शम्भु यादव की कवितायें
शम्भु यादव 'जानना' अपने आप में एक अमूर्त टर्म है। यह जानना अपने आप में असीमित विस्तार लिए हुए है। कब, कहाँ, क्यों, कैसे, किसलिए जैसे शब्द असीमित जिज्ञासाएँ समेटे उस अनजाने को जानने का रास्ता दिखाती है जिसे जानना अभी तक बाकी है। वैसे भी हम खुद अपने अंतस को ही कहाँ पूरी तरह जान पाते हैं। लेकिन प्यार सारी सरहदों को तोड़ देता है। प्यार का मतलब ही होता है अपना अस्तित्व गँवा कर अपने चाहने वालों का हो जाना। यहाँ कुछ भी जानने-सुनने की जरूरत नहीं। शम्भु यादव अपनी ढब के अनूठे कवि हैं। उनकी अपनी भाषा और उसकी स्पष्ट अनुगूँजें हैं। अपनी एक कविता 'और मैं तुम्हारे होने में होना चाहता हूँ' में वे लिखते हैं : "पर न पूरा जान पाओ, न ही ज़रूरी है/ कोई सार-तत्व पूर्ण नहीं हैं, कोई स्वश्लाघा,/ बस इंतज़ार करो अपने को रूह में टिकाकर"। आज पहलीबार पर प्रस्तुत है शम्भु यादव की कविताएँ। शम्भु यादव की कविताएँ सुबह हो रही है और सुबह हो रही है और तुम्हारी आंख खुलने से जो तिर आया है रात का काजल मुख के रोओं में इस क़दर कि तुमने इसे पहचान ...