खेमकरण सोमन की कविताएँ

खेमकरण सोमन

 

परिचय

 

शिक्षा : एम00, बी0एड0, टीईटी, यूजीसी-सेट, यूजीसी नेट-जेआरएफ, और वर्तमान में कुमाऊँ विश्वविद्यालय नैनीताल से हिन्दी लघुकथा में पी-एच0 डी0 अध्ययनरत।

 

प्रकाशन :  कहानी, लघुकथा, उपन्यास, आलोचना, सिनेमा और समसामयिकी विषयों में विशेष रूचि। कथाक्रम, परिकथा, वागर्थ, बया, कथादेश, पुनर्नवा, पाखी, दैनिक जागरण, विभोम-स्वर, नया ज्ञानोदय, आधारशिला, लघुकथा डॉट कॉम, कविता विहान, आजकल, कादम्बिनी, पाठ, युगवाणी, उत्तरा और अक्सर आदि पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित।

 

सम्मान :  कहानीलड़की पसंद हैपर दैनिक जागरण द्वारा युवा प्रोत्साहन पुरस्कार,

 

कथादेश अखिल भारतीय हिन्दी लघुकथा प्रतियोगिता में लघुकथा अन्तिम चारा को तृतीय पुरस्कार

 

इन दिनों पहले कविता-संग्रह  नई दिल्ली दो सौ बत्तीस किलोमीटर  की तैयारी।

 

 

हर रचनाकार की अपनी खुद की पृष्ठभूमि होती है। अपना खुद का संघर्ष होता है। सही मायनों में रचनाकार वही होता है जो सुनी सुनाई बातों से नहीं बल्कि अपने खुद के अनुभव की भट्ठी से रचना को तपा कर निकाले। वही रचना दीर्घजीवी होती है। खेमकरण सोमन की कविताएँ आश्वस्त करती हैं कि यह युवा कवि अनुभव की आँच में तपने के लिए तैयार है। जिन्होंने कोल्हू में गन्ने का पिरना देखा होगा वे जानते होंगे कि किस तरह उसकी एक एक बूँद निचोड़ने की कोशिश की जाती है। अन्त में जो बची हुई खोई निकलती है उसे भी भट्ठी में डाल दिया जाता है। इस तरह मिठास और मिठास को रचने वाले आँच को अस्तित्व में ला कर गन्ना खुद अपना अस्तित्व खो बैठता है। खेमकरण ने अपनी कविता 'गन्ने अब खोई बन चुके हैं' में बड़े सधे अंदाज में मजदूरों का साम्य उस गन्ने से करते हैं जो अंततः सृजन कर अपना अस्तित्व गँवा बैठता है। आज पहली बार पर प्रस्तुत हैं खेमकरण सोमन की कविताएँ।

 

 

 

  खेमकरण सोमन की कविताएँ

 

 

     लौट पड़ते हैं बीमार बच्चे

 

 

 

डॉक्टरों की फीस सुन कर

ठहर जाते हैं माता-पिता आज भी

 

 

वे तौलते हैं

डॉक्टरों की फीस का वजन

अपने बीमार बच्चों और उनकी बीमारी का वजन

तो पाते हैं डॉक्टरों की फीस का वजन ही है

बहुत ज्यादा

 

 

गरीब माता-पिता लौट पड़ते हैं

लौट पड़ते हैं बीमार बच्चे भी

इस दुनिया से

इस दुनिया में कभी आने के लिए।

 

           

     वे सब पूछ रहे हैं किधर दौड़ें

 

 

कुछ लोग जो पीछे रह गए हैं

मैंने कहा-दौड़ते रहें

भाया दौड़ते रहें

 

 

पीछे रह गए लोग ऐसे पहाड़ी हैं

पहाड़ को लूटना,  बर्बाद करना जो नहीं जानते हैं

जो नहीं जानते हैं रास्ते घेर कर चलना

जो नहीं जानते हैं विकास पथ पर दौड़ना

जो नहीं जानते हैं चकाचौंध-वकाचौंध

जो नहीं जानते हैं जात-पाँत, छल-कपट

जो नहीं जानते है बातें बनाना-ठगना

या चाल-चालाकी

 

 

ये तो जानते हैं मदद करना

अजनबियों को आदर-सम्मान देना

भूखों को जी भर के खाना खिलाना

जंगल से घास,  लकड़ी लाना

बहुत दूर से आ कर धारे से पानी भरना

 

 

स्थिर गाँव के

इन लोगों का दिल-दिमाग भी स्थिर है

पहाड़ की तरह

 

 

वे सब पूछ रहे हैं किधर दौड़ें

मैं बदल देता हूँ अपनी बात

कहता हूँ जिधर अभी तक दौड़ रहे हैं

 

 

गाँव के लोग हँसने लगते हैं

हँसने लगता हूँ मैं भी

 

 

मैं

जो इनके बीच अभी नया आया हूँ

हो जाता हूँ इन्हीं की दौड़ में शामिल अब।

 

 

 

           पानी की आँखों से निकलता है पानी

 

 

प्रेमी पानी देखता है

पानी की धार देखता है

पारदर्शिता देखता है

कर लेता है उनसे दोस्ती और प्यार

 

 

आजाद ख्याल पानी को फिर वह

रखने लगता है अपनी जेब में

अपनी गाड़ी में-अपने मोबाइल,  लैपटॉप में

कभी किसी होटल में

कभी ले जाता है समुद्र तटीय इलाकों में

पीने लगता है पानी जब तब और

नहाता भी है उनसे जी भर

 

 

फिर एक दिन

यह मानते हुए कि यह पानी हो चुका है अब गन्दा

उसे छोड़ निकल जाता है कहीं और

तरोताजा पानी की तलाश में

 

 

प्रेमी चाहता है

शादी से पहले और बाद में

अलग-अलग पानी हो उसकी जिन्दगी में

उसे नहीं फिक्र कि पानी के पेट में है पानी

जो बेचैन है जनमने के लिए

 

 

दिन के प्रकाश में

और रात के भयानक अन्धकार में

पानी की आँखों से निकलता है पानी

या निकल जाती है पानी की आँखों से हमेशा के लिए

एक मासूम आत्मा

जिसे नहीं पढ़ पाती है यह दुनिया

कभी प्रेमी

 

 

प्रेमी

बस इतना ही पढ़ता है कि प्रेमिका है पानी!

 

 

 

 


 

 

 

            खून से अब नमक निकल रहा है

 

 

संघर्ष से

जिन्दगी निकलती है

जिन्दगी से अब संघर्ष निकल रहा है

 

 

पानी से

नदी निकलती है

नदी से अब पानी निकल रहा है

 

 

किसानों से

खेत निकलते हैं

खेत से अब किसान निकल रहे हैं

 

 

रिश्तों से

परिवार निकलते हैं

परिवार से अब रिश्ता निकल रहा है

 

 

नमक से

खून निकलता है

खून से अब नमक निकल रहा है।

 

 

            चुप रहूँगा आज से मैं भी

 

 

कुछ लोग चुप रहते हैं

बोलते नहीं हैं बल्कि महसूसते हैं ज्यादा

 

 

ये चुप लोग

पेड़ बन कर देते रहते हैं फल,  छाया, लकड़ी

नदी बन कर पहुँचाते रहते हैं हर जगह पानी

सूरज बन कर बिखेरते रहते हैं रोशनी

चाँद,  तारे बन कर बाँटते रहते हैं शीतलता

मिट्टी बन कर उपजाते रहते हैं जिंदगी

फूल बन कर महकाते रहते हैं अपना वातावरण

 

जान गया हूँ

ये चुप लोग ही बादल बनते हैं

हवा बनते हैं

मर्ज की दवा बनते हैं

रोटी बनते हैं,  तवा बनते हैं

 

 

कई बार देखा है मैंने

कुछ लोग ज्यादा बोलते हैं तो

उनको भी चुप करा देते हैं

ये चुप लोग

 

 

कुछ लोग चुप रहते हैं

बोलते नहीं हैं बल्कि महसूसते हैं ज्यादा

 

चुप रहूँगा आज से मैं भी!

 

 

            आखिर कहाँ से लाए ऐसी आँखें

 

 

पहाड़ टूट जाते हैं,  तारे भी

पेड़ टूट जाते हैं,  डालियाँ भी

पुल टूट जाते हैं,  सड़कें भी

लय टूट जाती है,  विश्वास भी

बातें टूट जाती है,  घर भी

पुरूष टूट जाते हैं और स्त्रियाँ भी

यहाँ तक कि आजकल पाँच,  दस-पन्द्रह वर्ष के बच्चे भी

टूट जाते हैं

 

 

चीजों के टूटने की बहुत लम्बी फेहरिस्त है

ये एक बार क्या टूटते कि टूटते ही चले जाते हैं

कुछ टूटना अच्छा लगता है जैसे बुरी इरादों का टूटना

कुछ टूटना बहुत बुरा लगता है जैसे

कम नम्बर लाने के कारण विद्यार्थियों का टूट जाना

 

 

लेकिन

टूटते हैं वे नहीं जो टूट चुके हैं

बल्कि टूटते हैं वे जो जुड़े हुए हैं

अथवा पहले कभी टूटे ही नहीं

 

 

आखिर

किन वजहों से टूटते हैं वे

कि इनसे दुनिया कनेक्ट ही नहीं हो पाती

ब्लूटूथ या वाई-फाई की तरह

 

 

किसी का टूटना जिन्दगी को अलविदा कहने की

एक धीमी प्रक्रिया है

और बहुत तेज भी

 

 

इक्कीसवीं सदी की सुविधाओं में और घर में बैठ कर

किसी को टूटते देखने का सुख आज जो उठा रहे हैं

पूछना रहा हूँ उनसे- आखिर कहाँ से लाए हैं ऐसी आँखें

जिनमें पानी तक नहीं!

ऐसे हाथ कि बढ़ा नहीं पा रहें टूटे हुए व्यक्तियों की ओर!

मुँह भी ऐसे कि कुछ बोल फूटे!

 

 

आखिर कहाँ से लाए हैं ये सब

कहाँ से ?

 

 

            छानबीन

 

इस बार भी की

छानबीन उन्होंने

 

इस बार भी हो गया

ट्रांसफर उनका

 

इस बार भी निकले

किसी के हाथ

बहुत दूर तक।

 

 


 

 

            दुखहरण काका परेशान हैं

 

 

दुखहरण काका परेशान हैं

बहुत परेशान हैं

वे इतने परेशान हैं-

हो गए हैं आसपास के लोग इकट्ठे

कि कितने परेशान हैं!

 

 

हाँ!

इकट्ठे हो गए हैं लोग

अपना काम धाम छोड़-छाड़ कर

 

 

लेकिन

इसलिए नहीं कि

कुछ मदद करेंगे दुखहरण काका की

बल्कि दुखहरण काका परेशान क्यों हैं

इसलिए और बस यही जानने के लिए

 

 

दुखहरण काका परेशान हैं घर के अन्दर

और सभी लोग घर के बाहर!

 

 

 

      गन्ने अब खोई बन चुके हैं

 

 

 

गन्ने डाल दिए जाते हैं कोल्हू में

गन्ने देते हैं गाढ़ा मीठा रस

 

 

गन्ने डाल दिए जाते हैं फिर से

गन्ने हैं कि चूकते नहीं हैं

रस देने में

 

 

गन्ने डाल दिए जाते है फिर

गन्ने भी दे देते हैं अब अपना अंतिम बूंद

 

 

इतना हो जाने के बाद भी गन्ने

डाल दिए जाते हैं फिर से कोल्हू में

गन्ने अब खोई बन चुके हैं

टूट-टूट कर गिरने-बिखरने लगते हैं

छोटे-बड़े टुकड़ों में

खोई भी डाल दी जाती है अन्त में

भट्टी में या चूल्हे में

 

 

मजदूर भी

गन्ने ही होते हैं।

 

 


           

    हरिद्वार में बहा क्यों नहीं देते

 

 

इस शरीर में एक आत्मा है

दो सौ छह हड्डियाँ हैं

कई किलो खून है

माँस है और नाखून हैं

कान हैं,  आँखें हैं

मुँह हैं,  दिल-दिमाग है

सैकड़ों विचार हैं

साम्प्रदायिक चेहरा भी है

 

 

चेहरे पर दुष्टता के इतने मुखौटे हैं कि

मुखौटे हटा नहीं पा रहे हो

दूसरों का हक मार कर इतना जोड़ लिया है

कि अब घटा नहीं पा रहे हो

 

सुनो,  जरा सुनो

इस मुखौटे को जला कर इसका फूला तुम

हरिद्वार में बहा क्यों नहीं देते

 

 

फिर देखो

किस तरह ओजोन परत का छिद्र होता है बन्द

किस तरह लौटता है सूखी नदियों में पानी

किस तरह प्रकट करती हैं समुद्र की लहरें अपनी खुशियाँ

किस तरह एक चिट्ठी पहुँच जाती है महीनों बाद भी अपने गन्तव्य पर

किस तरह खड़ा रहता है एक मकान

अपने असली मुखिया का इन्तजार करते

हुए सदियों तक

 

 

किस तरह लौट आता है

एक भूला भटका पंछी आँधी-तूफानों में भी

अपने घर

 

फिर देखो किस तरह।

 

 

 

     (इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग्स वरिष्ठ कवि विजेंद्र जी की हैं.)

   

 

 

 

 

     सम्पर्क

 

     खेमकरण  सोमन

     द्वारा श्री बुलकी साहनी,

     प्रथम कुँज,  अम्बिका विहार कॉलोनी,

     भूरारानी, वार्ड नम्बर-32,

     रूद्रपुर, जिला ऊधम सिंह नगर,

      उत्तराखण्ड-263153

     

      मोबाइल : 09045022156

      ईमेल :  khemkaransoman07@gmail.com

 

 

टिप्पणियाँ

  1. बहुत सुंदर, ताजगी से भरी हुई कविताएँ💐

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुंदर, ताजगी से भरी हुई कविताएँ💐

    जवाब देंहटाएं
  3. साथी कवि खेमकरण सोनम की प्रस्तुत सभी कविताएँ अपने समय की सच्चाई , विकट संघर्ष और संघर्ष के बीच भी अपनी निजता , अपने जीवन सरोकरारों से जुड़े रहने की जिद्द के लिए मुझे अच्छी लगीं। खेमकरण संभावना से भरे जीवन यथार्थ के कवि हैं ! उनकी दृष्टि गहरी और संवेदना व्यापक है ! बधाई भाई खेमकरण जी को !

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुन्दर रचनाएँ।
    खेमकरन सोमन को बधाई हो।

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

मार्कण्डेय की कहानी 'दूध और दवा'

प्रगतिशील लेखक संघ के पहले अधिवेशन (1936) में प्रेमचंद द्वारा दिया गया अध्यक्षीय भाषण

हर्षिता त्रिपाठी की कविताएं