नव वर्ष पर हिन्दी कविताएं

 



 

एक वर्ष और बीत गया। दिन और रात, रात और दिन का क्रम महीनों में और महीने वर्ष में तब्दील होते जाते हैं। मिया ग़ालिब ने इसे देखते महसूसते हुए ही कभी कहा था :

सुब्ह होती है, शाम होती है।

उम्र यूं ही तमाम होती है।।

फिर भी चलन का मामला है। एक जनवरी से दुनिया भर में नया वर्ष शुरू हो जाता है। नव वर्ष को कवियों ने अपनी तरह से दर्ज़ करने की कोशिश की है। पहली बार के सभी पाठकों को नव वर्ष 2023 की मुबारकबाद। आइए आज पहली बार पर पढ़ते हैं नव वर्ष पर केन्द्रित कुछ महत्त्वपूर्ण हिन्दी कविताएं।






सोहनलाल द्विवेदी


नवल वर्ष


स्वागत! जीवन के नवल वर्ष 

आओ, नूतन-निर्माण लिए 

इस महा जागरण के युग में 

जाग्रत जीवन अभिमान लिए।


दीन दुखियों का त्राण लिए 

मानवता का कल्याण लिए 

स्वागत! नवयुग के नवल वर्ष 

तुम आओ स्वर्ण विहान लिए!


संसार क्षितिज पर महाक्रांति 

की ज्वालाओं के गान लिए 

मेरे भारत के लिए नई 

प्रेरणा नया उत्थान लिए।


मुर्दा शरीर में नये प्राण 

प्राणों में नव अरमान लिए 

स्वागत! स्वागत! मेरे आगत 

तुम आओ स्वर्ण विहान लिए!


युग-युग तक पिसते आए

कृषकों को जीवन-दान लिए 

कंकाल मात्र रह गए शेष, 

मजदूरों का नव त्राण लिए।


श्रमिकों का नव संगठन लिए 

पददलितों का उत्थान लिए 

स्वागत! स्वागत! मेरे आगत 

तुम आओ स्वर्ण विहान लिए!


सत्ताधारी साम्राज्यवाद के 

मद का चिर-अवसान लिए 

दुर्बल को अभयदान 

भूखे को रोटी का सामान लिए।


जीवन में नूतन क्रांति 

क्रांति में नए-नए बलिदान लिए 

स्वागत! जीवन के नवल वर्ष 

आओ, तुम स्वर्ण विहान लिए!

 





फणीश्वर नाथ रेणु


नूतन वर्षाभिनंदन


नूतन का अभिनंदन हो

प्रेम-पुलकमय जन-जन हो! 

नव-स्फूर्ति भर दे नव-चेतन 

टूट पड़ें जड़ता के बंधन; 

शुद्ध, स्वतंत्र वायुमंडल में 

निर्मल तन, निर्भय मन हो! 

प्रेम-पुलकमय जन-जन हो, 

नूतन का अभिनंदन हो! 

प्रति अंतर हो पुलकित-हुलसित 

प्रेम-दिए जल उठें सुवासित 

जीवन का क्षण-क्षण हो ज्योतित, 

शिवता का आराधन हो! 

प्रेम-पुलकमय प्रति जन हो, 

नूतन का अभिनंदन हो!





सर्वेश्वर दयाल सक्सेना 


नए साल की शुभकामनाएं!


नए साल की शुभकामनाएँ!

खेतों की मेड़ों पर धूल भरे पाँव को

कुहरे में लिपटे उस छोटे से गाँव को

नए साल की शुभकामनाएं!


जाँते के गीतों को बैलों की चाल को

करघे को कोल्हू को मछुओं के जाल को

नए साल की शुभकामनाएँ!


इस पकती रोटी को बच्चों के शोर को

चौंके की गुनगुन को चूल्हे की भोर को

नए साल की शुभकामनाएँ!


वीराने जंगल को तारों को रात को

ठंडी दो बंदूकों में घर की बात को

नए साल की शुभकामनाएँ!


इस चलती आँधी में हर बिखरे बाल को

सिगरेट की लाशों पर फूलों से ख़याल को

नए साल की शुभकामनाएँ!


कोट के गुलाब और जूड़े के फूल को

हर नन्ही याद को हर छोटी भूल को

नए साल की शुभकामनाएँ!


उनको जिनने चुन-चुनकर ग्रीटिंग कार्ड लिखे

उनको जो अपने गमले में चुपचाप दिखे

नए साल की शुभकामनाएँ!





केदारनाथ अग्रवाल


गए साल की


गए साल की

ठिठकी-ठिठकी ठिठुरन

नए साल के

नए सूर्य ने तोड़ी।


देश-काल पर

धूप-चढ़ गई

हवा गरम हो फैली

पौरुष के पेड़ों के पत्ते

चेतन चमके।


दर्पण-देही

दसों दिशाएं

रंग-रूप की

दुनिया बिंबित करतीं

मानव-मन में

ज्योति-तरंगें उठतीं।

 

 


 

 

चंद्रकांत देवताले



यह जाते दिसम्बर की आवाज है


देवियो और सज्जनो, 

चिड़िया की फुदक जितनी शाम 

और कुहरे के धब्बों में उड़ती ओझल हो रही हंस पताकाएँ 

सड़कों पर रेंगती हुई 

रोशनी से कुचलती परछाइयाँ 

और एक वर्ष 

जिसका रंग आप ही बताएँ 

शहीद हो रहा है दुम दबा कर 


चुप्पी हमारे साथ है 

हर तरह के जाड़े में समा कर 

शब्दों को जेलख़ाना बना कर 

चुप्पी जंगलों से रिहा हो रही है 

फिर भी एक आहट है 

जूते चोर के जाते वक़्त की 

सबसे धीमी कराहती आहट 


देवियो, आपके भीतर स्वेटर बुन रही है 

क्या आप बता सकती हैं 

हरी पत्तियाँ कितने बजे कहाँ सूखने लगती हैं 

सज्जनो, नोट का छापाख़ाना 

वहाँ शुरू होता है 

जहाँ धरती ख़त्म होने लगती है 

और आप नहीं जानते 

धरती का सुनाई न देना 

कितना ख़तरनाक है 

घड़ी की दंतकड़ी बँध गई है 

कौन कर लेगा दुरुस्त इसे 

जो भी आया ठीक कर के 

घबरा रहा था 

अपने बटन के टूटने के भय से 


घड़ी विभाग के नए अध्यक्ष 

चूहे का चेहरा टाँग कर अपने धड़ पर 

टाई की गठान ठीक कर रहे हैं 

विचारों में मच्छरों के प्रवेश से वे खिन्न हैं 

वे शोधरत हैं रेत पर पड़ी मेंढ़कियों के 

अपशकुन को देखकर चिंतित हैं 

‘हो न हो राष्ट्राध्यक्ष को ज़ुकाम होगा’ 

और उनका एक दूत 

ठिठुरती घड़ी पर काला परदा गिरा रहा है 

और दूसरा दूत 

आतंक के तकाले छह पत्थरों पर 

‘शु भ का म ना एँ’ लिख कर 

नेपथ्य में चला गया है 

कछुए की पीठ पर 

फूलदान सजा कर 

जो बैठा था 


वह कछुए के खिसकने और 

जल में धँसने से चिल्ला रहा है 


निष्करुण और डूबती हुई 

यह जाते दिसंबर की आवाज़ है... 


देवियो, इस आवाज़ के लिए 

एक मफ़लर बना दें 

सज्जनो, इसे सुँघा दें 

धरती के टुकड़े की कोई गंध 

या फिर बता दें पता मेरे जूते का 

ढूँढ़ रहा हूँ कब से 

ले गया न जाने कौन 

देखा होगा ज़रूर आपने जूता चोर 


उसमें रखी हुई थी 

मेरी बची-खुची आत्मा 


पैरों और जूतों के बीच 

पता नहीं कौन-सा फ़ासला है 

शायद बिछी हुई पूरी रक्तहीन अँधेरी रात 

सचमुच शर्मनाक होगा कितना 

इस तरह नंगे पैर 

जनवरी से मुख़ातिब होना।





विजय देव नारायण साही


प्रतीक्षास्तब्ध नया वर्ष


शांत भीगी भोर, 

दीपते दो-चार तारे, 

जागरित, अस्पष्ट, हल्की हवा 

नहीं कोई स्वप्न कहीं भी, 

सभी कुछ ऐसे प्रतीक्षास्तब्ध 

जैसे नहीं कुछ ऐसा कि आए 

और इसमें 

बिना कुछ भी कहीं बदले मिल न जाए 

पाँखुरी-सा सुबुक, संयत, मुक्त! 

लालसाओं का जुझारू समर 

जैसे हर चिलक तक झनझना कर 

चुक गया 

फिर शून्य में से 

खिली कोई साँस लेती नम्र पावनता। 

ओ अवदात आत्मा 

सुलभ अर्पित हूँ। 

शायद वह सभी सच है 

जो कि गहरा है।





अजित कुमार


आया है वर्ष नया


कुछ देर अजब पानी बरसा 

बिजली तड़पी, कौंधा लपका... 

फिर घुटा-घुटा-सा, घिरा-घिरा 

हो गया गगन का उत्तर-पूरब तरफ सिरा।


बादल जब पानी बरसाए 

तो दिखते हैं 

जो वे सारे-के-सारे दृश्य नजर आए 

छप-छप, लप-लप, 

टिप-टिप, दिप-दिप 

ये भी क्या ध्वनियां होती हैं

सड़कों पर जमा हुए पानी में यहां-वहां 

बिजली के बल्बों की रोशनियां झांक-झांक 

सौ-सौ खंडों में टूट-फूट कर रोती हैं।


यह बहुत देर तक हुआ किया.. 

फिर चुपके से मौसम बदला 

तब धीरे से सबने देखा 

हर चीज धुली 

हर बात खुली-सी लगती है 

जैसे ही पानी निकल गया 

यह जो आया है वर्ष नया 

वह इसी तरह से खुला हुआ 

वह इसी तरह का घुला हुआ 

बन कर छाए सबके मन में 

लहराएं सबके जीवन में।


दे सकते हो? 

-दो यही दुआ।





अनिल जनविजय


नया वर्ष


नया वर्ष

संगीत की बहती नदी हो

गेहूँ की बाली दूध से भरी हो

अमरूद की टहनी फूलों से लदी हो

खेलते हुए बच्चों की किलकारी हो नया वर्ष


नया वर्ष

सुबह का उगता सूरज हो

हर्षोल्लास में चहकता पाखी

नन्हे बच्चों की पाठशाला हो

निराला-नागार्जुन की कविता


नया वर्ष

चकनाचूर होता हिमखंड हो

धरती पर जीवन अनंत हो

रक्तस्नात भीषण दिनों के बाद

हर कोंपल, हर कली पर छाया वसंत हो










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