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प्रचण्ड प्रवीर द्वारा की गई समीक्षा

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  कई चाँद थे सर-ए-आसमाँ पुस्तक चर्चा प्रचण्ड प्रवीर  आलोचना का यह धर्म होता है कि वह दिए गए पाठ पर विचार करे और यह न कहें कि इसमें क्या नहीं है, बल्कि यह बताए कि इसमें क्या है। स्वर्गीय शम्सुर्रहमान फारुकी की क्लासिक ठहरा दी गयी किताब कई चाँद पे सर-ए- आसमाँ  कहा जाए तो क्लासिक कही जा ही सकती है। इसमें कोई दो राय नहीं। सन् 2010 में पहली बार प्रकाशित इस उपन्यास के बारे में मुझे मुख्य रूप से यह कहना पड़ रहा है कि यह क्या है और गौण रूप से पह बतलाना चाहूँगा कि यह क्या नहीं है। इस सम्बन्ध में दो बातों की ओर ध्यान दिलाना चाहूँगा- पहली बात कि यह मूलतः उर्दू का उपन्यास है और इसीलिए इसमें उर्दू की परम्परा ही झलकती है। इसे यदि हम खींच कर हिन्दी में लाने की कोशिश करेंगे तो वह बात बनती नहीं, ठीक उसी तरह जिस तरह अनुवादक नरेश 'नदीम' की भरसक कोशिशों के बाद भी यह किताब हिन्दी में अटपटी लगती है। उर्दू शब्दों के बीच वे अचानक तत्सम शब्द अभिलाषी और आकांक्षा डाल कर अजीब-सा है, क्या इनके लिए तद्भव और विदेशज शब्द कम पड़ गए। कुछ विद्वानों का कहना है कि - शब्द अभिलाषी पुरानी दिल्ली वालों की उर्दू ...

सुप्रिया पाठक का आलेख 'प्रेमचंद की स्त्रियाँ और नवजागरण काल'

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  इस बात में कोई दो राय नहीं कि ब्रिटिश औपनिवेशिकता ने भारत का भरपूर आर्थिक शोषण किया लेकिन यह भी सच है कि इसने भारतीय परिवेश को बदलने का वह महत्त्वपूर्ण कार्य किया जिसने उसे सही मायनों में आधुनिकता की तरफ उन्मुख किया। इस क्रम में साहित्य में भी कई महत्त्वपूर्ण बदलाव आए।  प्रेमचंद के लेखन में  नवजागरणकालीन प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ता है जिसके अन्तर्गत वे स्त्रियों को पुरुषों के बराबरी के स्तर पर रखते हैं। सुप्रिया पाठक अपने आलेख में लिखती हैं ' प्रेमचंद अपनी रचनाओं में महिला चरित्रों को कर्म, शक्ति और साहस के क्षेत्र में पुरुष के समकक्ष प्रस्तुत करते हैं पर महिला की नैसर्गिक अस्मिता, गरिमा और कोमलता को वो क्षीण नहीं होने देते। प्रेमचंद का साहित्य उन तमाम आधुनिक महिला सशक्तिकरण के चिंतको के लिये उदाहरण प्रस्तुत करता है। प्रेमचंद की रचनाओं में समकालीन भारत की गतिशील सामाजिक-राजनीतिक स्थिति के संदर्भ में महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर अपनी समझ प्रस्तुत करने के लिए उनके पात्रों की मानसिक प्रक्रियाओं में मनोवैज्ञानिक अंतर्दृष्टि निहित है। प्रेमचंद समाज में उदारवादी और रूढ़िव...