ देंगी?” मिताली कुछ सकुचाते हुए
बोली, “क्यों नहीं। मैं भी पास में ही रहती हूँ। आप पहुँचिए।“ कह कर मिताली
मैडम लिटिल मरमेड को साथ लिए आगे बढ़ गयीं।
मैं
पीछे-पीछे स्कूटर को धीमे-धीमे खींचता बढ़ता रहा। अपने पस्त हौसले को देख
कर मेरे मन में बैंग-बैंग का सुझाया आइडिया चमका। कॉमेन्ट्री करने से ताकत आ
जाती है। जाती हुयी मिताली को बार-बार पीछे मुड़ कर देखता देख कर खुद से
बातें होने शुरू हुयी, “एक हसीना इधर देखो कैसी बेचैन है, रास्ते पर लगे कैसे उस के दो नैन है, सच पूछिये तो मेरे यार, दोनों के दिल बेइख्तियार, बेइख्तियार, है पहली बार, पहली बहार में।” 2
स्कूटर
पार्किंग में लगा कर मैं लिटिल मरमेड के घर पहुँचा। आधी गीली हो चुकी
मिताली को लड़कियों की माँ ने चाय के लिए रोक लिया था। घर के अन्दर कदम
रखने से पहले मैं कुछ आवाज़ें आती सुनीं। मैं ठहर कर सुनने लगा। मिताली कह
रही थी, ”एक पल के लिए मुझे लगा कि आपकी लड़की को कोई किडनैप कर के ले जा
रहा है। मैं एकदम से घबरा गयी। मैंने सोचा कि क्या बहाना बनाऊँ? किसी तरह
इस लड़की को आगे जाने से रोकूँ। वह तो खैरियत है कि इस तेज बारिश के कारण
आज की छुट्टी माफ हो जाएगी, वरना...।“ सुन कर मैंने दरवाज़ा खटखटाया और
तशरीफ अन्दर ले गया।
मुझे देख कर मिताली को काटो तो
खून नहीं। बैंग-बैंग ने कॉमेन्ट्री चालू कर दी, “इस तरह मददगार की मदद
बेकार गयी। रास्ते में ज़ालिमों ने मददगार को गुनाहगार समझ कर उसका रास्ता
रोक लिया। नन्ही जलपरी वापस अपने समुद्री आशियाने में आना पड़ गया है।“
मैंने
मिताली की देख कर कहा, “आपको गुरु पूर्णिमा की बधाई। गुरु साक्षात्
परब्रह्म होते हैं। आपको प्रणाम।“ मेरे हाथ जोड़ते ही मिताली ने भी हाथ
जोड़ कर कहा, “यह तो मेरा पेशा है। मैंने सुना कि आपने ही इन लड़कियों को
बहुत कुछ सिखाया है।“ मैंने कहा, “फिलहाल तो मैं सीख रहा हूँ कि कॉमेन्ट्री
करने से हम स्थिति को बेहतर समझते हैं।“
“जैसे?” मिताली ने पूछा। बैंग-बैंग ने उसकी नकल में कहा, “जैसे?” मैंने अपने सिखाये गाने की तर्ज़ पर कहा, “खूब समझ लिया तुमको जी, तुमको जी, तुमसे क्या कहूँ?”
“वादे पे आया करो अपने जी, अपने जी, अपने मैं कह तो रही हूँ।”
“फुरसत नहीं मुझे सन्डे को, सन्डे को अच्छा मैं चलूँ?”
बैंग-बैंग ने गीत पूरा किया, “मिलना जो चाहे दिल तुमसे जी, तुमसे जी, तुमसे तो बोलो क्या करूँ?”
लिटिल
मरमेड ने मिताली मैडम से कहा, “आपको भी कॉमेन्ट्री करनी पड़ेगी।“ मिताली
भी अब तक हमारे रंग में रंग चुकी थी। बड़ी बेफिक्री से मुझे देख कर
मुस्कुराते हुए गाने लगी, “एक मोहब्बत का दीवाना, ढूँढता सा फिरे/ कोई चाहत का नज़राना, दिलरुबा के लिये/ छमछम चले पागल पवन, आये मज़ा भीगे बलम/ भीगे बलम, फिसले कदम, बरखा बहार में.. सावन बरसे तरसे दिल...।” मिताली
ने मेरी तरफ देख कर कहा, “अब आपकी बारी कॉमेन्ट्री के लिए।“ जिसकी जुल्फों
पर सावन की घटा छायी थी, जिसकी आँखों में काले मेघ घुमड़ रहे थे, जिसके
माथों पर सुबह की सूरज की कोमल किरण जैसे चमक थी, उसे देख कर मैं कहने को
तो हुआ लेकिन...
दुनिया से अब क्यों प्यार छुपायें हम-तुम ३
बनते हैं अफ़साने बन जाए ये समाँ ये कहे तुमसे
तुमसे है दिल को प्यार, तुमसे है दिल को प्यार
देखो अब तो किसको नहीं है ख़बर
देखो अब तो किसको नहीं है ख़बर
तुमसे है दिल को प्यार, तुमसे है दिल को प्यार...
ये थी कल की बात !
दिनांक : ०४/०७/२०२३
संदर्भ:
१. गीतकार- असद भोपाली (१९२१-१९९०), चित्रपट – उस्तादों के उस्ताद (१९६४)
२. गीतकार- मजरूह सुल्तानपुरी (१९१९-२०००), चित्रपट – दहक (१९९९)
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें