सेवाराम त्रिपाठी का आलेख 'हरिशंकर परसाई : लेखक भी बड़े हैं और संकट भी'

हरिशंकर परसाई लिखने का काम आसान नहीं होता बल्कि यह तमाम तरह की चुनौतियों से भरा होता है। जो सही मायनों में लेखक होता है, उसे प्रायः सत्ता के कोपभाजन का शिकार भी बनना पड़ता है। क्योंकि वास्तविक लेखक आम आदमी की आवाज को बुलन्द करता है। सत्ता आम आदमी की आवाज को कुंद करना चाहती है। इसी क्रम में उसका सत्ता से टकराव होता है। यानी लेखक आमतौर पर सत्ता के लिए संकट खड़ा करता है। हरिशंकर परसाई ऐसे ही ईमानदार लेखक थे जिनका लेखन, बकौल सेवाराम त्रिपाठी "तलछटों, दलितों और वंचितों की पुख़्ता आवाज़ है। उनका रिश्ता रिक्शा चलाने वालों और छोटे मोटे काम करने वाले लोगों से रहा है। मज़दूरों और कुचले हुए लोगों से रहा है। जो उनकी रचनात्मक सक्रियता के साथ उजागर हुआ है। तथ्य यह है कि उनका लेखन मनुष्यता की पक्षधरता का लेखन है। इस आवाज़ में कबीर और प्रेमचंद की विरासत है।" आज हरिशंकर परसाई का जन्मदिन है। पहली बार की तरफ से हम उनकी स्मृति को नमन करते हुए प्रस्तुत कर रहे हैं सेवा राम त्रिपाठी का आलेख 'हरिशंकर परसाई : लेखक भी बड़े हैं और संकट भी'। 'हरिशंकर परसाई : लेखक भी बड़े ह...