मनोज कुमार पांडेय की कहानी 'उसी के पास जाओ जिसके कुत्ते हैं'

 

मनोज कुमार पाण्डेय 



साहित्य में बातें कहने के लिए रचनाकार अक्सर रूपकों का इस्तेमाल करते हैं। ये रूपक उस घटना परिघटना को और पुष्ट तरीके से रुपायित करते हैं जिनके बारे में बात कही गई होती है। मनोज कुमार पाण्डेय अपनी कहानियों में इसका प्रयोग बेहतर तरीके से करते हैं। अपनी कहानियों में वे व्यंग्य का सहारा लेता हैं। ऐसा व्यंग्य जो अंतर्मन तक को बेध दे। उनकी यह कहानी पढ़ते हुए मुझे हरिशंकर परसाई की याद आई।

आजकल अक्सर यह चिंताजनक खबर आम तौर पर देखने को मिलती है कि कुत्तों के झुण्ड द्वारा किसी आदमी पर अचानक हमला कर नोच नोच कर मार डाला गया। कुत्तों द्वारा अप्रत्याशित रूप से हमला अच्छे खासे निडर व्यक्ति को डरा देती है। कुत्तों को हमने पालतू तो बना लिया लेकिन उनके आक्रामक व्यवहार को आज तक हम कहां नियंत्रित कर पाए? 

इस कहानी में मनोज कुत्तों के हवाले से उस पूरी व्यवस्था की आक्रामकता का जिक्र करते हैं, जिनको निर्बल आम आदमी को राहत देने के लिए बनाया गया था। पुलिस प्रशासन से हारा हुआ आम आदमी इस क्रम में अदालत जाता है लेकिन जान बचाने की गुहार लगाते आदमी को कोर्ट यह आदेश देती है कि 'वह पहले कुत्तों के मालिक का पता करे। इसके बाद थ्रू प्रॉपर चैनल आए। वह तत्काल अदालत से जाए और कोर्ट का कीमती वक्त जाया मत करे।' वह आम आदमी पाता है कि वह चारो तरफ से उन आक्रामक कुत्तों से घिरा हुआ है जो उसे नोच खाने पर आमादा हैं। यह कहानी उस व्यवस्था पर खासा व्यंग्य करती है जो आम आदमी को ही सर्वाधिक ताकतवर बनाने की आड़ में अपनी मनमानी करती रहती है। इस कहानी की तहकीकात करते हुए यादवेन्द्र लिखते हैं : "कुत्तों का रूपक कहीं कल्पना के निर्वात से नहीं आया है बल्कि हालिया इतिहास में इसकी जड़ें हैं। अमेरिका के अश्वेत समुदाय के प्रतिरोध का दमन करने के लिए खूंखार कुत्तों को हत्या के लिए प्रशिक्षित किए जाने और वास्तविक उपयोग में लाने के अनेक उदाहरण एकेडमिक अध्ययन का विषय बने हैं। बिल्कुल ज्वलंत उदाहरण इजराइल का है जहाँ फिलिस्तीनियों को दबाने के लिए यूरोप से खास तौर पर मंगवाए गए कुत्तों की खबरें हैं।"

कल हमने ब्लॉग पर यादवेन्द्र का कॉलम 'जिन्दगी एक कहानी है' प्रस्तुत किया था जिसके अन्तर्गत उन्होंने मनोज कुमार पाण्डेय की कहानी 'उसी के पास जाओ जिसके कुत्ते हैं' का विश्लेषण किया था। आज हम उसी कहानी को प्रस्तुत कर रहे हैं। तो आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं मनोज कुमार पांडेय की कहानी 'उसी के पास जाओ जिसके कुत्ते हैं'।



'उसी के पास जाओ जिसके कुत्ते हैं'


मनोज कुमार पांडेय 



मुझे पता भी नहीं चला कि कब ये कुत्ते मेरे पीछे लग गए। जब पता चला तो मैं पसीने-पसीने हो गया। मैंने कहीं पढ़ा था कि अगर कुत्ते पीछे पड़ ही जाएँ तो एकदम से भागना ख़तरनाक होता है। आप कुत्तों से तेज़ कभी नहीं दौड़ पाएँगे। कुत्ते आपको नोच डालेंगे।


मैं रुक गया। थोड़ी-सी दूरी बना कर कुत्ते भी रुक गए। वे ख़तरनाक तरीक़े से मुझ पर ग़ुर्रा रहे थे। उनकी आँखों में ख़ून दिख रहा था। उनकी ग़ुर्राहट से मेरी समूची चेतना में एक भयावह कँपकँपी उतर रही थी। मैं उन्हें अपनी तरफ़ देखते और ग़ुर्राते हुए देख रहा था और रह-रहकर काँप रहा था। उनकी लंबी-लंबी लटकती हुई जीभों से लार टपक रही थी।


इस तरह से देर तक रुके रहना भी ख़तरनाक हो सकता था। मैंने धीरे-धीरे पीछे सरकना शुरू किया। कुत्ते भी ग़ुर्राते हुए मेरी तरफ़ बढ़े। तभी मैंने देखा कि वे भेड़ियों की तरह मुझे चारों तरफ़ से घेरने की कोशिश कर रहे हैं। मेरे रोएँ-रोएँ में सिहरन दौड़ गई। पल भर के लिए मैं जड़ हो गया। मेरी जड़ता तब टूटी जब एक कुत्ते ने मेरी पिंडलियों में अपने दाँत गड़ा दिए। मैं चीख़ते हुए भागा।


कुत्तों का वह समूचा झुंड मेरे पीछे लग गया। मैं अपने जीवन में इतनी तेज़ कभी नहीं भागा था। इसके बावजूद कुत्ते नज़दीक ही आते जा रहे थे। पीछे मुड़ कर बार बार कुत्तों को देखने की वजह से मैं कई बार गिरते-गिरते बचा। कुत्ते इतने नज़दीक थे कि अगर मैं एक बार भी गिर जाता तो मुझे उनकी ख़ुराक बनने से कोई नहीं रोक सकता था। मैंने भागते हुए तय किया कि अब पीछे मुड़ कर नहीं देखूँगा।


मेरे सीने में हथौड़े चल रहे थे। मैं बहुत देर तक भाग नहीं सकता था। किसी भी पल मेरा दम उखड़ने वाला था और इसी के साथ कुत्ते मुझे नोच खाते। भागते हुए मैंने ख़ुद को कुत्तों द्वारा नोचे जाते हुए देखा। नोचे जाते हुए मेरा चेहरा सपाट था। जैसे किसी भी तरह का एहसास ही समाप्त हो गया हो। यह सोचना ही असहनीय था। और इसी के साथ मैं ज़मीन पर उभरी किसी चीज़ में फँस कर लड़खड़ाया।


मैंने हवा में उड़ते हुए नीचे देखा कि वह किसी पेड़ की जड़ थी। जड़ है तो पेड़ भी होगा। मैंने पेड़ की एक डाल जैसे जादू के ज़ोर से पकड़ ली। इसके पहले कि मैं ख़ुद को पूरी तरह से डाल के ऊपर ले पाता, मेरे नीचे लटकते हुए पैर को एक कुत्ते ने अपने जबड़े में भर लिया। मेरे दोनों हाथ और दूसरा पैर डाल के साथ संतुलन बनाने की कोशिश में थे। पेड़ ही दुबारा काम में आया। उसने अपनी एक सूखी टहनी मेरे हाथों में थमा दी।


मैंने एक हाथ और एक पैर के सहारे पेड़ पर लटके हुए दूसरे हाथ से कुत्ते पर जैसे अपनी पूरी ताक़त निचोड़ते हुए हाथ चलाया। टहनी कुत्ते के सिर में लगी और वह वहीं पर ढेर हो गया। मैंने जल्दी से ख़ुद को डाल के ऊपर खींच लिया। तब तक पेड़ के नीचे कुत्ते ही कुत्ते जमा हो चुके थे। मेरे पैरों से ख़ून टपक रहा था। जिसे वे ग़ुर्राते हुए हवा में ही लपक ले रहे थे।


मैंने पेड़ पर नज़र दौड़ाई। मुझे कोई ऐसी जगह चाहिए थी, जहाँ मैं थोड़ी देर तक बैठ सकता। मैं बेतरह हाँफ रहा था। मुझे थोड़ा वक़्त चाहिए था कि मैं अपनी साँसें सम पर ला सकूँ। मेरी आँखों ने वह जगह खोज ली और पेड़ की डाल को मज़बूती से पकड़े हुए मैं उस तरफ़ बढ़ा। इसी के साथ ग़ुर्राते हुए कुत्ते भी उसी तरफ़ बढ़े जो मेरे टपकते हुए ख़ून के लिए एक दूसरे पर ग़ुर्रा रहे थे।


इसके पहले कि मैं दो-चार लंबी साँसें खींच पाता, मैंने देखा कि कुत्ते भालू की तरह पेड़ पर चढ़ने की कोशिश कर रहे हैं। पल भर के लिए मेरा ख़ून जम-सा गया, पर जल्द ही मैंने पाया कि पेड़ पर पहले से ही होने की वजह से मैं उनका पिछवाड़ा लाल कर सकता हूँ। मैंने एक मोटी-सी टहनी खोजी और कई कुत्तों का पिछवाड़ा लाल कर दिया। वे पिंपियाते हुए नीचे गिर गए।


मुझे लगा कि मैंने उनसे पार पा लिया, पर यह मेरा भ्रम ही था। पेड़ के नीचे कुत्ते ही कुत्ते थे। वे एक दूसरे पर चढ़ते हुए चारों तरफ़ से पेड़ पर चढ़ने की कोशिश में थे। मैं उन्हें मारते-मारते थक जाता, तब भी वे कम होने का नाम न लेते। मुझे किसी भी तरह से यहाँ से निकलना था। इसके अलावा मेरे बचने का कोई दूसरा उपाय नहीं था।


मैंने पेड़ पर सब तरफ़ निगाह दौड़ाई। बगल से हो कर एक नदी बह रही थी। घबराहट के मारे मेरी उस तरफ़ निगाह ही नहीं गई थी। नदी में बहुत सारे लोग सैर-सपाटे पर थे। एक मोटरबोट भी दिखी जिस पर पुलिस वाले सवार थे। अगर मैं किसी भी तरह से नदी में पहुँच पाता तो इन कुत्तों से बच सकता था। पेड़ की एक शाखा नदी के पानी को छू-सी रही थी। बस मुझे उस पर से होते हुए जाना था और नदी में कूद जाना था।


यह मेरे सोचे जितना आसान नहीं साबित हुआ। नदी के राहत भरे दृश्य देखते हुए मैं थोड़ा असावधान हो गया था। जिसका फ़ायदा उठा कर दूसरी तरफ़ से कई कुत्ते पेड़ पर चढ़ आए थे। अब मेरे पास ज़रा भी समय नहीं था। कुत्ते पेड़ पर मुझे दुबारा चारों तरफ़ से घेरने की कोशिश में थे। मैं नदी की तरफ़ जाने वाली शाखा की तरफ़ लपका और लगभग दौड़ते हुए नदी में कूद गया।


कुत्तों को अंदाज़ा नहीं था कि मैं यह करने वाला हूँ। मेरे दौड़ते ही वे मेरे पीछे लपके। मेरी क़िस्मत अच्छी थी कि मैं उनकी पहुँच से दूर रहा और नदी में कूद गया। यह भी क़िस्मत की बात थी कि जहाँ कूदा वहाँ पर नदी में पर्याप्त पानी था। कुत्ते ऊपर से भौंक रहे थे, नीचे से ग़ुर्रा रहे थे पर अब मुझे उनका डर नहीं था। नदी में पुलिस थी। मैं पुलिस की मोटरबोट की तरफ़ लपका।


पुलिस ने मेरी बात धैर्य से सुनी, पर उनकी तरफ़ से मुझे टका-सा जवाब मिला। मुझसे कहा गया कि यह सबसे बड़े वाले हाकिम का वी.वी.आई.पी. घाट है। और वे उन लोगों की सुरक्षा के लिए यहाँ पर तैनात हैं। इसलिए चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते। पुलिस ने कहा कि मुझे अपने आपको कुत्तों के हवाले करना होगा जिससे कि सबसे बड़े वाले हाकिम की सुरक्षा पर कोई आँच न आए। मैं यह काम नहीं करूँगा तो पुलिस वाले ख़ुद मुझे कुत्तों के हवाले करने पर मजबूर हो जाएँगे।


शुरू में मैंने इसे मज़ाक़ समझा। मैंने कहा कि मैं इस समय मज़ाक़ सहने या समझने की हालत में नहीं हूँ। मेरी साँस फूल रही है। कुत्तों ने मेरा पैर नोच खाया है। कृपया मुझे सुरक्षा दें और मेरे उपचार की व्यवस्था करें। पुलिस वालों ने कहा कि यह सब करना फ़िलहाल उनके लिए संभव नहीं है। ज़्यादा से ज़्यादा वे मेरे लिए यह कर सकते हैं कि मुझे नदी पार करने की अनुमति दे दें। उसके आगे मेरी क़िस्मत।


अब तक मुझे समझ में आ गया था कि यह मज़ाक़ नहीं था। मैं भय से जड़ हो गया। मैंने इतनी चौड़ी नदी इसके पहले कभी पार नहीं की थी, पर अभी मेरे पास बचने का कोई दूसरा उपाय नहीं था। मैंने तैरना शुरू कर दिया। पीछे से एक दयालु पुलिस वाले ने कहा कि कब तक भागोगे बेटा। बचना है तो उसी की शरण में जाओ जिसके ये कुत्ते हैं। उसके अलावा कोई भी तुम्हें नहीं बचा सकता।





पुलिस वाला और भी कुछ कह रहा था, पर उससे पूरी तरह से नाउम्मीद मैं आगे बढ़ने लगा। ठीक इसी समय मेरे मन में एक ख़याल आया जिसके आते ही मैंने ख़ुद को कोसा कि यह बात पहले मेरे मन में क्यों नहीं आई। मुझे लगा कि यह सबसे बड़े वाले हाकिम का घाट है। तो ज़ाहिर कि यहाँ जो हैं वे उनके बहुत ही क़रीबी लोग होंगे। उनमें से कोई मेरी मदद के लिए तैयार हो जाए तो पुलिस वालों को उसकी बात सुननी ही पड़ेगी। मन में यह बात आते ही मैं उन लोगों की नावों की तरफ़ बढ़ा।


मैं उनसे कुछ कह पाता इसके पहले पुलिस वाले ही हरकत में आ गए। एक बेवक़ूफ़ ने मुझे गिरफ़्तारी की धमकी दी। मैंने कहा कि प्लीज़ सर, मुझे गिरफ़्तार कर लीजिए। जवाब में उसने कहा कि वह मुझे गिरफ़्तार करके कुत्तों के झुंड के बीच फेंक देगा। यह धमकी कारगर होती इसके पहले ही सबसे बड़े वाले हाकिम ने पुलिस वालों से पूछा कि यह क्या तमाशा है? मैं तो सबसे बड़े वाले हाकिम को देख कर ही ख़ुश और निश्चिंत हो गया था। मैं कुछ कह पाता इसके पहले एक पुलिस वाले ने मेरा मुँह दाब लिया। दूसरे पुलिस वाले ने विनम्रता से आगे बढ़ कर उसे कुछ बताया।


बदले में सबसे बड़ा वाला हाकिम ख़ुश हुआ। उसने कहा कि इस आदमी को पकड़ो और इसकी कुत्तों से कुश्ती कराओ। मैंने कभी कुत्ते और आदमी के बीच सचमुच की कुश्ती नहीं देखी। अगर यह कुश्ती जीत गया तो इसे मैं अपने घर के गेट पर नौकरी दूँगा। यह कह कर उसने गर्व से मेरी तरफ़ देखा और बोला, अब तो ख़ुश हो ना। बहादुरी दिखाओ, कुत्तों को हराओ और कुत्ते की जगह नौकरी पाओ। पुलिस वाले उस आदमी की हर बात पर गंभीरता से हँस रहे थे कि यह बात आप जैसा कोई दरियादिल ही कर सकता है सर!


मैं सरपट भागा। मैंने जिन लोगों को इनसान समझ लिया था, वे इनसान तो नहीं थे और जो भी थे कुत्तों से तो ज़्यादा ही ख़तरनाक थे। मुझे अपने पीछे देर तक उनकी डरावनी हँसी सुनाई देती रही। जब मैं किसी तरह डूबते उतराते नदी पार करने के क़रीब था तो मुझे स्टीमर की आवाज़ सुनाई पड़ी। मैंने पीछे मुड़ कर देखा तो वही सबसे बड़ा वाला हाकिम कुत्तों के झुंड के साथ स्टीमर पर सवार था। मैंने उसे उसके कपड़ों से पहचाना। नहीं तो उसकी शक्ल अब इनसानों जैसी क़तई नहीं दिखाई दे रही थी।


मैंने जितना तेज़ तैर सकता था, उसकी दोगुना तेज़ी से तैरा और आख़िरकार मैं नदी के बाहर था। कुत्ते अभी दूर थे। मैं इस तरह से हाँफ रहा था जैसे फेफड़े ही बाहर आ जाने वाले हों। लेकिन मेरे पास सुस्ताने के लिए भी समय नहीं था। मैं तेज़ी से आगे की तरफ़ भागा। कुत्तों के ग़ुर्राने और भौंकने की आवाज लगातार नज़दीक आती लग रही थी। मैं इतना डरा हुआ था कि पीछे मुड़ कर देखने की भी हिम्मत नहीं कर पा रहा था।


आगे एक बनती-बिगड़ती इमारत थी, जिसमें कोर्ट का बोर्ड लगा था। मैं भरी अदालत में पहुँच गया। मैंने कहा कि 'साहब' मेरे पीछे बहुत सारे कुत्ते पड़े हुए हैं। वे मुझे फाड़ खाएँगे। कृपया मेरी मदद करें। जज मुझ पर नाराज़ हो गया। उसने कहा कि 'साहब' तो लोग बस के कंडक्टर को भी कह देते हैं। तुमने इस आनरेबल कोर्ट की अवमानना की है। तुम पर मुक़दमा चलेगा। यहाँ जज को 'माई लार्ड' कहा जाता है। मैंने तुरंत अपनी ग़लती सुधारते हुए कहा कि 'माई लार्ड' कृपया मुझे तुरंत गिरफ़्तार करवा लें।


बस यहीं पर मुझसे ग़लती हो गई। 'माई लार्ड' कहते ही जज ख़ुश हो गया। उसने कहा कि अब तुम्हारी ग़लती माफ़ की जाती है। अब तुम्हें गिरफ़्तार करके केस नहीं चलाया जाएगा। पर यह अदालत ऐसी किसी बात पर कोई कार्यवाही कैसे कर सकती है, जिसमें एक पक्ष जानवर हो। क्या पता कल को तुम भी जानवर ही साबित हो जाओ। तो ऐसे में तो कोर्ट हँसी का पात्र बन जाएगी। है कि नहीं? और अगर तुम्हें कोई शिकायत करनी ही है तो पहले कुत्तों के मालिक का पता करो। इसके बाद थ्रू प्रॉपर चैनल आओ। अभी यहाँ से जाओ और कोर्ट का क़ीमती वक़्त ज़ाया मत करो।


कोर्ट से बाहर फेंके जाने के बाद फिर मैं सड़क पर था। मेरे चारों तरफ़ कुत्तों के ग़ुर्राने की आवाज़ें थी। अब कहाँ जाऊँ? ग़ुर्राहट सब तरफ़ से नज़दीक आती जा रही थी। वे किसी भी क्षण मुझे दबोच सकते थे। अब मुझमें भाग पाने की ताक़त नहीं बची थी। मुझे कहीं कोई छुपने की जगह चाहिए थी। सुस्ताने के लिए और नए सिरे से ताक़त इकट्ठा करने के लिए थोड़ा-सा वक़्त चाहिए था। मैंने तेज़ी से चारों तरफ़ नज़र दौड़ाई और एक जगह पर मेरी नज़रें रुक गईं।





यह एक नया-नया बना शौचालय था जो बाहर से छोटा-मोटा ताजमहल लग रहा था। मैं तेज़ी से गया और जा कर शौचालय में घुस गया। जैसे ही मैंने अंदर से किवाड़ बंद करना चाहा। मैंने पाया कि किवाड़ में भीतर से सिटकिनी नहीं लगी है। इसके पहले कि मैं बाहर निकल पाता कुत्तों ने शौचालय को चारों तरफ़ से घेर लिया। उनके ज़ोर-ज़ोर से सूँघने और साँस लेने और ग़ुर्राने की डरावनी आवाज़ों ने मुझे चारों तरफ़ से घेर लिया था। छिपने की कोशिश में मैं सब तरफ़ से घिर गया था।


मैं देर तक भीतर से किवाड़ को दबाए चुपचाप खड़ा रहा। मेरा एक-एक रोयाँ जैसे कान बन गया था। इन सारे ही कानों में कुत्तों के ग़ुर्राने और भौंकने की आवाज़ें थीं। मेरी साँसें जैसे रुक-सी गई थी। शरीर में ख़ून का बहना रुक गया था। बस कुत्तों के होने का शोर था। वही शोर मेरी नसों में ख़ून की जगह पर बह रहा था।


शौचालय के किवाड़ पर कुत्ते लगातार धक्का मार रहे थे। पंजों से सब तरफ़ की मिट्टी खोदी जा रही थी। मैं बस किवाड़ पर अपना सारा ज़ोर लगाए उसी से चिपका हुआ खड़ा था। तभी मैंने पाया कि मेरा चूतड़ किसी कुत्ते के जबड़े में है। मैंने अपनी हिरन हुई आँखों से पीछे देखा तो पाया कि पीछे कुत्ते की गर्दन आने भर का सुराख़ बन गया है और उसी से हो कर एक कुत्ता मुझे नोच रहा है।


तभी वैसे ही बहुत सारे सुराख़ बन गए। मैं कुछ समझ पाता उसके पहले बहुत सारे कुत्तों के लार टपकाते जबड़े भीतर थे। पल भर में मेरे शरीर को सब तरफ़ से न जाने कितने जबड़े अपनी अपनी तरफ़ नोच रहे थे। मैंने किवाड़ खोलने की कोशिश की तो पाया कि अब यह बाहर से बंद था। मैंने किवाड़ पर अपना सारा ज़ोर लगा दिया पर वह अपनी जगह पर बना रहा।


मैं एक तरफ़ से बचने की कोशिश में दूसरी तरफ़ से ज़्यादा नोचा जा रहा था, फिर भी बार-बार मैं यही कर रहा था। भय, आतंक और दर्द के मारे मैं लगातार चीख़ रहा था पर कुत्तों की ख़ुश ग़ुर्राहटों के बाहर मेरी चीख़ का शायद कोई अस्तित्व नहीं था। तभी जैसे सिर के ऊपर से कुछ खिसकने की आवाज़ आई। शौचालय की छत अपनी जगह से खिसक रही थी। शायद मेरी चीख़ बाहर तक पहुँच गई थी। अब शायद मैं बचा लिया जाऊँ।


ऊपर से वही सबसे बड़ा वाला हाकिम आदमी झाँक रहा था जो कुत्तों के साथ मेरी कुश्ती करवाना चाहता था। उसने कहा कि तुम जितना चीख़ोगे, मेरे कुत्तों को उतना ही मज़ा आएगा। मैं उससे दुबारा कहने जा रहा था कि मुझे बचा लो, पर उसके चेहरे पर की चमक देख कर मैं समझ गया कि इससे कुछ भी कहना व्यर्थ है। सभी कुत्तों की हिंसा से ज़्यादा हिंसा उसकी उन चमकती हुई आँखों में भरी हुई थी।


उसने कहा कि यह तो सबको पता है कि मेरे कुत्ते पागल हैं। तुम उनके सामने आए ही क्यों? क्या तुमको पता है कि उनको किसी आदमी का मांस खिलाना अपराध है और तुम इनको अपना ही माँस खिलाए जा रहे हो! क्या तुम्हारे मन में हमारे पवित्र क़ानूनों के लिए ज़रा भी जगह नहीं है! तुम्हारे जैसे लोगों की वजह से मेरे कुत्तों की बदनामी होती है। और तुम तो लगातार ग़लती पर ग़लती पर ग़लती किए जा रहे है। तुम्हारे मन में इस व्यवस्था के प्रति ज़रा भी सम्मान है या नहीं!


मैं जानता हूँ कि मेरे कुत्ते आदमख़ोर हैं। मैंने उन्हें इसी तरह से ट्रेनिंग दी है। क्योंकि इसी में तुम्हारा हित है। माना कि ये थोड़े ज़्यादा ही ख़ूँख़्वार हो गए हैं, पर यह भी तो सोचो की ये न हों तो दुश्मन कुत्तों से तुम्हारी रक्षा कौन करे। अपनी आन-बान-शान बची रहे, इसके लिए ज़रूरी है कि ये कुत्ते ख़ूँख़्वार बने रहें। इसी में तुम्हारा भी हित है और इसी में हमारे मुल्क की भी बड़ाई है।


जब उसने मुल्क कहा तो उसके जबड़े से ठीक वैसी ही ग़ुर्राहट भरी आवाज़ आई, जैसी मेरा शरीर नोच रहे कुत्तों के जबड़ों से आ रही थी। इस आवाज़ से ख़ून रिस रहा था। मुझे पता था कि मेरा खेल अब ख़त्म था। मैं उतना ही हिल पा रहा था, जितना कुत्तों की खींचतान से हिल सकता था। ख़ुशी की बात एक ही थी कि मेरा चेहरा अभी भी कुत्तों की पहुँच से दूर था। मैंने उसी का सहारा लिया।


मैंने अपने भीतर के सारे डर, आतंक, दर्द और घृणा को अपने मुँह में इकट्ठा किया; और बचे हुए सारे दम के साथ सबसे बड़े वाले हाकिम के मुँह पर थूक दिया।



(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग्स कवि विजेन्द्र जी की हैं।)



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