शैलेन्द्र चौहान के कविता संग्रह की रामदुलारी शर्मा द्वारा की गई समीक्षा 'आत्ममुग्धता से दूर : सीने में फांस की तरह'
शैलेन्द्र चौहान का व्यक्तित्व बहुआयामी है। कवि, आलोचक, सम्पादक की भूमिका में वे ख्यात हैं। शैलेन्द्र जी जनता के पक्ष में खड़े रहने वाले कवि हैं। उनकी प्रतिबद्धता उस जनता के लिए है जो अक्सर राजनीतिज्ञों और सत्ताधारियों के बहकावे में आ जाती है। लोकतन्त्र के लिए जनता का सचेत और जागरूक रहना आवश्यक होता है। हमारे नेता चुनाव के वक्त जनता को तमाम तरह के लोभ लालच में फांसने का प्रयत्न करते हैं और प्रायः सफल भी रहते हैं। इसीलिए हमारा लोकतन्त्र उन सपनों को पूरा नहीं कर सका जो हमारे स्वतन्त्रता संग्राम सेनानियों ने आजादी की लड़ाई के वक्त देखे थे। शैलेन्द्र चौहान जनता को उन चालाकियों से अवगत कराते हैं। हाल ही में न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन से उनका एक कविता संग्रह "सीने में फांस की तरह" प्रकाशित हुआ है। इस संग्रह की समीक्षा लिखी है रामदुलारी शर्मा ने। तो आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं शैलेन्द्र चौहान के कविता संग्रह "सीने में फांस की तरह" की रामदुलारी शर्मा द्वारा की गई समीक्षा 'आत्ममुग्धता से दूर : सीने में फांस की तरह'।
आत्ममुग्धता से दूर : सीने में फांस की तरह
रामदुलारी शर्मा
समकालीन रचनाकार कवि-लेखक-संपादक शैलेंद्र चौहान का कविता संग्रह "सीने में फांस की तरह" 2023 में न्यूवर्ल्ड प्रकाशन दिल्ली से प्रकाशित हुआ है। इस संग्रह में 57 कविताएं संग्रहित हैं। अभी तक उनकी कविता एवं कहानी के कई संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। वर्तमान में साहित्यिक पत्रिका "धरती" के संपादक हैं। जब-जब मनुष्य के विरोध में राजनैतिक दबाव और सामाजिक विसंगतियां उत्पन्न हुई हैं तब रचनाकारों ने अपनी कलम की पैनी धार से विरोध करते हुए षड्यंत्रकारी करतूतों का पर्दाफाश किया है। शैलेंद्र चौहान की कविताओं में मानव मूल्यों की पक्षधरता में राजनीतिक चालों और समाज में विभेदात्मक नीतियां आजमाने पर तीखे सवाल उठाए हैं। वर्तमान में देश के हुक्मरानों की चालाकियों से भ्रमित जन-मानस दलित, आदिवासी, जो लंबे समय से प्रभावशाली शासक वर्ग के शोषण के शिकार रहे हैं और अचानक से उन्हीं ज्यादती करने वालों के हृदय में प्रेम का उमड़ना, कही न कहीं शंका तो पैदा करता हैं! लेकिन वे भोले लोग चालाकियों से अनभिज्ञ रह कर झूठे प्रेम के सागर में डूबने लगते हैं। वे नहीं समझते कि यह एक छलावा है। अचानक प्रेम का उदय होना भय पैदा करता है। इस प्रसंग में रामचरित मानस के अरण्य काण्ड में दसों दिशाओं का राजा रावण मारीच की कुटिया में जा कर निज स्वार्थ के कारण निवेदन करता है। मारीच समझ गया था कि अब मेरी मृत्यु निकट है। किसी क्रूर और हिंसक का झुकना खतरे से खाली नहीं हौता!
भयदायक खल कै प्रिय बानी। जिमि अकाल में कुसुम भवानी।।
इन कुटिल प्रवृति वाले लोगों के प्रसंग में कबीर दास जी ने भी लिखा है -
बिल्ली देखी बगुला देखा, सांप जो देखा बिल का।
बाहर -बाहर सुंदर लागे, भीतर गोला मल का।
उपरोक्त संदर्भ में दलित प्रेम कविता का अंश देखें -
"उनके मन में दलितों के प्रति
है इतना प्रेम कि हुलस गए
पैर पखारने के लिए कुंभ में
बहुतों ने दलितों के साथ बैठ कर खाना खाया..........."
"राष्ट्र हित में दलित
खुशी से मान लेते हैं उनकी दलीलें
और पूरी श्रद्धा से लौटाते हैं वापस प्रेम
ईवीएम में दर्ज करते हैं इतिहास
समाज में तेजी से बढ़ रहा है सद्भाव"
शेलेंद्र चौहान की रचनाएं सत्ताधारियों की कूट चालों को भली-भांति परखने में सक्षम हैं। जन विरोधी शक्तियां अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए अनेक तरह के खेल खेलती हैं। अनेक रंगों के आवरणो में अपने भीतर के दाग छुपाने के प्रयास में कभी प्रकृति से प्रेम का दिखावा करते हैं, कभी पशु पक्षियों के प्रेमी बन कर देश का विकास मीडिया में दर्ज करते हैं। जो बोल नहीं सकते उनसे प्यार जताते हैं और जो बोलते हैं उनके अस्तित्व को खत्म कर देना चाहते हैं। यही कारण है कि इस समय कलाकारों, साहित्यकारों और संगीतकारों पर वे हमलावर हैं। उठते हुए प्रश्न मन की बातों में खलल पैदा करते हैं। इसलिए वे मंदिर, मस्जिद और पशु पक्षियों में माध्यम से मीडिया में छा जाना चाहते है। क्योंकि इन विचित्र हरकतों पर वे प्रश्न नहीं उठा सकते। चीता चीता कविता का अंश -
"नहीं देखना चाहता वह चेहरा किसी मनुष्य का
चाहे वह शहंशाह हो या कोई निर्धन प्रजा-जन
भारत का हो या नामीबिया का
रही बात कपड़ों की तो उनसे उसका दूर का भी कोई संबंध नहीं
फोटो खिंचाने का भी उसे कोई शौक नहीं
ढोंग, दिखावा, चोंचलों का शौक
और बहुरूपिया बनने की कला उसकी प्रकृति नहीं
सत्ता विमर्श का हिस्सा बनना आवश्यकता नहीं
यूं उसकी
चाटुकार मीडिया की मजबूरी है यह"
शैलेन्द्र चौहान |
इस तरह की रचनाओं में दलित प्रेम, चीता चीता, धर्म निरपेक्षता एक मिथ है, अवसान, बौनों के देश में, मौसम बहुत सुहाना है, शायद मैं शायद तुम, चाह यही बस, कुछ कमजोरियां आदि कई कविताएं हैं। रचनाकार की दृष्टि में मेहनतकश मजदूर, खेतिहर किसानों और जंगलों, पहाड़ों पर जीवनयापन करने वाले लोगों के प्रति गहरी सहानुभूति है। उनके जीवन के रंग और उनकी शारीरिक पुष्टता अपनी मेहनत के दम पर है, किसी के अनुग्रह पर नहीं!
"मेहनत से होता है शरीर
और मजबूत
कैसी भी रहे काठी किसान की
उसमें शक्ति और स्फूर्ति होगी भरपूर
श्रमिक काया होगी वलिष्ठ मजबूत
और पत्थर सी....."
मानवीय मूल्यों की क्षति संसद में सिर्फ प्रश्न बन कर रह जाती है। उसका उत्तर, प्रश्न के साथ ही संसद में विलीन हो जाता है। आखिर ऐसे जरूरी जनहितकारी मुद्दों पर सवाल कौन उठाएगा? इस संदर्भ में कोंडबा कविता सत्ता को बेनकाब करती हुई सत्ताधारियों पर गंभीर सवाल खड़े करती है।
"तब इस राष्ट्र में कोंडबा के
नागरिक पराभव का खाता
कौन ऑडिट करेगा?
हाथ, घुटने, पेट की तकलीफ़ का
बीमा कहां होगा?
कौन मरने पर कोंडवा के
शोक प्रस्ताव लायेगा?
प्रेस में आएगा कहने कौन
देश की भारी क्षति हुई है
न रहने पर कोंडबा के
चलती रहेगी घास पर तलवार उसकी
घास बढ़-बढ़ कर कटती रहेगी
बढ़ती रहेगी
बहस संसद में चलती रहेगी
देश हित में
कोंडबा जीता रहेगा मरता रहेगा
अनजान संसद से
संसद भी जारी रहेगी
बेअसर अनजान अस्तित्व से उसके"
इस संग्रह की रचनाएं विषयवस्तु के अनुसार इस समय की समस्याओं को उकेरती हुई अपनी बात कहने में पूर्ण सक्षम हैं। रचनाकार ने अपनी रचनाओं के माध्यम से अपने भीतर उठते हुए सवाल और उद्गारों को बेबाकी से उजागर किया है। "फूल भी कहां खिले हैं अभी" कविता में मन के अंतर्प्रवाह के साथ प्रकृति का अहसास भी मन के अनुरूप ही चलता है। चाहे वसंत हो या वर्षा। प्रकृति का परिवर्तित रूप में केवल उल्लास ही नही उदासी भी है। यहां रचनाकार ने गहरी संवेदना के साथ लिखा है - "कौन कहता है कि वसंत में उदास नहीं हुआ जा सकता"। समग्र रूप से देखा जाय तो इस संग्रह की रचनाएं आत्ममुग्धता से कहीं दूर समकाल की आवाज बन कर आती हैं। रचनाकार शैलेंद्र चौहान जी को अनंत शुभकामनाओं के साथ साधुवाद।
पुस्तक : "सीने में फांस की तरह"(कविता संग्रह)
लेखक : शैलेंद्र चौहान
प्रकाशक - न्यू वर्ल्ड प्रकाशन, दिल्ली
मूल्य : 200/ रुपये
संपर्क :
रामदुलारी शर्मा C/O Ms Satyabhama Rajoria
Netaji Nagar, Flat no-14,
Near Akshya Restaurant, Kalapet,
Pondicherry Pin-605014
Mob-831907272
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