ललन चतुर्वेदी की कविताएं
ललन चतुर्वेदी |
जीवन में अर्थ की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। इस भूमिका के बावजूद वह जीवन से बड़ा नहीं हो जाता। क्योंकि जीवन के चलते ही उसका वजूद होता है। ललन चतुर्वेदी ने अपनी कविता सिक्के में खूबसूरती से इस तथ्य को रखा है। ललन कवि होने के साथ साथ व्यंग्यकार भी हैं। इसलिए उनकी कविताओं में पैनापन और व्यंग्य की धार भी होती है। उनकी यह विशिष्टता और कवियों से उन्हें अलग खड़ा करती है।
ललन चतुर्वेदी कविता और व्यंग्य दोनों विधाओं में लगातार लिख रहे हैं। काफी समय पूर्व 'प्रश्नकाल का दौर' व्यंग्य संकलन के प्रकाशन के पश्चात इसी वर्ष उनकी कविता पुस्तक 'ईश्वर की डायरी' प्रकाशित हुई है। यह कविता संग्रह अमेज़न पर ऑन लाइन उपलब्ध है। पहली बार पर प्रस्तुत हैं इस नवीनतम संग्रह से कुछ कविताएं।
ललन चतुर्वेदी की कविताएं
यह उदास होने का समय नहीं है
एक नायिका की तस्वीर को
हजारों लोग 'लाइक 'कर चुके हैं
तरह- तरह के इमोजी चस्पा हो चुके हैं
एक निहायत भद्दे पोस्ट पर
कमेंट का रुक नहीं रहा है सिलसिला
शेयर किया जा रहा है लगातार
एक बौद्धिक शख्स
शरीफों को रोज गालियाँ बक कर
सुर्खियां बटोर रहा है।
और कुछ लोग
बौद्धिक जुगाली में व्यस्त हैं
अति उत्साह में हैं कि
अपने विचारों से बदल देंगे दुनिया
कुछ लोग आज भी
इस आभासी दुनिया से बाहर
सौन्दर्य की तलाश कर रहे हैं
उनका मानना है कि
धीरे-धीरे लोग लौट जायेंगे
सही रास्ते पर
आमने-सामने एक-दूसरे को देख कर
मुस्करायेगे और गले मिलेंगे
किताब की दुकानों में रौनक लौटेगी
खरीदेंगे लोग किताब
पढ़ेंगे और रखेंगे सुरक्षित बच्चों के लिए भी
फिर से लोग सुनेंगे महीनदर मिसिर के गीत
फिर से प्रकट होंगे भिखारी ठाकुर
इतिहास स्वयं को दोहराता है
क्यों निराश हुआ जाए
कविते!अभी उदास होने का समय नहीं है।
सभ्य शिकारी
मैंने इनसानों से बात करने की बहुत कोशिशें की
मगर वे मेरी बात समझते नहीं
अब मैं जीव-जंतुओं से बात करने लगा हूँ
वे बहुत प्यार से सुनते हैं, समझते हैं
एक दिन मैंने बकरियों से पूछा -
तुम इन इनसानों के साथ क्यों रहती हो
जो एक दिन कर देते हैं तुम्हें कसाई के हवाले
बकरियों ने समवेत स्वर में कहा-
वे कितने प्यारे लोग हैं
जो हमें हर रोज चारागाह ले जाते हैं
खिलाते हैं हरे -भरे चारे
हमें खूब प्यार भी करते हैं
हमें विश्वास ही नहीं होता
कि जो हमें चारागाह ले जाते हैं
वे एक दिन हमें कत्लगाह भी पहुँचा देंगे
कोई बात नहीं यार!
वे हमारे विश्वास का खून तो कर नहीं सकते
और प्यार का खून करने से
उन्हें कौन रोक सकता है?
शिकारियों ने अपनी शक्ल बदल ली है
अब वे सभ्य तरीके से शिकार करते हैं।
आदमी बाजार में खोया हुआ एक अबोध बच्चा है
आप! आप कहाँ रह गए हैं
पूछा है कभी अपने आप से
धीरे-धीरे आप क्या से क्या बन गए
अब आप स्वयं अपनी पसंद भी नहीं रह गए
क्या खायेंगे, क्या पहनेंगे, क्या सुनेंगे
क्या देखेंगे, कहाँ जायेंगे
कुछ भी कहाँ तय करते हैं आप
और क्या भला है, क्या बुरा है
इतना भी कहाँ तय कर पाते हैं आप
आपको पता भी नहीं चलता
कि किस तरह आपका कोई निर्माण कर रहा है
इस तरह आप बदल दिए गए हैं कि
खुद को पहचानना ही हो रहा है मुश्किल
भ्रम में हैं कि आप महानता के जश्न में शरीक हैं
भ्रम में हैं कि आपके समक्ष सारे शुभचिंतक चेहरे हैं
यहाँ सब दांव लगाए बैठे हैं
आपका भोलापन ही आपके विपक्ष में बैठा है
यहाँ अज्ञानता भुनाने का कारोबार चरम पर है
आपको पता भी नहीं चल पा रहा है
आपको धकेल दिया गया है विस्मृति के भँवर में
आपकी हालत बाजार में खोए हुए
अबोध बालक सी हो गई है
बुरा मत मानिए
जो आपका हाथ थाम कर दे रहा है दिलासा
वह आपको घर तक कभी नहीं पहुँचाएगा।
सौन्दर्य
अब भी रंग के मामले में लोगों के दिल तंग हैं
पृथ्वी के एक ही हिस्से के बारे में लोगों के अलग-अलग मत हैं
चमकीली धूप किसी की तिलमिलाहट के लिए काफी है
किसी को दिन तो किसी को अंधेरी रात बहुत प्रिय है
नींद से बोझिल उनकी आँखें उषा की किरणों को कोसती हैं
कुछ लोग सुबह को स्थगित कर देना चाहते हैं
संध्या किसी के लिए उदासी लाती है
वहीं कवि की आँखों में उतरती है संध्या-सुंदरी धीरे-धीरे
किसी के लिए पहाड़ तो किसी के लिए मैदान सुंदर है
हम अब भी चीजों को समग्रता से कहाँ देख पाते हैं
सचमुच हम कितने नौसिखुए हैं
जब तक हम ठीक से सीख नहीं लेते प्रेम करना
हमें कुरूपता ही नजर आयेगी
सारी इबारतें सुंदर हैं
प्रेम से हस्ताक्षर तो कीजिए।
प्रतिरोध
तुम्हें नहीं सुनना है, नहीं सुनो
आकाश तो सुन रहा है मेरी बातें
(ध्वनि आकाश का गुण है)
मैं पाताल में भी चला जाऊँ
तो क्या फर्क पड़ता है
एक दिन बाहर निकल ही जाऊँगा
किसी न किसी रूप में
मुझे पागल घोषित करने की भूल मत करना
मैं गीता या कुरान पर हाथ रखे बगैर
जब भी बोलता हूँ सच बोलता हूँ
तुम हरगिज बुद्धिजीवी नहीं हो
बुद्धिजीवी मिट्टी के खिलाफ कभी नहीं बोल सकता
बुद्धिजीवी कभी चुप नहीं बैठ सकता
यह दीगर बात है कि
उसकी आवाजें अनसुनी रह जाती हैं
मगर प्रतिरोध दर्ज हो जाता है इतिहास में
क्रूरताओं को माफी नहीं दी जा सकती
प्रतिरोध पराजित हो कर भी
मुस्कुराता रहता है इतिहास में।
हम नंगे हो गए हैं!
हम अपने कमरे में बैठ कर देख रहे हैं
सारी चीज़ें घटित हो रही हैं कैमरे के सामने
यह एक वैश्विक दृश्य है
एक स्त्री चीख रही है
और लगा रही है अपनी अस्मत बचाने की गुहार
सशस्त्र बल समर्पण कर चुका है और
सुपर पावर बिल्ली की तरह खंभे नोच रहा है
सूट टाई पहने जेंटलमैन
सहसा अवतरित हो गया है स्क्रीन पर
विश्वभाषा में पढ़ा रहा है
विश्व शांति और विश्व-प्रेम का पाठ
एक-एक कर सारे देश घुटने टेक चुके हैं
तमाम राजकीय पोशाक पहने
विश्व शांति के पहरुए नंगे हो गए हैं
गुरु जी पाठशालाओं में
पढ़ा रहे हैं नक्शे पर भूगोल
मध्यान्ह की खिचड़ी खाने के बाद
पेट पर हाथ फेरते हुए
पढायेंगे समाज शास्त्र और बतलायेंगे
हैप्पीनेस इंडेक्स में हम छलाँग लगा चुके हैं
देखो, हम कितने चंगे हो गए हैं
मैं खुद को देख रहा हूं बार-बार
आश्वस्त कर रहा हूँ स्वयं को भी कि
यहाँ तो सभी कपड़े पहने हुए हैं
फिर भी मुझे यकीन नहीं हो पा रहा
हम भाग रहे हैं, मगर भागे तो कहाँ
सब तरफ कैमरे हैं और हम
कैमरे के सामने नंगे हो गए हैं।
झुकना
क्या हो यदि सूर्य की किरणें हो जाएँ ऊर्ध्वगामी
क्या हो यदि पहाड़ों पर चढ़ने लगे नदी का पानी
क्या हो यदि सभी वृक्षों की शाखाएँ हो जाएँ उदग्र
क्यों सारी प्रकृति धरती की ओर लौटती है
क्यों नहीं बनाती गगन को अपना बसेरा
नजरें झुका लेने से बढ़ जाता है सौन्दर्य
कौन पसन्द करता है तनी हुई आँखें
नीचे की ओर जाना नीचता नहीं है
अंततः सब नीचे जाने के लिए बने हैं
नीचे आती हुई शाखाएँ हमें देतीं हैं छाँव
नीचे बहती हुई नदियाँ बुझातीं हैं प्यास
नीचे आती हुईं सूरज की किरणें
धरा पर फैलाती हैं उजास
बिना झुके हुए कहाँ होती है प्रार्थना स्वीकार
झुकना हमेशा पराजय नहीं है
देखना ही है तो देख लो
झुके हुए वृक्षों का सौन्दर्य
और पूछ लो गीत गाती हुई नदियों से
बलखाती घाटियों में रुकती हुई, झुकती हुई
नीचे और नीचे बहने का आनन्द।
ये दुनिया बड़ी घाघ है
सब कुछ सुंदर कैसे लिखूँ
विद्रूपताओं से घिरा हुआ हूँ
जब-जब होम करता हूँ
हाथ जलने लगते हैं
बिच्छू के डंक की परवाह नहीं करते साधु
यह कथा बार-बार याद आती है
आँख पोंछ कर फिर से हँसने लगता हूँ
माफ कीजिए, यह आत्मदया नहीं है
यह मनुष्यता की पराकाष्ठा है
कायरता मत समझिए इसे
पर आदमी क्या टूटने के लिए ही बना है?
पुरातन काल में संत के कठोर प्रश्न के उत्तर में
एक वेश्या ने आइने की तरह दिखा दिया था
इस जगत का मिथ्या स्वरूप-
सती बनने का बहुत मन करता है साधु!
पर ये भड़ुवे बचने नहीं देते।
सुगंध फूल की भाषा है
भाषा कई बार बिल्कुल असहाय हो जाती है
कभी-कभी गैरजरूरी और हास्यास्पद भी
बिना बोले भी आख्यान रचा जा सकता है
मौन संवाद का सर्वोत्तम तरीका है
भाषा केवल शब्दों का समुच्चय नहीं है
और किसी लिपि का मोहताज भी नहीं
जैसे फूल क्यारियों में खिलते हैं और हृदय में खिलखिलाते हैं
वैसी भी तो हो सकती है भाषा
मौन कितना मुखर हो सकता है
फूल से बेहतर कोई और नहीं समझा सकता
सुगंध हवा की लिपि में लिखित फूल की भाषा है।
सिक्के
जेब में रहते हैं, इसीलिए उछाले जाते हैं
उछाले जाते हैं, इसीलिए उछलते हैं
उछलते हैं, इसीलिए गुल्लक में डाले जाते हैं
सिक्के खेल शुरू करा सकते हैं
पर खेल देख नहीं सकते
खेल शुरू होने के पहले ही
खत्म हो जाता है इनका खेल
बड़े नादान होते हैं सिक्के
वे कभी नहीं समझेंगे कि
असली खिलाड़ी हरदम जेब में रखते हैं उन्हें
मौका पड़ते ही उन्हें उछाल देते हैं
जरूरी नहीं हो तो उन्हें गुल्लक में डाल देते हैं।
रंग बदलने का कोई मौसम नहीं होता
कल तक जो लाल थे आज हरा दिखने लगे
जो हरे थे वह सहसा बदल कर पीले हो गए
बाकी रंग भी समय और सुविधा को देखते हुए
अपना-अपना रंग बदल कर कामयाब हो गए
रंग बदलने की इस प्रतियोगिता में
देखते बनती थी काले की झकास सफेदी
उसके गले में सुशोभित हो रही थी सभी रंगों की माला
उसे सर्वसम्मति से विजेता घोषित किया गया।
(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग्स युवा चित्रकार मनोज कचंगल की हैं।)
सम्पर्क
मोबाइल - 9431582801
बेहद कमाल की कविताएं हैं।
जवाब देंहटाएंबेहद उम्दा कविताएँ। व्यंग का पैनापन कविताओं को और भी मजेदार बना रहा है।
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