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फेडेरिको गार्सिया लोर्का की कविताएँ अनुवाद: विनोद दास

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  फेडेरिको गार्सिया लोर्का    स्पेन के कवि फेडेरिको गार्सिया लोर्का की कविताएँ     जनरल फ्रांकों की अधिनायकवादी सत्ता के दौरान दक्षिणपंथी ताकतों ने उनका अपहरण करके हत्या की। अतियथार्थवादी बिंबों के कारण इनकी कविताएँ थोड़ी जटिल लग सकती हैं। लोर्का की कविताएँ पढ़ने के लिए थोड़ा धैर्य मांगती हैं। लोर्का की कविताओं का अनुवाद किया है कवि आलोचक विनोद दास ने। आज पहली पर प्रस्तुत है फेडेरिको गार्सिया लोर्का की कविताएँ।     गिटार     गिटार का रोना शुरू होता है अल्सुबह का नशा चूर-चूर हो चुका है गिटार का रोना शुरू होता है इसे ख़ामोश करना फ़िज़ूलहै नामुमकिन है इसे ख़ामोश करना यह एक सुर में रोता है जैसे रोता है पानी जैसे रोती है हवा बर्फीले इलाकों में नामुमकिन है इसे ख़ामोश करना यह दूर की चीज़ों के लिए रोता है जैसे गर्म दक्षिणी रेत सफेद बबुने फूलों के लिए तड़पती है बग़ैर निशाना जैसे तीर रोता है बग़ैर शाम जैसे सुबह रोती है और पहली मरी चिड़िया पर जैसे शाख रोती है ओह ! गिटार दिल पांच शमशीरों से बु...