राश कैरियर की कहानी, हिन्दी अनुवाद - विनोद दास
राश कैरियर |
कथाकार और नाटककार राश कैरियर का जन्म 1937 में कनाडा में हुआ था। मोंट्रियल विश्वविद्यालय से एम. ए. किया। फिर पी-एच. डी. करने के पहले एक कॉलेज में दो वर्षों तक यूनानी संस्कृति के शिक्षक के रूप में कार्य किया। 1964 में कनाडा लौट कर आये और मोंट्रियल विश्वविद्यालय में अध्यापन करने लगे। शुरुआत में कविताएँ भी लिखीं लेकिन मूलतः वह कथाकार और नाटककार थे। उनके कई उपन्यासों का नाट्य रूपान्तर भी किया गया और रंगमंच पर खेला भी गया।
यह कहानी उस हुनर की कहानी है जिसे हमारे पुरखों ने तमाम असफलताओं के बाद खोजा था। धरती के अंदर पानी की खोज ऐसी ही खोज थी जिसने मनुष्य को नदियों के किनारे से दूर हट कर जीने रहने की सुविधा प्रदान की। लेकिन समय बीतने के साथ हम उस प्रकृति से लगातार कटते चले गए जो इस हुनर के मूल में हुआ करती थी। राशन कैरियर ने अपनी इस उम्दा कहानी में मानवीयता के उस संस्पर्श को रेखांकित किया है जो दिनों दिन दुर्लभ होती जा रही है। आज पहली बार पर हम प्रस्तुत कर रहे हैं राश कैरियर की कहानी पानी में खोया रहस्य। हिन्दी अनुवाद विनोद दास का है।
राश कैरियर
पानी में खोया रहस्य
हिन्दी अनुवाद - विनोद दास
जब से मैंने पाठशाला जाना शुरू किया, मेरे पिता जी मुझसे बातें कम करने लगे थे। मुझ पर वर्तनी के नये खेल का नशा सवार थे। मेरे पिता जी को लिखना-पढना कम आता था। मेरी माँ हमें अक्षर सिखाती थी। पिता जी को यकीन हो गया था कि मुझे अब उनके उन रोमांचक किस्सों में कोई दिलचस्पी नहीं रह गयी थी जो घर से कई हफ्ते दूर रहने के दौरान उनके साथ घटती थीं।
हालाँकि एक दिन उन्होंने मुझसे कहा, "अब तुम्हें कुछ दिखाने का समय आ गया है।”
उन्होंने मुझे अपने पीछे आने को कहा। मैं उनके पीछे-पीछे चलने लगा। हम बात नहीं कर रहे थे जैसा कि हमारी आदत बन चुकी थी। वह पत्तियों से भरी एक झाड़ी के सामने ठहर गये।
“इन्हें एल्डर कहते हैं।” उन्होंने कहा।
“मैं जानता हूँ”
“तुम्हें इन्हें चुनना सीखना चाहिए।” मेरे पिता जी ने इशारा किया।
मुझे कुछ समझ में नहीं आया। झाड़ी की सभी टहनियों को वह धार्मिक श्रद्धा से छू रहे थे।
“तुम्हें सबसे अच्छा चुनना चाहिए - एकदम निर्दोष जैसा कि यह है।”
मैंने देखा, यह दूसरी पत्तियों की ही तरह था। मेरे पिता जी ने जेबी चाक़ू खोला और टहनी काट ली जिसे उन्होंने धार्मिक श्रद्धा से छुआ था। उन्होंने टहनी से पत्तियां छांट कर टहनी दिखायी जो पूरे तौर से अंग्रेज़ी वर्णमाला के “वाई” आकार की तरह दिख रही थी।
“देखो! इस टहनी की दो शाखाएँ हैं। अब दोनों हाथ में इसकी एक-एक शाखा लो और उन्हें कस कर दबाओ।” उन्होंने कहा। मैंने उनके कथनानुसार किया और अपने हाथ में “वाई” आकार की फोर्कनुमा टहनी ली जो पेंसिल से भी पतली थी।
“अपनी आँखें बन्द करो और कुछ और जोर से इसे दबाओ। अपनी ऑंखें मत खोलना। क्या तुम्हें कुछ महसूस हो रहा है।” पिता जी ने हुक्म देते हुए कहा।
“टहनी घूम रही है” मैंने आश्चर्य से कहा।
मेरी अँगुलियों के नीचे दबी एल्डर की टहनी डरे हुए एक संपोले की तरह छटपटा रही थी। मेरे पिता जी ने भांप लिया था कि मैं उस टहनी को नीचे गिराने वाला हूँ।
“इसे पकड़े रहो।”
“यह टहनी छटपटा रही है और मैं नदी की तरह कुछ आवाज़ सुन रहा हूँ।” मैंने दुबारा कहा।
“अपनी आँखें खोलो।” मेरे पिता जी ने हुक्म दिया।
मैं भौचक था जैसे कि मैं सपना देखते हुए अचानक जग गया हूँ।
“इसका क्या मतलब है?” मैंने पिता जी से पूछा।
“इसका मतलब यह है कि इस ज़मीन के ठीक नीचे ताज़े पानी का एक छोटा सोता है। अगर हम यहाँ खोदे तो इससे हम पानी पी सकते हैं। मैंने तुम्हें यह सिखाया है कि किस तरह पानी का सोता खोजा जाता है। मेरे पिता जी ने भी मुझे यही सिखाया था। यह ज्ञान तुम पाठशाला में नहीं सीख सकते हो। यह ज्ञान बेकार भी नहीं है। आदमी का काम बिना अक्षर ज्ञान और गणित के चल सकता है लेकिन बिना पानी उसका काम नहीं चल सकता है।”
बहुत दिनों के बाद, मुझे पता चला कि मेरे पिता इस इलाके में इस ज्ञान के लिए मशहूर हैं। वे इस ज्ञान को उन्हें मिला वरदान कहते थे। कुआं खोदने के पहले वे मेरे पिता जी से हमेशा सलाह लेते थे। फोर्कनुमा आकार की एल्डर की टहनी हाथों में लेकर आँखें बन्द किए हुए खेतों और पहाड़ियों में पानी की सम्भावना तलाशते हुए लोग उन्हें देखते थे। जहाँ मेरे पिता जी रुक जाते थे, उस ज़मीन पर वह निशान लगा देते थे। फिर वहाँ वह खोदते थे और वहाँ से पानी की धारा फूट पड़ती थी।
वर्ष-दर-वर्ष बीत गए। मैं पढ़ने दूसरी पाठशाला गया। कई देश देखे। मेरे बाल-बच्चे हो गए। मैंने कुछ किताबें लिखीं। मेरे बेचारे पिता जी उसी ज़मीन में दफ़न हो गए जहाँ कई बार उन्होंने ताजा पानी का सोता खोजा था।
एक दिन कोई मेरे गाँव और उनके रहवासियों पर फिल्म बना रहा था - उस गाँव पर जहाँ से मैंने तमाम कहानियाँ सुनाने के लिए चुरायीं थीं। फिल्मकर्मियों के साथ हम एक किसान से मिलने गए ताकि हम एक दुखी आदमी की छवि कमरे में कैद कर सकें। एक ऐसे किसान की छवि जिसने इस इलाके में एक बेहतर खेत बनाने के लिए पूरी ज़िन्दगी खर्च कर दी लेकिन उसका बेटा अपने पिता से मिली अपनी पैतृक विरासत को लेना नहीं चाहता है। जब तकनीकी कर्मचारी कैमरा और माइक्रोफोन तैयार कर रहे थे, उस किसान ने मेरे कँधे पर अपना हाथ रख कर कहा, ”मैं आपके पिता जी को अच्छी तरह जानता था।”
“अच्छा! आप ठीक कहते हैं। इस गाँव का हर आदमी एक दूसरे को जानता है। कोई यहाँ अपने को अजनबी नहीं समझता।”
“क्या तुम जानते हो कि तुम्हारे पाँव के नीचे क्या है?”
“नरक!” हँसते हुए मैंने कहा।
“तुम्हारे नीचे एक कुँआ है। इसे खोदने के पहले मैंने कृषि विभाग के विशेषज्ञों को बुलाया था। उन्होंने काफ़ी शोध किया था। फावड़े भर मिट्टी का परीक्षण किया था। उन्होंने अपनी रिपोर्ट में कहा कि इस ज़मीन के नीचे पानी नहीं है। परिवार, जानवरों और फसलों के लिए मुझे पानी की जरूरत थी। जब ये विशेषज्ञ ज़मीन के नीचे पानी तलाश नहीं कर पाए तो मुझे तुम्हारे पिता की याद आयी और मैंने उन्हें यहाँ आने का अनुरोध किया। वह यहाँ नहीं आना चाहते थे। मेरा ख्याल था कि वह मुझसे रुष्ट थे कि मैंने उनसे सलाह न ले कर विशेषज्ञों की सलाह ली थी। लेकिन आखिरकार वह आये। वह चले और एक छोटी टहनी काट ली। आँखें बन्द कर के चारों ओर घूमे और फिर रुक गए। उन्होंने कुछ सुना जिसे हम नहीं सुन सके। तब उन्होंने मुझसे कहा, ”यहाँ खोदो। तुम्हारे सबके पीने के लिए यहाँ काफी पानी होगा और इसमें तुम अपने विशेषज्ञों को भी डुबो सकते हो। ”हमने उस ज़गह को खोदा और हमें पानी मिला। उम्दा पानी जिसमें कभी प्रदूषण होने की बात सुनने में नहीं आयी।”
फिल्मकर्मी तैयार हो चुके थे। उन्होंने मुझे अपनी ज़गह जाने को कहा।
“मैं आपको कुछ दिखाना चाहता हूँ। तुम यहां रुको।” मुझे पीछे करते हुए किसान ने कहा।
वह उस झोपड़ी में गायब हो गया जो भंडार गृह के रूप में उपयोग में लाया जाता रहा होगा। फिर वह एक टहनी लाया और मुझे सौंप दिया।
“मैं कोई भी चीज़ नहीं फेंकता। एलडर की उस टहनी को मैंने अभी तक सुरक्षित रखा है जिसे काट कर तुम्हारे पिता जी ने पानी खोजा था। हैरान हूँ कि यह टहनी अभी तक सूखी नहीं है।”
जैसे मैंने टहनी को स्पर्श किया (जो दरअसल सूखी नहीं थी) मेरे भीतर पवित्र भावना की एक लहर उठी और मुझे महसूस हुआ कि मेरे कँधों के ऊपर से मेरे पिता जी मुझे देख रहे हैं। पानी के उस सोते पर खड़े हो कर मैंने आँखें बन्द कर लीं जिसे मेरे पिता जी ने खोजा था और टहनी के छटपटाने का इन्तज़ार करने लगा। मुझे उम्मीद थी कि मेरे कानों में पानी के सोते फूटने की आवाज़ सुनायी देगी।
मेरे हाथों में एलडर निष्क्रिय पड़ा रहा और पृथ्वी के नीचे पानी ने गाना गाने से इन्कार कर दिया।
बचपन के गाँव से मैंने जो जो नई राह पकड़ी थी, उसमें अपने पिता के ज्ञान को मैं भूल चुका था।
“अफ़सोस मत कीजिए। आजकल पिता अपनी अगली पीढ़ी को कोई चीज़ नहीं दे सकते।” बेशक वह आदमी अपने खेत और बचपन को याद कर रहा था।
उसने मेरे हाथों से एलडर की टहनी ले ली।
(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग वरिष्ठ कवि विजेन्द्र जी की हैं।)
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