लुइस ग्लुक की कवितायें, हिंदी अनुवाद - विनोद दास

 

लुइस ग्लुक


 

वर्ष 2020 के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित अमेरिकी - कवयित्री लुइस ग्लुक

 

 

वर्ष 2020 के साहित्य के नोबेल पुरस्कार की घोषणा कर दी गई है। यह पुरस्कार अमरीकी कवयित्री लुईस ग्लिक (Louise Glück) को प्रदान किया गया है।

नोबेल सम्मान देने वाली स्वीडिश अकादमी ने कहा कि 'ग्लिक की कविताओं की आवाज़ ऐसी है जिनमें कोई ग़लती हो ही नहीं सकती और उनकी कविताओं की सादगी भरी सुंदरता उनके व्यक्तिगत अस्तित्व को भी सार्वलौकिक बनाती है।'

ग्लिक ने 1968 में अपनी पहली रचना फर्स्टबॉर्नलिखी और वह इस रचना के आने के साथ ही अमेरिकी समकालीन साहित्य के सर्वाधिक जाने-माने कवियों की श्रेणी में शामिल हो गईं। सन 2006 में आया उनका कविता संग्रह एवर्नोएक बेहतरीन संग्रह है। अब तक इनके बारह कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। लुईस ने कई निबंध भी लिखे हैं। लुइस कविताओं में साफगोई के लिए जानी जाती हैं। उन्होंने बचपन, पारिवारिक जिंदगी, माता-पिता के बच्चों के साथ रिश्ते जैसे कई विषयों पर संजीदा कविताएं लिखी हैं। 1992 में आए द वर्ल्ड आइरिसको लुइस के बेहतरीन कविता संग्रह में शुमार किया जाता है। इसमें स्नोड्रॉपकविता में ठंड के बाद पटरी पर लौटी जिंदगी को दिखाया गया है।

लुइस ग्लुक का जन्म 1943 में न्यूयॉर्क में  हुआसराह लॉरेंस कॉलेज और कोलंबिया विश्व विद्यालय में पढाई की लेकिन डिग्री हासिल नहीं कीलेखक के रूप में काम करते हुए उन्होंने कई संस्थानों में कविता पढाने का कार्य भी किया हैपुलित्ज़र पुरस्कार का अलावा उन्हें अनेकानेक पुरस्कारों से नवाज़ा जा चुका है इनकी अधिकाँश कविताओं में जहाँ आत्म कथात्मक तत्व मिलते हैं, वहीं मिथक, इतिहास और प्रकृति का प्रचुरता से उपयोग मिलता हैइनके कई काव्य संग्रह हैफर्स्ट बोर्न, द हाउस ऑन मार्श लैंड, सेवेन ऐजेस, अ विलेज लाइफ प्रस्तुत कविता उनके कविता संग्रह “अवेर्नो” से ली गयी है। आजकल ग्लिक कैंब्रिज (मैसाच्युसेट्स) में रहती हैं और ग्लिक येल यूनिवर्सिटी में अंग्रेजी की प्रोफेसर हैं। मूल अंग्रेजी हिंदी में अनुवाद किया है कवि विनोद दास ने। आज विनोद जी का जन्मदिन है। उन्हें जन्मदिन की बधाई देते हुए हम पहली बार पर प्रस्तुत कर रहे हैं लुइस ग्लुक की कविताएँ 

        

 

 

लुइस ग्लुक की कविताएँ

 

 

खगोलीय संगीत

 

 

मेरी एक सहेली है जो अभी भी ज़न्नत में यकीन करती है

इतनी नासमझ नहीं है अगरचे वह इतना जरूर जानती है 

कि वह ईश्वर से सचमुच बात करती है

वह सोचती है कि जन्नत में कोई सुनता है

धरती पर वह असाधारण रूप से सक्षम है

जां बाज़ भी किसी भी अप्रिय चीज़ का सामना कर सकती है

हमें मिलती है गंदगी में इल्ली

लालची चीटियाँ उस पर रेंगती हैं

मैं हमेशा विपदाओं से विचलित हो जाती हूँ

हमेशा जीवनदायी ताकतों के खिलाफ़ रहती हूँ

दब्बू भी हूँ जल्दी आँखें बंद कर लेती हूँ

जबकि मेरी शेली उसे देखती रह सकती है कि चलो देखें

यह कैसे घटता है

कुदरत की चाल के अनुसार - मेरे लिए उसने

टूटी फूटी चीज़ों से चीटियों को बुहार दिया

और सड़क के दूसरी तरफ अच्छी तरह से ठिकाने लगा दिया

मेरी सहेली कहती है मैं ईश्वर से बिमुख आँखें बंद रखती हूँ

यह और कुछ नहीं

हकीकत से मेरी रुसवाई को बयान करता है

वह कहती है कि मैं एक बच्ची सी हूँ जो

अपना सिर तकिये में छिपाये रखती हूँ

ताकि उसे कोई देख न ले - वह बच्ची जो खुद कहती है-

रोशनी से उदासी आती है

मेरी सहेली माँ सरीखी है-धीरज वाली

एक बालिग़ की तरह जगने के लिए जोर डालने वाली

जैसी वह है - एक बहादुर लड़की

 

 

मेरे सपनों में मेरी दोस्त फटकारती है

हम दोनों एक ही सडक पर चल रहे हैं, बस जाड़ों के दिन हैं

वह कहती है जब तुम मुहब्बत करती हो

तब तुम्हें खगोलीय संगीत सुनायी देता है

ऊपर देखो! वह कहती है

जब मैं देखती हूँ ऊपर - वहां कुछ नहीं है

सिर्फ बादल हैं, बर्फ़ है

दरख्तों पर सफ़ेद बर्फ गिर रही है

मानो कोई दुल्हन ऊँची जगह से कूदना चाहती है

तब मैं उसके लिए फिक्रमंद होती हूँ

मैं उसे एक ऐसे जाल में फंसी देखती हूँ

जो जानबूझ कर धरती पर फेंका गया है

हकीकत में मैं सड़क के किनारे बैठ कर

सूरज ढलते हुए देखती हूँ

कभी कभार परिंदों की चहचहाहट

खामोशी को चीर देती है

इन पलों में

हम यह बात साफ़ करने की कोशिश करती हैं

कि हम मृत्यु, अकेलेपन के साथ सहज हैं

मेरी सहेली गंदगी में एक घेरा बनाती है

इसके भीतर इल्ली नहीं आती

वह कुछ मुक्कमल बनाना चाहती है

कुछ सुंदर, एक ऐसी छवि

एक ऐसी काबिल जिंदगी जो उससे अलग हो

हम बेहद ख़ामोश हैं यह बोलना नहीं, शांति से बैठना है

मुद्राएँ तय हैं

सड़क पर सहसा अँधेरा घिर आता है

हवा ठंडी हो गयी है इधर-उधर

चट्टानें चमक दमक रही हैं

यही शान्ति है जिसे हम दोनों प्यार करते हैं

प्रेम का रूप ही प्रेम का अंत है

 

 

कबूलनामा

 

यह कहना कि मुझे डर नहीं लगता

सही नहीं होगा

हर किसी की तरह मुझे भी बीमारी, अपमान से

डर लगता हैं

अगर्चे मैंने उसे छिपाना सीख लिया है

पूर्णता से अपने को बचाने के लिए

सभी खुशियाँ मुकद्दर के गुस्से को न्योता देती हैं

वे बहने हैं - बर्बर

आख़िरकार उनमें ईर्ष्या के सिवा कोई संवेदना नहीं होती

 

 

घोडा

 

घोडा आपको क्या देता है

जो मैं आपको नहीं दे सकती

 

 

जब तुम अकेले होते हो मैं तुम्हें देखती हूँ

जब तुम गौशाला के पीछे मैदान में घुड़सवारी करते हो

तुम्हारे हाथ घोड़ी के अयालों में धंसे होते हैं

तब मुझे पता चलता है कि तुम्हारी ख़ामोशी के पीछे क्या है

शादी और मेरे लिए तिरस्कार, नफ़रत फिर भी तुम चाहते हो

कि मैं तुम्हें स्पर्श करूं तुम चीखते हो

जैसे चीखती हैं वधुएँ लेकिन जब मैं तुमको देखती हूँ

कि तुम्हारी देह में बच्चे नहीं हैं

तब वहां क्या है

 

कुछ भी नहीं, मैं सोचती हूँ

सिर्फ जल्दी है

मेरी मृत्यु से पहले मरने की

 

सपने में मैं तुम्हें घोड़े पर सवार देखती हूँ

सूखे मैदानों में

फिर तुम घोड़े से उतरते हो

अँधेरे में तुम्हारी कोई परछाईं नहीं है

हालांकि मुझे लगता है कि मेरी तरफ आ रही है

चूँकि अँधेरे में वे कहीं भी जा सकती हैं

वे अपनी मर्जी की मालिक हैं

 

 

मेरी तरफ देखो

तुम समझते हो

कि मैं नही समझती

जानवर क्या है

क्या वह इस जिंदगी का रास्ता नहीं है



आधी रात में


दर्द से कराहते दिल

मुझसे तुम बातें करो

अपने लिए तुम कितना बौड़म हरकारा खोजते हो


अँधेरे गैरेज में

कचरे के बोरों के साथ सुबकते हुए


यह तुम्हारा काम नहीं ह

कि तुम कूड़ा कचरा बाहर निकालो

तुम्हारा काम है कि डिसवाटर खाली करो

खाम्खाह तुम फिर दिखावा कर रहे हो

बिलकुल वैसे ही जैसे तुम छुटपन में करते थे


खेल का ज़ज़्बा- तुम्हारी मशहूर लोहे सी तटस्थता

चाँद की एक पतली रोशनी टूटी खिड़की पर पड़ रही है

गर्मियों की थोड़ी सी मुलायम चांदनी

अपनी तैयार मिठास के साथ धरती से फुसफुसा रही है


क्या तुम अपने शौहर से

इसी तरह बात करती हो

जब वह बुलाता है

जवाब नहीं देती हो

या दिल ही इसी तरह व्यवहार करता है

जब दुखी होता है


वह कूडे़- कचरे के साथ अकेले रहना चाहता है


अगर मैं तुम होती

मैं आगे की सोचती


पन्द्रह साल बाद उसकी आवाज़ थक जायेगी

किसी रात तुम जवाब नहीं दोगी

तो कोई और देगा जवाब


प्रेम कविता


हमेशा कुछ न कुछ दर्द से बनाने के लिए होता है


तुम्हारी माँ बुनती है

वह सुर्ख रंग की कई रंगतों के स्कार्फ बनाती है

ये क्रिसमस के लिए हैं, ये आपको गर्म रखते हैं

वह बार-बार शादी करती है और अपने साथ तुम्हें रखती भी  है


यह कैसे होता है

जबकि उन सालों में उसने अपने वैधव्य ह्रदय को बचाये रखा

गोया वह मरा आदमी लौट आएगा


कोई हैरत नहीं कि तुम वैसे के वैसे हो

खून से डरे हुए

तुम्हारी औरतें हैं

एक ईंट के बाद दूसरी ईंट की तरह



शबीह


एक बच्ची शरीर की बाहरी रूपरेखा खींच रही है

वह बनाती है जो बना सकती है लेकिन यह पूरा का पूरा सफ़ेद है

वह इसमें नहीं भर सकती

जो वह जानती है वह वहां मौजूद है


वह जानती है कि निराधार रेखाओं के भीतर

जिंदगी गायब है

वह एक पृष्ठ भूमि को दूसरे से काटती है

एक बच्चे की तरह वह अपनी माँ की तरफ मुड़ती है


और तुम ह्रदय का चित्र बना रहे हो

उस खालीपन के लिए

जो उसने पैदा किया है


विधवाएं


मेरी माँ मेरी मौसी के साथ ताश खेल रही हैं

ईर्ष्या और विद्वेष पारिवारिक समय बिताने का काम है


यह खेल मेरी नानी  ने अपनी सभी बेटियों को सिखाया है


दोपहर : इतनी गर्मी है कि बाहर जाना मुहाल है

आज मेरी  मौसी खेल में आगे हैं उन्हें अच्छे पत्ते मिल रहे हैं

मेरी माँ किसी तरह खींच रही हैं ; उनका ध्यान जम नहीं रहा है


वह इस गर्मी में अपने बिस्तर से राब्ता नहीं बना पायी हैं

पिछली गर्मी में कोई दिक्कत नहीं थी

वह फर्श पर लेटने की आदी हो गयी थीं

पिता के पास रहने की ख़ातिर वह वहां सोती थीं

पिता मर रहे थे, उन्हें एक ख़ास बिस्तर मिला था.


मेरी मौसी खेल में जरा भी टस से मस नहीं हो रही थीं

माँ की थकान के लिए नहीं दे रही थीं कोई रियायत

दरअसल वे इसी तरह पाली- पोसी गयी थीं: तुम लड़कर आदर दिखाओ

विरोधियों को करो अपमानित


हर खिलाड़ी के पास पत्तों की एक ढेरी बची हुई थी

पांच पत्ते हाथ में थे

ऐसी गर्मियों में घर के भीतर रहना अच्छा होता है

जहाँ ठंडक हो

यह और खेलों से बेहतर है -सोलिटेयर से भी बेहतर


मेरी नानी आगे की सोचती थी उन्होंने अपनी बेटियों को तैयार किया था

उनके पास पत्ते थे; वे एक दूसरे के पास थे

किसी और दोस्तों की जरूरत उन्हें नहीं थी


पूरी दोपहर खेल चलता रहा लेकिन सूरज नहीं हिला

यह जलाता रहा- घास को पीला करता रहा

ऐसा मेरी माँ को लगता रहा होगा

और अचानक सब कुछ खत्म हो गया


मेरी मौसी खेल में सबसे देर तक बनी रहीं :

शायद इसीलिए वह बेहतर खेलती हैं

उनके पत्ते उड़ गये थे ; यही तो आप भी चाहते थे

यही मकसद था ; आखिर में

वह बचा था जो कुछ भी नहीं जीता



कामना


उस पल को याद करो जब तुमने यह कामना की थी


मैं अनगिनत कामनाएं करती रहती हूँ

उस समय मैंने तितली के बारे में झूठ बोला था


मैं हमेशा चकित होती हूँ

कि तुम्हारी कामना क्या है


तुम क्या सोचते हो कि मैंने किसकी कामना की होगी


मैं नहीं जानती कि मैं वापस लौटूंगी

कि हम आखिर में किसी भी सूरत में एक साथ होंगे


मैं वही कामना करती हूँ जिसकी कामना मैंने हमेशा की

मैं अगली कविता की कामना करती हूँ

अनुवाद :विनोद दास

 

 

 

विनोद दास



सम्पर्क

मोबाइल : 9867448697

ई मेल : tiwarvk1955@yahoo.com



टिप्पणियाँ

  1. अनुवाद बहुत अच्छा है। लेकिन मुझे लगता है कि ’घोड़ा’ शीर्षक कविता में पहली दो पंक्तियों में ’आपको’ की जगह ’तुम्हे’
    होना चाहिए क्योंकि आगे पूरी कविता में ’तुम’ सम्बोधन का ही इस्तेमाल किया गया है।

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  2. चुनी हुयी कविताओं का प्रभावपूर्ण अनुवाद ।

    जवाब देंहटाएं

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