राजेश्वर वशिष्ठ द्वारा की गई समीक्षा 'मैं कृतज्ञ हूँ – अर्थवान जीवन का मूलमंत्र'
मनुष्य के जीवन में सामूहिकता की अपनी एक विशिष्ट भूमिका रही है। वह अपनी वरिष्ठ पीढ़ी से हमेशा कुछ न कुछ सीखता रहा है। इन संचित अनुभवों ने ही मनुष्य को सभी प्राणियो में विशिष्ट बना दिया है। सभी मनुष्य अपने जीवन में किसी न किसी के प्रति कृतज्ञता का भाव रखते हैं। इस क्रम में सतीश आर्य और अशोक वर्मा के सम्पादन में एक जरूरी किताब प्रकाशित हुई है 'आई एम ग्रेटफुल' यानी 'मैं कृतज्ञ हूं'। सम्पादक द्वय इस किताब की आवश्यकता को रेखांकित करते हुए अपनी भूमिका में लिखते हैं : " ‘आई एम ग्रेटफुल’ में 151 चुनी हुई वास्तविक जीवन की कहानियाँ हैं, जिनमें लोग भावनाओं को व्यक्त करने की अपनी आंतरिक इच्छा के आगे नतमस्तक होते हैं। चाहे युवा किशोर हों या अस्सी वर्ष से अधिक उम्र के, वे सभी आम लोग हैं; वे भारतीय समाज के विभिन्न वर्गों से हैं और वे दुनिया के विभिन्न हिस्सों से भी हैं। इस तरह, ये कहानियाँ हमें मानवीय भावनाओं के शानदार रंगमंच के भीतर झाँकने का मौका देती हैं और यादों के खजाने में डुबकी लगाने और कृतज्ञता के रत्नों को बाहर निकालने की सार्वभौमिक इच्छा को प्रकट करती हैं।" कविता, कहानी से इतर अन्य विधाओं में भी आजकल अत्यन्त महत्वपूर्ण काम किए जा रहे हैं। इस दिशा में यह किताब एक महत्त्वपूर्ण प्रयास है। इस किताब की एक समीक्षा लिखी है कवि राजेश्वर वशिष्ठ ने। राजेश्वर जी ने इस किताब के आमुख का हिंदी अनुवाद भी भेजा है। आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं ‘आई एम ग्रेटफुल’ किताब की राजेश्वर वशिष्ठ द्वारा की गई समीक्षा 'मैं कृतज्ञ हूँ – अर्थवान जीवन का मूलमंत्र'।
यह पुस्तक क्यों?
कृतज्ञता पर एक पुस्तक प्रकाशित करने का विचार पिछले पाँच वर्षों से संपादकों को परेशान कर रहा था। यूरोपीय या अमेरिकी देशों में, कभी-कभी इस विषय पर वास्तविक जीवन की कहानियों वाली पुस्तकें मिल जाती हैं, लेकिन भारत में कृतज्ञता पर एक पुस्तक प्रकाशित करने की अवधारणा अभी तक एक सपना बनी हुई है; यह इस तथ्य के बावजूद है कि हम भारतीय दृढ़ता से उस चीज़ में विश्वास करते हैं जिसे सामान्य नैतिक उत्कृष्टता कहा जा सकता है - एक अभिव्यक्ति जिसे एक तरह से सार्वभौमिक रूप से स्वीकार किया जाता है और जिसकी वकालत की जाती है। महर्षि वाल्मीकि के महान महाकाव्य रामायण में, भगवान हनुमान ने कृतज्ञता को एक व्यक्ति के लिए चौदह प्रमुख गुणों में से एक माना है।
दार्शनिक टोनी मानेला ने पुष्टि की है कि कृतज्ञता शब्द वास्तव में दो विचारों को संदर्भित करता है जो संबंधित हो भी सकते हैं और नहीं भी। उनका मानना है कि पहला है पूर्व संचित कृतज्ञता - किसी चीज़ के लिए किसी के प्रति कृतज्ञता; उदाहरण के लिए, आप संकट की घड़ी में आपकी मदद करने के लिए अपने मित्र के प्रति आभारी हो सकते हैं। मानेला के अनुसार, दूसरा है प्रकथित कृतज्ञता - चीज़ों के प्रति एक अधिक सामान्य दृष्टिकोण जो वे जैसी हैं; शायद, आप अपने पिकनिक के दिन अच्छे मौसम के लिए आभारी हैं; या किसी गंभीर दुर्घटना के बाद जीवित बच जाने के लिए।
आपके लिए किसी अन्य द्वारा किए गए किसी अच्छे काम के लिए आभार व्यक्त करना हमेशा वांछनीय होता है, चाहे वह मूर्त हो या अमूर्त। बहुत बार, आभार किसी दयालुता या प्रेम के कार्य के मूल्य की मात्र "प्रशंसा" हो सकता है। इस अर्थ में, प्रशंसा पर्याप्त और सार्थक हो सकती है, भले ही वह कार्य नियमित रूप से किया गया हो या अपेक्षित हो।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि इस भावना निरंतर अभ्यास करने से हमें अच्छा महसूस होता है। हम मनोवैज्ञानिक रूप से उन्नत महसूस करते हैं। सकारात्मक मनोवैज्ञानिक मार्टिन सेलिगमैन का मानना है कि आभार पर लेख या आभार पत्र लिखने से तुरंत आपकी खुशी बढ़ सकती है। यह केवल एक विनम्र लेकिन अभिभूत करने वाला अनुभव मात्र नहीं है। यह हमारे और बाहरी दुनिया के बीच एक पुल की तरह काम करता है।
शेक्सपियर के 'द मर्चेंट ऑफ़ वेनिस' में दया की गुणवत्ता पर पोर्शिया का प्रसिद्ध भाषण यहाँ उद्धृत करने योग्य है:
"दया की गुणवत्ता तनावपूर्ण नहीं है
यह स्वर्ग से कोमल वर्षा की तरह गिरती है...
यह दोहरी सौभाग्य-स्थिति है।
यह देने वाले को और लेने वाले को आशीर्वाद देती है।"
यही बात अर्थ में किसी महत्वपूर्ण परिवर्तन के बिना कृतज्ञता पर भी लागू होती है।
‘आई एम ग्रेटफुल’ में 151 चुनी हुई वास्तविक जीवन की कहानियाँ हैं, जिनमें लोग भावनाओं को व्यक्त करने की अपनी आंतरिक इच्छा के आगे नतमस्तक होते हैं। चाहे युवा किशोर हों या अस्सी वर्ष से अधिक उम्र के, वे सभी आम लोग हैं; वे भारतीय समाज के विभिन्न वर्गों से हैं और वे दुनिया के विभिन्न हिस्सों से भी हैं। इस तरह, ये कहानियाँ हमें मानवीय भावनाओं के शानदार रंगमंच के भीतर झाँकने का मौका देती हैं और यादों के खजाने में डुबकी लगाने और कृतज्ञता के रत्नों को बाहर निकालने की सार्वभौमिक इच्छा को प्रकट करती हैं।
हमें विश्वास है कि आप कहानियों और उनके लेखकों को पसंद करेंगे और उनसे समानुभूति रखेंगे। इस पुस्तक को प्रकाशित करने का कारण कृतज्ञता की भावना को सामने लाने का जुनून था, जो सबसे महान मानवीय भावनाओं में से एक है, जो अक्सर मानव मन के अंधेरे कोनों में सोती रहती है और शायद ही कभी व्यक्त की जाती है।
प्रिय पाठको! जीवन के असंख्य रंगों की बेहतर और अधिक समग्र समझ के लिए मानवीय अनुभव के इन अंशों को पढ़ें और उनका आनंद लें।
प्रोफे. सतीश आर्य
प्रोफे. अशोक वर्मा
संपादक द्वय
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सतीश आर्य |
'मैं कृतज्ञ हूँ – अर्थवान जीवन का मूलमंत्र'
राजेश्वर वशिष्ठ
महान दार्शनिक प्लेटो ने कहा था - "एक कृतज्ञ मन, एक महान मन है जो अंततः महान कार्यों की ओर अग्रसर होता है।"
कृतज्ञता, जीवन में आनंद की अनुभूति प्राप्त करने की महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। यह सामान्य रूप से किसी का धन्यवाद करने से बड़ी आंतरिक भावना है, जो धन्यवाद कह देने के बाद भी मस्तिष्क के किसी कोने में सदा के लिए रह जाती है। यह एक ऐसी भावनात्मक स्थिति है जिसमें हम अपने सकारात्मक अनुभवों को पहचानते हैं और उनका आस्वादन करते हैं - चाहे वह किसी ठिठुरते दिन में किसी व्यक्ति द्वारा दी गई एक कप गर्म चाय हो या किसी उदार व्यक्ति द्वारा दिया गया जीवन बदलने वाला कोई अवसर। रूमी कहते हैं – “कृतज्ञता को एक वस्त्र की तरह पहनें; यह आपके मन और शरीर को सुख और सुरक्षा देगी।”
कृतज्ञता की अनुभूति अपने साथ कई तरह की सुखद भावनाएँ ले कर आती है। अध्ययनों से पता लगा है कि यह व्यक्ति को ख़ुशी की डोर से बांधती है, उसके लिए कल्याणकारी सिद्ध होती है और उसकी सोच को सकारात्मक बनाती है। हम जितने कृतज्ञ होते जाते हैं, हमारी दृष्टि हमें दुनिया का उतना ही सुंदर चेहरा दिखाती चली जाती है। कृतज्ञता का अभ्यास हमारे अवसाद और चिंता को घटाता है। यह तनाव के विरुद्ध मनोवैज्ञानिक सुरक्षा प्रदान करता है, जिससे समग्र मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है। कृतज्ञता पुरस्कार और संतोष से जुड़े मस्तिष्क क्षेत्रों को भी सक्रिय करती है, जिससे खुशी और भावनात्मक स्थिरता बढ़ती है। कृतज्ञता व्यक्ति को चुनौतियों का सामना करने में मदद करती है, जिससे वह विपरीत परिस्थितियों का सामना करने में अधिक लचीला और व्यावहारिक बनता है।
सामाजिक स्तर पर कृतज्ञता की सोच हमारे सामाजिक बंधन को मजबूत बनाता है। दोस्तों, परिवार और सहकर्मियों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने से आपसी विश्वास और सम्मान गहरा होता है। जब हम किसी के प्रति आभारी होते हैं, तो उस मनःस्थिति में हम दूसरों की मदद करने, स्वयंसेवक बनने या दयालुता से भरे अन्य कार्यों को करने की संभावना से भरे होते हैं। कृतज्ञता की भावना हमारे शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार करती है, नींद बेहतर आती है, हृदय स्वस्थ रहता है और रक्तचाप भी सही रहता है। नियमित कृतज्ञता अभ्यास हमारी सकारात्मक भावनाओं को बढ़ावा देता है, हमें मनोविकारों और शारीरिक व्याधियों से दूर करता है।
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अशोक वर्मा |
हमारी आध्यात्मिक परंपराएँ भी इस तथ्य की पुष्टि करती हैं। सनातन धर्म में हम भोजन ग्रहण करने से पहले ईश्वर का धन्यवाद ही ज्ञापित नहीं करते बल्कि अपने सहयोगी जीवों यथा गाय, पक्षियों और चींटियों आदि के लिए भोजन का एक अंश भी समर्पित करते हैं। बाढ़ और दुर्घटना की स्थिति में हमारे धार्मिक संगठन अपने स्वयं सेवकों के माध्यम से अपनी जान जोख़िम में डाल कर सदा अप्रतिम योगदान करते हैं। हमारे दुनिया भर में स्थित गुरुद्वारों में हर आगंतुक को बिना धर्म और जाति पूछे प्रेम से भोजन परोसा जाता है। बौद्ध विहारों के स्तर से भी ग़रीबों की सहायता की जाती है। भारतीय धर्म हिंसा से दूर रह कर वसुधैव कुटुम्बकम् के सिद्धांत का प्रतिपादन करते हैं जिसके मूल में पूरी मानव सभ्यता के प्रति कृतज्ञता का भाव है।
वर्तमान समय में कृतज्ञतापूर्ण व्यवहार के समक्ष अनेक चुनौतियाँ हैं। दुनिया युद्ध के कगार पर बैठी है। हम आत्मकेंद्रित होते जा रहे हैं, संयुक्त परिवार टूट रहे हैं, जीवन में हम अनेक आर्थिक ख़तरों से घिरे हैं, हमारी वृत्ति लिप्सापूर्ण होती जा रही है, परस्पर ईर्ष्या और तुलना के भाव बढ़ रहे हैं तो ऐसे में सामाजिक स्तर पर इस नेकी भरे व्यवहार - कृतज्ञता को कैसे सुरक्षित रखा जा सकेगा?
इन सभी बिंदुओं पर इस पुस्तक के संपादकों ने भी विचार किया और पाया कि हमें सामाजिक स्तर पर कोई ऐसा क़दम उठाना चाहिए जो सामान्य लोगों को इस लुप्त-प्रायः भावना से जोड़े। हर व्यक्ति अपनी क्षमताओं के अनुरूप ही कार्य कर सकता है, पुस्तक के संपादकों ने लगभग 250 लोगों से मेल और फोन आदि के माध्यम से संपर्क किया कि वे अपने जीवन की कोई एक ऐसी घटना हमें बताएं जो दूसरों के लिए प्रेरणा बन कर, कृतज्ञता की भावना का प्रचार, प्रसार करे।
संपादकों को बहुत सारी कच्ची-पक्की कहानियाँ मिलीं जिन्हें उन्होंने कृतज्ञता भाव से ग्रहण किया, उनका पुनर्लेखन और संपादन किया ताकि हमारे बीच में यह पुस्तक आ सके। ये कहानियाँ लोगों के निजी जीवन से जुड़ी हैं, जिसमें इस भाव के कारण बड़े परिवर्तन हुए हैं, उनके सार्वजनिक जीवन से जुड़ी है जिसमें कृतज्ञता के सामाजिक स्वरूप की सकारात्मक झाँकियाँ मिलती हैं। पाठक इन कहानियों को पढ़ते हुए इतना आंदोलित हो जाता है कि वह कृतज्ञता के मूल्य को अपने जीवन से भी जुड़ा देखना चाहता है।
यह पुस्तक कोई साहित्यिक कृति नहीं है, हालाँकि संपादकों ने पुस्तक की भाषा और शैली को किसी सरल साहित्यिक अभिव्यक्ति जैसा बना दिया है। मुझे नहीं लगता कि इस पुस्तक समीक्षा में मुझे आपको कुछ कहानियों के भाव बताने चाहिए, उससे कोई लाभ नहीं होगा; लाभ तब होगा जब आप स्वयं इस पुस्तक को पढ़ेंगे और हर स्तर पर कृतज्ञता के ध्वज-वाहक बनेंगे। फिर भी मैं आपको कुछ ऐसी कहानियों के नाम बता रहा हूँ, जिन्होंने मुझे अधिक प्रभावित किया, आपको कुछ अन्य कहानियाँ प्रभावित कर सकती हैं। उदाहरण के लिए – हनुमंत, ब्लड टाईस, ए फॉगी मॉरनिंग एंड ए काइंड स्ट्रेंजर, टू सर - विद ग्रेटीट्यूड, एन एंजल इन डिसगाइस, ग्रेटफुल टू माई फ़ादर – अमंग अदर्स, थैंक्यू – पेंडमिक, फीलिंग ग्रेटफुल, नेचर्स ग्रेसिस, द काइंड रिक्शा पुलर, द लाइट हाउस, ए जर्नी ऑफ लाइफ लेस्संस, ओवर व्हेल्मड, माई इमोशनल जर्नी, ए सेन एडवाइस, एल्डर सिस्टर, ए हेल्पिंग हैंड फ्रॉम नोव्हेयर, नॉट पोस्सिबल टू फॉरगेट , रिमेम्बरिंग थॉमस फेमिली विद ग्रेटीट्यूड, फ्रॉम इग्नोरेंस टू ब्लिस, ग्रेटिट्यूड इज़ अन अकाउंटेबल और बाउंटीफुल ब्लेसिंग्स।
पुस्तक की सज्जा बहुत आकर्षक है, भाषा सरल अंग्रेज़ी है। मेरा विनम्र सुझाव है - इस पुस्तक को हर संवेदनशील व्यक्ति के पुस्तक संग्रह में होना चाहिए।
पुस्तक – 'I am grateful' – 151 Handpicked Slices of Thanksgiving.
Edited by Prof. Satish Arya and Prof. Ashok Verma.
Published by STONE Ink.
Price Rs. 400/-
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राजेश्वर वशिष्ठ |
सम्पर्क -
राजेश्वर वशिष्ठ
मोबाइल : 9674386400
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