लुइस ग्लुक की कविताएँ, हिंदी अनुवाद : संतोष अलेक्‍स

LUISE GLUCK

 

लुईस ग्लिक की कविताओं का विनोद दास द्वारा किया गया हिंदी अनुवाद हमने पिछली पोस्ट में पढ़ा है। आज लुईस ग्लिक की कविताओं का हम एक और अनुवाद प्रस्तुत कर रहे हैं। ग्लिक की कविताओं का हिन्दी अनुवाद किया है कवि आलोचक संतोष अलेक्‍स ने। तो आइए आज पहली बार पर पढ़ते हैं लुईस ग्लिक की कविताएँ। 

 

सन्तोष अलेक्स युवा हिंदी कवि एवं प्रतिष्ठित बहुभाषी अनुवादक हैं। इनकी अब तक 43 किताबें प्रकाशित हैं जिनमें कविता, आलोचना एवं अनुवाद शामिल है। संतोष की कविताओं का 25 भाषाओं में अनुवाद हो चुका है जिनमें फ्रेंच, जर्मन, चीनी, तायवानी, हीब्रू, मंगोलियन, तुर्की, सेरबियाई, वियतनामी, इटालियन, स्‍पेनिश एवं अरबी भाषाएं शामिल हैं। आपकी अकादमिक किताब अनुवाद : प्रक्रिया एवं व्‍यावहारिकता भारत के तीन विश्‍विद्यालयों के सिलेबेस में शामिल है। भारतीय अनुवाद परिषद का द्विागीश पुरस्‍कार, साहित्‍य रत्‍न पुरस्‍कार, पी सी जोशी शब्‍द साधक अनुवाद सम्‍मान आदि से सम्‍मानित।

संप्रति कोचिन में मात्स्यिकी विभाग में हिंदी अधिकारी के पद पर कार्यरत।

 

 

लुइस ग्लुक की कविताएँ

 


जेकब की सी‍ढ़ी

 

धरती में फँस कर

क्‍या तुम भी स्‍वर्ग पहुँचना नहीं चाहते?

मैं एक स्‍त्री के बगीचे में रहता हूँ

मुझे माफ कीजिए मोहतरमा

मेरी चारूता छीन ली है लालसा ने

मैं वह नहीं हूँ जो तुम चाहते हो

जैसे स्‍त्री और पुरूष एक दूसरे की कामना करते हैं

मैं भी स्‍वर्गीय ज्ञान की इच्छा रखता हूँ

अब तुम्‍हारा दुःख तो

खिड़की तक पहुँच रही नंगी टहनी है

अंत में क्‍या?

तारे की तरह एक खुबसूरत नीला फूल

इस दुनिया को कभी नहीं त्‍यागता!

तुम्हारें ऑंसूओं का अर्थ यही तो है?

 

 

अविश्‍वसनीय वक्‍ता

 

मेरी बातों पर ध्‍यान मत दो

मेरा दिल टूट गया है

मैं वस्‍तुपरक रूप में कुछ महसूस नहीं करती

 

मैं खुद को जानती हूँ

एक मनोवैज्ञानिक की तरह मैंने सुनना सीखा

जब मैं भावपूर्ण हो कर बात करती हूँ

तब मुझ पर बिल्‍कुल विश्‍वास नहीं करना

 

यह खेद की बात है कि जिंदगी भर

मेरी बुद्धि की तारीफ की गई

मेरी भाषाई क्षमता, सूक्ष्‍म दृष्टि की भी

अंत में सब कुछ व्‍यर्थ रहा

 

मैंने बहन का हाथ थाम कर

सामने की सीढ़ियों पर कभी खड़ी नहीं रही

इसलिए मैं उसके बाहों के चोटों के बारे में बता नहीं सकती

जो कमीज से ढका हुआ है।

 

मेरे मन में मैं अदृश्य हूँ

इसलिए मैं खतरा हूँ

मेरे जैसे लोग जो निःस्‍वार्थ दिखते हैं

अपंग और झूठे हैं

हमें सच्‍चाई का कारक बनना चाहिए।

 

जब मैं चुप हूँ तभी सच्‍चाई प्रकट होती है

साफ आसमान, बादल सा सफेद रेशाएं

छोटे से घर के तले लाल और गुलाबी रंग

 

यदि आपको सच्‍चाई जानना हो तो

बड़ी बेटी से प्‍यार करो

और उससे संवाद बंद कर दो

जब एक जीव इस प्रकार आहत होता है

सारे कार्य बदल जाते हैं

 

इसलिए मैं विश्‍वास करने योग्‍य नहीं हूँ

चूंकि मेरे दिल का घाव

मन का भी घाव है


 

सारे पवित्र


अभी भी यह परिदृश्‍य जुड़ रहा है

पहाड़ों पर अंधेरा है

बैल नीले अंसबंध में सो रहे हैं

खेत साफ हैं, गटठों को साफ कर

सड़क के किनारे ढेर बनाए गए हैं

दांतों वाला चांद उगता है

यह पैदावार या महामारी का बांझपन है

पत्‍नी खिड़की से झांक कर

हाथ बाहर डालती है, मानो मेहनताना लेने

और बीज, भिन्‍न, सोना, पुकार रही है

हे नन्‍हें इधर आओ, इधर आओ

 

और आत्‍मा पेड़ से रेंग कर बाहर निकलती है।

 

डूबे हुए बच्‍चे

 

देखो उनके लिए कोई फैसला नहीं है

इसलिए उनका डूबना स्‍वाभाविक है

पहले बर्फ उन्‍हें ले जाती है

फिर जाड़ा, उनके ऊनी स्‍कार्फ उनके पीछे बहती है

और वे डूब जाते हैं

अंत में वे चुप हो जाते हैं

और तालाब की कई काली बाहें उन्‍हें उठा लेती हैं

 

लेकिन मौत उनके लिए अलग तरीके से होना था

शुरूआत के करीब

मानो कि वे हमेशा अंधे और हल्‍के थे।

इसलिए बाकी सपना है, दीया,

सफेद कपड़ा जिससे मेज ढका गया,

उनके शरीर।

 

फिर भी वे नाम सुनाई देते हैं

जिसका उपयोग उन्‍होंने किया।

तालाब पर फिसल रहे चारा सा

तुम किसलिए इंतजार कर रहे हो?

घर आ जाओ, घर आ जाओ

पानी में खो गए

नीला और स्थिर।


संतोष अलेक्‍स


संपर्क

मोबाइल : 8281588229



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