नीलम शंकर की कविताएं
आम तौर पर आज का जमाना ऊपर और ऊपर जाने, उपलब्धियां हासिल करने का है। नीचे की तरफ देखने की फुरसत तक नहीं। लेकिन कवि की संवेदनशील नजरें तो वहीं टिकती हैं जहां अन्य किसी की नजर नहीं जा पाती। नीलम शंकर मूलतः कहानीकार हैं लेकिन इधर उन्होंने कुछ बढ़िया कविताएं भी लिखी हैं। कहानीकार के नाते भी नीलम जी की नजर अनदेखे, अनसुने, अनपहचाने तक जाती रही है। कविताओं में भी नीचे यानी कि बीज के अंकुरित होने तलक गई है। यह प्रायः अनदेखा होता है। लेकिन दुनिया भर में जो हरियाली है वह कुछ इसी अंदाज में आरंभ होती है। जीवन का आरम्भ भी उस अनदेखी दुनिया से होता है, जो सभ्यता का हेतु बनाता है। वैसे भी ऊपर का सफर इस नीचे से ही आरम्भ होता है। उपेक्षित को परिदृश्य में लाने का कार्य एक रचनाकार ही अंजाम दे सकता है। आइए आज पहली बार पर पढ़ते हैं नीलम शंकर की कुछ कविताएं।
नीलम शंकर की कविताएं
इसीलिए वह अकेला है
वह फितरतन किसी
की आंख में चढ़ा रहता
कभी किसी के सिर पर तो
कभी किसी की नाक पर।
लेकिन
कभी किसी के दिल में
नहीं उतरता
इसीलिए वह अकेला है।
जीवन में चढ़ना यदि
महत्वपूर्ण है
तो उतरना उससे अधिक।
जीवन रंग
चढ़ने में है
तो रस उतरने
में है।
मर्द किस काम का
सब अभिव्यक्त कर ही दे
तो मर्द किस बात का,
आंखो से आंसू चुवा ही दे
तो मर्द किस बात का,
मिश्री घुली आवाज हो
तो मर्द किस काम का,
ऊपर से हरी मिर्च न खाए
तो मर्द किस बात का
जो गाली गुफ्ता न करे बोले
तो मर्द किस काम का,
और जो झोंटा न पकड़े - नोचे
तो मर्द किस बात का,
जो बेटवा का बाप न कहलवा पाए
तो मर्द किस काम का,
जो औरत के कंधे लग सुस्ताए
तो मर्द किस काम का,
जो यौन पहल न करे
तो मर्द किस काम का,
मर्द जो मनुष्य बन जाए
तो मर्द किस काम का।
उनके दुःख
उनके दुख होते
बहुत परतों वाले
प्रायः दो दुखों से ही
वह परिचित कराते।
उनका पहला दुख ज्यादा
सुनाई - दिखायी पड़ता
जिससे उन्हें उनके मालिकों
से हक़ मिलना होता
दूसरा दुख वही जान
पाता, जो वास्तव में
उनके प्रति कारूणिक और
संवेदनशील होता।
पितृसत्ता
पितृसत्ता नहीं मानती
यह दुनिया स्त्रियों ने बनायी
इसकी खूबसूरती
स्त्रियों ने रची।
दरअसल किसी भी सत्ता का
असल चरित्र होता है
वास्तविकता को न
स्वीकारना।
उसी ने जीवन पाया
बीज धरती के नीचे जाता
जहां घुप्प अंधेरा होता
जड़ें भी धरती के नीचे
ही रहना पसंद करती
नींव भी कहती हमें
जमीन के नीचे ही जाना
और तो और भ्रूण भी
उदर के नीचे रहता कहता
हम यहीं से आगे बढ़ पाऐंगे
लौह अयस्क खनिज
हीरा सभी बेशकीमती
अंधेरे से ही बहुमूल्य हुए।
जिन्दगी का प्रारम्भ अंधेरे से ही होता
मूल्य बहुमूल्य अंधेरे ने ही तय किया
जिसने शिद्दत से अंधेरे को समझा जाना
उसी ने जीवन पाया
उजाले का महत्व
अंधेरे से गुजर कर ही होता।
हकदार
दूसरे की खींची लकीर मिटा कर अपनी लकीर बड़ी करना,
कब जायज रहा।
दूसरे के खेत की, खड़ी फसल को रात के अंधेरे में काट लेना,
कब जांबाजी रही ।
संसार में ऐसा कोई जीव, नहीं जो बेवजह अपना ही बच्चा खा जाए,
और जन्महंता न कहलाए।
गर्हित कार्य करते हुए, कोई भी, मुखिया सरदार कहलाने का
हक़दार नहीं बन जाता।
इतना सुरक्षित जीवन
हमने कभी कोई पौधा
नहीं लगाया
कभी मुरझाने का डर भी
नहीं सताया,
कभी कोई कुत्ता नहीं पाला
जब प्रेम अधिकाधिक होगा
असमय तभी छोड़ के जाने
का डर भी नहीं सताया।
कभी कोई तोता, मैना, बुलबुल
भी नहीं रखा
ये भी डर नहीं रहा
एक दिन ये फुर्र हो
सकते हैं।
कभी किसी से प्रेम भी नहीं किया
तो टूटने या छले जाने
का भय भी नहीं सताया।
कभी किसी यात्रा पर गए
भी नहीं
अनजानी जगहों से उपजा भय भी
नहीं सताया।
कभी लालटेन, पेट्रोमेक्स का शीशा
साफ नहीं किया
जो कभी न चटका न टूटा।
कभी खेतों में भी नहीं गया
नहीं पता अरहर की खूंटी
का दर्द
इतना सुरक्षित जीवन ने भय को इतनी जगह दे दी
प्रेम के लिए
जगह ही न बची।
अतिशयोक्ति
बारह घंटे लगातार
हाड़ - तोड़ मेहनत से
अगले दिन जब देह
टूट रही होती
तो कहता,
सा,ब हरारत रही
जब वास्तव में हरारत
घेरे रहती तो
कहता जबर ताप से
देह जल रही थी।
इस अतिश्योक्ति की
पीछे की मंशा
केवल इतनी कि
मालिक की संवेदना
हरकत में रहें।
सम्पर्क
मोबाइल 9415663226
अच्छी और सारगर्भित कविताएं!
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक और गम्भीर कविताएँ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर कविताएं💐
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन कविताएं, सभी एक से बढ़कर एक। अतिशयोक्ति कुछ ज्यादा ही दिल के करीब लगी।
जवाब देंहटाएंमर्द किस काम का पढ़कर चेहरे पर अनायास ही मुस्कान आ जाती है।
आज भी बहुत ही सटीक बैठती है यह कविता मूंछों पर ताव देते हुए मर्दों पर
Anima Singh..बेहतरीन कविताएं, सभी एक से बढ़कर एक। अतिशयोक्ति कुछ ज्यादा ही दिल के करीब लगी।
हटाएंमर्द किस काम का पढ़कर चेहरे पर अनायास ही मुस्कान आ जाती है।
आज भी बहुत ही सटीक बैठती है यह कविता मूंछों पर ताव देते हुए मर्दों पर