नात टिएन की कहानी “खाकी कोट”, हिन्दी अनुवाद : श्रीविलास सिंह
नात तिएन का परिचय
नात तिएन वियतनाम के बेहतरीन लेखकों में हैं। उनका जन्म 1936 में हनोई में हुआ था। उनका लालन पालन उत्तर में हुआ किंतु जब जेनेवा समझौते के अंतर्गत देश का बंटवारा 1954 में हुआ तो वे दक्षिण में चले आए। उन्होंने रसायन शास्त्र का अध्यापन और साहित्य लेखन किया। उन्होंने 1975 में एक शरणार्थी के रूप में (जिन्हें बोट पीपुल कहा जाता है) वियतनाम छोड़ दिया और अमेरिका चले आए। प्रस्तुत कहानी उनके 1983 में प्रकाशित संग्रह “तिएंगे केन” (तुरही की आवाज) से ली गई है। उनके 10 उपन्यास और 11 कहानी संग्रह प्रकाशित हैं। उनकी मृत्यु 2020 में हो गई।
युद्ध हमेशा अपने साथ तबाही लाता है। युद्ध के बाद की परिस्थितियां वहां के लोगों के लिए और दिक्कततलब होती हैं। वियतनाम भी उन राष्ट्रों में से एक है जिसने युद्ध के साथ साथ विभाजन की विभीषिका को भी एक समय में झेला। वियतनामी कहानीकार नात टिएन की कहानी “खाकी कोट” युद्ध के बाद उपजी जीवन जीने के अमानवीय परिस्थितियों का आइना है साथ ही राजनैतिक मान्यताओं पर सटीक व्यंग्य भी है। इस कहानी को हमने 'परिंद' पत्रिका के अप्रैल-मई, 2025 अंक से साभार लिया है।युवान फोंग के अंग्रेजी अनुवाद से हिन्दी अनुवाद किया है सुपरिचित अनुवादक श्रीविलास सिंह ने। तो आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं प्रसिद्ध वियतनामी कहानीकार नात टिएन की कहानी “खाकी कोट”।
(वियतनामी कहानी)
“खाकी कोट”
नात तिएन
हिन्दी अनुवाद : श्रीविलास सिंह
शोर मचाती भीड़ में वह युवा लड़की धक्का-मुक्की करती रास्ता बना रही थी। कचरे के ढेर की दुर्गंध से उसे बेहोशी सी महसूस हो रही थी। इस ने उस उबकाई को पुनर्जीवित कर दिया था जो उसके गले में कल से अटकी हुई थी, यद्यपि उसने इसे एक फरीना कैंडी से दबाने का प्रयत्न किया था। शक्कर का मीठा स्वाद अब भी उसके दांतों में शेष था जबकि उसकी कैंडी पूरी तरह घुल चुकी थी। वह जितना चाहती उतनी तेजी से बोल सकती थी, बिना इस अनुभूति के कि कोई चीज उसके मुंह में फंसी हुई थी।
सबसे पहले उसने एक वृद्ध महिला का अभिवादन किया जो एक चपटे सूप में रख कर सिगरेट के लिए सूखी तंबाकू बेच रही थी। वृद्ध महिला का उत्तर भीड़ के शोर में सुनाई नहीं पड़ा। उसे सिर्फ उन कुछ लोगों की तेज आवाजें सुनाई पड़ी जो उसके पास खड़े अपने सामान के बारे में चिल्ला रहे थे और साथ ही आस-पास के कुछ युवाओं की अश्लील बकवास भी। उनके हाथों में कई रंगों और कपड़ों की विदेशी पैंटे लटकी हुईं थी। अधिकांश सैनिकों वाले खाकी रंग की थी। कुछ राहगीर एक नजर देखने के लिए रुकते, छू कर देखते, और फिर बिना कुछ मोल-भाव किए ही चले जाते। सुबह से कोई भी कुछ बेचने में सफल नहीं रहा था, क्योंकि जब भी सुरक्षा सैनिक पेट्रोल पर होते, उन्हें सामान ले कर भागना पड़ता था। पास के मुख्य डॉन्ग युआन बाजार की तुलना में यह समूची जगह अव्यवस्थित सी थी। मुख्य बाजार के साथ समस्या यह थी कि वहां प्रदर्शित चीजें केवल ऐसे लोगों को बेची जा सकती थी जिनके पास नोटों की गड्डियाँ हो; वहां हमेशा ग्राहकों से अधिक बिक्री सहायक हुआ करते थे। अधिकांश लोगों ने मुख्य बाजार से हट के सोसायटी के सीमांत पर एक और सोसायटी बना ली थी। इस सोसायटी के अधिकांश सदस्य चिथड़ों में थे और गंदे थे। सभी अव्यवस्था में एक दूसरे का उत्साह बढ़ा रहे थे। जिस दिन बरसात होती थी, सड़क पर कीचड़ हो जाता था।
पैदल चलने को कठिन बनाता हुआ, हर तरफ कचरा बिखरा हुआ था। अक्सर सामान से भरी किसी साइड ट्रॉली लगी हुई मोटर साइकिल के आने से भीड़ थम सी जाती थी। गालियों का आदान प्रदान होता था। वे शब्द जो एजेंसियों में प्रतिबंधित थे, जो किसी कांफ्रेंस में अपने हृदय के उद्गारों को व्यक्त करने के लिए नहीं बोले जा सकते थे, वे यहां बिना किसी ऐसी निंदा के भय कि उसने राजनैतिक पक्षधरता के साथ कोई समझौता किया था, बोले जाते थे।
अन्य लोगों की तुलना में युवा अधिक आवृत्ति के साथ गाली दे रहे थे। काफी समय से युवा लड़की उस युवा पुरुष को यह सब अश्लील बकवास करते सुन रही थी। वह उसके शब्दों से परेशान नहीं थी लेकिन उसका चीखना उसकी कनपटी पर हथौड़े की तरह बज रहा था। उसे फिर उबकाई से महसूस हुई। जब वह अपनी जेब से एक और फरीना कैंडी निकालने को थी, उसे अपना काम याद आ गया। उसने कई राहगीरों के सामने अपने हाथ में लिया हुआ कोट लहराया।
कोट ने लोगों का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया। यह एक पश्चिमी कोट था, सुनहले रंग के खाकी से बना हुआ। इसकी लंबी और ढीली बाहें इतनी कुशलता से दोनों कंधों पर सिली हुई थी कि कोई सिकुड़न नहीं दिखाई देती थी। सामने दोनों लैपल्स के नीचे पहनने वाले के वक्ष पर दोनों ओर तांबे के तीन नक्काशीदार बटनों की दो पंक्तियां थी। कोट निश्चय ही किसी समृद्ध व्यक्ति का रहा होगा, जो कुछ दशक पहले अवश्य ही फैशन के प्रति जागरूक रहा होगा। क्योंकि इसका रख रखाव अच्छे से किया गया था और यह काफी नया दिख रहा था।
लड़की कोट को अपने हाथों में लिए अपने सिर के इतना ऊपर उठाएं हुए थी जितना कि संभव था। दो युवाओं से, जो उसकी तरफ आ रहे थे, उसने कहा, “यह कोट तुम्हारे नाप का है, इसे खरीद लो।”
वह रुका, और उदासीनता से देखता रहा। यद्यपि वह जानती थी कि वह मात्र जिज्ञासु था, फिर भी उसने जोड़ा, “तीस पियास्ट्रेस, आप इसे इस जाड़े में अपने स्वेटर के ऊपर पहन सकते हैं। यह बहुत गर्म रखेगा।”
युवा जो उसे पहन कर देखने का मन बना रहा था, उसका दाम सुन कर रुक गया। उसने अपनी हंसती हुई आंखों से लड़की की ओर देखा। युवा लड़की समझ गई कि यह उसके लिए बहुत महंगी थी।
ग्राहकों की एक और लहर आई और उसने उन्हें कोट दिखाया, किंतु उसे बेचने में उसकी रुचि समाप्त हो चुकी थी। उसे फिर से उबकाई सी महसूस होने लगी थी। उसने अपनी जेब से फरीना कैंडी निकाली और अपने मुंह में डाल ली। तब उसे उस उबकाई का कारण पता चला जिसे वह पिछले दिन से महसूस कर रही थी। यह वह गेहूं के बासी नूडल्स नहीं थे, जिसे पिछले अपराह्न में उसके भाई के पूरा न खाने पर उसने खा लिया था, न ही पिछली रात को पाले में निकलने के कारण उसे सर्दी लग गई थी। उसे याद आया कि कुदाल का प्रयोग करते समय उसने एक टोड की पीठ पर मार दिया था और वह बेचारा तुरंत ही मर गया था। उसने अपनी देह में तीव्र ठंडक सी दौड़ती महसूस की, जब उसने इस बारे में सोचा। एक तोड़, भले वह छोटा था, पर एक जीवन था। यह वह थी जिसने उस जीवन को मार डाला और उसे एक आकारविहीन ढेर में बदल दिया। उस रात्रि मिट्टी खोदते समय वह अस्पष्ट रूप से इस विचार से उस विचार तक भटकती रही थी। अब बाजार के किनारे कचरे के ढेर से उठती बदबू ने उसकी उबकाई को और बढ़ा दिया था – वह उल्टी करना चाह रही थी।
वह अपनी जगह से जिस क्षण हटना ही चाह रही थी, उसी समय उसने एक स्त्री को अपने ठीक सामने खड़े देखा। स्त्री ने कोट को ऐसे देखा जैसे वह किस असाधारण शक्ति द्वारा आकृष्ट हो। फिर उसका चेहरा बदरंग हो गया। उसने अपना हाथ फैला कर कोट को पकड़ लिया, और उस लड़की के चेहरे को गुस्से से घूरने लगी। लड़की को इस तरह घूरा जाना पसंद नहीं आया, न ही उस स्त्री की बदरंग मुखाकृति। वह पचास की लग रही थी लेकिन उससे कम की भी हो सकती थी। लड़की स्त्री की भारी भौहों के नीचे उसकी कीचड़ भरी आंखों के कारण विक्षुब्ध थी।
स्त्री उस लड़की के हाथों में से कोट ले लेने में सफल रही। लड़की तत्काल समझ गई कि उसका अभिप्रेत उसे खरीदना नहीं था। वह कोट को वापस झपटना और वहां से भाग जाना चाहती थी, लेकिन उसे अपने हड्डी जैसे हाथों में दृढ़ता से पकड़े हुए स्त्री ने आधिकार युक्त तरीके से पूछा, “तुम्हें यह कोट कहां मिला?”
लड़की ने फिर एक बार ठंडक सी दौड़ती महसूस की। वह उस महिला के आक्रामक रवैए से डर गई थी। वह जानती थी कि उसे अपनी कठिन स्थिति से निकलने हेतु स्वयं पर काबू पाना होगा। उसने कहा, “मैने इसे फिर से बेचने हेतु खरीदा था,” और फिर कोट वापस छीन लेना चाहा। स्त्री ने उसकी बांह पकड़ ली। उसने अपनी त्वचा में उस स्त्री के तीखे नाखून चुभते हुए महसूस किए। उसे भान हो गया कि उसने गलती कर दी थी। उसे उसी समय भाग जाना चाहिए था जब उसके पास अवसर था। अब तो बहुत देर हो चुकी थी। स्त्री उसे अपने पंजे में कस कर पकड़े हुए थी। अपनी दुबली पतली देह के बावजूद उस स्त्री में असाधारण शक्ति थी। लड़की ने स्वतंत्र होने के लिए बहुत कोशिश की किंतु कोई सफलता न मिली।
भौहें सिकोड़ते हुए लड़की ने गुस्से से पूछा, “तुम कर क्या रही हो?”
स्त्री ने कहा, “मैं तुम से पूछती हूँ — तुम्हे यह कोट कहां से मिला?”
“मैने इसे फिर से बेचने के लिए खरीदा था।”
“कितनी बड़ी झूठी हो तुम! चलो जन सुरक्षा चौकी तक मेरे साथ चलो।”
लड़की ने भाग जाने के लिए बहुत संघर्ष किया। लेकिन स्त्री की पकड़ मजबूत थी और वह, बाजार के उस हिस्से में अशांति सी सृजित करती, उसे अपने साथ घसीटने लगी। लोग चारों ओर इकट्ठा हो गए और सवाल पूछने लगे:
“क्या यह चोर है?”
“क्या लुटेरी है?”
“मारो इसे। काम नहीं करना चाहती! बस परजीवी होना चाहती है।”
कुछ एक कामरेड जो बाजार में सुरक्षा प्रतिनिधि के रूप में काम करते थे, कुछ मिनट में ही उस जगह आ गए। एक आगे बढ़ा और लड़की की दूसरी बांह पकड़ कर स्त्री की सहायता करने लगा। उसके बाल खुल गए, और उसकी सदरी भी, किंतु उस हाथापाई में, वह न कुछ देख पाई, न किसी चीज में अंतर कर पाई। उसने घर पर अपने दो भाई बहनों के बारे में सोचा, उसने उस स्त्री की क्रोधित आंखों के बारे में सोचा, पीले कोट के बारे में सोचा, कुचल गए टोड के बारे में सोचा। हर चीज उसके मस्तिष्क में से इतनी तेजी से गुजर रही थी कि उसने चौंधियाया सा, दबा हुआ सा महसूस किया, और स्वयं को एक पशु की भांति घसीट कर लिए जाने दिया।
जन सुरक्षा चौकी पर उस स्त्री ने कहा:
“प्रिय कॉमरेड्स, मेरे पति को दफनाए हुए अभी पांच दिन ही हुए हैं। मुझे इस संबंध में हर बात स्मरण है। मैने उन्हें दफनाए जाने से पूर्व यह खाकी कोट स्वयं पहनाया था। यह पश्चिमी खाकी कोट कई दशकों से हमारी संपत्ति रहा है। मैं इस पर के निशान आप को दिखा सकती हूँ। आज जब मैं बाजार में थी, मैने इस लड़की को वही कोट बेचने का प्रयत्न करते हुए देखा, जिसमें मेरे पति दफनाए गए थे। प्यारे कामरेड्स, कृपया पता करें कि यह कोट किस प्रकार फिर इस दुनिया में आ गया? यह इस लड़की के पास कैसे आया?”
जन सुरक्षा कार्यालय का हर व्यक्ति स्तंभित था। पास की मेजों पर के स्टाफ ने की काम करना बंद कर दिया और उधर ही देखने लगे। इसके पहले कभी कोई ऐसी विचित्र कहानी के साथ नहीं आया था। सभी की निगाहें लड़की पर थी। वह अपने विरुद्ध भीड़ द्वारा इतनी दूर तक घसीट कर ले आए जाने से थकी हुई लग रही थी, लेकिन अब वह शांत हो चुकी थी। उसके व्यवहार ने उसकी भावनाओं को छिपा लिया था। वह ऐसे खड़ी थी जैसे को खड़े होने और किसी भी चीज से लड़ने को तैयार हो।
उसने उस स्त्री से कहा, “हां यह तुम्हारे पति का कोट है। इस तरह चीखने की कोई जरूरत नहीं है।”
यही वह स्वीकारोक्ति थी जो वह औरत चाहती थी। उसने अपने दोनों हाथ जन सुरक्षा प्रतिनिधियों की भीड़ की ओर उठाए मानो वह कहना चाहती हो कि, “देखा, देखा? क्या मेरी बात गलत थी? मैने कहानी नहीं गढ़ी थी।” फिर वह जोर से सांस लेती बैठ गई। उसे वह मिल गया था जो वह चाहती थी। अब यह सरकार के हाथ में था। सरकार उसका मामला ठीक करेगी। यदि वह संतुष्ट नहीं होगी तो मामले को टाऊन कमेटी के सामने ले जाएगी। जिस तत्परता से जन सुरक्षा प्रतिनिधियों ने अब तक इस मामले में जिस तरह से काम किया था, उससे उसे कुछ संतुष्टि सी मिली थी। उसका चेहरा तनावमुक्त हो गया। फिर कार्यालय के हर व्यक्ति ने उसका रोना सुना। उसने अपने शोक के परिधान की बेल्ट से अपना चेहरा जानबूझ कर इस तरह से पोंछा कि हर एक का ध्यान उसकी ओर आकृष्ट हो जाए। इसका तत्काल वांछित परिणाम हुआ और ड्यूटी पर तैनात जन सुरक्षा प्रतिनिधि ने उसे सांत्वना दी, फिर वह लड़की की ओर मुड़ा और बोला, “होश में आओ, और मुझे हर चीज बताओ, अन्यथा अपना बाकी जीवन जेल में बिताओगी जब तक कि तुम्हारी गर्दन में पड़ी बेड़ियों को लकड़ी के कीड़े नहीं खा जाते।”
ऊपर देखते हुए, लड़की ने जोर से जवाब दिया, “प्यारे कॉमरेड, क्या तुम्हारा शासन अब भी बेड़ियों का प्रयोग करता है?”
सुरक्षा प्रतिनिधि का चेहरा बदरंग हो गया, फिर लाल। उसने जो गलती की थी उसे मिटाने को अपनी आवाज ऊंची की, “इससे मुंह मत छिपाओ। मुझे बताओ तुम्हें यह कोट कहां मिला?
“मैं क्यों नहीं बताऊंगी?” लड़की ने कहा, “मुझे किसी बात से इनकार नहीं है। और मुझसे इस तरह बात मत करो। मैं जनता का हिस्सा हूँ। तुम जनता की सेवा करते हो। तुम्हें मुझ से इस तरह बात करने का कोई अधिकार नहीं।”
लगातार इन दो चोटों से स्तंभित, सुरक्षा प्रतिनिधि अपने सामने बैठी लड़की को आश्चर्य और जिज्ञासा से देखने लगा। अनुभव ने उसे सिखाया था कि इस तरह के निडर व्यवहार वाले व्यक्ति का कोई न कोई प्रभावशाली रिश्तेदार अवश्य होता है। तब तक शांत रहना ही बेहतर है जब तक वह उसके बारे में और अधिक नहीं जान जाता। वह नरम पड़ गया और उसने अपनी आवाज नीची कर ली, “अच्छा ठीक है, जो मैने कहा मैं उसे वापस लेता हूँ। लेकिन मैं तुम्हें अग्रिम रूप से चेतावनी देता हूँ कि तुम्हें सब कुछ बताना है। तुम्हें यह कोट कहां से मिला?”
लड़की ने अपनी तेज और भावनाहीन आवाज में बस इतना कहा, “कब्रों में से।”
हर व्यक्ति स्तंभित था। औरत ने भी रोना बंद कर दिया और आँखें फाड़ कर लड़की को देखने लगी। निश्चय ही यह कब्र में ही मिली होगी, लेकिन वह विश्वास नहीं कर पा रही थी कि ऐसा भयानक कृत्य इस दुबली पतली लड़की द्वारा किया गया होगा। अकस्मात उसे याद आया कि उसने आधे घंटे पूर्व क्या किया था। उसने इस लड़की को बीच बाजार में पकड़ा था और उसे लंबी दूरी चल कर इस जन सुरक्षा चौकी तक लाई थी — और उस लड़की ने उसे छुरा नहीं मारा था। उसे महसूस हुआ कि वह अभी अभी एक बड़ी आपदा से बची है।
अब वातावरण में अधिक गंभीरता छा गई थी। यह कोई चोरी या डकैती का मामला नहीं था। यह किसी की कब्र को खोदने का मामला था। यह ऐसा दुर्लभ मामला था कि उन्होंने पहले कभी भी इस पर विचार नहीं किया था। हर प्रक्रिया को फिर से सोचना पड़ेगा। मामले को वरिष्ठ अधिकारियों के संज्ञान में लाना होगा। मेजों पर बिखरी फाइलों को व्यवस्थित किया गया। सचिव द्वारा बचावकर्ता का बयान लिखने के लिए कागज का एक पैकेट लाया गया। सुरक्षा प्रतिनिधि जो अभी तक मेज के सामने बैठा था, उसकी जगह एक उच्चतर रैंक के अधिकारी ने ले ली।
लड़की का बयान पूरे दिन चला। उसने सारे सवालों के जवाब दिए, पूरा सच बताया। उसने हर चीज का विवरण दिया, यह समेत कि एक टोड उसकी कुदाल से कुचल कर मर गया था। सचिव ने अपनी अजीब सी हस्तलिपि में इस प्रक्रिया में सारा कागज खर्च कर दिया।
अब यह बात पता थी कि वह दो वर्षों से कब्रें खोद कर जीविका अर्जित कर रही थी। कठपुतली सरकार से अपने संबंधों के कारण उसके पिता को पुनर्शिक्षा कैंप भेज दिया गया था, जहां उनकी मृत्यु हो गई। उसकी मां ने दूसरा विवाह कर लिया, और फिर कुछ साल बाद मर गई। उसके साथ उसके दो भाई बहन हैं जिनकी उसे देखभाल करनी है। उसने कई काम किए, लेकिन केवल कब्रों को खोद कर मृतकों की चीजें निकलना ही फायदेमंद साबित हुआ।
उस स्त्री, जिसके पति की कब्र खोदी गई थी, के अनुरोध पर, लड़की को मुकदमें की प्रतीक्षा के लिए कैद में डाल दिया गया। लेकिन एक महीने बाद वह पुनः भगोड़े बाजार में दिखाई दी। वह पीली और दुर्बल लग रही थी। उसका स्वास्थ्य क्षीण हो गया था।
वह अपने आप को समेटे फुटपाथ के एक कोने में उकड़ू बैठी थी। उसके सामने कंडेंस्ड दूध की कुछ कैन और शक्कर के कुछ पैकेट रखे थे। उसका बायोडाटा, अब भी कलंकहीन, उसे अब भी कोई व्यवसाय, जो वह करना पसंद करती, करने की अनुमति देता था, क्योंकि जब उसे अदालत में लाया गया, उसने ये कहा था:
“अब हम एक समाजवादी देश में रहते हैं। भौतिकवाद को बढ़ावा दिया जा रहा है तथा आदर्शवाद हतोत्साहित किया जा रहा है। केवल वही जिनके मस्तिष्क में आदर्शवाद भरा है, ये सोचेंगे कि किसी की कब्र खोदना किसी की आत्मा का अनादर करना है। जहां तक मेरी बात है, मैं अपनी जीविका अपने स्वयं के श्रम से अर्जित करती हूँ। मैं किसी परजीवी की भांति नहीं जीती, किसी और कीमत पर। मैने सिर्फ वही लिया था जो कब्र में दफ्न कर दिया गया था, अर्थात जिसका हमारे समाज द्वारा परित्याग कर दिया गया था। और यह भी कि, जो लाभ मैने अर्जित किया उसका प्रयोग मैने अपने भाई–बहन के पालन पोषण के लिए किया। इसका अर्थ है कि इस तरह के श्रम द्वारा मैने दो ऐसे बच्चों का पालन पोषण किया है जो नई पीढ़ी से संबंधित हैं और जिनके हाथों में हमारे समाजवादी देश का भविष्य है। अतः मैं पूर्णतः निर्दोष हूँ।
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श्रीविलास सिंह |
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