शाश्वत रतन की कहानी - 'राजा का जूता'

लोक में प्रचलित कहानियों को लेकर कहानी रचने की भी एक परम्परा रही है। यह वह लोक है जो हर तरह की आभिजात्य मानसिकता का विरोध करता है। आभिजात्य मानसिकता वह मानसिकता है जो औरों को अपने से श्रेष्ठ समझने की पृष्ठभूमि पर आधारित होती है। हालांकि इसका कोई तार्किक आधार नहीं होता। अपने को दुनिया में बेहतर और आभिजात्य मानने वाले अंग्रेजों ने अपने स्वार्थ के लिए उपनिवेशों में जो नृशंस व्यवहार किया, नरसंहार  और लूटपाट किया, वह इतिहास के पन्नों में दर्ज है। इसी बिना पर वे औरों को 'व्हाईट मैन्स बर्डन' कहा करते थे। अलग बात है कि वे खुद अपने उपनिवेशों के लिए 'बर्डन' यानी भारस्वरूप थे। 'सोने की चिड़िया' कहे जाने वाले भारत को 'राख की चिड़िया'  में तब्दील करने का श्रेय उन्हें ही है। शाश्वत रतन 'कथाचली' पत्रिका के सम्पादक के साथ-साथ कहानीकार भी हैं। लोक में प्रचलित एक कहानी को उन्होंने एक नए सांचे में ढाल कर 'राजा का जूता' नामक एक रोचक कहानी लिखी है। लोक का आभिजात्य के प्रति प्रबल प्रतिवाद और अन्ततः आभिजात्य का समर्पण इस कहानी के मूल में है। आज पहली बार पर प्रस्तुत है शाश्वत रतन की कहानी 'राजा का जूता'।


 

राजा का जूता  

 

शाश्वत  रतन

 

 
बचई महराज ने हमेशा की तरह, आज भी ग्राम सभा की पंचायत के बाद, कहानी सुनानी शुरू की। बचई महराज ने दायें-बायें देखा, जैसे तौल रहे हों कि लोग सुनने को तैयार हैं कि नहीं। बचई महराज ने संतुष्टि के भाव से देखा कि सभी श्रोता उत्सुकता से उनकी ओर देख रहे हैं कि बचई महराज कब अपनी कहानी शुरु करें।

 

 

बचई महराज अपनी तेज गूंजती आवाज़ में बोले, भाइयों, आज की कहानी का नाम है 'राजा का जूता', बहुत बड़ी नहीं तो बहुत छोटी भी नहीं थी, रियासत। रियाया बहुत दुःखी, तो खुश भी नहीं थी। अन्य और रियासतों की तरह, यहाँ भी लगान बहुत भारी पड़ता। जिस साल आसमानी ओवा (आपदा) जैसे ओला, बे-मौसम बरसात और सबसे भारी या कम बरसना हो जाता तो अधमरा किसान पूरा मर जाता। कहा जाता है, मरे को मारे साह मदार। पानी न बरसता तो लड़कों की टोली नंगे बदन घर-घर जा कर पानी माँगते। सभी एक सुर में गाते राम पानी दे, काला मेघा पानी दे। पानी दे गुड़ धानी दे। घरों से एक-एक बाल्टी पानी इस झुण्ड पर डाल दिया जाता। अधिकतर बहुत गरीब परिवार के लड़के पानी माँगने निकलते थे, साथ में एक लड़का दो-तीन झोले ले कर चलता। जिसमें हर घर से आटा, दाल, चावल आदि दान में मिलता, वह इकट्ठा करता जाता और पूरे गाँव का चक्कर लगाने के बाद वे सब दान में मिला सामान आपस में बाँट लेते। गाँव के अधिकतर कुएं का पानी खारा था। उनके ऊपर भी खारे कुएँ का पानी ही डाला जाता। खारे कुएं का पानी पीने के काम बिलकुल नहीं आता था। कुछ लोग तो कपड़े भी उस पानी से नहीं धोते थे वे कहते कि इसमें साबुन ज्यादा लगता है। पीने का पानी गाँव के केवल दो-तीन कुएँ से मिलता था। राजा को पीने के लिए पानी बारिश से इकट्ठा किवा जाता। वह अपना खाना भी उसमें बनवाता और पीता भी वही पानी। बरसात के तीन-चार महीने उसके महल के अन्दर स्थित तालाब के ऊपर जाजिम बाँध दी जाती उसमें से छन कर बरसात का सारा पानी तालाब में इकट्ठा होता। महल के बुर्ज पर चारो तरफ पहरा बैठा दिया जाता, जिससे कोई परिन्दा उधर से उड़ कर नहीं जाने पाये। बाकी के समय में टीन की छत लगा दी जाती और उड़ने वाले परिन्दों पर सख्त नज़र रखी जाती।

 

 

जब कभी पानी कम बरसता या पानी खत्म होने लगता तो पास में बह रही गंगा से पानी लाया जाता। गंगा जल तो हर हाल में महल के दरवाजे पर रखा रहता था दरबारी और कारिन्दों के महल में घुसने से पहले उन पर गंगाजल छिड़का जाता। धोबी के घर से धुल कर आने वाले कपड़े पर पहले गंगा जल छिड़का जाता फिर वह घर के अन्दर जाता। गाँव का मोची जूते-पनहीं बना कर लाता तो पहले उसे आग जला कर आँच दिखाई जाती फिर गंगा जल छिड़क कर महल के अन्दर ले जाया जाता। यह काण्ड महीने में दो बार ज़रूर होता।

 

 

राजा को जूते इकट्ठे करने का बहुत शौक था। गाँव का मोची राज को महीने के चार जोड़ी जूते के एवज में राजा ने एक बीघा खेत दे रखा था। जूते गाय के चमड़े के नहीं होना चाहिए, सख्त हिदायत थी। चमड़ा बैल का हो चलेगा। पर कोशिश यही होनी चाहिए कि चमड़ा भैंस, ऊंट या हिरन का हो। राजा चाहता तो था कि चमड़ा शेर या बाघ का हो पर मोची के लिए यह संभव नहीं था। चमड़ा पहचानने की कला उन्हें आती नहीं थी। तब मोची जैसा कहता वे मान लेते। ऊंट का चमड़ा थोड़ा कड़ा होता तो वे कम पसंद करते थे। वैसे भी सभी जूते वे कुछ ही दिन पहनते थे। अधिकांश जूते उनके घर में अलग से बनाये जूते संग्रह केन्द्र में रख दिये जाते। पूरी सफाई और इन के छिड़काव के बावजूद उस कमरे से चमड़े की भयंकर गंध आती रहती थी। राजा कभी सेवकों पर रोब दाब दिखाने के लिए, बिना नाक पर कपड़ा रखे, उस कमरे की ओर जाते नौकरों को डांट कर कहते कहाँ गंध आ रही है। सभी नौकर राजा को देखते ही अपनी नाक पर से कपड़ा हटा लेते। उसके बाद एक दूसरे को देखते हुए एक स्वर में बोलते।  'सरकार आप सही कह रहे हैं।' आपके जूते से गंध कैसे आ सकती है। राजा मन ही मन यह सोचता हुआ निकल जाता कि क्या बेवकूफ बनाया इन्हें। उसके जाने के बाद सेवक सोचते कैसा मूर्ख राजा है।

 

 

गाँव के बच्चे गली में खेलते हुए गीत गाते।

 

राजा राजा, जूता जूता

ढेरो जूता ढेरो जूता

कौन सा जूता किस घर जाये

भैय्या कोई बता न पाये

ऐसा जो भी बता पाये

वह ढेरो इनाम पाये

 

 

राजा के जूतों की चर्चा गाँव कस्बा से निकल कर दूर-दूर तक फैल चुकी थी। ऐसा हो भी क्यों न? राजा कहीं नहीं जाते थे। हर जगह उनका जूता ही जाता। किसी के घर मुण्डन हो, छेदन हो, शादी ब्याह हो, राजा का जूता ही जाता। राजा के जूते की महिमा चतुर्दिक फैली हुई थी। जूता की महिमा में लोक गायकों ने लोक गीत तक गाना शुरू कर दिया था। राजा जूते के साथ बुलाने वाले की औकात के अनुसार व्यवहार भी भेजता था। राजा के जूते को मकान में स्थान में सजा कर रखने का आदेश था। राजा के आदमी बीच-बीच में सभी घरों में जा कर जाँच पड़ताल कर आते कि राजा के जूते को सम्मान के साथ रखा गया है कि नहीं। अब क्या बतायें कि अपने घर के पुरोहित बचई महराज के घर में उनकी बेटी की शादी में, अनारसी साड़ी, सोने का कंगन और नकद पैसे के साथ राजा का जूता भेजा गया।

 

 

कहानी सुनने वालों में गोकुल ही वाचाल था। हमेशा कहानी के बीच में वह टोका-टाकी करता रहता था। उसने ही हुँकार लगाई, "क्या कहा बचई महराज।" बचई महराज थोड़ा सचेत हुए, पर चूँकि बोल चुके थे। इसलिए सफाई दी, "हाँ, भाई दो आदमियों का एक नाम नहीं हो सकता क्या? गोकुल चुप हो गया। तो भाइयों, राज पुरोहित बचई महराज गुस्से में आग बबूला होने पर भी कारिन्दों के सामने चुप्पी साधे रहे। घर के आंगन में दीवार पर बने ताखे पर रखवा दिया। कारिंदों के कहे अनुसार खीर और पूड़ी जूतों के पास रखा गया। फिर रेशम के कपड़े से ढक कर कारिंदे वापस आ गये। राजा के द्वारा भेजे गये जूतों को न पहना जा सकता था और न ही फेंका जा सकता था। उसे पूज्यनीय सामान की तरह सजा कर रखना होता था। ऐसा न करने पर उसकी सजा का भी प्रावधान था।

 

 

वह सजा अभी तक केवल पच्छू टोला के राम जी महतो को ही मिली थी। हुआ यह था कि रामजी महतो के घर, बरसात का पानी भर गया। घर के पिछली दीवार के पास तेज बहाव के कारण पानी दीवार तोड़ कर घर के अन्दर आ गया। राम जी महतो अपने घर में भरे पानी से परेशान, घर के सामान को बचाने में लगे रहे। दाल-चावल कपड़े लत्ते, हनुमान जी की फोटो, सब कुछ उसमें से निकाल लाये। भूल गये तो बस राजा का जूता। पिछले साल ही उनके छोटे बेटे की शादी में राजा ने भेजा था। जूता ताखे से गिर कर पानी में भीग गया। वह तो रामजी महतो घर से पानी बहाते उसे भी पानी के साथ उलीच कर फेंक देते पर किस्मत से छोटे बेटे की बहू ने देख लिया और आवाज लगा कर ससुर को आगाह कर दिया। "बाबूजी राजा का जूता।" राम जी महतो ने झट से जूता उठा लिया किन्तु तब तक मदद के लिए आये झम्मन चौधरी ने देख लिया कि जूता पानी में गिर कर भीग गया है।

 


 

झम्मन चौधरी उस समय तो कुछ नहीं बोले पर उनके पेट में पानी नहीं पचा। दो दिन बीतते-बीतते वे राजा के महल तक पहुँच ही गई। दरबान अन्दर ही नहीं जाने दे रहा था। झम्मन चौधरी को इस बात का अन्दाज ही नहीं था। उन्होंने लाख कहा जरूरी बात है। वे सीधे राजा को ही बोलेंगे। दरबान मानने को तैयार ही नहीं था। बहुत सोच समझ कर झम्मन फुसफुसा कर दरबान से बोले कि इनाम मिलने पर वह उसका आधा हिस्सा उसे देगा। दरबान ने इनाम में कोड़े मांगने वाले की कहानी सुन रखी थी, हिस्से के रूप में दरबान को कोड़ने पड़ने की सजा दिला दी थी। दरबान भी चालाक था। उसने यह तय कर लिया कि वह रूपये पैसे या सोना चाँदी के इनाम में हिस्सा बटायेगा, कोड़ों की या अन्य किसी सजा में उसका हिस्सेदार नहीं बनेगा। झम्मन चौधरी ने मुस्करा कर हामी भरी और दरबार में चले गये।

 

 

दरबार में आसपास की सजावट से उनकी आँखें चौंधिया सी गई। दिन में भी दीपक अपना प्रकाश फैला रहे थे। चारों ओर दरबारी बैठे झम्मन की ओर घूरती निगाहें डाल रहे थे। राजा ने गुर्राती आवाज़ में पूछा, क्यों आये हो, क्या बात है?" दरबार में आने की गलती को महसूस करते हुए झम्मन काँपती आवाज़ में बोला, सरकार आपका जूता राम जी महतो ने भिगो दिया।" राजा ने अविश्वास से झम्मन की ओर देखा। बिना कुछ सोचे-समझे, कारिन्दों को आदेश दिया, इसको बन्दी बना लिया जाए।"  

 

 

झम्मन ने अपनी मूर्खता पर अपने आपको खूब कोसा। फिर दिमाग लगा कर बोला, " सरकार पता करवा लीजिए, आपका जूता उनके ताखे पर नहीं मिलेगा।" राजा को बात जंच गई। कारिन्दों के साथ झम्मन चौधरी को भी राम जी महतो के घर भेजा। राम जी महतो घर पर ही मिल गया। झम्मन ने सबसे पहले ताखे की ओर देखा जूता तो अपनी जगह पर सही सलामत रखा था। झम्मन दौड़ते हुए जूते के पास गया और बिना देर किये जूता हाथ में उठा लिया। कारिन्दे कुछ समझे इसके पहले ही, जूता हाथ में ले कर झम्मन राजा का जूता कारिन्दों को दिखाते हुए चिल्ला चिल्ला कर बोला, "देखो, राजा का जूता भीगा हुआ है।" कारिन्दों के लिए इतना काफी था कि जूता अपनी जगह पर धरा है पर झम्मन के दबाव के आगे उन लोगों ने जूतों को छू कर देखा, जूता भीगा था। जूता उसी शान के साथ ताखे पर रख दिया गया। जूतों की चमक बरकरार थी। झम्मन भी अपनी जिद पर अड़ा कि राजा को बताए कि जूता भीगा है।

 

 

 

कारिन्दे झम्मन के साथ-साथ राम जी महतो को भी पकड़ कर राजा के दरबार में ले गये। झम्मन की उम्मीद फिर बढ़ गई कि आज तो इनाम मिल ही जायेगा। राम जी महतो हिलते कांपते महल की ओर चले जा रहे थे। रास्ते में बहाना भी सोचते जा रहे थे कि वहां क्या बोलेंगे।

 

 

 

कारिन्दों ने दोनों को दरबार में पेश किया और बोले - हाँ महाराज, जूता तो अपनी जगह पर ही मिला, परन्तु जूता थोड़ा-थोड़ा गीला है। तो भाइयों, जूता भीगने के सच को गलत कैसे बनाये। राम जी महतो दरबार की आन बान देख कर सारे पैंतरे भूल गये। पूछने पर एक झटके में बोल गया - हाँ, सरकार जूता थोड़ा गीला है। पर कारिन्दों की बात ही उसका सहारा बन गई। बीच में गोकुल फिर से बोल पड़ा, "कैसा सहारा, वह तो पहले ही बोल चुका कि जूता गीला है।"

 

 

 

बचई महराज गोकुल की मूर्खता पर हंसे। फिर बोले, "बिना पूरी बात सुने बीच में बोलने वाले ऐसी ही बात करते हैं। हर बात में सहारा मिल सकता है, बस दिमाग राम जी महतो या बचई महराज की तरह होना चाहिए। राम जी महतो बोलने लगे कि सरकार घर में पानी भर गया था। बहुत सा सामान भीग गया, गल्ला पानी, कपड़ा लत्ता सब कुछ। पर छोटी बहू जिसके ब्याह में आपने शगुन भेजा था। उसे जूते के पास ही खड़ा कर दिया था। जैसे कि जूते पर कोई आंच न आने पाये। छोटी बहूत बहुत मुस्तैदी से जूते की रखवाली कर रही थी। बरसात निकल गई। घर का पानी बह गया। घर सूख जाने पर पूरे घर की सफाई के बाद घर की शुद्धि के लिए गंगाजल का छिड़काव पूरे घर में किया गया। आपके जूते पर भी गंगाजल का छिड़काव हो गया था। इसी कारण वह अभी तक गीला है। आपके आदमी ने भी कहा जूता थोड़ा गीला है। राजा असमंजस में पड गया कि जूता गीला भी है, पर भिगोया भी नहीं गया। जूता, अपनी जगह पर ही मिला। झम्मन की खबर का ईनाम तो उसी बरसात में बह गया।

 

राजा सोच में पड़ गया, राम जी को कैसे और क्या सजा दी जाय। ईनाम मिले या न मिले किन्तु सजा में कोई कोताही नहीं होना चाहिए। राजा मंद-मंद मुस्काये फिर बोले – राम जी महतो जूता तो भीगा है। बरसात में भीगा या जल छिड़काव में यह अलग बात है। तुमने बताया कि गंगाजल छिड़का गया है तो तुम्हारी कोड़ों की सजा माफ करता हूँ। तुम्हारे घर में जूता भीगा, इसकी सजा देता हूँ। सेवक से जूता संग्रह केन्द्र से एक जोड़ी जूता मंगाया गया। राम जी महतो को देखते हुए राजा ने कहा, महतो तुम्हारी सजा यही है, यह नई पादुका अपने सर पर रखो, इसे अपने सर पर रखे हुए अपने घर तक जाओ। सर से पादुका नीचे नहीं आनी चाहिए। ये दो सेवक तुम्हारे पीछे-पीछे जायेंगे।

 

 

राम जी महतो ने दोनों जूते अपने सर पर रखा, मुँह पर कपड़ा लपेटा और घर की ओर चल पड़े। उनके पीछे कारिन्दे, कारिन्दो के पीछे झम्मन चौधरी। झम्मन चौधरी खाली हाथ और मनों पछतावा ले कर घर की ओर चले जा रहे थे। राम जी महतो की शर्मिन्दगी उनसे देखी नहीं गई। उनकी अंतरात्मा जागी। अपने पछतावे के चलते उन्होंने अपना अगौछा राम जी महतो के सर पर रखे जूतों के ऊपर डाल दिया। जिससे राह चलते लोगों को राम जी महतो के सर पर रखे जूते दिखे न। राम जी महतो ने भयंकर गुस्से के बावजूद झम्मन को कुछ नहीं कहा। घर पहुंच कर दोनों जूतों को उन्होंने पुराने जूतों के साथ सजा कर रख दिया। रामजी महतो सुबह शाम जूतों को निहार कर गुस्साते और शान्त हो जाते।

 


 

उधर बचई महराज के घर भी जूते रेशमी कपड़े से ढके ताक पर रखे थे। गाँव के लगभग हर घर के ताखे में रखे थे। अधिकतर जूतों से चमड़े की गंध भी आनी शुरु हो गई थी। सभी परेशान थे, जूतों की गंध से कैसे मुक्ति पाई जाये। जूते हटाने की सजा उन्हें मालूम थी। दूसरी बात हर घर के आसपास कोई न कोई झम्मन भी मौजूद था। गंध तो झम्मन चौधरी के घर पर रखे ताखे से भी आने लगी थी। पंचायत के पंच सरपंच, गाँव के पुरोहित और हर पढ़ा और कढ़ा तेज बुद्धि के ज्ञानी लोग इसका हल सोच कर हार गये थे।

 

आखिरकर एक दिन गाँव वालों की भगवान ने सुन ली। वो कहते हैं न भगवान के घर देर है, पर अंधेर नहीं। देखते- देखते गाँव के पास की बरसाती नदी का पानी उफान पर आ गया। साल भर सूखी रहने वाली नदी। बरसात में एक दिन उफनती जरूर है। पूरा गाँव उस दिन नदी के किनारे हाथ जोड़ कर खडा हो जाता। जिससे नदी का कोप शान्त हो जाये। कहते हैं कि एक अधेड़ आदमी का बेटा शहर पैसा कमाने गया था। घर में उसका बाप और उसकी जवान घर वाली रहते थे। एक बार बरसात में बहू कुएँ से पानी ले कर बरसात में भीगती घर लौटी। ससुरे का मन बहू पर खराब हो गया। बहू ने ससुर की नियत ताड़ ली घड़ा पटक कर दरवाजे से बाहर की ओर भागी। ससुर उसके पीछे बहू को पकड़ने को दौड़ा। बहू के फेंके गये घड़े से एक नदी निकली उसने ससुर का पीछा किया। आगे-आगे बहू उसके पीछे ससुर, ससुर के पीछे घड़े से निकली नदी। आखिर बहू की लाज बची। बहू राह में आई जमुना माई में समा गई। ससुर के कदम रुक गये। जमुना माई के कोप को वह देख रहा था। भादो की हरहराती जमुना माई ससुर को अपनी ओर खींच रही थीं। पर वह कगार से कुछ दूर पर ही पैर जमा कर ठहरा हुआ था। पर वह पीछा करती घड़े से निकली नदी के कोप से नहीं बच पाया। नदी ने अपनी लहरों के थपेड़ों में पटक कर उसकी जान ले ली। लोगों ने उस नदी का नाम ही ससुर खदेरी नदी रख दिया।

 

 

गोकुल के गले में फिर सुरसुरी हुई, ससुर खदेरी नदी तो इलाहाबाद में है और करैला गाँव के आसपास वह जमुना में मिलती है। कहानी उसी गांव की है क्या? बचई महराज ने उसकी जानकारी पर न तो दाद दिया और न चौके। इतना भर कहा, "तुम समझ लो वहीं, कहीं की कहानी है।"

 

 

बचई महराज ने फिर आगे कहानी सुनाना शुरु किया। तो भाइयो, ससुर खदेरी नदी का पानी उफान पर था। पानी किनारे पर थमने का नाम ही नहीं ले रहा था। गाँव वालों के कदम पीछे हटने लगे। नदी भी जैसे यही चाह रही थी। लोग अपने-अपने घरों में घुस कर अपना समान बचाने की जुगत करने लगे। नदी के सबसे पास झम्मन चौधरी का घर पड़ता था। तो पानी भी सबसे ज्यादा उन्हीं के घर में भरा। राजा के जूते पर संकट भी सबसे पहले उन्हीं के घर में आया। संकट तो सबके घर पर मंडरा रहा था। राम जी महतो का हाल सबको मालूम था। सबसे पहले झम्मन चौधरी अपने सर पर एक डलिया में जूते रख कर, उसे अपने सर पर रख कर घर से बाहर निकले। उसके बाद सभी एक-एक करके अपने सर पर जूते की डलिया रख कर घर से बाहर निकलने लगे। थोड़ी देर में पूरा गाँव इकट्ठा हो गया।

 

 

मंदिर के पीछे थोड़ा ऊँचाई पर बने अपने घर से बचई महराज सारा हाल देख रहे थे। धीरे-धीरे नदी का पानी मंदिर डुबोता हुआ रामजी महतो के घर से होता हुआ, उनके घर में भी भरने लगा। बचई महराज समझ गये अब तो जूता उठाना ही पडेगा। बचई महराज रात के अंधेरे में कई बार अपना पैर डाल कर देख चुके थे। उन जूतों में उनका पैर ठीक से आ जाता था। नाप का तो था पर वे पहन नहीं सकते थे। दूसरी तरफ, राजा का जूता डलिया में रख कर सर पर उठाने के लिए तैय्यार भी नहीं थे। उनके दिमाग आया, क्यों न राजा का जूता अपने पैरों में पहन लूं और अपने फटे जूतों को लाल कपड़े में लपेट कर सर पर रख लूं। उन्होंने वैसा ही किया।

 


 

पूरे गाँव वाले इकट्ठा हो कर बचई महराज के घर की ओर ही आ रहे थे। सबके सर पर टोकरी थी, उस टोकरी में लाल कपड़ा में लिपटा हुआ जूता था। नदी का पानी लगभग उतर गया था। जमीन गीली और कीचड़ से भरी थी। गाँव वालों के जूतों पर कीचड़ लग जाने के बाद भी बचई महराज को साफ दिख रहा था कि सभी के पाँवों में राजा के दिये जूते हैं। बचई महराज का डर बिलकुल खत्म हो गया किन्तु उसके साथ आश्चर्य भी हो रहा था कि पूरी जनता निर्भय हो कर राजा के जूते पहन कर आ रही है। टोकरी में उनके फटे पुराने जूते लाल कपड़ों में लिपटे पड़े थे।

 

 

सबने बचई महराज की ओर देखा, जैसे पूछ रहे हों अब क्या करना है। बचई महराज कुछ बोले इसके पहले ही झम्मन चौधरी ने पूरे गाँव वालों से राम जी महतो की शिकायत करने के लिए माफी मांगी। पहली बार पूरे गाँव वालों को पता चला कि झम्मन ने ही चुगली की थी। जनता तो झम्मन को दण्ड देने का मन बना रही थी। उसी समय बचई महराज ने राम जी महतो से पूछा- क्यों भाई क्या चाहते हो इसे सजा दी जाये। राम जी ने उस समय के संकट को देखते हुए, दरियादिली दिखाते हुए गाँव वालों से बोले, भाइयों मैंने झम्मन को माफ किया।

 

 

अब आगे क्या हो इस पर विचार होने लगा। गाँव के सभी लोग जान गये थे कि लगभग सबने राजा के जूते पहन रखे हैं। जिनके पैर में नाप के आ गये वह तो ठीक है जिनके पैर में ढीले थे वे छप-छप कर के चल रहे थे। जिनके पैर में कसे थे, उन लोगों ने पीछे का हिस्सा एड़ी में दबा कर जूते को पीछे से खुला जूता बना लिया था। जिनके पास अपने जूते नहीं थे, उन्होंने शान से राजा के जूते पहने और टोकरी में गोबर से बने उपले लाल कपड़े में ढक कर रख लिए थे, सोच विचार जोर शोर से चल रहा था। आखिर में तय हुआ महल चला जाये जूता वापस करने। फिर आगे देखा जायेगा।

 

 

 

बचई महराज ने पूरे गाँव वालों से बांचा (बचन) बंछवाया। कोई भागेगा नहीं कोई डरेगा नहीं। पूरे गाँव के लोग एक सुर में बोलेंगे, हामी भरेंगे और पंच की बात मानेंगे। गाँव के सभी लोगों ने हामी भरी कि सब बात मानेंगे, एक साथ बोलेंगे। अब बचई महराज अगुआ बन गये। अगुआ बनने के बाद पूछा, सबने राजा का जूता पहना है।" गाँव वालों ने हामी भरी, हाँ। "सबकी टोकरी में फटा पुराना उनका जूता है।" सबने कहा " हाँ"। कुछ ने धीरे से कहा गोबर के कण्डे भी हैं। तो अब सुनो सब को अपना-अपना जूता राजा को वापस करना है, बिना कुछ बताये। सबने कहा, "ठीक है।" सब लोग राजा के सामने एक सुर में बोलेंगे राजा अपना जूता वापस लो, हमसे नहीं संभलता है। पर एक बात समझ लो किसी कारिन्दे को जूता बिल्कुल मत छूने देना। राजा कभी टोकरी नहीं छुएगा। सब लोग बोलेंगे, "हम तो जूता बस राजा को देंगे।"

 

 

महल के सामने पहुंच कर सबने एक साथ नारा लगाया, "राजा अपना जूता वापस लो।" बार-बार यह नारा लगाया गया। राजा अपना जूता वापस लो। जैसा सबको पता था, पहले कारिन्दे आये। सबने फिर नारा लगाया, "राजा को भेजो, तुम सब वापस जाओ।" कारिन्दे इतनी बढ़ी भीड़ देख, घबरा कर चुपचाप वापस चले गये। गाँव वालों ने फिर नारा लगाना शुरू किया "राजा अपना जूता वापस लो।" "राजा अपना जूता वापस लो।" हजारों की भीड़ देख कर राजा भी घबरा गया, आखिर था तो आदमी ही। राजा धीरे-धीरे चल कर बाहर आया, सर पर लाल कपड़ों में लिपटे जूते देख कर डरा हुआ राजा और भयभीत हो गया।

 

 

 

बचई महराज ने इशारा किया, पूरी भीड़ ने फिर दोहराया। राजा अपना जूता वापस लो। बचई महराज ने फिर नारा आगे बढ़ाया, " राजा अपना जूता वापस लो, हम से नहीं संभलता है।" बचई महराज ने आगे बढ़ कर कहा, “सरकार ससुर खदेरी नदी उफान पर है। आपका जूता कोई संभाल नहीं पा रहा है। "राजा को कुछ समझ में नहीं आ रहा था, क्या करे? उनकी नाक में एक साथ हजारों जूतों की गंध सी आ रही थी। पहले तो केवल एक कमरा जूतों से भरा था। सारे जूते, उन्होंने अगर वापस कर दिये तो पूरा महल ही गंध से भर जायेगा। राजा की चुप्पी देख कर, बचई महराज गाँव वालों से बोले, राजा साहब के इन सम्मानित जूतों को वहाँ बाहर मत रखना। सब लोग अपनी जूतों की टोकरी राजा साहब को वापस करो, यहाँ उनके हाथ में दो, हाथ खाली नहीं तो इनके पास रखो।

 

 

 

राजा की रोबदार आवाज कहीं गायब हो गई थी। महल के ओसारे में रखी हुई चौकीदार की कुर्सी पर धम से बैठ गये। सभी लोग अपनी-अपनी टोकरी ले कर राजा के पास आने लगे। राजा ने मिमिआती आवाज में कारिंदों को पुकारा। कारिन्दों ने राजा के बचाव में लाठियों का घेरा लिया। पर जनता के गुस्से का देख सभी कारिन्दे धीरे-धीरे पीछे हटने लगे। दरबान की कुर्सी से उठ कर भागने की कोशिश करते राजा के चारों ओर से घेर कर जूतों की टोकरी की दीवार खड़ी कर दी।

 

 

राजा घबरा कर खड़ा हो गया। इतनी तेजी से जूतों की टोकरी की दीवार बढ़ी कि राजा के खड़े होते होते, जूतों की दीवार उसके कंधों तक आ गई। ठोड़ी तक आते-आते, राजा डरी हुई आवाज में चिल्लाये, अरे ठहरो! मेरी बात तो सुनो। राजा के चिल्लाते-चिल्लाते, वह जूतों से ढक गया। जनता कहाँ मानने वाली थी। एक ओर से राम जी महतो, दूसरी तरफ से बचई महराज टोकरी के बीच से राजा को बचाने घुसे। बचई महराज ने सब से रुकने को कहा। जूतों के बीच राजा डरा हुआ जनता से माफी माँग रहा था। गोकुल ने फिर कहानी में टाँग मारी, "हमने तो सुना था कि राजा की बिटिया की शादी में पूरे गांव वालों ने अपने जूते भेजे थे, बस।" बचई महराज मुस्कराये और बोले, "अरे गोकुल, ऊ दूसरे गाँव की कहानी है।" बचई महराज ने अन्त में कहानी का फलितार्थ बोला, "जैसे उस गाँव वालों के दिन फिरे, वैसे सब के फिरे।"

 

(हंस के हालिया अंक से साभार।)   

 

 

(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग्स वरिष्ठ कवि विजेंद्र जी की हैं

 

 

 

शाश्वत  रतन

 

 

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